Tuesday, March 20, 2018

इराक में अपहृत भारतीय कामगारों की हत्या और विपक्ष पर राजनीती के आरोप


आज विदेश मंत्री शुष्मा स्वराज ने संसद में ये घोषणा कर दी की चार साल पहले इराक के मोसुल में लापता हुए 39  भारतीय नागरिक मर चुके हैं। ये एक ऐसी घोषणा थी जिसका बहुत से लोगों को पहले से ही अनुमान था। लेकिन अब तक सरकार ये कहती रही थी वो पुख्ता सबूत के अभाव में इन नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि नहीं करेगी।
ये लोग मुख्यतया पंजाब से और बाकी शेष भारत के वो गरीब मजदूर थे जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए अनजान और खतरनाक जगहों में जाकर मजदूरी करते हैं। इनके द्वारा अपने खून पसीने से कमाई गयी विदेशी मुद्रा सरकार के आंकड़ों की चमक बढ़ाती है। इन सबको विदेश में काम करते हुए जिन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है उसकी हजारों कहानिया हैं। विपरीत हालत में फंसे देशवासियों की मदद करना सरकारों की नैतिक और क़ानूनी जिम्मेदारी होती है। ये सभी मजदूर एक सरकारी कम्पनी के प्रोजक्ट में काम कर रहे थे और उसी दौरान अमेरिका द्वारा जन्मित, पालित और पोषित ISIS द्वारा उनका अपहरण कर लिया गया और हत्या कर दी गयी।
आज संसद में विदेश मंत्री की घोषणा के बाद जब विपक्ष ने इस पर सरकार से कुछ सवाल पूछे तो सरकार के कुछ मंत्रियों ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया। विपक्ष द्वारा ये पूछने पर की सरकार को इनकी मौत की पुष्टि करने में चार साल क्यों लगे, उस पर राजनीति करने का आरोप लगाया गया। पिछले चार साल से इनके परिवार कितनी बुरी हालत में होंगे, कितना मानसिक तनाव झेल रहे होंगे और किन आर्थिक हालात से गुजर रहे होंगे, इस पर सवाल पूछना राजनीति है जो नहीं करनी चाहिए। अगर सरकार समयसर इनकी मृत्यु की घोषणा कर देती या उस पर केवल आशंका ही जाहिर कर देती तो इन गरीबों के परिवार को क़ानूनी तौर पर भी कुछ मुआवजा मिल जाता। लेकिन ये सवाल पूछना तो राजनीति है। अगर विपक्ष किसानो की फसल के भाव और उनकी आत्महत्या पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की किसानो पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष छात्रों की फ़ीस और स्कूलों की हालत पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की छात्रों पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष सीमा पर रोज मारे जा रहे जवानो पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की राष्ट्रिय सुरक्षा के मामले पर राजनीती मत करो। यानि अब राजनीति करने के लिए केवल गाय और गोबर, हिन्दू मुसलमान ही बचे हैं।
सरकार ने कहा है की बिना पुख्ता सबूत के वो किसी की मौत हो जाने की घोषणा नहीं कर सकती , तो पिछले दिनों वायुसेना का एक विमान लापता हुआ था जिसमे हमारे बहुत से सैनिक सवार थे। एक समय के बाद जब उसका कोई पता नहीं चला तो सरकार में उन सैनिकों के मारे जाने की घोषणा कर दी। क्या सरकार बता सकती है की उनकी मृत्यु का कौनसा पुख्ता सबूत उसके पास है ? इस तरह की घटनाएँ बहुत बार होती हैं और उसमे से बहुत सी ऐसी भी होती है जो सरकार के नियंत्रण से बाहर होती हैं। लेकिन उनका सही विश्लेषण करके प्रभावित परिवारों को सहायता पहुंचाना सरकार का काम होता है। और अगर सरकार इसमें असफल होती है और विपक्ष इस पर सवाल पूछता है तो वो उसका काम होता है। इस पर राजनीति करने का आरोप लगाना अत्यंत गैरजिम्मेदार और दुर्भाग्यपूर्ण है।








