Sunday, January 31, 2016

Vyang -- स्मार्ट लोगों के लिए स्मार्ट सिटी

                  कुछ दिन पहले सरकार ने घोषणा की थी की वो 100 शहरों को स्मार्ट बनाएंगे। अब जो लोग सोच रहे हैं की पुरे देश को क्यों नही तो मैं उन्हें बता देना चाहता हूँ की पुरे देश को पहले डिजिटल इंडिया बनाया जा चूका है। सो एक देश को दो चीजें तो नही बनाया जा सकता। इसलिए सरकार ने शहरों को स्मार्ट बनाने का फैसला लिया है। बाद में सरकार को ध्यान आया की ये कुछ ज्यादा हो गया, सो उसने घोषणा कर दी की पहले 20 शहरों को स्मार्ट किया जायेगा और बाकी को बाद में देखा जायेगा। सो पहले 20 शहरों की घोषणा कर दी। मेरे एक मित्र पूछ रहे थे की शहरों का चुनाव किस आधार पर किया गया है ? तो मैंने उन्हें बता दिया की पहले उन शहरों का चुनाव किया गया है जो पहले ही कुछ-कुछ स्मार्ट थे। इस पर मेरे मित्र बिदक गए और बोले की पहले मदद का हक तो कमजोर का होता है। मुझे हंसी आई। मैंने उन्हें कहा की भाई कमजोर को मदद की जा सकती है जिन्दा रहने के लिए। बहुत हुआ तो चलने फिरने के लिए। अगर उसे स्मार्ट बनाया जाने लगा तो हो गया काम। फिर क्या वो लोग जो पहले ही स्मार्ट हैं, क्या वो अपना घर-बार लेकर रहने के लिए वहां जाएँ।
               और ये स्मार्ट लोग कौन हैं ? मित्र ने पूछा।
        ये स्मार्ट लोग कई तरह के होते हैं। स्मार्ट शहरों में भी कुछ स्मार्ट मुहल्ले होते हैं जिन्हे पॉश एरिया कहा जाता है, इन्ही एरिया में ये लोग रहते हैं। जिन शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना है उनमे भी इन्ही एरिया पर ध्यान दिया जायेगा विशेष रूप से। जैसे पूरी दिल्ली को स्मार्ट नही बनाया जा रहा है। केवल नई दिल्ली म्युनिसिपल एरिया, जहां नेता, सांसद, बड़े-बड़े अफसर और पैसे वाले लोग रहते हैं उसी को स्मार्ट बनाने की योजना है। वैसे भी आम आदमी, जो खुद स्मार्ट नही है वो स्मार्ट सिटी में रहकर क्या करेगा ?
               क्या करेगा का क्या मतलब ? ये स्मार्ट लोग क्या करते हैं ? मित्र था की ठंडा होने का नाम ही नही ले रहा था।
               मैंने उसे फिर समझने की कोशिश की ," देखो भाई, ये स्मार्ट लोग बड़े बड़े काम करते हैं। लेकिन अलग अलग काम करने वाले इन स्मार्ट लोगों के काम में गजब का आपसी तालमेल होता है जो आम आदमी में नही पाया जाता। जैसे एक बड़ा स्मार्ट उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ का कर्ज ले लेता है। उस बैंक के स्मार्ट अधिकारी आँखे बंद करके उसे कर्ज दे देते हैं। फिर वो कर्ज लौटाने से स्मार्ट इंकार कर देता है। बैंक के लोग उससे पैसे की उगाही करते हैं तो उसके स्मार्ट वकील बैंक को अदालत में ले जाते हैं और बैंक पर आरोप लगाते हैं की बैंक उनके इज्जतदार मुवक्किल को परेशान कर रहा है और उसे पैसे मांगने का कोई हक ही नही है। उनके स्मार्ट टीवी चैनलों में बैठे स्मार्ट एंकर और स्मार्ट विशेषज्ञ आँसू बहाना शुरू करते हैं की देश में व्यापार का माहौल ही नही है। इस तरह से उद्योगपतियों को परेशान किया जायेगा तो विदेशी निवेश कैसे आएगा। रिजर्व बैंक चेतावनी जारी करता है की बैंको को खराब लोन कम करने चाहियें। रिजर्व बैंक की बात मानकर बैंक उसका लोन माफ़ कर देता है और उसके खराब लोन की संख्या कम हो जाती है। फिर वित्त मंत्री उसके उद्योग के लिए विशेष छूट का प्रस्ताव रखते हैं और बताते हैं की इससे रोजगार में बढ़ौतरी होगी। स्मार्ट विशेषज्ञ सरकार के स्मार्ट कदम का स्वागत करते हैं। जब तक वो उद्योगपति यूरोप में अपना स्मार्ट टूर खत्म करके वापिस आता है उसका कर्ज उत्तर चूका होता है, नए फायदे का रास्ता बन चुका होता है। वो उद्योगपति सीधा एयरपोर्ट से वित्त मंत्री के दफ्तर पहुंचता है, वहां से बाहर निकल कर नए निवेश की घोषणा करता है और बयान देता है की सरकार एकदम सही चल रही है और तेजी से विकास की संभावना बढ़ रही है। वो ये भी कहता है की उसके हाल के युरोप टूर के दौरान पूरी दुनिया में केवल हमारी ही चर्चा हो रही थी और की पूरी दुनिया हमारी तरफ देख रही है। टीवी चैनल में बैठा सरकारी पार्टी का स्मार्ट  प्रवक्ता इसे उद्योगपतियों में बढ़ते हुए विश्वास के रूप में व्याख्यायित करता है और "
          " और "
          और हम सब यानि देश की जनता, टीवी पर खबर सुनकर ऐसा महसूस करते हैं जैसे हमारा विकास हो रहा है। बिना आदमी और उसकी समस्याओं को छुए, उसे ये विश्वास दिलाना की उसका विकास हो रहा है क्या कम स्मार्ट बात है।

