Thursday, June 30, 2016

Vyang -- सुब्र्मण्यम स्वामी और महारथी शल्य

                        मैंने महाभारत को छः बार पढ़ा। एक चीज जो मुझे तब भी समझ में नहीं आई वो ये थी की महाभारत के युद्ध में महारथी शल्य किसकी तरफ से लड़ रहे थे ? मद्र नरेश शल्य पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे इसलिए नकुल और सहदेव के मामा थे। उनके पास बड़ी सेना थी और वो खुद भी बड़े योद्धा थे इसलिए कौरव और पांडव दोनों चाहते थे की वो उनके पक्ष में शामिल हों। लेकिन चूँकि वो पांडवों के मामा थे इसलिए वो पाण्डवों का साथ देने के लिए अपनी सेना के साथ निकले। लेकिन वो प्रशंसा को बहुत पसंद करते थे। दुर्योधन ने उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाया। उसने उनके रास्ते में जगह जगह जलपान और विश्राम का प्रबंध किया। उनके स्वागत के लिए इंतजाम किये। इससे फूलकर महारथी शल्य ने उनके समर्थन का वचन दे दिया।
                   उसके बाद जब कर्ण सेनापति बने और उनका मुकाबला अर्जुन से होना था तो अर्जुन के सारथी कृष्ण थे, सो कर्ण के लिए उनके मुकाबले का सारथी चाहिए। इसलिए दुर्योधन और उनके सलाहकारों ने महारथी शल्य को उनका सारथी बना दिया। बाद में युद्ध के दौरान उसने कर्ण को इतना हतोत्साहित किया की कर्ण भी लगभग भरम का शिकार हो गया और अंत में मारा गया। महाभारत के जानकार कर्ण की हार के पीछे उनके सारथी शल्य को एक प्रमुख कारण मानते हैं।
                     ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राज्य सभा में सुब्र्मण्यम स्वामी को अरुण जेटली का सारथी नियुक्त कर दिया। अब सुब्र्मण्यम स्वामी योद्धा तो हैं लेकिन उनका कोई स्थाई पक्ष नहीं है। इसलिए उन्होंने पराक्रम दिखाते हुए पहले अरुण जेटली को ही घेरना शुरू कर दिया। युद्ध में मुख्य योद्धा को हराने के लिए ये जरूरी होता है की पहले उसके सहयोगी योद्धाओं को समाप्त किया जाये। इसलिए सुब्र्मण्यम स्वामी ने सबसे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली के सबसे मजबूत योद्धा रघुराम राजन को समाप्त किया। फिर उसने दूसरे योद्धा अरविन्द सुब्र्मण्यम का रूख किया। इसी दौरान दुर्योधन, मेरा मतलब है की नरेंद्र मोदी बीच में आ गए और उन्होंने उन्हें शत्रु पक्ष की तरफ बाण छोड़ने की सलाह दी। वरना अब तक अरुण जेटली भी कर्णगति को प्राप्त हो चुके होते। लेकिन बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी। अगर सुब्र्मण्यम  स्वामी को शत्रु पक्ष में पराक्रम दिखाने का मौका नहीं मिला तो उनका रूख फिर अपने ही पक्ष की तरफ हो सकता है। वो आखिर योद्धा हैं और किसी भी योद्धा का प्रथम उद्देश्य पराक्रम दिखाना होता है , ये देखना नहीं होता की सामने कौन है।
                 जिस तरह मुझे ये समझ में नहीं आ रहा की शल्य किसकी तरफ थे, उसी तरह कुछ राजनितिक विश्लेषकों को ये समझ में नहीं आ रहा की सुब्र्मण्यम स्वामी आखिर किस तरफ हैं। वो बीजेपी की तरफ किसी विचारधारा की वजह से तो हैं नहीं, बल्कि उन्हें Z सिक्योरिटी देने, फिर दिल्ली के दिल में बंगला देने और उसके बाद राज्य सभा सीट देने के कारण महारथी शल्य की तरह बीजेपी के अहसानो का बदला चुका रहे हैं। वरना ये वही सुब्र्मण्यम स्वामी हैं जिन्होंने बाकायदा अख़बार में लेख लिखकर और सबूतों के साथ अटल बिहारी बाजपेयी पर आजादी की लड़ाई में गद्दारी करने और अमेरिका के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया था।

