Friday, November 30, 2018

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के बाद तनाव में क्यों है भाजपा।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वोट डालने का काम खत्म हो चुका है। अब सभी को 11 दिसंबर का इंतजार है। लेकिन चुनाव की समाप्ति के बाद भाजपा के नेता तनाव में दिख रहे हैं। कुछ दिन पहले तक जिन राज्यों को भाजपा के लिए आसान माना जा रहा था, वहां स्थिति बदल चुकी है। कुछ संकेत भाजपा नेताओं को लगातार परेशान कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के खेमे में शान्ति और निश्चिन्तता दिखाई दे रही है। इसकी एक झलक कांग्रेस नेता कमलनाथ के उस जवाब में भी दिखाई देती है। जब उनसे चुनाव के बाद अपना आकलन बताने को कहा गया तो उनका जवाब था, " दो चीजें एकदम आसानी से निपट गयी, एक चुनाव और दूसरी भाजपा। "
                वैसे भाजपा के तनाव की कुछ ख़ास वजहें भी हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेशों में भाजपा 15 साल की एंटी-इंकम्बैंसी से मुकाबिल थी जो किसी के लिए भी चिंता का कारण हो सकती हैं। लेकिन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस ने कोई मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत नहीं किया था जिसे भाजपा  अपने लिए फायदे का सौदा मान रही थी। दूसरा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के प्रचार पर बहुत भरोसा था। लेकिन इस बार कांग्रेस ने मोदीजी को कोई मौका दिया। मोदीजी ने हमेशा की तरह,  मेरी माँ को गाली दी , जैसे वाक्यों में प्रचार को लपेटने की कोशिश जरूर की लेकिन इस बार वो कामयाब नहीं हुए। मोदीजी के जिस करिश्मे का भाजपा को भरोसा था वो इस बार गायब था।
                भाजपा नेताओं की चिंता का दूसरा कारण इस बार किसानो और बेरोजगारी के सवालों का इलेक्शन पर हावी होना था। इस बार हिंदुत्व और गाय जैसे मुद्दों की जगह किसानो की समस्याएं केंद्र में थी। कांग्रेस के कर्जमाफी के वायदे के बाद जिस तरह किसानो ने चुनाव से पहले फसल बेचना बंद कर दिया वो अपने आप में हैरान कर देने वाला है।  जब किसान मंडी में अपनी फसल बेचता है तो फसल की कीमत उसके बैंक खाते में जमा होती है। बैंक इस में से अपनी राशी काट लेता है। इसलिए किसान अपनी फसल लेकर मंडी में ही नहीं जा रहे। वो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने और कर्जमाफी का  इंतजार कर रहे हैं।
               इसके अलावा जो सबसे बड़ा कारण भाजपा नेताओं को चिंता में डाले हुए है वो है 2019  मोदीजी को होने वाली मुश्किल के अनुमान का। असल में चुनाव वाले तीनो भाजपा शासित राज्यों में भाजपा राजस्थान को पहले ही कमजोर मान कर चल रही है। इन तीनो राज्यों में कांग्रेस ने किसी को भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। अगर इनमे नतीजे भाजपा के खिलाफ आ जाते हैं तो 2019 के चुनाव में उसके सबसे बड़े मुद्दे की हवा निकल जाएगी। ये मुद्दा है मोदी के सामने कौन? लोग ये मान लेंगे की चुनाव जीतने के लिए चेहरा कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। यही है भाजपा की चिंता का सबसे बड़ा कारण। 