Monday, January 25, 2016

Vyang -- गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर दिल्ली में टहलना

                 आज गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या है। इस दिन महामहिम राष्ट्रपति महोदय राष्ट्र के नाम सन्देश देते हैं। ये राष्ट्र कौन है और कहां रहता है ये मुझे कभी पता नही रहा। सो ये सोचकर की ये अपना काम नही है मैं महामहिम का सम्बोधन छोड़कर दिल्ली में टहलने निकल पड़ा।
                   अभी कुछ ही दूर चला था की एक आदमी मुझे मिला। उसने मुझसे पूछा की कहां जा रहा हूँ तो मैंने बता दिया की दिल्ली घूमने का विचार है यूं ही टहलते टहलते। तो उसने उत्सुकता से कहा की भैया अगर यमुना जी की तरफ जाओ तो वहां एक नजर डाल लेना और गणतंत्र दिख जाये तो मुझे फोन कर देना।
                    लेकिन गणतंत्र यमुना जी के किनारे क्योँ मिलेगा ? मैंने पूछा।
                 अब क्या बताएं भईया। गणतंत्र दिवस से ठीक दो दिन पहले केंद्र कैबिनेट ने अरुणाचल प्रदेश में चुनी हुई राज्य सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। उस समय से गणतंत्र को लग रहा है की इन लोगों के हाथों से मरने से तो अच्छा है की आत्महत्या ही कर लूँ। और घर छोड़कर चला गया। अब मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।
                  तो तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नही करते ? मैंने पूछा।
               उसने एक खिसियानी सी हंसी हंसी और बोला की गया था भैय्या , लेकिन दरोगा ने कहा की तुम्हे दिखाई नही देता की 26 जनवरी के लिए कितनी तैयारियां करनी पड़ रही हैं। ऐसे समय में हम देश की सुरक्षा को छोड़कर इन ऐरे-गैरों को ढूंढते फिरें ? चलो भागो।
              ठीक है मैं ध्यान रखूँगा, मैंने कहा और पहले यमुना जी के घाट पर ही जा पंहुंचा।
             वहां घाट से कुछ दुरी पर कुछ मजदूर यमुना जी के किनारे पर पड़ा कचरा साफ कर रहे थे। एक बड़ी सी गाड़ी के पास एक मोटा सा आदमी शानदार कपड़े पहने खड़ा हुआ था। गाड़ी के अंदर डैशबोर्ड पर छोटा सा लेकिन खूबसूरत नया तिरंगा लगा हुआ था। मैंने उस झण्डे को ध्यान से देखने की कोशिश की तो उसने मुझे टोका।
                क्या देख रहे हो भाई साहब ? कल गणतंत्र दिवस है। इस दिन हमारे देश को आजादी मिली थी। सो हर देश भक्त को अपनी गाड़ी पर तिरंगा लगाना चाहिए। मैं तो हर साल लगाता हूँ।
                  और जिसके पास गाड़ी ना हो वो क्या करें अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए ? उन मजदूरों की तरह के लोग। मैंने सफाई करते मजदूरों कि तरफ इशारा किया।
                  वो हँसा , उनको तो ये भी पता नही होगा की कल गणतंत्र दिवस है। ये तो देश पर बोझ हैं बोझ। वैसे भी इनके झण्डा लगाने ना लगाने से क्या फर्क पड़ता है ? उसने हाथ में पकड़ी हुई लिम्का की बोतल खत्म की और यमुना में उछाल दी। फिर उसने मेरी तरफ देख कर पूछा की तुम यहां क्या कर रहे हो ?
                कुछ नही , किसी ने मुझे कहा था की गणतंत्र आत्महत्या करने निकला है सो मैं उसे यमुना जी के किनारे ढूंढने की कोशिश करूँ।
