Friday, November 25, 2016

नोटबंदी -- पाबन्दी और छूट का खेल

खबरी -- सरकार ने नोटबंदी के बाद कई चीजों पर पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट का समय बढ़ाया।

गप्पी -- नोटबन्दी के बाद जो छूट और पाबन्दी का खेल चल रहा है वो इस प्रकार है। -

१.  किसान से सब्जी नही खरीद सकता, लेकिन पट्रोल डीजल खरीद सकता है।
२.  मजदूर को मजदूरी नही दे सकता, लेकिन मोबाइल का रिचार्ज कूपन खरीद सकता है।
३.  मुहल्ले के दुकानदार से राशन नही खरीद सकता , लेकिन उन पैसों को खाते में डालकर कार्ड से बिग बाजार से खरीद सकता है।
४.  शादी के खर्चों का भुगतान नही कर सकता, लेकिन प्राइवेट बिजली कम्पनियों के बिल का भुगतान कर सकता है।
५.  बुआई के लिए खाद नही खरीद सकता, लेकिन प्राइवेट एयर लाइन्स का टिकट खरीद सकता है।
६.  बीमार बच्चे के लिए डॉक्टर का बिल नही दे सकता , लेकिन प्राइवेट कम्पनियों के टेलीफोन का बिल दे सकता है।
७.  आटा नही खरीद सकता, लेकिन टैक्स जमा करवा सकता है।
८.   गाड़ी का पार्किंग चार्ज नही दे सकता, लेकिन प्राइवेट कम्पनियों का टोल टैक्स दे सकता है।

सरकार के लिए सभी छोटे काम धंधे करने वाले चोर हैं और बड़ी कम्पनियां ईमानदार हैं।

Tuesday, November 8, 2016

राजनाथ सिंह और गाय के जीन्स

खबरी -- राजनाथ सिंह ने कहा है की गाय के 80 % जीन्स आदमी से मिलते हैं।

गप्पी -- विज्ञानं के हिसाब से ये कोई बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन नही है। बन्दर और चिम्पाजी के तो 95 - 98 % जीन्स आदमी से मिलते हैं। मगर असली सवाल ये है की राजनाथ सिंह ने ये बात गोरक्षा के सन्दर्भ में कही  है। हैरत इस बात की है की उन्हें दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक दिखाई नही देते जो 100 % उनके खुद के जीन्स से मिलते हैं।

खबरी -- नन्दिनी सुंदर और दूसरे लोगों पर छतीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर दिया है।

गप्पी -- सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्रों और राजनितिक कार्यकर्ताओं पर बीजेपी द्वारा दमन की कार्यवाही के रूप में फर्जी मुकदमे दायर करना कोई नई बात नही है। ये लिस्ट गुजरात से शुरू होती है  जैसे -
१. मल्लिका साराभाई  ( जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता और मशहूर वैज्ञानिक डा विक्रम साराभाई की पुत्री )
२.  संजीव भट्ट           ( गुजरात के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी )
३. तीस्ता सीतलवाड़    ( सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट की वकील )
४. कन्हैया और दूसरे JNU के छात्र    ( JNU छात्र संघ अध्यक्ष और पदाधिकारी )
५. सोनी सोरी                     ( छतीशगढ की आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता )
६.  दिल्ली के आप विधायक
७.  नन्दिनी सुंदर                 (  दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता )
८.  संजय पराते               ( मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के छतीसगढ़ राज्य सचिव और केंद्रीय कमेटी सदस्य )
९. अजय तिवारी           ( मध्यप्रदेष प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव )
१०. जी एन साईबाबा     ( दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर )
११.  अर्चना प्रशाद         ( प्रोफेसर, JNU  )

                इनके अलावा सैंकड़ों अन्य लोगों के खिलाफ भी दमनात्मक कार्यवाही की गयी है।

Monday, November 7, 2016

Congress and BJP , about Democracy, Freedom and Federalism

खबरी -- राहुल गाँधी के बयान पर वेंकैया नायडू ने कहा  है की कांग्रेस को लोकतंत्र पर बोलने का कोई हक नही है।

गप्पी -- वैकेंया नायडू का बयान राहुल गाँधी के उस बयान के जवाब में आया है जिसमे NDTV पर बैन को राहुल गाँधी ने लोकतंत्र का काला पन्ना कहा था। वेंकैया नायडू ने अपने बयान में इमरजेंसी की याद दिलाते हुए कहा है की कांग्रेस को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बोलने का कोई हक नही है।
            बीजेपी के प्रवक्ता लगभग हर सवाल पर चाहे वो भृष्टाचार से जुड़ा हो या दूसरी किसी चीज से, कांग्रेस   अधिकार पर सवाल उठाते हैं। अगर इस हिसाब से लिया जाये तो --
            आजादी की लड़ाई में गद्दारी करने वाली आरएसएस को देशभक्ति के सर्टिफिकेट बाँटने का क्या अधिकार है ?
             मनुस्मृति का समर्थन करने वाली आरएसएस और बीजेपी को दलितों के सवाल पर बोलने का क्या अधिकार है ?
              दिल्ली की चुनी हुई सरकार को पंगु कर देने वाली केंद्र सरकार को संघीय ढांचे की बात करने का क्या अधिकार है ?
              