Wednesday, November 7, 2018

हमारी नई पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र

देश के हालात और दुर्दशा से चिंतित होकर हमने एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने का निर्णय किया है।  उसके लिए हमने बहुत सोच विचार कर एक घोषणा पत्र तैयार किया है जो आपके सामने प्रस्तुत है। वैसे तो मोदी सरकार ने आखरी छह महीनो में कुछ तेजी दिखाई है और योगी जी ने भी उसमे सहयोग दिया है, लेकिन संत समाज और महा राष्ट्रवादी लोग उससे संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए हमने इस काम को जरूरी समझा। हमारे घोषणा पत्र के मुख्य बिंदु निम्न प्रकार से हैं।
१. हमारी पार्टी का नाम " राष्ट्रवादी सनातनवादी पुरातनवादी आर्यवर्तीय पार्टी " होगा।
२. हम हर महीने कम से कम पांच जगहों का नाम बदलेंगे।
३. हम हर प्रदेश में विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा स्थापित करेंगे। इसकी घोषणा प्रदेश अनुसार चुनावों के समय       की जाएगी।
४. बहुमत की आस्था के अनुसार काम को संविधान के दिशा निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया जायेगा।
५. हमने महसूस किया है की पिछले पांच साल में किये गए सभी प्रयासों के बावजूद कुछ संस्थाओं में एकाध           दुष्ट आत्माएँ  अभी भी मौजूद हैं जो समय समय पर सरकार के कामकाज में टांग अड़ाती हैं। इसलिए सभी       ऐसी संस्थाओं जैसे, चुनाव आयोग, रिज़र्व बैंक, मानवाधिकार आयोग, सुचना आयोग इत्यादि का                     संवैधानिक दर्जा समाप्त कर दिया जायेगा।
६. सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति करने वाले कोलेजियम में कोई जज नहीं होगा।
७.  इज आफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए सभी सरकारी स्कूलों और हस्पतालों को बंद कर दिया               जायेगा ताकि नए बिजनेस के अवसर खुल सकें।
८. सरकारी नौकरियों पर पूर्णतया पाबंदी लगाई जाएगी ताकि प्रतिमाओं और धार्मिक आयोजनों के लिए धन        उपलब्ध  हो सके।
९. अगली दिवाली पर अयोध्या में तीन करोड़ दीप जलाए जायेंगे और उसके लिए धन GST पर नया सेस                 लगाकर उगाहा जायेगा।
१०. एक सीमा से ज्यादा पढ़ने लिखने को देशद्रोह घोषित किया जायेगा।
११. भारत रत्न सहित सभी पदम् पुरस्कारों की घोषणा करने वाली समिति में केवल तीन सदस्य होंगे जो संघ,        अखिल भारतीय अखाडा परिषद और गीता प्रेस द्वारा नामित किये जायेंगे।
१२. डार्विन इत्यादि के सिद्धांतों को सेलेबस से हटाया जायेगा।  ये हमारी भावनाओं को आहत करते हैं।
१३. महिलाओं का प्रवेश केवल मंदिरों से ही नहीं, बल्कि संसद और विधानसभाओं में भी प्रतिबंधित किया                 जायेगा।
१४. सभी कृषि विश्वविद्यालयों को गौशालाओं में परिवर्तित किया जायेगा।
१५. सभी सरकारी पदों पर नियुक्तियां वर्ण व्यवस्था के हिसाब से की जाएँगी। 

