Saturday, December 31, 2016

मोदीजी हमने तो पिंजरा देखकर ही बता दिया था की आप चुहिया पकड़ेंगे।

               लोगों ने कहा खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। तो मोदीजी ने तुरन्त कह दिया की मुझे तो चुहिया ही पकड़नी थी। क्यों पकड़नी थी चुहिया ? क्योंकि ये चुहिया ही थी जो देश की अर्थव्यवस्था को कुतर कुतर कर खा रही थी। ये कहा मोदीजी ने।
                  लेकिन मोदीजी हमने तो पहले ही बता दिया था की आप चुहिया ही पकड़ने निकले हैं। आपके हाथ में ३"x ६" का पिंजरा था। उसमे तो बड़े साइज का चूहा भी नही आ सकता। वो अलग बात है की आप मगरमच्छ पकड़ने के दावे कर रहे थे। और हमेशा की तरह आप इतनी ऊँची आवाज में और एक ही बात को इतनी बार बोलते हैं की लोगों का ध्यान आपके हाथ में पकड़े पिंजरे की तरफ गया ही नही। आपने पहले दिन दावा किया की बड़े बड़े मगरमच्छों के यहां जो नोटों का ढेर लगा हुआ है वो कागज के टूकड़ों में बदल जायेगा। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए ये साफ हो गया की कोई भी नोट कागज के टुकड़े में नही बदलेगा। उसके बाद आप बातें बदलने लगे। और अंत में चुहिया पर आ गए।
                 लेकिन आपकी नियत कभी भी मगरमच्छ पकड़ने की थी ही नही। आपने जनधन खातों पर पाबन्दी लगाई और बदनाम किया। जबकि उनमे केवल 26000 करोड़ रूपये जमा हुए थे जो 15 लाख करोड़ के सामने चुहिया जितनी ही रकम थी। आपने किसानों और मजदूरों का दानापानी बन्द कर दिया जो इस मामले में चूहे की ही हैसियत रखते हैं। आपने बड़े मगरमच्छों और कालेधन के कुबेरों के सामने बयान देने के अलावा कुछ नही किया। उल्टा आपने चुहिया मारकर बागड़ बिल्लों को परोसने का पूरा इंतजाम कर दिया। लोगों की मेहनत की एक एक पाई बैंको में जमा करवा कर कॉरपोरेट को सस्ता कर्ज देने का रास्ता बना दिया।
                   जो लोग आपको पहले से जानते हैं वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की ये आदमी कभी भी चुहिया पकड़ने से आगे नही जायेगा। लेकिन लोग थे की मान ही नही रहे थे। आपने कष्ट सहने के लिए  धन्यवाद तो दे दिया लेकिन ये नही बताया की ये कष्ट कितने दिन और चलेगा। कम  से कम नोट शहीदों का एक स्मारक ही बनवा देते। सुना है आपकी सरकार ने टोल नाको पर हुए नुकशान की भरपाई करने के लिए कम्पनियों को करीब 900 करोड़ रूपये देने का फैसला किया है। लेकिन जो मजदूर काम बन्द होने के कारण रेल भर भर कर गांव वापिस आ गए उनको भी कुछ दे देते। जो चाय के बागानों और जंगल में मर गए उनके लिए भी कुछ करते। लेकिन उन चूहों को केवल धन्यवाद और बागड़ बिल्लों को मलाई।
                     ये ठीक है मोदीजी की आपने मान लिया की आप केवल चुहिया ही पकड़ना चाहते थे। क्योंकि आपके ये प्यारे बिल्ले अब इतने कमजोर हो चुके हैं की वो अब दौड़ भाग करके चूहे पकड़ने की पोजीशन में नही हैं। सो अब इनको चूहे पकड़कर देने पड़ेंगे। क्योंकि ये तो मुंहलगे खास बिल्ले हैं। लेकिन लोगों का कहना है की इनकी कमजोरी ज्यादा खाने की वजह से हुई अपच के कारण है। इनके लिए अच्छा होता की अगर आप इनको कुछ दिन हल्का खाना खिलाते। कई बार ज्यादा लाड़ प्यार नुकशान का कारण भी बन सकता है। कोई मुझे बता रहा था की अब इनको चुहिया का सूप पिलाया जायेगा इसलिए आप चुहिया पकड़ने निकले थे।
                       बस एक सवाल पूछना है। कृपया ये बता दीजिये की वो कौन थे जो देश का पब्लिक सैक्टर खा गए, बैंक खा गए, सड़कें और पुल खा गए, खदान खा गए, किसानों की जमीन खा गए और,
                                                             वो भी
    जो भाईचारा खा गए, शान्ति और संस्कृति खा गए, गंगा जमनी तहजीब खा गए, सुरक्षा का अहसास खा गए , कम से कम चुहिया के बस की बात तो ये है नही।