                  ये सब गए गुजरे लोग हैं जो आत्महत्या करके देश को बदनाम करते हैं। अब किसानो को ही देख लो, कायर कहीं के। काम धंधा तो करते नही हैं और निकल पड़ते हैं आत्महत्या करने के लिए, ताकि टीवी में नाम आ जाये। लेकिन इससे देश की कितनी बदनामी होती है इसका अंदाजा भी है उनको।  उसने गहरी नाराजगी प्रकट की।
                   तो आपका मतलब है किसान टीवी में नाम आने के लिए आत्महत्या करते हैं ? मैंने आश्चर्य से बाहर आने की कोशिश की।
                   वरना क्या वजह है ? आप नही करते, मैं नही करता। अगर कोई दूसरा कारण होता तो आप और हम भी करते। खैर, उधर ढूंढो ! उसने कुछ भिखारियों के टोले की तरफ इशारा किया।
                  मेरा मन किया की मैं भी आत्महत्या कर ही लूँ। परन्तु मैं वहां से निकल गया। आगे एक पान वाले की दुकान पर खड़ा हो गया। उसकी दुकान के टीवी में पद्म पुरस्कार मिलने वालों के नाम की घोषणा हो रही थी। उसमे नाम बोले जा रहे थे, अनुपम खेर, मधुर भंडारकर, मालिनी वगैरा वगैरा। मुझे लगा ये पद्म पुरस्कारों की बजाए सहिष्णुता के मामले पर निकाले गए सरकारी जलूस में भाग लेने वालों की कमेंट्री की जा रही है। तभी एक आदमी ने कहा की इसमें बाबा रामदेव का नाम क्यों नही है ?
                वहां खड़े एक दूसरे आदमी ने उसका जवाब देते हुए कहा की बाबा रामदेव को नोबल पुरस्कार की लिस्ट में रखा गया है। नोबल पुरस्कार मिलने के बाद उनको सीधा भारत रतन दिया जायेगा।
                प्रश्न करने वाला संतुष्ट नजर आया। उसके बाद मुलायम सिंह यादव का माफीनामा आया बाबरी मस्जिद तोड़ने के दौरान हुई कार्यवाही में कारसेवकों की मौत पर अफ़सोस व्यक्त करते हुए।
                मुझे लगा मुलायम सिंह थोड़ा लेट हो गए वरना पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में उनका भी नाम हो सकता था। उसके बाद फ़्रांसिसी राष्ट्रपति होलांदे और प्रधानमंत्री मोदी की चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में उतारी गयी कुछ फोटो दिखाई गयी। फोटो ठीक उसी अंदाज में थी जिसमे युवा जोड़े अजीबोगरीब पोज बनाकर और लड़की लड़के के पीछे खड़ी होकर कन्धे पर हाथ रखकर उतरवाते हैं। मुझे शर्म आई और मैं दूसरी तरफ देखने लगा। टीवी देखते वक्त मुझे दिन में करीब बीस बार ऐसा करना पड़ता है जब कोई घर की महिला सदस्य या अगली पीढ़ी के लोग साथ बैठें हों।
                  उसके बाद खबर दी गयी की अगले पांच राज्यों में होने वाले चुनावो में भी हार की जिम्मेदारी लेने के लिए अमित शाह को ही चुना गया है। किस्मत अपनी अपनी।
                  उसके बाद नेताजी से जुडी हुई फाइलों में शामिल एक पत्र का नमूना दिखाया गया जिसमे जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस को युद्ध अपराधी कहने का जिक्र था। उस पत्र में जितनी भाषाई और तथ्यगत गलतियां हैं उतनी गलतियां तो दसवीं तक पढ़ा लिखा कोई आदमी भी नही करता। और ये पत्र उस जवाहरलाल नेहरू के नाम से दिखाया जा रहा है जिसकी लिखी हुई किताबें अंग्रेजी और विश्व साहित्य में क्लासिक का दर्जा रखती हैं। मुझे लगा नेहरू आज जिन्दा होते तो जरूर आत्महत्या कर लेते।
                मेरी बर्दाश्त की हद आ गयी थी सो मैं घर की तरफ लौट पड़ा।