सभी राष्ट्रवादी नागरिकों से सहयोग की अपील है।


Tuesday, March 20, 2018

इराक में अपहृत भारतीय कामगारों की हत्या और विपक्ष पर राजनीती के आरोप


आज विदेश मंत्री शुष्मा स्वराज ने संसद में ये घोषणा कर दी की चार साल पहले इराक के मोसुल में लापता हुए 39  भारतीय नागरिक मर चुके हैं। ये एक ऐसी घोषणा थी जिसका बहुत से लोगों को पहले से ही अनुमान था। लेकिन अब तक सरकार ये कहती रही थी वो पुख्ता सबूत के अभाव में इन नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि नहीं करेगी।
ये लोग मुख्यतया पंजाब से और बाकी शेष भारत के वो गरीब मजदूर थे जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए अनजान और खतरनाक जगहों में जाकर मजदूरी करते हैं। इनके द्वारा अपने खून पसीने से कमाई गयी विदेशी मुद्रा सरकार के आंकड़ों की चमक बढ़ाती है। इन सबको विदेश में काम करते हुए जिन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है उसकी हजारों कहानिया हैं। विपरीत हालत में फंसे देशवासियों की मदद करना सरकारों की नैतिक और क़ानूनी जिम्मेदारी होती है। ये सभी मजदूर एक सरकारी कम्पनी के प्रोजक्ट में काम कर रहे थे और उसी दौरान अमेरिका द्वारा जन्मित, पालित और पोषित ISIS द्वारा उनका अपहरण कर लिया गया और हत्या कर दी गयी।
आज संसद में विदेश मंत्री की घोषणा के बाद जब विपक्ष ने इस पर सरकार से कुछ सवाल पूछे तो सरकार के कुछ मंत्रियों ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया। विपक्ष द्वारा ये पूछने पर की सरकार को इनकी मौत की पुष्टि करने में चार साल क्यों लगे, उस पर राजनीति करने का आरोप लगाया गया। पिछले चार साल से इनके परिवार कितनी बुरी हालत में होंगे, कितना मानसिक तनाव झेल रहे होंगे और किन आर्थिक हालात से गुजर रहे होंगे, इस पर सवाल पूछना राजनीति है जो नहीं करनी चाहिए। अगर सरकार समयसर इनकी मृत्यु की घोषणा कर देती या उस पर केवल आशंका ही जाहिर कर देती तो इन गरीबों के परिवार को क़ानूनी तौर पर भी कुछ मुआवजा मिल जाता। लेकिन ये सवाल पूछना तो राजनीति है। अगर विपक्ष किसानो की फसल के भाव और उनकी आत्महत्या पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की किसानो पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष छात्रों की फ़ीस और स्कूलों की हालत पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की छात्रों पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष सीमा पर रोज मारे जा रहे जवानो पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की राष्ट्रिय सुरक्षा के मामले पर राजनीती मत करो। यानि अब राजनीति करने के लिए केवल गाय और गोबर, हिन्दू मुसलमान ही बचे हैं।
सरकार ने कहा है की बिना पुख्ता सबूत के वो किसी की मौत हो जाने की घोषणा नहीं कर सकती , तो पिछले दिनों वायुसेना का एक विमान लापता हुआ था जिसमे हमारे बहुत से सैनिक सवार थे। एक समय के बाद जब उसका कोई पता नहीं चला तो सरकार में उन सैनिकों के मारे जाने की घोषणा कर दी। क्या सरकार बता सकती है की उनकी मृत्यु का कौनसा पुख्ता सबूत उसके पास है ? इस तरह की घटनाएँ बहुत बार होती हैं और उसमे से बहुत सी ऐसी भी होती है जो सरकार के नियंत्रण से बाहर होती हैं। लेकिन उनका सही विश्लेषण करके प्रभावित परिवारों को सहायता पहुंचाना सरकार का काम होता है। और अगर सरकार इसमें असफल होती है और विपक्ष इस पर सवाल पूछता है तो वो उसका काम होता है। इस पर राजनीति करने का आरोप लगाना अत्यंत गैरजिम्मेदार और दुर्भाग्यपूर्ण है।