Tuesday, December 27, 2016

व्यंग -- नोटबन्दी के बाद 31 दिसम्बर की सुबह और नया भारत।

                 सारा देश 30 दिसम्बर के गुजरने का इंतजार इतनी शिद्दत से कर रहा था जैसे विश्व युद्ध के खत्म होने का कर रहा हो। ऐसा लगता था जैसे शादी के 68 साल बाद पुत्र होने जा रहा हो। रात गुजरनी मुश्किल हो रही रही थी की कब आँख लग गयी पता ही नही चला। आँख लगते ही एक बहुत ही अजीब सपना आया। मनोवैज्ञानिक सपनो को मनुष्य की दबी हुई इच्छाओं की विभिन्न रूपों में अभिव्यक्ति होना बताते हैं, शायद मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।
                   मैंने खुद को शहर की मुख्य सड़क पर खड़ा पाया। मैंने देखा की सड़क पर कोई गड्ढा नही था, कोई कूड़ा कचरा नही था। सामने चौराहे पर ट्रैफिक हवलदार एक स्कूटर सवार से पैसे लेने से इनकार कर रहा था और स्कूटर सवार को श्रीमान कह कर सम्बोधित कर रहा था। मेरी नजर सड़क के किनारे पर पड़ी जहां से हमेशा नाली का बदबूदार पानी ओवरफ्लो होता है। तो मैंने देखा की उसमे दूध बह रहा है। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था। तभी मेरी नजर सड़क के किनारे रखे गए सीमेंट के बैंच पर बैठे हमारे मुहल्ले के कुछ भक्त टाइप लोगों पर पड़ी। मैं उनके पास गया और उसने पूछा की क्या वो थर्टी फस्ट का कोई विशेष प्रोग्राम बना रहे हैं। वो बड़ी शालीनता से मुस्कुराये और आहिस्ता से बोले, बन्धु, अब तो सारा देश स्वर्ग की प्रतिलिपी है सो विशेष प्रोग्राम क्या बनाना। कहीं भी उत्सव मना लेंगे। इतने में मुझे सामने से मुकेश अम्बानी हाथ में सब्जी का थैला लेकर आते दिखाई दिए। मैंने अचरज से उनकी तरफ देखा तो वो  मुस्कुराये और  बोले, बन्धु, मैंने 25 -30 साल में जो भी टैक्स की चोरी की थी वो सब जमा करवा दिया है। अब मेरे पास मेरे पुश्तैनी गांव चोरवाड़ में केवल दो कमरे बचे हैं। वहां अनन्त के गुल्लक में कुछ पैसे पड़े थे उनसे सब्जी खरीदने चला आया। आप एक काम करना, थोड़ी देर बाद अडानी जी यहां आएं तो उन्हें बता देना की मैं घर चला गया हूँ और वो भी मेरे घर आ सकते हैं। उनके तो बेचारे के पास कुछ भी नही बचा। मेरे कान सुन्न हो गए।
                      तभी एक बैलगाड़ी में सवार कुछ लोग हाथों में हँसिया लिए वहां से निकले तो एक भक्त ने बताया की ये सब कल तक आतंकवादी थे, जिन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है। तभी एक आदमी दौड़ा दौड़ा आया और बोला की सुना तुमने, बाबा रामदेव ने दवाइयों में मिलावट करने का अपना अपराध स्वीकार करते हुए अदालत में समर्पण कर दिया है। एक भक्त ने कहा की सचमुच देश सोने की चिड़िया बन गया है। उसने एक पेड़ की तरफ इशारा किया, तो मैंने देखा की सचमुच उस पर कई सोने के रंग वाली चिड़िया बैठी हुई थी। मुझे चक्कर आ गया तो एक भक्त ने दौड़ कर मुझे सहारा दिया और डॉक्टर के पास चलने का आग्रह किया। मैंने कहा की मैं कल चला जाऊंगा, आज पैसे लेकर नही आया। भक्त हँसा, कैसे पैसे बन्धु, सारे डॉक्टरों ने निजी प्रैक्टिस बन्द कर दी है। सारी दवाइयाँ और इलाज मुफ्त है। मैंने अपने आसपास देखा और पूछा की कोई बच्चा दिखाई नही दे रहा जो मुझे घर तक छोड़ दे। भक्त ने जवाब दिया की सभी बच्चे स्कूल गए हैं और स्कूल के समय में आपको कोई बच्चा सड़क या गली में नही मिलेगा। आप चाहें तो घर तक जाने के लिए पुलिस की मदद ले सकते हैं। पुलिस ! मैं कांपने लगा तो भक्त हंसा, डरो मत, ये नए भारत की पुलिस है जो लोगों की सेवा करती है। अब कोई अपराधी नही बचा है सो पुलिस केवल जनसेवा कर रही है। मेरी तबियत खराब हो गयी। तभी रेडियो पर सन्देश प्रसारित हुआ की प्रधानमंत्री देश को सम्बोधित करेंगे। सब रेडियो के आसपास सरक आये। सम्बोधन शुरू हुआ ,