व्यंग -- प्रदूषण के लिए सरकार कुछ और क्यों नही करती ?

                 दिल्ली से प्रदूषण की बहुत ही बुरी बुरी खबरें आ रही हैं। हमारे बड़े भाई साब का परिवार दिल्ली में ही रहता है। सोचा एक फोन कर लूँ वरना कहेंगे की इतनी बड़ी बात थी तो भी एक फोन तक नही किया। पिछली बार जब भूकम्प आया था तब हमारे साथ ऐसा ही हुआ था। हमने टीवी में खबर तो सुनी थी लेकिन टीवी वाले कह रहे थे की जान मॉल का कोई नुकशान नही हुआ तो हमने फोन करने की जरूरत नही समझी। भाभी जी ने उसी का उलाहना दे दिया था। सो सोचा आज तो कर ही लूँ।
 *  हैलो, हैलो। कौन भाभीजी ? नमस्कार।
  #  नमस्कार।
 *  वो टीवी में प्रदूषण की खबरें आ रही थी तो हमे चिंता हुई , इसलिए फोन किया था।
 #  प्रदूषण की तो पूछो मत, बहुत बुरा हाल है।
  * तो सरकार इसपे कुछ करती क्यों नही ?
  # सरकार को क्या जरूरत है ? उसको तो वोट लेनी थी, सो ले ली।
  * अच्छा भाभीजी, बबलू क्या कर रहा है ?
  #  क्या करेगा ? दिवाली पर आधी रात तक पटाखे चलाता रहा और दो दिन से सरकार ने स्कुल बन्द कर रखे हैं , इसलिए सो रहा है।
  * ये भला स्कूल बन्द करने की क्या बात हुई ? सरकार कुछ और क्यों नही करती ? बच्चों की पढ़ाई खराब करने का क्या मतलब हुआ ?
  # ये क्यों कुछ करने लगे। दिवाली से पहले दिन स्कूल में आकर कह रहे थे की इस बार पटाखे मत चलाना। बोलो दिवाली पर पटाखे नही चलाएंगे तो कब चलाएंगे। सरकार को कुछ और करना चाहिए।
   * सही बात है। मैं तो आज सुबह सुबह अँधेरे में ही जाकर खेत में पराली जलाकर आ गया। वरना दिन में तो कोई न कोई जुर्माना करने आ जाता।
   # इनको तो अपनी जेब भरनी हैं। पराली तो जलानी ही पड़ेगी। प्रदूषण के लिए सरकार कुछ और क्यों नही करती ?
    * अच्छा भाभीजी, भाई साब कहाँ हैं ?
    # कहाँ होंगे ? दो दिन पहले ही थर्ड फ्लोर की कन्स्ट्रुक्शन शुरू की थी, आज सरकार ने बैन कर दी। कुछ सामान मंगवाया था उसको मना करने गए हैं। इस तरह लोगों को परेशान करके क्या होगा ? सरकार कुछ और क्यों नही करती ?
  * हाँ, सुना है की 15 साल पुराने ट्रक बन्द कर रही है ? अपना ट्रक भी तो 15 साल पुराना है।
  # हाँ, तुम्हारे भाई कह रहे थे की पहले ही गांव में भेज देते हैं। वरना इनका क्या भरोसा कब बन्द कर दें। लोगों को परेशान करना है।  मैं तो कहती हूँ की सरकार प्रदूषण के लिए कुछ और क्यों नही करती ?
  * सुना है दुबारा से ऑड इवन शुरू करने वाले हैं।
  # बस लोगों को परेशान करना है। खुद तो कुछ करना नही है।
 * सही बात है। सरकार को तो कुछ करना नही है केवल लोगों को परेशान करना है। प्रदूषण कम करना इस सरकार के बस की बात ही नही है।