Sunday, March 11, 2018

व्यंग -- शशि थरूर की मोदीजी के साथ मुलाकात।

   मोदीजी अपने ऑफिस में बैठे फाइल देख रहे हैं। अचानक एक सचिव अंदर आते हैं।
सचिव -- सर , श्रीमान शशि थरूर ने आपसे मिलने का समय माँगा है।
मोदीजी -- किसने ? शशि थरूर ने ? क्यों क्या काम है ? देखो उनका जो भी काम है उसे कर दो। उसे यहां बुलाने की जरूरत नहीं है। किसी भी हालत में उसे यहां नहीं बुलाना।
सचिव -- सर, वो आपसे केवल दस मिनट का समय चाहते हैं।
मोदीजी -- दस मिनट ! क्या मतलब है तुम्हारा ? उसे तो एक मिनट भी नहीं लगेगा। वो कुछ न कुछ ऐसा बोल देगा की हफ्तों लग जायेंगे डिक्शनरी में उसका मतलब ढूढ़ते हुए। मैं कहता हूँ की उससे सेटिंग करो। तुम ऐसा करो किसी गुजराती सचिव को भेजो। वो सैटिंग कर लेगा।
सचिव बाहर चला जाता है। थोड़ी देर बाद एक गुजराती आईएएस अंदर आता है।
मोदीजी - देखो तुम शशि थरूर से बात करो। किसी भी हालत में उससे सेटिंग करो। वो अंदर नहीं आना चाहिए। अगर वो अरनब गोस्वामी वाले केस के बारे में आया हो तो अरनब को फोन करके बोल दो की माफ़ी मांग ले। अगर सुनंदा वाला मामला हो तो उससे कहो की 50 करोड़ की गर्ल फ्रैंड वाली बात तो मैंने मजाक में कही थी। जो भी हो उससे सेटिंग करो।
सचिव बाहर चला जाता है।
मोदीजी परेशानी से फ्लू बदल रहे हैं। अचानक अमित मालवीय से फोन लगाते हैं। हैल्लो अमित, नेट पर जितनी भी इंग्लिश की डिक्शनरियां उपलब्ध हैं सब डाउन लोड कर लो। और तुम्हारे पास जितने भी तेज तर्रार लोग हैं उन्हें तैयार रखो। यहां से तुम्हे जो भी इंग्लिश का शब्द भेजा जाये उसका मतलब जानकर वापिस भेजो। इसमें कोई गलती नहीं होनी चाहिए।
अमित मालवीय - ठीक है सर, लेकिन बात क्या है ?
मोदीजी -- एक बड़ा संकट आ पड़ा है। वो शशि थरूर मिलने आ रहा है। हालाँकि मैंने बाहर की बाहर सेटिंग की जिम्मेदारी लगा दी है, फिर भी अगर सेटिंग नहीं हुई तो वो क्या बोलेगा ये पता लगाने के लिए सारी डिक्शनरियां चाहियेंगी।
अमित मालवीय घबराये हुए -- लेकिन उसके शब्द तो कई बार डिक्शनरी में भी नहीं होते हैं।
मोदीजी -- कुछ भी करो, गूगल करो। मेरे भाषण लिखने के लिए तथ्य चैक करने के लिए भी तो गूगल करते होंगे।
अमित मालवीय -सर, आपके भाषणों में तथ्य कहां होते हैं ? अगर आपके भाषणों में हमने तथ्य लिखने शुरू कर दिए तो बेडा गर्क हो जायेगा और आप केवल माफ़ी मांगते रह जाओगे। हमने तो तीन तीन शब्दों के समूहों का रजिस्टर बनाया हुआ है जैसे भय, भूख और भृष्टाचार ,, चाल, चेहरा और चरित्र ,, नीरव माल्या और चोक्सी।
मोदीजी -- ये नीरव माल्या और चोक्सी किसने लिखा है ?
अमित मालवीय -- सॉरी सर, लगता है विपक्ष का कोई आदमी घुस आया है। मैं चैक करवा लेता हूँ।
मोदीजी - ठीक है, लेकिन अपनी टीम को तैयार रखो।
तभी गुजराती आईएएस अंदर आता है।
मोदीजी एकदम लपकने के अंदाज में -- क्या हुआ बात बनी ?
आईएएस -- नहीं सर, उसने कहा की वो बर्किना फासो को लेकर आपसे मिलना चाहते हैं।
मोदीजी -- बकरी ना फासो , ओह! तो ये कोई बकरी के दूध की डिश है। लेकिन इसके बारे में क्या बात करनी है ? उससे कहो की मैं बकरी का दूध इस्तेमाल नहीं करता। चूँकि गाँधी जी बकरी का दूध पीते थे इसलिए संघ का कोई भी आदमी बकरी के दूध का इस्तेमाल नहीं करता। यहां तक की हमने तो बकरी को मुसलमान घोषित कर दिया है।