                                 मित्रो, जैसा की मैंने आपसे वादा किया था की 50 दिन बाद आप जैसा भारत मांगेंगे , वैसा मिलेगा। मैंने अपना वादा पूरा किया। मित्रों, पहले हमारे देश में जो विदेशी आते थे वो देश की खराब छवि लेकर जाते थे, अब विदेशी लगभग आने ही बन्द हो गए हैं सो देश की इज्जत को कोई खतरा नही है। पहले आप देखते थे की शहर के चौराहों पर काम की इंतजार में मजदूर बैठे रहते थे जो बहुत ही खराब दृश्य होता था। अब 50 दिन काम का इन्तजार करते करते वो थक कर गांव वापिस चले गए। इससे शहरों पर दबाव कम होगा। प्रदूषण फ़ैलाने वाले जो कारखाने पहले अधिकारियों को हफ्ता देकर चलते रहते थे अब काम की कमी में बन्द हो गए और सरकार को कुछ नही करना पड़ा। हमने देशी उत्पादन पर भी पूरा जोर दिया है। किसानों के पास हाइब्रिड बीज खरीदने को पैसे ही नही बचे तो उन्होंने अपने घरों में खाने के लिए रखा अनाज ही बो दिया। अब हम उनको खाद के पैसे नही दे रहे हैं तो अनाज और खाने पीने के सामान में जहां एक तरफ रासायनिक और जहरीले तत्व नही आएंगे तो दूसरी तरफ कम अनाज पैदा होने से उसकी भंडारण की समश्या से छुटकारा मिलेगा।
                              इसके बाद हमने अपनी सरहद पर अमेरिकी फोजों को तैनाती की मंजूरी दे दी है। अब चीन और पाकिस्तान की हिम्मत ही हमारे तरफ देखने की नही पड़ेगी। इस पर बस हमे एक मुश्त रकम अमेरिका को देनी होगी जो अभी के रक्षा बजट से बहुत कम होगी। हमने अपनी सेना को भंग कर दिया है और अब सीमा पर हमारा कोई  जवान शहीद नही होगा। हमने अमेरिका के साथ हुए इस रक्षा समझौते में ये प्रावधान भी किया है की अगर अमेरिकी सैनिकों पर किसी हत्या या बलात्कार का आरोप लगता है तो उसकी जाँच भी अमेरिका को ही करनी होगी और हम उस पर कोई खर्चा नही करेंगे।
                               और मित्रों , आप देख ही रहे होंगे की हमने आज भी वही सूट पहना है जो कल पहना था। और मैं ये भी बताना चाहता हूँ की आपने मुझे चौकीदार चुना था। बेशक ललित मोदी या विजय माल्या जैसे 50 -100 लोग निकल गए हों, लेकिन क्या कोई जनधन खाते वाला अपने ही पैसे में से 5000 रूपये भी निकलवा सकता है। नही। हमने 42 करोड़ जनधन खाता धारकों का जो हाल किया है वो आपके सामने है।  एक दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहता हूँ वो ये की मेरी नोटबन्दी से कालेधन की कमर टूट गयी है, भृष्टाचार के पैर टूट गए है, आतंकवाद की गर्दन टूट गयी है, स्मगलिंग बन्द हो गयी है, बच्चों और महिलाओं  व्यापार और अपहरण खत्म हो गए हैं,  चोरी असम्भव हो गयी है और हवाला कारोबार मर गया है। हमारे कुछ युवाओं के स्टार्ट - अप को छोड़ दिया जाये तो जाली नोट छपने बन्द हो गए हैं। कुछ दूसरी चीजें बची हैं वो भी जल्दी ही मर जाएँगी।
                           इसके अलावा हमने सभी पार्टियों के नेताओं को कह दिया है अगर वो सीबीआई और इनकम टैक्स से बचना चाहते हैं तो उनके पास केवल दो रास्ते हैं, या तो वे राजनीती से सन्यास ले लें या फिर बीजेपी में शामिल हो जाएँ। अब तक कालेधन के सेफ हैवन केवल विदेशों में होते थे, अब हमने बीजेपी को ही कालेधन का सेफ हैवन बना दिया है। मित्रों, मैं ज्यादा कुछ नही कहना चाहूंगा, बस आप दिन में तीन बार RBI के नियम देखते रहें। धन्यवाद। इसके बाद भक्तों ने कई मिनट तक तालियां बजाई और नारे लगाए।
                               मैं वहां से धीरे धीरे चलता हुआ थोड़ा ही आगे गया था की मेरा सिर शीशे से टकराया। ये एकतरफा शीशा था जिसके दूसरी तरफ का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। मैं उसको टटोलते टटोलते उसके साथ साथ चला तो एक जगह जाकर वो खत्म हुआ। मैं उसके दूसरी तरफ पहुँचा तो देखता हूँ की एक चौराहे पर हजारों लोग हाथ में जूता लिए खड़े हैं। मैंने पूछा तो बोले की एक फकीर का इंतजार कर रहे हैं जो 50 दिन का वादा करके गया था। मुझे कुछ बदबू का अहसास हुआ। मैंने देखा की गन्दा नाला ओवरफ्लो हो कर मेरे पैरों के नीचे तक पहुंच गया है।