Sunday, November 6, 2016

काश ! इस अन्धेर नगरी में भी कोई चौपट राजा होता।

                   बचपन में एक बहुत मशहूर कहानी सुनी थी, अन्धेर नगरी चौपट राजा। वैसे तो ये कहानी बहुत से लोगों ने सुनी है। फिर भी इसका सार संक्षेप इस तरह है, एक नगरी जिसका नाम अन्धेर नगरी था उसमे चौपट नाम का राजा राज करता था। उस नगरी में सभी वस्तुएं चाहे वो सब्जी हो या मिठाई, एक ही भाव पर मिलती थी। इसलिए उसमे ये कहावत थी,
                                      अन्धेर नगरी चौपट राजा,
                                      टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
                   उसमे एक बार एक गुरु शिष्य घूमने के लिए आये। तो गुरु ने वहां की व्यवस्था देख कर शिष्य को वहां से चलने के लिए कहा। परन्तु शिष्य टके सेर की मिठाई खा कर खुश था। आखिर में गुरु वहां से चला गया। उसके बाद की कहानी इस प्रकार है की एक दिवार गिरने से एक बकरी मर जाती है। राजा दिवार के मालिक को गुनाहगार ठहराता है। तो दिवार का मालिक दिवार बनाने वाले कारीगर को गुनाहगार बताता है तो राजा कारीगर को पकड़ने का हुक्म दे देता है और फांसी की सजा सुना देता है। वो कारीगर बहुत पतला होता है और उसकी गरदन फंदे में नही आती है। तो राजा किसी मोटे आदमी को फांसी देने का हुक्म देता है और इस तरह टके सेर की मिठाई खा खा कर मोटे हुए शिष्य की बारी आ जाती है।
                     इस कहानी में दो चीजें मिलती हैं। एक तो सभी चीजों के भाव समान हैं और दूसरी चीज ये है की राजा ये मानता है की अगर गुनाह हुआ है तो किसी न किसी को तो सजा मिलनी ही चाहिए। वो अपराध को बिना सजा सुनाये नही जाने देता।
                   अब आजकल हमारे देश की जो हालत है उसमे मुझे उस चौपट राजा की बहुत कमी महसूस हो रही है। वरना लक्ष्मण पुर बाथे से लेकर शंकर बिगहा हत्याकांड तक में कोई आरोपी सिद्ध नही हुआ। ये मान लिया गया जैसे ये हत्याकांड हुए ही नही थे। गुलमर्ग सोसायटी हत्याकांड में तो जज मरने वाले को ही भीड़ को उकसाने का जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जिन लोगों को दंगों के लिए सजा हुई थी वो जमानत पर बाहर घूम रहे हैं और जिन पर अभी अपराध साबित नही हुआ है उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। जिन लोगों पर अपने ही देश के लोगों को कत्ल करने और घर जलाने के आरोप हैं, उन्हें राष्ट्रपति से सम्मानित करवाया जा रहा है और जिन्होंने सच बोलने की हिम्मत दिखाई उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है। जो अपना फर्ज निभा रहे हैं उनके मुंह पर टेप चिपका दी गयी है और जो चापलूसी पूर्ण भजन गा रहे हैं उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा और सम्मान दिया जा रहा है।
                     ऐसे में अगर चौपट राजा होते तो लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा के लिए शायद जाँच अधिकारी को ही फांसी पर चढ़ा देते। कम से कम इतने बड़े हत्याकांड को बिना जवाबदेही के तो नही जाने देते। वो ऐसी दातुन बेचने वाले को भी फांसी दे देते जिसकी दातुन से जेल का ताला खुल सकता है।