Sunday, June 26, 2016

NSG से GST तक -- धमकाने की राजनीती के दुष्परिणाम

                    NSG की सदस्यता नहीं मिलने पर इतना हो-हल्ला पता नहीं क्यों हो रहा है। NSG की सदस्यता एक तकनीकी मुद्दा था जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नाक का सवाल बना लिया। उसके बाद उनके भक्तों ने ये मान लिया था की इसमें अब कोई अड़चन नहीं डाल सकता, खासकर तब जब अमेरिका उनके साथ खड़ा हो। इसलिए मोदी भक्तों ने इसे इतना बड़ा मुद्दा बना दिया ताकि उसकी कामयाबी को राजनैतिक तौर पर भुनाया जा सके। लेकिन उल्टा हो गया। नाक कट गई। अब बीजेपी और उसकी सरकार इसे इस तरह पेश कर रही है जैसे ये केवल चीन द्वारा की गई धोखाधड़ी है। जबकि असलियत ये है की भारत की सदस्यता के ऊपर सवाल उठाने  वाले दूसरे नौ देश भी है और जिसमे वो देश भी शामिल हैं जो कल तक नरेंद्र मोदी के साथ फोटो खिंचवा थे, जैसे स्विट्जरलैंड। अब इसे केवल चीन  के विरोध का स्वरूप देना अपनी कूटनीतिक विफलता को छिपाने की कोशिश है।
                   जहां तक चीन का सवाल है तो हमे कुछ चीजें ध्यान में रखनी चाहियें।  पहली ये की 1962 के युद्ध के बाद भारत चीन  सीमा हमारी सबसे शान्त सीमा है। उस पर 50 साल में कभी एक गोली तक नहीं चली। उसके अलावा भारत चीन का व्यापार लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका और वर्ल्ड बैंक जैसे संगठनों का मुकाबला करने के लिए चीन और भारत BRICS जैसे संगठनों का निर्माण कर रहे हैं और विकसित देशों के दबाव का सामना सफलता पूर्वक कर रहे हैं। लेकिन हमारे देश में कुछ अमेरिका समर्थक लगातार चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पेश करते रहते हैं। उसे लगातार इस बात के लिए गालियां दी जाती हैं की उसके पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते हैं। लेकिन दूसरी तरफ हमारा चीन के प्रति क्या रुख है ? सालों से ढलाई लामा भारत में बैठकर चीन विरोधी कार्यवाहियां करता रहा है। एक तरफ भारत तिब्ब्त को चीन का हिस्सा मानता है और दूसरी तरफ भारत में तिब्ब्त की निर्वासित सरकार चलाने की इजाजत देता है। जापान, चीन का शत्रु देश है और अभी दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे को लेकर उसके और जापान, फिलीपींस इत्यादि कई देशों का विरोध है। ठीक उसी समय जब हम चीन से NSG में समर्थन की मांग करते हैं, ठीक उसी समय हम जापान और अमेरिका के साथ मिलकर दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास करते हैं। आरएसएस और बीजेपी के सोशल मिडिया पर बैठे भक्त चीन को लगातार गालियां देते हैं और बीजेपी समर्थक टीवी चैनल चीन के खिलाफ लगातार कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। उसके बाद हम चीन से सहयोग की उम्मीद करते हैं ये कितनी हास्यासपद बात है। बीजेपी ने विदेश निति और कूटनीति को क्या समझ रक्खा है ? क्या उसे लगता है की चीन उसके दबाव में आकर उसे समर्थन दे देगा।  जो देश अमेरिका के दबाव में नहीं आता उससे ये अपेक्षा करना हद दर्जे की मूर्खता ही मानी जाएगी।
                   ठीक इसी तरह की नीति GST के सवाल पर कांग्रेस के साथ अपनाई जाती है। जब भी संसद सत्र की शुरुआत होती है बीजेपी का कोई नेता गांधी  परिवार पर निजी हमला करता है। गाली गलौज करता है और समर्थन की मांग करता है। बीजेपी को लगता है की कांग्रेस उसके दबाव में आकर GST का समर्थन कर देगी। लेकिन क्या हुआ। बीजेपी ने कांग्रेस को गालियां देने के अलावा GST के लिए एक सर्वदलीय मीटिंग तक नहीं बुलाई।
                    अब भी सोशल मीडिया पर भक्त लोग चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का कार्यक्रम चला रहे हैं और अरुण जेटली बीजिंग में चीन से निवेश की अपील कर रहे हैं। अजीब कन्फ्यूज संगठन है। कम से कम घर के अंदर तो सलाह कर लो की क्या करना है। अपनी मूर्खताओं से देश का कितना नुकशान और फजीहत करवाओगे। हर किसी को धमकाना न तो कूटनीति होती है और न ही राजनीती होती है, खासकर तब जब सामने वाला आपसे ताकतवर हो।