मोदीजी, ये रहा कालाधन !

                     किसी ने मुझे बताया की मोदीजी कालाधन ढूंढ रहे हैं। मुझे बड़ी हैरानी हुई। जो चीज सामने पड़ी हो उसे ढूंढने की क्या जरूरत है, बस आँखे खोलो और देख लो। फिर उसने बताया की पुरे देश में फोन नम्बर और ईमेल बांटे गए हैं की अगर किसी को कहीं भी कालेधन का पता चले तो इन पर सुचना दे। मुझे बड़ी हँसी आयी। हमारे देश के नेता लोगों को कैसे कैसे मूर्ख बनाते हैं। फिर सोचा की चलो कुछ कालेधन के बारे में मैं भी बता देता हूँ, क्या पता सरकार को सचमुच नही मालूम हो। इसलिए मैंने कालेधन के दो एक सबसे बड़े ठिकाने बताने का फैसला किया। इसलिए ये पोस्ट लिखी गयी।
राजनैतिक पार्टियों का चंदा --
                                              तो मोदीजी कालेधन का सबसे बड़ा पार्क राजनैतिक पार्टियों का चंदा है। उन पर इनकम टैक्स तो है नही, उल्टा ये छूट भी है की 20000 रूपये से कम के चंदे पर उनको ये नही बताना पड़ता की ये किसने दिया है। इस तरह ये पार्टियां कालेधन में मिले इस करोड़ों के चंदे को 20000 से छोटी रकम में जमा कर देती हैं और सारे क़ानूनी पचड़ों से बाहर हो जाती हैं। और सबसे खास बात ये है की इस तरह का सबसे ज्यादा चंदा आपकी पार्टी को मिलता है। जब भी इस कानून को बदलने की बात आती है तो आप वही बहाने बनाते हैं जो महिला आरक्षण बिल पर बनाते हैं। आप ये कभी नही कर सकते क्योंकि इससे सबसे ज्यादा नुकसान आपको और आपकी पार्टी को होगा।
                                             इस मामले में आप और आपकी सरकार कितनी ईमानदार है उसका सबसे बड़ा सबूत विदेशी चंदे का मामला है। आपकी पार्टी और कांग्रेस पर इस तरह से गैर क़ानूनी विदेशी चंदा लेने का आरोप लगा। मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में गया जिसने दोनों पार्टियों को दोषी पाया। उसके बाद आप लोग ये मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गए। और इससे पहले की सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई फैसला सुनाये, आपकी सरकार ने कानून बदल कर विदेशी चन्दे को क़ानूनी बना दिया और वो भी पिछली तारीख से। लेकिन लोग हैं की फिर भी कहते फिर रहे हैं की आप कालाधन ढूंढ रहे हैं।
शेयर बाजार में लगा कालाधन ----
                                                    कालेधन का दूसरा सबसे बड़ा मामला शेयर मार्किट में लगे धन का है। ये उसी शेयर मार्केट की बात है जिसको अगर छींक भी आ जाती है तो तुरन्त वित्त मंत्री को नँगे पैर दौड़ कर आना पड़ता है सफाई देने के लिए। शेयर मार्केट को सम्भाले रखने के लिए वित्त मंत्रालय जितनी तेजी दिखाता है काश उससे आधी भी हमारा डिजास्टर मैनेजमेंट दिखा पाता। शेयर मार्केट में दाऊद और दूसरे हवाला कारोबारियों और आतंकवादियों का पैसा लगा हुआ है, इसके बारे में जानकार बार बार सवाल उठाते रहे हैं। आपको भी मालूम है की शेयर बाजार में P - Notes के माध्यम से लगे पैसे को ये छूट प्राप्त है की वो लाखों करोड़ रुपया असल में किसका है, ये बताना जरूरी नही है। पूरी दुनिया के जानकर ये मानते हैं की P - Notes के माध्यम से लगा पैसा आमतौर पर गैर क़ानूनी संगठनों का होता है। किसी भी ईमानदार आदमी को या संस्था को P - Notes का सहारा लेने की कोई जरूरत नही होती। लेकिन आपकी सरकार ने इसकी इजाजत दे रखी है।
                           What is P-Notes ?  P - Notes के बारे में जाने।
                           इस कालेधन को पकड़ने और मार्किट से बाहर करने तो दूर, आप उनसे टैक्स तक नही ले सकते। क्या आप देश की जनता को ये बताएंगे की एक साल तक शेयर अपने पास रखने वाला व्यापारी पूरी तरह से करमुक्त है जबकि सेना के जवान को भी एक आय के बाद टैक्स देना पड़ता है।
                         इसलिए मुझे इस अफवाह पर कोई भरोसा नही है की आप कालाधन ढूंढ रहे हैं। असल में आप वोट ढूंढ रहे हैं, जिनका मिलना अब दिन प्रतिदिन ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। खैर अगर आप सचमुच में कालाधन ढूंढ रहे हैं तो आप इन दो सबसे बड़े ढेरों पर कार्यवाही करें, उसके बाद हम आपको दूसरे सामने दिखाई देने वाले स्रोत बता देंगे।