आईएएस -सर बकरी ना फासो नहीं, बर्किना फासो।  और ये कोई डिश नहीं है देश है।
मोदीजी - बर $$$ बर्की ,,,,,, ये कैसा देश है ? क्या मैं कभी वहां गया हूँ ? और अगर नहीं गया हूँ तो अब तक मुझे बताया क्यों नहीं। ये छूट कैसे गया ? मैं शासन के मामले में इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसकी जिम्मेदारी तय करो।
आईएएस -- सर शशि थरूर का क्या करें ?
मोदीजी एकदम रुआँसे होकर -- करना क्या है बुला लो। और तीन चार अंग्रेजी जानने वाले ,मेरा मतलब है अच्छी अंग्रेजी जानने वाले लोगों को पहले यहां मेरे ऑफिस में बिठा दो।
आईएएस -- सर आप तो जानते ही हैं की आपने पूरा पीएमओ गुजरातियों से भर दिया है और उनकी अंग्रेजी कैसी होती है ये भी आप जानते हैं। आप कहें तो वैंकया जी के ऑफिस से कुछ साऊथ के लोगों को बुलवा लूँ ?
मोदीजी -- अब इतना समय नहीं है। कोई उत्तर भारतीय अफसर तो होगा। वैसे दो तीन लोगों को को भेज दो।
            (सारी तैयारी पूरी करने के बाद शशि थरूर को आने के लिए कहा जाता है। )
शशि थरूर दफ्तर में प्रवेश करते हैं और मोदीजी की तरफ मुस्कुरा कर कहते हैं - Nagalkk Sugam Aano ?
मोदीजी -- नागाल्क ? हो गया लोचा। फिर अपने ऑफिस में बैठे ऑफिसर्स की तरफ देखते हैं। तीनो अफसर न की मुद्रा में सिर हिला देते हैं। लैपटॉप में अमित मालवीय की तरफ देखते हैं। अमित मालवीय भी बोलते हैं की किसी डिक्शनरी में ये शब्द मिल नहीं रहा। मोदीजी चेहरे से पसीना पोंछते हुए शशि थरूर से कहते हैं -- शशि थरूर साहब क्या आप हिंदी में बात नहीं कर सकते ? देखिये हिंदी हमारी मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा है। और आपको ये विदेशियों की भाषा में बात करने की क्या जरूरत है ?
शशि थरूर -- हिंदी हमारी मातृ भाषा नहीं है, और राष्ट्र भाषा भी नहीं है। और मुझे हिंदी अच्छी तरह नहीं आती है। मैं हिंदी में बात करके मणिशंकर अय्यर नहीं बनना चाहता। वो लो लेवल और नीच के चककर में फंस गया था।
मोदीजी -- नहीं नहीं, वो तो चुनाव का समय था। अब ऐसी कोई बात नहीं होगी।
शशि थरूर -- ये भी चुनाव का समय है।
मोदीजी -- ये भी चुनाव का समय है ? फिर अपने अधिकारी की तरफ देखकर कहते हैं , " अभी चुनाव आयोग में फोन लगा कर मेरी बात करवाओ। उनकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पूछे बिना चुनाव घोषित करने की। " फिर शशि थरूर से पूछते हैं -- अभी कहां का चुनाव है ?
शशि थरूर -- काँग्रेस कार्यसमिति का।
मोदीजी -ओह, मैं समझा किसी राज्य का चुनाव घोषित हो गया। हाँ तो मैं कह रहा था की थरूर साहब आपको हिंदी भी अच्छी खासी आती है फिर ये विदेशियों की भाषा का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो ?
शशि थरूर - मोदीजी आप बार बार मलयालम को विदेशी भाषा क्यों कह रहे हैं ? मलयालम कब से विदेशी भाषा हो गयी ?
मोदीजी - तो आप मलयालम बोल रहे थे ? देखिये आप कल आ जाइये। मैं दो तीन मलयालम जानने वालों को बुला लेता हूँ।
               ____ शशि थरूर बाहर चले जाते हैं ----
मोदीजी फिर चेहरे से पसीना पोंछते हुए बड़बड़ाते है -- इस देश को समझने में ही उम्र निकल जाएगी -