Friday, January 22, 2016

रोहित वेमुला की मौत पर

मैंने
सदियों से तुम्हे
अपने पैरों के नीचे रक्खा,
लेकिन
तुम झांक लेते थे
मेरे अंदर
और
बक देते थे सबकुछ बाहर ,
मुझे तुमसे डर लगता था
इसलिए
मैंने तुम्हे मारने के षड्यंत्र रचे,
और एक दिन
तुम मर गए
बिना मुझ पर आरोप लगाये ,
लेकिन
मेरा डर कम होने की बजाय
बढ़ गया ,
मैं अब सभाओं में आंसू बहा रहा हूँ,
तुम्हारे लिए
लेकिन डर है की कम होने का नाम ही नही ले रहा,
मैं क्या करूँ ?
इसलिए
मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ
की तुम मर जाओ
ताकि
सदियों से छुपा
मेरा सच बाहर ना आ सके।
वादा करो रोहित वेमुला
की तुम मरोगे,
उस संस्कृति की रक्षा के लिए
जो सदियों से महान है।

Wednesday, January 13, 2016

CPI(M) द्वारा गठबंधन के संकेत और उन पर उठते हुए सवाल

      सीपीएम के कोलकाता प्लेनम के दौरान वक्त की जरूरत के हिसाब से राज्यों में दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन करने के संकेत दिए गए हैं। इसके साथ ही उसकी इस रणनीति पर सवालों और आलोचनाओं की बाढ़ आ गयी है। खासकर कांग्रेस के साथ बंगाल में गठबंधन को एक तबके द्वारा भारी गलती बताया जा रहा है। जो लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं उनमे कई तरह के लोग शामिल हैं। इनमे पार्टी के कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं जो कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों को भूले नही हैं और जिनके दिमाग में कांग्रेस के साथ गठबंधन एकदम आश्चर्यजनक चीज है। इनमे कुछ पार्टी और मार्क्सवाद के जानकर लेकिन पार्टी से अलग हो चुके लोग जैसे JNU के भूतपूर्व SFI नेता परशेनजीत  बोस इत्यादि हैं। साथ ही इनमे कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको ये गठबंधन अपने खिलाफ दिखाई देता है। सवाल ये है की जिन आधारों पर इसकी आलोचना की जा रही है उनमे कितना दम है ?
          इसमें पहला सवाल ये उठाया जा रहा है की ऐसी कोई भी कोशिश वाम एकता को कमजोर करेगी। लेकिन सीपीएम ने पहले ही ये साफ किया है की वाम एकता उसके लिए पहली जरूरत है और इसे कोई नुकशान पहुंचाए बिना ही ऐसी संभावनाओं पर विचार किया जायेगा। सो सीपीएम की कोई मंशा वाम एकता को कमजोर करने की नही है।
           दूसरा सवाल कांग्रेस के वर्ग चरित्र को लेकर है। लेकिन जहां तक वर्गचरित्र का सवाल है तो वो तो बाकी सभी पार्टियों का वही है फिर चाहे वो जनता दल हो या समाजवादी पार्टी हो या फिर डी एम के हो। सीपीएम हमेशा इनमे से किसी ना किसी के साथ चुनावी तालमेल करती रही है।