Thursday, December 22, 2016

Vyang - आधुनिक दौर में औरंगजेब की पुनः समीक्षा

              औरंगजेब भी भारत का एक मशहूर बादशाह रहा है। उसे मुगल सल्तनत का अंतिम ताकतवर और योग्य बादशाह माना जाता है। लेकिन उसे भी कुछ लोग तानाशाह मानते थे। हालाँकि वो भी ये मानते थे की उसकी प्रशासनिक योग्यताएं लाजवाब हैं। उसके बारे में कहा जाता था की वो अपने फैसलों में किसी की दखलंदाजी पसन्द नही करता था। उसके सभी मंत्री और सलाहकार उसकी हाँ में हाँ मिलाना ही पसन्द करते थे। उसकी नाराजगी से भी सबको बहुत डर लगता था। उसने कई हिन्दू मन्दिर तोड़े और कुछ बनवाये भी। लोग उसे भी कट्टर धर्मान्ध मानते थे।
                  उसके सैनिक अभियानों के चलते पश्चिम के मराठों और पंजाब के सिखों को छोड़कर लगभग सारा उत्तर भारत उसके सामने समर्पण कर चुका था। उत्तर भारत लगभग हरेक दिल्ली शासक के सामने समर्पण करता रहा है और उसकी ये परम्परा लगभग आज भी जारी है। उसका भी दक्षिण में कोई खास दबदबा नही था। उस समय के कर्नाटक क्षेत्र को छोड़कर उसकी भी ज्यादा पूछ नही थी। और कर्नाटक में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बनाये रखने के लिए उसे भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन वो भी एक तेज तर्रार शासक था।
                  व्यक्तिगत जीवन में उसे बहुत ही ईमानदार और इस्लामी उसूलों को मानने वाला माना जाता है। वह खुद अपनी मेहनत से कमाये पैसे का ही खाना खाता था और इसके लिए वो कुरान की प्रतिलिपि करने और टोपियां बुनने तक का काम करता था। हालाँकि वो हिंदुस्तान का बादशाह था और चाहता तो काजू के आटे की बनी हुई रोटियां खा सकता था। वह जमीन पर सोता था। हालाँकि वो भी पांच बार कपड़े बदलने की हैसियत रखता था लेकिन वो पांच बार केवल नमाज पड़ता था। उसने सैनिक अभियानों के अलावा कभी विदेश यात्रायें नही की। अगर उसके भाई सत्ता के लिए उसके रास्ते में नही आते तो उसे भी उन्हें मारना नही पड़ता। इसी तरह अगर उसके अब्बा शहंशाह भी चुपचाप मार्ग दर्शक बनने को तैयार हो जाते तो उसे भी कैद में रखने की जरूरत नही पड़ती।
                    बस इतना फर्क और है की वो फिजूलखर्ची के बहुत खिलाफ था और खुद भी फिजूलखर्ची नही करता था। वो खुद को फकीर नही कहता था लेकिन जीवन फकीरों जैसा जीता था। वो राज्य के पैसे को हाथ भी नही लगाता था। यहां तक की उसकी वशीयत के अनुसार उसका मकबरा बनाने में जब उसका खुद का पैसा खत्म हो गया तो राज्य के पैसे से उस पर छत भी नही डाली गयी और आज भी उसका मकबरा बिना छत के अधूरा खड़ा है। उस पर भी धार्मिक उत्पीड़न और कत्लेआम के आरोप थे लेकिन वो कभी न्यायालय में साबित नही हो पाए।

Wednesday, December 21, 2016

अधिकारों के उपयोग और दुरूपयोग का सवाल !