Sunday, March 11, 2018

व्यंग -- शशि थरूर की मोदीजी के साथ मुलाकात।

   मोदीजी अपने ऑफिस में बैठे फाइल देख रहे हैं। अचानक एक सचिव अंदर आते हैं।
सचिव -- सर , श्रीमान शशि थरूर ने आपसे मिलने का समय माँगा है।
मोदीजी -- किसने ? शशि थरूर ने ? क्यों क्या काम है ? देखो उनका जो भी काम है उसे कर दो। उसे यहां बुलाने की जरूरत नहीं है। किसी भी हालत में उसे यहां नहीं बुलाना।
सचिव -- सर, वो आपसे केवल दस मिनट का समय चाहते हैं।
मोदीजी -- दस मिनट ! क्या मतलब है तुम्हारा ? उसे तो एक मिनट भी नहीं लगेगा। वो कुछ न कुछ ऐसा बोल देगा की हफ्तों लग जायेंगे डिक्शनरी में उसका मतलब ढूढ़ते हुए। मैं कहता हूँ की उससे सेटिंग करो। तुम ऐसा करो किसी गुजराती सचिव को भेजो। वो सैटिंग कर लेगा।
सचिव बाहर चला जाता है। थोड़ी देर बाद एक गुजराती आईएएस अंदर आता है।
मोदीजी - देखो तुम शशि थरूर से बात करो। किसी भी हालत में उससे सेटिंग करो। वो अंदर नहीं आना चाहिए। अगर वो अरनब गोस्वामी वाले केस के बारे में आया हो तो अरनब को फोन करके बोल दो की माफ़ी मांग ले। अगर सुनंदा वाला मामला हो तो उससे कहो की 50 करोड़ की गर्ल फ्रैंड वाली बात तो मैंने मजाक में कही थी। जो भी हो उससे सेटिंग करो।
सचिव बाहर चला जाता है।
मोदीजी परेशानी से फ्लू बदल रहे हैं। अचानक अमित मालवीय से फोन लगाते हैं। हैल्लो अमित, नेट पर जितनी भी इंग्लिश की डिक्शनरियां उपलब्ध हैं सब डाउन लोड कर लो। और तुम्हारे पास जितने भी तेज तर्रार लोग हैं उन्हें तैयार रखो। यहां से तुम्हे जो भी इंग्लिश का शब्द भेजा जाये उसका मतलब जानकर वापिस भेजो। इसमें कोई गलती नहीं होनी चाहिए।
अमित मालवीय - ठीक है सर, लेकिन बात क्या है ?
मोदीजी -- एक बड़ा संकट आ पड़ा है। वो शशि थरूर मिलने आ रहा है। हालाँकि मैंने बाहर की बाहर सेटिंग की जिम्मेदारी लगा दी है, फिर भी अगर सेटिंग नहीं हुई तो वो क्या बोलेगा ये पता लगाने के लिए सारी डिक्शनरियां चाहियेंगी।
अमित मालवीय घबराये हुए -- लेकिन उसके शब्द तो कई बार डिक्शनरी में भी नहीं होते हैं।
मोदीजी -- कुछ भी करो, गूगल करो। मेरे भाषण लिखने के लिए तथ्य चैक करने के लिए भी तो गूगल करते होंगे।
अमित मालवीय -सर, आपके भाषणों में तथ्य कहां होते हैं ? अगर आपके भाषणों में हमने तथ्य लिखने शुरू कर दिए तो बेडा गर्क हो जायेगा और आप केवल माफ़ी मांगते रह जाओगे। हमने तो तीन तीन शब्दों के समूहों का रजिस्टर बनाया हुआ है जैसे भय, भूख और भृष्टाचार ,, चाल, चेहरा और चरित्र ,, नीरव माल्या और चोक्सी।
मोदीजी -- ये नीरव माल्या और चोक्सी किसने लिखा है ?
अमित मालवीय -- सॉरी सर, लगता है विपक्ष का कोई आदमी घुस आया है। मैं चैक करवा लेता हूँ।
मोदीजी - ठीक है, लेकिन अपनी टीम को तैयार रखो।
तभी गुजराती आईएएस अंदर आता है।
मोदीजी एकदम लपकने के अंदाज में -- क्या हुआ बात बनी ?
आईएएस -- नहीं सर, उसने कहा की वो बर्किना फासो को लेकर आपसे मिलना चाहते हैं।
मोदीजी -- बकरी ना फासो , ओह! तो ये कोई बकरी के दूध की डिश है। लेकिन इसके बारे में क्या बात करनी है ? उससे कहो की मैं बकरी का दूध इस्तेमाल नहीं करता। चूँकि गाँधी जी बकरी का दूध पीते थे इसलिए संघ का कोई भी आदमी बकरी के दूध का इस्तेमाल नहीं करता। यहां तक की हमने तो बकरी को मुसलमान घोषित कर दिया है।