Wednesday, February 21, 2018

व्यंग -नीरव मोदी को खींच कर लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

PNB घोटाले के बाद माननीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह का बयान आया है की अगर जरूरत पड़ी तो नीरव मोदी को खींच कर लायेंगे। मैं कहता हूँ की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये कोई भूखे नंगों का देश है क्या ? क्यों खींच कर लाएंगे और अपनी बेइज्जती करवाएंगे। बाकी दुनिया हमारे बारे में क्या सोचेगी ? कहेगी, देखो कैसा निर्लज्ज देश है जो इतनी सी बात के लिए खींच कर ले गए। 130 करोड़ की आबादी वाला देश इतना प्रबंध भी नहीं कर सका। कैसे विजय माल्या के बाद हमने मिनिमम बैलेंस ना होने पर चार्ज लगा कर नुकशान की भरपाई कर ली थी। अब हम उसको दुगना कर सकते हैं। वरना 5000 रूपये बैलेंस न होने पर 100 रूपये जुर्माना लगा सकते हैं और होने पर 150 रूपये लगा सकते हैं। कोई भी नहीं बच पायेगा। साथ ही हम ये भी कह सकते हैं की गरीबों की सरकार है। जो गरीब लोग 5000 का बैलेंस नहीं रख सकते उन पर तो केवल 100 रूपये ही लगाया है और जो अमीर लोग रख सकते हैं उन पर 150 लगाया है। सबका साथ सबका विकास।
                 इसके अलावा हमारी एक संस्कृति है परम्परा है जो हमे विश्व गुरु बनाती है। इस तरह की तुच्छ बात के लिए हम अपनी हजारों साल पुरानी परम्परा का त्याग तो नहीं कर सकते। हमने ललित मोदी के लिए ऐसा कह दिया था। बाद में याद आया की मानवता भी कोई चीज होती है सो हमने अपनी परम्परा की इज्जत रख ली। कहने को तो हमने दाऊद इब्राहिम को भी खींच कर लाने की बात कही थी। लेकिन दाऊद ने एक बार भी नहीं कहा की हमे खींच कर ले चलो। सो हम क्या करें? हम किसी को जबरदस्ती तो खींच कर नहीं ला सकते। छोटा राजन ने जरूर हमे कहा की अब मैं दाऊद से बचने के लिए इंतजाम करने की पोजीशन में नहीं हूँ, इसलिए इससे पहले की दाऊद मुझे टपका दे, मुझे खींच कर ले चलो। और हम खींच लाये।
                ऐसा ही मामला हाफिज सईद का है। पाकिस्तान हमे इजाजत ही नहीं दे रहा है की खींच ले जाओ, वरना तो कब का खींच लाते। हमने विजय माल्या को भी खींच कर लाने के लिए मनाने की कोशिश की थी लेकिन उसने भी मना कर दिया। सो हम कोई दूसरा ढूंढ रहे हैं।
                 कुछ लोग तो इतने निर्लज्ज हैं की भागे ही नहीं। यहीं मौज़ कर रहे हैं। सो उनको तो खींच कर ला नहीं सकते। इटली के मरीन सैनिकों के मामले में तो हमारी संस्कृति का पतन होते होते बचा। वो तो अच्छा हुआ की हमने इटली की सरकार की बात मानकर उन्हें वहीं रहने की इजाजत सुप्रीम कोर्ट से दिलवा दी वरना कुछ देशविरोधी तत्व तो उनको भी खींच कर लाने की बात करने लगे थे। जो लोग देश की परम्परा और हमारी महान संस्कृति को नहीं समझते, उनके मुंह लगना हमने छोड़ दिया है।
              हाँ तो हम नीरव मोदी की बात कर रहे थे। सो हम माननीय राजनाथ सिंह को विश्वास दिलाते हैं की उसे खींच कर लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अरे कुल रकम ही कितनी होती है। जो लोग पूरा दिन एक बार खाना खाकर रहते हैं वो कुछ दिन दो दिन में एक बार खाकर रह लेंगे तो कोई पहाड़ थोड़ा न टूट पड़ेगा। आखिर देश के लिए किसी न किसी को तो क़ुरबानी देनी ही होती है। पिछले दिनों में बैंको ने ढाई लाख करोड़ माफ़ कर दिया , वित्त मंत्री ने बैंको में दूसरा ढाई लाख करोड़ डालने की घोषणा कर दी। हमने दोनों की रक्षा कर ली, घोटालेबाजों की भी और हमारी महान परम्परा की भी। इस देश में अब तक इतने घोटाले हुए, कुछ लोग भाग गए और कुछ लोग यहीं रह गए, लेकिन हमारा कुछ बिगड़ा ? नहीं बिगड़ सकता। आखिर कवि ने ऐसे ही तो नहीं लिखा था की "कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी " . कवि पहले से जानता था की भले ही गजनवी और गौरी न आएं, भले ही अंग्रेज चले जाएँ, लेकिन हमारे महान देश में लूट की सनातन परम्परा हमेशा जारी रहेगी और हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। इसलिए हमे नीरव मोदी को खींच कर लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