                        जब कोई व्यक्ति या सरकार किसी अधिकार का उपयोग, परम्परा, न्याय, संविधान, और समानता के सिद्धांतों को छोड़कर अपने व्यक्तिगत पसन्द- नापसन्द और फायदे नुकशान को ध्यान में रखकर करता है तो वह दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। इसी तरह की कुछ कोशिशें पिछले काफी समय से केंद्र सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के मामले में किया जा रहा है। हर बार नियुक्ति तय मापदण्डों और परम्परा या कानून के अनुसार ना करके अपनी पसन्द के आधार पर की जा रही हैं और इसलिए उन नियुक्तियों पर विवाद उठ खड़े हो रहे हैं। जिसके एवज में ये तर्क दिया जा रहा है की सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार है। या फिर पिछले किसी समय के दौरान हुए फैसले को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक की उन नियुक्तियों को सम्भव करने के लिए भी अधिकारों का दुरूपयोग किया जाता है, जैसे उससे सीनियर अधिकारियों का तबादला करना या नियुक्ति को तब तक रोके रखना जब तक पसन्दीदा अधिकारी सीनियर का दर्जा ना प्राप्त कर ले।
                        एक पुलिस और टैक्स अधिकारी को ये क़ानूनी अधिकार हासिल है की वो सड़क पर जा रही किसी भी गाड़ी की तलाशी ले सकता है और उसके लिए वो ट्रक में लदे हुए सामान को खोलकर देख सकता है। अगर कोई अधिकारी हर ट्रक के मामले में इस अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दे तो ये दुरूपयोग कहलाता है और इससे कामकाज में अव्यवस्था फ़ैल जाएगी। इसलिए उक्त अधिकारी को इस तरह का फैसला, उसके पीछे के वाजिब कारणों की उपस्थिति के अधीन लेना होता है। अगर वो केवल ये तर्क दे की उसको इसका क़ानूनी अधिकार है तो उसे ठीक नही समझा जाता /ठीक इसी तरह जब हर विवादित नियुक्ति को जायज ठहराने के लिए केंद्र सरकार का ये कहना की उसे इसका अधिकार है, इसी श्रेणी में आता है।