            तीसरा सवाल विशुद्ध रूप से सैद्धांतिक है। क्या ऐसा गठबंधन मार्क्सवाद के खिलाफ होगा। इस पर विचार करने से पहले हमे देश के मौजूदा हालात का जायजा लेने की जरूरत है। आज देश में बीजेपी अपने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। उसका साम्प्रदायिक और फासिस्ट एजेंडा खुलकर सामने है। देश में भाईचारे और लोकतंत्र पर इस तरह का हमला पहले कभी नही हुआ। पुरे देश के शिक्षा संस्थानों में भगवा एजेंडा लागु किया जा रहा है। देश के धर्मनिरपेक्ष तबके को धक्के दे कर इनसे बाहर किया जा रहा है। भृष्टाचार के सवाल पर सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नही है। जनता और मजदूरों के हित के कानूनों को बदलने की कोशिश की जा रही है। इससे निपटने में वामपंथ के पास जरूरी ताकत नही है। संसद में सरकार की मनमर्जी को रोकने के लिए वाम, कांग्रेस और दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों के तालमेल से इसे राज्य सभा में थोड़ा बहुत रोका गया है और इस तालमेल का देश की जनता ने स्वागत किया है।
              दूसरा उदाहरण हमारे सामने बिहार चुनाव का है। जिसमे आदर्शवादी रुख अपनाते हुए एक तबके ने नितीश को लालू प्रशाद के साथ गठबंधन ना करने की सलाह दी थी। लेकिन बिहार की स्थिति को देखते हुए नितीश कुमार ने लालू प्रशाद के साथ गठबंधन किया और उसे बिहार के लोगों का जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ। जो लोग इस गठबंधन के विरोध में थे वो भी जब इस पर विचार करते वक्त ये अनुमान करते हैं की इस तरह का मूर्खतापूर्ण आदर्शवादी रुख राज्य में बीजेपी की सरकार बनवा सकता था। बीजेपी की सरकार से लालू-नितीश गठबंधन की सरकार लाख दर्जे बेहतर है।
                जहां तक बंगाल का सवाल है वहां वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों में लगभग 200 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। पुरे बंगाल में सत्ता के करीबी गुंडा तत्वों का आतंक है। ममता बैनर्जी और बीजेपी दोनों बंगाल के वातावरण का साम्प्रदायिक आधार पर धुर्वीकरण की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे हालात में अगर ये सम्भव होता है की ममता और बीजेपी को रोकने के लिए कोई राज्य स्तरीय गठबंधन हो सकता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। लोगों को मरते हुए छोड़कर अतिआदर्शवादी रुख कहां की समझदारी है।
                 जहां तक इसके बारे में केरल में जवाब देने का सवाल है तो ये जवाब तो कांग्रेस और सीपीएम दोनों को देना है। जहां तक लोगों को इसके बारे में सफाई देने की बात है तो लोग किसी भी राजनैतिक सिद्धांतकार से ज्यादा और अच्छे तरीके से राजनीती समझते हैं। लोगों को अपनी व्यवहारिक मुश्किलों का करीबी अहसास होता है।
                 इसलिए अगर तात्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस तरह का तालमेल सम्भव है तो वो व्यवहारिक रूप से फायदे का सौदा है।