Tuesday, November 1, 2016

हर तानाशाह चाहता है की पूरा राष्ट्र आत्मसमर्पण करे।



                   इतिहास हमे बताता है की जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो उसके साथ कुछ हजार सैनिक थे। और उसने दिल्ली के सवा लाख नागरिकों के सर काटकर उनके ढेर पर अपनी पताका फहराई। ऐसा इसलिए हुआ की उन सवा लाख लोगों ने विरोध करने की बजाय गर्दन झुका कर सर कटवा लिए। नादिरशाह के लिए काम आसान हो गया। इसी तरह जब प्लासी के युद्ध के बाद विजयी ब्रिटिश जनरल ने शहर में प्रवेश किया तो उसके साथ केवल दो हजार सैनिक थे और उन्हें देखने के लिए बीस हजार लोग सड़क के दोनों और खड़े थे। जनरल ने अपनी डायरी में लिखा है की अगर वो लोग विरोध का फैसला लेते तो हमारी बोटियाँ भी नही बचती।
                    इस तरह के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है। हर तानाशाह की चाहत होती है की पूरा राष्ट्र उसके सामने आत्मसमर्पण कर दे। कोई उसका विरोध न करे। क्योंकि उसे अपनी ताकत की सीमा और अपनी कमजोरी दोनों का पता होता है। उसके शासन का पूरा दारोमदार इसी बात पर टिका होता है की लोग उसका विरोध न करें।
                    और विरोध की शुरुआत होती है सवाल करने से। जब कोई सवाल करता है तो विरोध की शुरुआत हो जाती है। इसलिए हर तानाशाह का पहला फतवा ये होता है की शासन पर कोई सवाल न किया जाये। और फिर किसी न किसी बहाने इसे हररोज दोहराया जाता है। जैसा अब हो रहा है। शासक पक्ष की मांग है की शासन पर कोई सवाल नही उठाया जाये। कभी उसे राष्ट्रवाद से जोड़ा जाता है, कभी आतंकवाद से। लेकिन शासन की वो व्यवस्था जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं और जिसमे हम स्वतन्त्र न्याय प्रणाली का भरोसा देते हैं उसकी तो शुरुआत ही सवाल करने से होती है। उसमे तो सवाल करने के लिए बाकायदा संस्थाओं का निर्माण किया गया है। CAG नाम की संस्था केवल सवाल उठाने के लिए ही बनाई गयी है। न्याय पालिका का तो आधार ही सवाल उठाने पर आधारित है। पुलिस के माध्यम से राज्य जब किसी नागरिक पर कोई आरोप लगाता है तो अदालत में उसे सवाल करने की पूरी छूट दी जाती है, पुलिस द्वारा पेश किये गए एक एक सबूत की स्वतन्त्र रूप से छानबीन होती है। और आरोप को साबित करने की जवाबदेही पुलिस यानि राज्य की होती है। जब तक अदालत सबूतों से सन्तुष्ट नही होती तब तक आरोपी को गुनाहगार नही माना जाता।
                      इसलिए अब सरकार के कामो पर सवाल उठाने को ही देशद्रोही घोषित किया जाने लगा है। और तो और सरकार के मंत्री तक इस बात को कहते हैं की सरकार और पुलिस पर सवाल उठाने बन्द कर दो। यानि अब लोकतंत्र और न्यायपालिका का कोई मतलब नही रह जाने वाला है। जिन आरोपियों के खिलाफ आपके पास कोई सबूत नही है उन्हें आप फर्जी एनकाउंटर में मार डालो और मीडिया को साथ में लेकर जोर जोर से चिल्लाओ की आतंकवादी मार दिए। कोई सवाल करे तो उसे देश द्रोही और आतंकवादियों का सहयोगी घोषित कर दो। इससे आने वाले समय की मुश्किलों का अंदाज लगाया जा सकता है।
                     दूसरी तरफ उसने लोगों के बीच में एक ऐसा तबका तैयार कर लिया है जो सरकार की भाषा बोलता है। जैसे ही कोई सवाल उठता है ये उस पर टूट पड़ते हैं। इस सरकार में बैठे हुए और इसकी तरफ से पागल कुत्तों की तरह भोकने वाले लोगों इन लोगों की साख ये है की ये वही लोग हैं जो अंग्रेजों का विरोध करने वालों के भी खिलाफ थे और इमरजेंसी में माफ़ी मांग मांग भागने वालों में सबसे आगे थे। इनका दोगलापन हररोज सामने आता है लेकिन इनको कोई फर्क नही पड़ता। असल में ये लोग उद्योगपतियों के पे रोल पर काम करते हैं और हर बयान को विज्ञापन का डायलॉग समझते हैं। इसलिए इन्हें कभी भी उसके गलत होने पर शर्म नही आती।
                      इसके कुछ उदाहरण है। जब गुजरात में फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आये तो इन्होंने जोर जोर से चिल्लाकर उन्हें सही ठहराया। दूसरी तरफ जब अदालत ने उस समय की गुजरात सरकार, जिसके उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे से इस बारे में अपना पक्ष रखने को कहा तो , उसने गुजरात हाईकोर्ट में हलफनामा देकर खुद उन एनकाउंटरों को फर्जी करार दिया। लेकिन उसके नेताओं और भक्तों को आज भी पूछा जाये तो वो इन्हें अब भी सही बताएंगे। ये चाहते हैं की जब ये  कन्हैया को गद्दार कहें तो पूरा देश उसे गद्दार कहे भले ही इनकी पुलिस अदालत में ये कहे की उसके पास कन्हैया के खिलाफ कोई सबूत नही है। ये इस बात का कभी जवाब नही देंगे की देश के गृहमंत्री जेनयू को हाफिज सईद से कैसे जोड़ रहे थे।
                   लेकिन इन्हें केवल इतना याद  रखने की जरूरत है की लोग सवाल करना बन्द नही करेंगे। और इनके लाख कोशिश करने के बावजूद देश की संस्थाए इतनी कमजोर नही हुई हैं की इनको जिम्मेदार नही ठहराया जा सके।