Sunday, December 18, 2016

नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

                व्यक्ति के अहंकार का मूल उसकी मूर्खता में होता है। हर मुर्ख व्यक्ति दम्भी और अहंकारी होता है। जब ये स्थिति किसी सरकार चलाने वालों के साथ होती है तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाती है। ठीक वैसी ही, जैसी अब है। लोग भूख से मर रहे हैं, अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है, काम धंधे बन्द हैं और सरकार के मंत्री अपनी वफादारी सिद्ध करने की होड़ में इस फैसले को कभी ऐतिहासिक तो कभी गेम चेंजर बता रहे हैं। रोज बैंक की लाइनों से लाशें घर लोट रही हैं, मजबूर, रोते बिलखते लोगों के फोटो अख़बार में छप रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ट्रेने वापिस लौटते हुए मजदूरों से भरी हुई हैं। किसान अपनी उपज को सड़कों पर फेंक देने को मजबूर हैं। सभी छोटे और मध्यम उद्योग लगभग बन्दी की हालत में हैं। और सरकार के वरिष्ठ मंत्री, प्रधानमंत्री सहित, टीवी पर डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बता रहे हैं। एक लोकतान्त्रिक देश के लोगों के साथ इससे क्रूर मजाक हो नही सकता।
                  कॉरपोरेट मीडिया और कॉरपोरेट की सरकार द्वारा तय किये गए मापदण्ड कुछ लोगों के दिमाग पर इतने हावी हो चुके हैं की वो अपनी समझबूझ खो चुके हैं। अब भी कुछ लोग हैं जो नोटबन्दी के फायदे समझाने लगते हैं। उन्हें देख कर तरस आता है। आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत के फायदे गिनवाते थे। अंग्रेजो को विकास का प्रतीक बताया जाता था। अब भी वैसा ही है। उन्हें कुछ भी दिखाई नही देता।
                    लोगों की तकलीफों को छुपाने की भरसक कोशिशों के बावजूद टीवी कुछ ऐसे दृश्यों को दिखाने के लिए मजबूर है जिसमे चाय बागानों के मजदूर झाड़ियों के पत्ते उबाल कर खा रहे हैं। उन्हें कहा जा रहा है की भविष्य की बेहतरी के लिए सब्र करें। किसका भविष्य ? जिन लोगों को दो वक्त की रोटी विलासिता लगती हो वो भूखे रहकर किस भविष्य की उम्मीद करें। पीठ पर बैग लटकाये बेरोजगार नोजवानो की एक भीड़,  जिसके लिए देश का सबसे क्रन्तिकारी नेता वो है जो फ्री वाईफाई दे दे , आज देश में विचार के मुद्दे तय कर रही है। जो कारपोरेट की भाषा बोलती है और गैस की सब्सिडी लेने पर अपने माँ बाप को मुफ्तखोर कहती है। क्या उसे मालूम है की जो किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक कर जा रहा है वो उसके आधा साल की मेहनत का परिणाम है। आज जब उसे खेत में डालने के लिए खाद नही मिल रहा है तो उसका भविष्य उसकी आँखों के सामने बरबाद हो रहा है। अगर दो या तीन महीने के बाद स्थिति थोड़ी बहुत सामान्य हो भी जाती है, जिसकी उम्मीद नही है तो भी उसके किस काम की ? ये कोई मोबाइल का रिचार्ज नही है की जब पैसा आएगा तब करवा लेंगे। पहले से जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा कृषि क्षेत्र तब तक लकवे का शिकार हो जायेगा।