Tuesday, January 12, 2016

November IIP DATA -- पटरी से उत्तर रही है विकास की गाड़ी।

          ये सरकार जिस एक चीज का नाम लेकर सत्ता में आई थी वो थी विकास। इस सरकार ने चुनावों के दौरान विकास के बड़े बड़े वायदे किये थे। पुरे देश में मोदीजी ने विकास के गुजरात मॉडल को सभी समस्याओं का हल बताया था। जिन लोगों ने गुजरात को देखा नही था या फिर बीजेपी की नजर से देखा था, वो बहुत उत्साहित थे। मीडिया ने ऐसा माहौल बना दिया था जैसे बीजेपी और नरेंद्र मोदी के आते ही विकास की गाड़ी सरपट दौड़ने लगेगी। कॉर्पोरेट सैक्टर भी कोल् और 2G के सारे अहसान और लूट को भूलकर जो कांग्रेस ने उसको खुली छूट देकर लूटने दिया था, नरेंद्र मोदी के पीछे लामबंद हो गया। लेकिन इस देश की विशेषताओं को समझते हुए कोई सही विकास का मॉडल उसके पास नही था। उसने UPA से जिस अवस्था में गाड़ी संभाली थी उसे वो एक इंच भी आगे नही बढ़ा पाई। आशंका तो ये जाहिर की जा रही हैं की अगर सरकार इन्ही नीतियों पर चलती रही तो देश की गाड़ी गड्ढे में उतर जाएगी।
           आज नवंबर महीने के IIP के आंकड़े घोषित हुए हैं। उनके अनुसार IIP की दर -3. 2 % है। पिछले महीने यही दर जब 9 . 8 % आई थी तो इस सरकार के मंत्रियों ने बहुत जोर जोर से अपनी पीठ थपथपाई थी। इसी ब्लॉग में मैंने तब भी लिखा था की त्योहारों के महीने के आंकड़ों से विकास  अंदाजा नही लगाया जाना चाहिए और कम से कम तीन लगातार महीनो के आंकड़े आने तक इंतजार करना चाहिए। उस समय का विश्लेषण
करते हुए हमने उसको उदाहरण ना मानने के कारण बताये थे। अब नवंबर के आंकड़े उसके आसपास तो दूर, नकारात्मक स्थिति में आ गए हैं। हालाँकि जिस तरह त्योहारों के महीने में अतिरिक्त उत्पादन होता है उसी तरह उसके तुरंत बाद के महीने में उत्पादन में एकदम कमी भी आती है। लेकिन इन आंकड़ों में सबसे ज्यादा चिंता का आंकड़ा है कैपिटल गुड्स में जो -25 % है। किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था में इस मद में एक अच्छी वृद्धि की उम्मीद की जाती है।
                दूसरी चिंता की बात ये है की उपभोक्ता महंगाई की दर बढ़ रही है। जिसमे खाद्य पदार्थों के मामले में ये 6 . 4 % हो गयी है जो वांछित दर से ज्यादा है। इसलिए रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज कम करने की संभावना खत्म हो जाती है।
                   कुल मिलाकर देश के विकास की गाड़ी पटरी से उतर रही है। और दूसरी तरफ इस सरकार का ध्यान लोगों की खरीद शक्ति बढ़ाने के उपाय करने की बजाय बुलेट ट्रेन जैसे अव्यवहारिक प्रोजेक्टों पर है। जिनसे केवल देश पर ब्याज और भुगतान का दबाव ही पैदा होगा।