Thursday, June 23, 2016

Vyang -- Ease of doing Business और भारत की बढ़ती रैंकिंग

                    वैसे तो भारत की रैंकिंग बहुत सी चीजों में बढ़ रही है जैसे सबसे ज्यादा भूखों में, कुपोषितों में, अंधों में ( दोनों तरह के अंधों में, आँख के भी और अक्ल के भी ) , अनपढ़ों में इत्यादि इत्यादि। लेकिन इन पर बात करना कोई पसंद नहीं करता। सरकार तो बिलकुल नहीं करती। लेकिन एक रैंकिंग ऐसी है जिस पर रोज बयान आते हैं, टीवी चैनलों में कार्यक्रम होते हैं और एक दूसरे की पीठ थपथपाई जाती है वो  Ease of  doing Business  की रैंकिंग। इसका मतलब होता है की अब भारत में व्यापार करना आसान हो गया है।
                   जब हम किसी चीज के आसान होने की बात करते हैं तो उसका मतलब ये होता है की अब उसके नियम कायदे या तो आसान हो गए हैं या फिर हटा लिए गए हैं। भारत में कई चीजें पहले भी आसान रही हैं। जैसे राजनीती करना। इस पर कोई नियम कायदा लागु नहीं होता है। आप किसी भी तरह राजनीती कर सकते हैं। जिन चीजों पर राजनीती करना संविधान के अनुसार नहीं है आप उन पर भी राजनीती कर सकते हैं। आप जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, इलाके के नाम पर और परिवार के नाम पर भी राजनीती कर सकते हैं। आप वोट खरीद सकते हैं, लूट सकते हैं, डालने देने से मना कर सकते हैं। आप किसी भी तरह  की राजनीती कर सकते हैं। आप चाहें तो दंगे करवा कर वोट ले सकते हैं और आप चाहें तो सरकारी खर्चे पर लैपटॉप बाँट कर भी वोट ले सकते हैं। यानि हमारे देश में Ease of doing Politics पहले से है।
                  लेकिन लोगों का मानना है की  Ease of  doing Business भी बहुत पहले से है। भारत में व्यापार करने में किस चीज की मुस्किल है? यहां तो बहुत पहले से सारी सुविधाएँ मौजूद हैं। आप कोई फैकट्री चलाते हैं तो आपके लिए कतई जरूरी नहीं है की आप मजदूरों के नाम रजिस्टर में लिखें। आप उनको न्यूनतम मजदूरी दें ऐसा भी कोई कानून ( प्रभावशाली ) नहीं हैं। काम के घंटे भी तय नहीं हैं। आप टैक्स देते हैं या नहीं देते हैं ये भी आपकी मर्जी पर छोड़ा हुआ है। आप बैंकों से कर्ज लेकर वापिस करना चाहें तो आपकी मर्जी वर्ना आप को इसके लिए संवैधानिक सुरक्षा हासिल है। लोग पूछ रहे हैं की आखिर वो कौनसी सुविधा थी जो पहले हासिल नहीं थी और अब दे दी गई है। यहां तो आप बोर्ड आश्रम का लगा सकते हैं और नूडल्स बेच सकते हैं।
                 मुझे तो लगता है की इसके लिए या तो रैंकिंग अब शुरू की गई है या फिर वर्ल्ड बैंक ने हमारे देश पर ध्यान ही नहीं दिया था। सबसे पहले जब ललित मोदी सैंकड़ों करोड़ लेकर यहां से निकल गए तो वर्ल्ड बैंक ने हमारी रैंकिग बढ़ाई। जब विजय माल्या हजारों करोड़ लेकर निकल गए तो हमारी रैंकिंग में तेजी से सुधार हुआ। अब जब भी कोई ऐसी खबर आती है तो हमारी रैंकिंग सुधर जाती है। इसके लिए सरकार ललित मोदी और विजय माल्या  की शुक्रगुजार है।
                    लेकिन कुछ और काम भी हैं जिन्हे करने में बहुत मुश्किलें आ रही हैं। सरकार से गुजारिश है की इन चीजों के लिए भी कुछ कर दे। हमारे देश में खेती करना आसान नहीं है, मजदूरी करना आसान नहीं है, पढ़ना आसान नहीं है, नौकरी मिलना और करना आसान नहीं है, इलाज करवाना आसान नहीं है और सम्मान से जीना तो लगभग असम्भव सा ही है। मैंने कुछ चीजें बताई हैं वर्ना तो अब कुछ कहना भी आसान नही है।