आईएएस -सर बकरी ना फासो नहीं, बर्किना फासो।  और ये कोई डिश नहीं है देश है।
मोदीजी - बर $$$ बर्की ,,,,,, ये कैसा देश है ? क्या मैं कभी वहां गया हूँ ? और अगर नहीं गया हूँ तो अब तक मुझे बताया क्यों नहीं। ये छूट कैसे गया ? मैं शासन के मामले में इस तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसकी जिम्मेदारी तय करो।
आईएएस -- सर शशि थरूर का क्या करें ?
मोदीजी एकदम रुआँसे होकर -- करना क्या है बुला लो। और तीन चार अंग्रेजी जानने वाले ,मेरा मतलब है अच्छी अंग्रेजी जानने वाले लोगों को पहले यहां मेरे ऑफिस में बिठा दो।
आईएएस -- सर आप तो जानते ही हैं की आपने पूरा पीएमओ गुजरातियों से भर दिया है और उनकी अंग्रेजी कैसी होती है ये भी आप जानते हैं। आप कहें तो वैंकया जी के ऑफिस से कुछ साऊथ के लोगों को बुलवा लूँ ?
मोदीजी -- अब इतना समय नहीं है। कोई उत्तर भारतीय अफसर तो होगा। वैसे दो तीन लोगों को को भेज दो।
            (सारी तैयारी पूरी करने के बाद शशि थरूर को आने के लिए कहा जाता है। )
शशि थरूर दफ्तर में प्रवेश करते हैं और मोदीजी की तरफ मुस्कुरा कर कहते हैं - Nagalkk Sugam Aano ?
मोदीजी -- नागाल्क ? हो गया लोचा। फिर अपने ऑफिस में बैठे ऑफिसर्स की तरफ देखते हैं। तीनो अफसर न की मुद्रा में सिर हिला देते हैं। लैपटॉप में अमित मालवीय की तरफ देखते हैं। अमित मालवीय भी बोलते हैं की किसी डिक्शनरी में ये शब्द मिल नहीं रहा। मोदीजी चेहरे से पसीना पोंछते हुए शशि थरूर से कहते हैं -- शशि थरूर साहब क्या आप हिंदी में बात नहीं कर सकते ? देखिये हिंदी हमारी मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा है। और आपको ये विदेशियों की भाषा में बात करने की क्या जरूरत है ?
शशि थरूर -- हिंदी हमारी मातृ भाषा नहीं है, और राष्ट्र भाषा भी नहीं है। और मुझे हिंदी अच्छी तरह नहीं आती है। मैं हिंदी में बात करके मणिशंकर अय्यर नहीं बनना चाहता। वो लो लेवल और नीच के चककर में फंस गया था।
मोदीजी -- नहीं नहीं, वो तो चुनाव का समय था। अब ऐसी कोई बात नहीं होगी।
शशि थरूर -- ये भी चुनाव का समय है।
मोदीजी -- ये भी चुनाव का समय है ? फिर अपने अधिकारी की तरफ देखकर कहते हैं , " अभी चुनाव आयोग में फोन लगा कर मेरी बात करवाओ। उनकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे पूछे बिना चुनाव घोषित करने की। " फिर शशि थरूर से पूछते हैं -- अभी कहां का चुनाव है ?
शशि थरूर -- काँग्रेस कार्यसमिति का।
मोदीजी -ओह, मैं समझा किसी राज्य का चुनाव घोषित हो गया। हाँ तो मैं कह रहा था की थरूर साहब आपको हिंदी भी अच्छी खासी आती है फिर ये विदेशियों की भाषा का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो ?
शशि थरूर - मोदीजी आप बार बार मलयालम को विदेशी भाषा क्यों कह रहे हैं ? मलयालम कब से विदेशी भाषा हो गयी ?
मोदीजी - तो आप मलयालम बोल रहे थे ? देखिये आप कल आ जाइये। मैं दो तीन मलयालम जानने वालों को बुला लेता हूँ।
               ____ शशि थरूर बाहर चले जाते हैं ----
मोदीजी फिर चेहरे से पसीना पोंछते हुए बड़बड़ाते है -- इस देश को समझने में ही उम्र निकल जाएगी -