Saturday, January 2, 2016

Opinion -- दो सरकारें, दो एजेंडे, दो रुख और दो परिणाम।

              सरकारों का रुख किसी मुश्किल काम को किस तरह प्रभावित करता है इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण हमारे सामने है। हम दो सरकारों के सामने आये दो महत्त्वपूर्ण कामों और उनके लिए अपनाये गए दो अलग अलग रुख की और उनके परिणामों की तुलना कर रहे हैं। ये दो सरकारें हैं एक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और दूसरी दिल्ली की केजरीवाल सरकार। इसमें मोदी सरकार के सामने एक महत्त्वपूर्ण सवाल था GST बिल को लागु करना और केजरीवाल सरकार के सामने था ओड-ईवन फार्मूला लागु करना। इसमें दोनों सरकारों ने जो रणनीति अपनाई उस पर नजर डालने की जरूरत है।

ओड-ईवन फार्मूला ----
                                     दिल्ली  बढ़ते हुए प्रदूषण कारण दिल्ली की सरकार के लिए इस पर कोई ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया था। दिल्ली की जनता की परेशानी के साथ साथ उच्चत्तम न्यायालय का हस्तक्षेप भी इस सवाल पर तुरंत काम करने की जरूरत को रेखांकित करता है। लेकिन प्रदूषण का सवाल बहुत ही उलझा हुआ और तकनीकी सवाल है। प्रदूषण के कारणों पर ही अलग अलग विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। जाहिर है की प्रदूषण किसी एक कारण से नही है। उसकी वजह से इस पर किये जाने वाले उपायों पर भी आम सहमति होना एक नामुमकिन सा काम है। दूसरी बड़ी समस्या ये है की प्रदूषण के जिस भी कारण पर कार्यवाही की जाती है तो वो समाज के एक हिस्से को प्रभावित करती है। उन चीजों पर कार्यवाही करनी पड़ती है जिनसे लोगों के रोजगार और रोजमर्रा की जिंदगी जुडी हुई होती है। इसलिए हर नए उपाय पर कुछ न कुछ लोगों का विरोध स्वाभाविक है। इसकी शुरुआत करते हुए जो कदम दिल्ली की सरकार ने उठाने की घोषणा की उसमे वाहनो के लिए ओड-ईवन फार्मूला लागु करना भी शामिल था। इससे बहुत बड़े पैमाने पर लोगों के प्रभावित होने का सवाल था। अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह की मुश्किलें आने वाली थी और ये जायज मुश्किलें थी। लेकिन दिल्ली की सरकार ने इस पर बहुत ही लचीला और व्यवहारिक रुख अपनाया। विपक्षी पार्टियां, और विशेषकर बीजेपी पहले  इसको फेल करने के प्रयास करने लगी। उसने इसके खिलाफ लाइन ले ली और  ये भी नही सोचा की इससे भविष्य में दिल्ली की जनता को कितना बड़ा नुकशान हो सकता है। बीजेपी का विरोध इतना बढ़ गया की पिछले दस दिन का दूरदर्शन के खबरों का आकलन करोगे तो ये सामने आ जायेगा की एक सरकारी न्यूज एजेंसी तक का कितना दुरूपयोग किया गया। लेकिन केजरीवाल सरकार ने इसमें आने वाली समस्याओं और लोगों के जायज सवालों पर बहुत ही लचीला रुख अपनाया। इस पर जो सवाल सामने आये और उनको सरकार ने जिस तरह से हल किया उसका एक उदाहरण नीचे दिया गया है।
सवाल --- इस पर पहला सवाल ये उठा की ये फार्मूला लागू ही नही हो सकता।
                         इसके जवाब में सरकार ने कहा की इसे पंद्रह दिन के ट्रायल पर लागू किया जायेगा और अगर कोई बहुत बड़ी परेशानी सामने आती है तो इसे वापिस ले लिया जायेगा। सरकार इसे जबरदस्ती लागू करने की इच्छा नही रखती।
सवाल --  दूसरा सवाल ये उठा की जो लोग रात की शिफ्ट में गाड़ी लेकर जाते हैं उनके वापिस आते वक्त तारीख बदल जाएगी तो क्या होगा ?
                           इसके जवाब में सरकार ने इसे सुबह आठ बजे से रात को आठ बजे तक सिमित कर दिया।
सवाल -- उसके बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखने की बात आई और कुछ शारीरिक रूप से अक्षम लोगों का सवाल सामने रक्खा गया।
                          इसके जवाब में सरकार ने महिलाओं और विकलांगों को इस फार्मूले से बाहर कर दिया।
सवाल -- उसके बाद दुपहिया वाहनो के बंद होने से आने वाली मुश्किलों का मामला सामने आया।
                         सरकार ने पहले चरण में दुपहिया वाहनो को भी इससे मुक्त कर दिया।
       इस तरह जो भी व्यवहारिक सवाल सामने आये उन पर सरकार ने बहुत ही सकारात्मक तरीके से जवाब दिया और हल निकाला। उसके जवाब में दिल्ली की जनता ने भी इसे उतने ही खुले मन से स्वीकार किया। पहले दो दिनों की जो सूचना सामने है उसके अनुसार इसकी सफलता उम्मीद से भी ज्यादा है।
                 