Sunday, February 18, 2018

व्यंग -- PNB का मोदी और हमारा मोदी

शाम का समय, मोहल्ले के चबूतरे पर हम दस बारह लोग बैठे हुए थे। PNB घोटाला चर्चा का विषय था। तभी सामने से शर्माजी आते हुए दिखाई दिए। सब उनका इंतजार करने लगे। शर्माजी PNB में काम करते हैं। शर्माजी ने भी देख लिया। वो भी निपटने की मुद्रा में आ गए। जैसे ही वो नजदीक आये, एक आदमी बोला,
          क्यों शर्माजी, बैंको में कोई नियम कायदा होता है की नहीं ?
          किसी को भी और कितना ही पैसा यूँ आँख बंद करके दे देते हो। दूसरा बोला।
          कोई गारंटी वारंटी भी लेते हो की नहीं ? तीसरा बोला।
          क्या गारंटी ली थी जो इतना पैसा दे दिया ? चौथा बोला।
शर्माजी उखड़ गए। बोले, तुमने क्या गारंटी ली थी जब पूरा देश दे दिया था ?
          क्या मतलब ? चौथा आदमी बोला।
          मतलब क्या ? हमने एक मोदी पर, उसकी बातों पर भरोसा करके पैसे दे दिए। तुमने भी तो एक मोदी पर भरोसा करके पूरा देश दे दिया। क्या वापिस आया अब तक ? शर्माजी बोले।
          वो तो पंद्रह साल से गुजरात चला रहे थे। पूरा मीडिया वहां के विकास के गुण गा रहा था। पहला आदमी बोला।
            तो वो भी इससे ज्यादा साल से कंपनियां चला रहा था पुरे देश में।  और सारे फ़िल्मी एक्टर उसके साथ फोटो खिंचवाने जाते थे। वो भी कोई ऐरा गेरा नहीं था। शर्माजी ने जवाब दिया।
             लेकिन तुमने साल दो साल उसका व्यवहार देख लिया था तो फिर उसके LOU रिवाइज क्यों किये ? एक आदमी ने प्रतिवाद किया।
             तो तुमने भी तो साल दो साल देख लिया था उसके बाद भी विधानसभाओं में उसके LOU रिवाइज क्यों किये ? शर्माजी पूरी तैयारी में थे।
            लेकिन वो तो अभी बाकी कामों को पूरा करने की कह ही रहे हैं। दूसरा आदमी बोला।
             कहने को तो हमारे वाला भी छह महीने में सारा पैसा चुकाने की कह रहा है, तुम्हारे वाला तो 2022 की बात कर रहा है जबकि उसका समय 2019 में खत्म हो रहा है। शर्माजी ने पलटकर  कहा।
अब किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था।
आखिर में हथियार डालते हुए एक आदमी बोला, चलो ये बताओ की रिकवरी के लिए क्या कर रहे हो ?
शर्माजी ने एक लपेटे हुए पोस्टर को खोलकर दिखाया। जिसमे लिखा हुआ था -
                                                       तलाश है नीरव मोदी की
                                               11500 करोड़ बैंक घोटाले के आरोपी
                                 अंतिम बार प्रधानमंत्री मोदीजी के साथ दावोस में देखे गए
            ये क्यों लिख रहे हो। मोदीजी का जिक्र क्यों कर रहे हो। ये तो गलत बात है। एक आदमी ने एतराज किया।
           तो तुम बता दो उसके बाद कहां देखा था वहां का नाम लिख देते हैं। शर्माजी मुस्कुराये।
इतना कह कर शर्माजी आगे चल पड़े और रुक कर बोले, अरे हाँ, तुम चार साल की रिकवरी के लिए क्या कर रहे हो ?

