Monday, September 14, 2015

साधना( Spiritual practice) और तपस्या का संबंध तो केवल " स्वयं " " Self " से होता है।

जैन धर्म के साधना पर्व पर्युषण पर पुरे देश में एक अप्रिय विवाद खड़ा हो गया है। ये विवाद एक राजनैतिक पार्टी बीजेपी द्वारा अपने क्षुद्र हितों को साधने के लिए इसे विवाद में घसीटे जाने के चलते हुआ है। जैन समुदाय देश का एक छोटा और समृद्ध समुदाय है। हर साल इस पर्व के दौरान महाराष्ट्र में बूचड़खानों पर दो दिन की बंदी रहती थी। हालाँकि व्यापर और खानपान नागरिक अधिकारों का मसला है, उसके बावजूद राज्य के लोग जैन समुदाय की भावनाओं का आदर करते हुए ये बंदी रखते थे। इस बार बीजेपी ने कमिश्नर से मिलकर इसको बढ़ाकर चार दिन और मुंबई के एक  इलाके में आठ दिन कर दिया। जिस पर विवाद शुरू हो गया। इस विवाद में कई भड़काने वाली बातें कहि गयी और आखिर मुंबई उच्च न्यायालय ने इसे बिलकुल समाप्त करने का फैसला सुना दिया।
               सवाल ये उठता है की क्या बीजेपी ने एक छोटे समुदाय को बेवजह विवाद में नही घसीट दिया। इससे साथ में रहने वाले समुदायों के बीच में बिना वजह की कड़वाहट पैदा हुई। उसके इस काम में बीजेपी से संबंध रखने वाले जैन समुदाय के कुछ लोगों और मीडिया में नजर आने की लालसा रखने वाले कुछ साधुओं ने भी भूमिका निभाई। और आखिर में हुआ क्या, चौबे जी गए थे छब्बे जी बनने, दुबे जी होकर आ गए। लेकिन इस विवाद का असर दूरगामी रहेगा।
                दूसरा सवाल ये उठता है की साधना और तपस्या तो नितांत व्यक्तिगत मामला होता है। दूसरा कोई क्या करता है इसका कोई संबंध उससे नही होता। अलग अलग धर्मों को मानने वाले लोग इसके लिए अलग अलग तरीके अपनाते हैं। हर धर्म और मनुस्य का अपना तरीका होता है और कोई भी किसी द्वारा अपनाये गए तरीके को गलत नही ठहरा सकता। कबीर जी ( Kabir ) ने इस पर एकदम साफ बात कहि है।
               कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटियन के पास ,
               जिसकी करनी वे भरे, तू क्यूँ भया उदास।
         जैन धर्म के तीर्थंकरों ने भी इसके बारे में  साफ साफ कहा है। जैन धर्म जिस दर्शन में विश्वास करता है वो अनेकान्त दर्शन है। उसमे तो दुनिया के सारे विवादों पर मिटटी डालने की कोशिश की गयी है। उसमे कहा गया है की, " सत्य का कोई एक रूप नही हो सकता। जो मनुष्य जहां खड़ा होता है उसे वैसा ही सत्य दिखाई पड़ता है। इसलिए केवल अपने सत्य को मनवाने का आग्रह हिंसा है और असत्य है। " ये पूरी दुनिया के विवादों को खत्म करने का नुस्खा है लेकिन आज खुद उसके कुछ अनुयायी ही इसको भूल गए हैं।
                ऐसा केवल जैन धर्म में हो ऐसा नही है। सभी धर्मो में अपनी बातों को दूसरों से जबरदस्ती मनवाने की कोशिश हो रही है। धर्म में कहि गयी बातों की गलत व्याख्याएं की जा रही हैं। दूसरे धर्मो के लोगों को अधर्मी ठहराया जा रहा है। बड़े बड़े समारोह करके दूसरे धर्मो के विरुद्ध एलान किये जा रहे हैं। अपने नाम के आगे संत लगाने वाले जाने कितने लोग दूसरे धर्म पर विष वमन करते हैं,  और दंगों की भाषा बोलते हैं। धर्म के नाम पर राजनैतिक पार्टियां बन रही हैं, संगठन बन रहे हैं और लोगों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है।
                     इस्लाम के नाम पर बना ISIS तो बाकायदा इसके लिए युद्ध कर रहा है। और उसका ये युद्ध इस्लाम को मानने वाले लोगों के ही खिलाफ है। धर्म के नाम पर इसने रमजान  जैसे पवित्र महीने में छोटे छोटे बच्चों को इसलिए फांसी लगा दी की उन्होंने खाना खा लिया था। अगर ये धर्म है तो किसके लिए है। ये ना तो लोगों के लिए हो सकता है और ना ईश्वर के लिए हो सकता है।
                      इसलिए धर्म में बढ़ते वैरभाव और उसके राजनीती में घालमेल को रोकना आज और ज्यादा जरूरी हो गया है। मानवता की रक्षा करनी है तो धर्म के नाम पर राजनीती और अपनी बात को सही ठहराने की मंशा को रोकना ही होगा।

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