GST बिल का सवाल --
                                   दूसरा सवाल मोदी सरकार के सामने था। खुद मोदी सरकार के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था और विकास इस बिल से सीधे जुड़े हुए हैं। पुरे सत्र के दौरान सरकार के मंत्री इस बिल की जरूरतों पर भाषण देते रहे। लेकिन इसको पास करवाने के लिए सरकार ने कोई भी असरकारक कदम नही उठाया। उसने इस बिल पर विपक्ष के साथ बात करने की बजाय विपक्ष को विकास विरोधी साबित करने में अपनी पूरी ताकत लगाई। उसने केवल एक बार कांग्रेस के नेताओं के साथ बात की। उसके अलावा उसने किसी भी विपक्षी पार्टी के साथ इस पर कोई बातचीत नही की। कांग्रेस ने इस बिल पर अपनी तीन आपत्तियां दर्ज करवाई। उनमे दो पर सरकार सहमत  है इस तरह की खबरें मीडिया में आई। अब केवल एक विषय पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच असहमति बाकि रही। कांग्रेस ने GST की अधिकतम दर 18 % रखने और इसे बिल में शामिल करने की शर्त रखी। इसे सरकार ने ख़ारिज कर दिया। अगर सरकार इसको भी मान लेती तो ये बिल पास हो जाता और बकौल सरकार इससे अर्थव्यवस्था को बड़ी तेजी से सहारा मिलता। लेकिन सरकार ने अपने अड़ियल रुख के कारण इस शर्त को नही माना। पहले विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने इसे दस साल पास नही होने दिया और अब सरकार में रहते हुए दो साल से इसे लटका कर बैठ गयी।
                                 सवाल ये है की अगर सरकार इस शर्त को मान लेती तो इसके क्या क्या नुकशान थे। इससे सरकार किसी भी वस्तु पर 18 % से ज्यादा टैक्स नही लगा सकती थी। जबकि सरकार का दूसरी तरफ ये कहना है की GST की दर इससे कम ही रहने वाली है। फिर तो कोई समस्या ही नही थी। दूसरी बात ये की मान लो इससे कोई व्यवहारिक समस्या पैदा होती है तो इस पर फिर संशोधन किया जा सकता था। ये एक नया तरीका है और इस पर दूसरे कारणों से भी कुछ संशोधन करने पड़ सकते हैं। एक बार इसे लागु किया जाता तो कई चीजें सामने आती। अभी तक तो इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार नही है। सो सरकार को इतना अड़ियल रुख अपनाने की क्या जरूरत थी।
                            हम दो सरकारों के दो रुख और उनके परिणामो के बारे में तुलना कर रहे थे। इससे यही साबित होता है की सरकारों को अपनी नीतियों पर लोगों की तकलीफों और सुझाओं पर खुले दिल से विचार तो करना ही चाहिए और जरूरत दिखाई दे तो उसमे बदलाव भी करना चाहिए। हर सवाल को प्रतिष्ठा से जोड़ना और अड़ियल रुख अपनाना देश हित और जनहित में नही होता।