Thursday, February 15, 2018

PNB घोटाले पर सरकार के रुख पर उठते सवाल

                   PNB के 11400 करोड़ के घोटाले पर टीवी पर बहस के दौरान बीजेपी के प्रवक्ता सरफराज आलम ने कहा की ये घोटाला कांग्रेस की देन है और इस पर कांग्रेस को देश से माफ़ी मांगनी चाहिए। उसने ये भी कहा की कांग्रेस के शासन के दौरान पीएमओ से फोन करके बैंको पर दबाव डाल कर बड़े बड़े लोन दिलवाये जाते थे और उनमे कमीशन लिया जाता था।
                     ये आरोप अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाने की नाकाम कोशिश के साथ साथ अपनी भाषा के स्तर पर निहायत घटिया भी है। लेकिन फिर भी अगर इसे सच मान लें, तो भी कुछ सवालों के जवाब बीजेपी को देने ही होंगे। जैसे -
१.  इस तरह कमीशन लेकर दिलवाये गए लोन के अपराध में आपने कितने कांग्रेस नेताओं को पकड़ा ? या आप भी उनसे हिस्से की बात कर रहे थे।
२. हरएक लोन का हर साल नवीनीकरण होता है। इस तरह दिलवाये गए कितने लोन का नवीनीकरण नहीं किया गया ये बात देश को बताइये।
३. अगर PNB के LOU फरवरी 2017 में जारी किये गए तो उनके लिए किसने फोन किया था उसका नाम देश को बताइये।
४. अरुण जेटली ने दावोस के लिए प्रधानमंत्री के साथ गए उद्योगपतियों के समूह के बारे में किये गए ट्वीट में नीरव मोदी का भी नाम है।  ये रिकार्ड की चीज है, तो अब बीजेपी और सरकार उससे इंकार क्यों कर रही है ?
५. RBI के पूर्व निदेशक ने कहा की बैंक का स्विफ्ट SWIFT सिस्टम और CBS सिस्टम finacal आपस में जुड़ा हुआ नहीं था जिसकी वजह से ये घोटाला सम्भव हो सका। सत्यम के केस में भी ठीक यही कहा गया था। फिर इतने दिन तक RBI किस चीज का इंतजार कर रहा था और उसके रैगुलेटर की जिम्मेदारी का क्या मतलब है। अगर उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है तो पुरे देश के आम आदमी का पैसा बैंको के कर्मचारियों के रहमोकरम पर है।
           ये कुछ सवाल हैं जिनका जवाब मौजूदा सरकार और बीजेपी को देना चाहिए और उसे देना होगा।

               इसके अलावा एक चीज देश की जनता को भी समझनी होगी। जिस तरह से ये सरकार अपनी हर विफलता की जिम्मेदारी पिछली कांग्रेसी सरकारों पर और पिछले 70 सालों पर डालती है उससे ये मौका भी आ सकता है। मन लीजिये किसी ताकतवर देश के साथ कोई युद्ध हो जाता है और उसमे देश को नुकशान उठाना पड़ता है तो सरकार का जवाब ये होगा -
               पिछली सरकारों ने अच्छे हथियार नहीं खरीदे, सैनिको को उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया और सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण नहीं हुआ इस लिए हम युद्ध में कामयाब नहीं हुए।
                देश ये सुनने के लिए तैयार रहे।

Monday, January 22, 2018

देश का भविष्य और गौशाला

कलैक्टर साहब, आपने हमारी स्कूल खोलने के आवेदन को रद्द कर दिया ? भला क्यों ? -- आगंतुक ने ऑफिस में घुसते ही प्रश्न किया।
क्योंकि वो जमीन सरकार की है , और वहां बाजू में आपने जो गौशाला खोली हुई है वो जमीन भी सरकार की है। कलैक्टर ने जवाब दिया।
जमीन सरकार की नहीं राष्ट्र की है। सरकार तो केवल देखभाल करती है। और गाय राष्ट्र माता है। सो अगर  राष्ट्र की माता राष्ट्र की जमीन पर नहीं रहेगी तो कहां रहेगी ? और जहां तक स्कूल की बात है तो बच्चे भी राष्ट्र का भविष्य हैं इसलिए राष्ट्र की जमीन पर स्कूल खोलना हमारा हक है। आगन्तुक ने जवाब दिया।
लेकिन आपको गौशाला के बाजू में ही स्कूल क्यों खोलना है ? कलैक्टर ने पूछा।
क्योंकि अगर स्कूल गौशाला के बाजू में रहेगा तो गाय के गौबर को बच्चों के दिमाग में लीपने में आसानी रहेगी। हम नहीं चाहते की आने वाली पीढ़ियाँ भी आपकी तरह बेहूदा सवाल पूछें।
और कलैक्टर ने देश के भविष्य का ख्याल करते हुए इजाजत दे दी।