                   उसके बावजूद सरकार अपने जनविरोधी फैसले पर अडिग है। उसके सारे वायदे एक एक करके खोखले साबित हो चुके हैं। अब ना कालेधन का कोई सवाल बचा है, ना आतंकवाद की टूटी हुई कमर दिखाई दे रही है और जाली नोटों का तो ये हाल है की शायद जितने जाली नोट अब पकड़े गए हैं उतने तो दस साल में भी नही पकड़े गए होंगे। अब सरकार मुंह छुपाने के लिए डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है। क्या करेगी सरकार उसके लिए ? बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भेजेगी लोगों को डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बताने और paytm की app कैसे काम करती है उसकी ट्रेनिग देने ? जिस देश की 35 % जनता को सरकार 70 साल में क ख ग नही सीखा पाई ( गुजरात सहित ) , उसे अब दो महीने में डिजिटल कर दिया जायेगा ? इससे बड़ा मजाक हो नही सकता। इस पर टीवी पर भाषण देने वाले लोग असल में इस देश के बारे में कुछ नही जानते। हर रोज सरकार के प्रतिनिधि नए नियम और नई धमकियां लेकर आ जाते हैं। संसद को पहली बार सरकार ने नही चलने दिया। जब विपक्ष ने बहस के किसी नियम पर सहमति दिखाने की कोशिश की तभी सरकार  सांसद तख्तियाँ लिए नारे लगाते हुए नजर आये। प्रधानमंत्री रैली में कहते हैं की उन्हें संसद में बोलने नही  दिया गया, क्या वो एक फुटेज दिखा सकते हैं की जब वो बोलने के लिए खड़े हुए हों। नही। हर रोज नोटबन्दी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने पार्टी के सांसदों को विपक्ष का पर्दाफाश करने का आव्हान कर रहे हैं। उन्हें कालेधन के समर्थक करार दे रहे हैं। अब किसका पर्दाफाश करेंगे ? सारे बैंकों, सरकार के दिए गए संवैधानिक वचनों और नागरिक अधिकारों का तो पहले ही पर्दाफाश हो चूका है।
नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

Friday, December 16, 2016

व्यंग -- रेल यात्रा के दौरान चाय " वाले " पर चर्चा

                 अभी अभी रेल द्वारा दिल्ली से घर पहुंचा हूँ। रेल की यात्रा भी किसी भारत भृमण से कम नही होती है। पहले तो इस पर इम्तिहान में प्रस्ताव तक लिखवाये जाते थे। आज भी ऐसा ही हुआ। रेल में सबसे ज्यादा चर्चा नोटबन्दी पर हो रही थी। लगभग सभी लोग अपनी अपनी परेशानियां गिनवा रहे थे। तभी किसी ने कहा की क्यों ना चाय पी ली जाये। उसके बाद चर्चा का रुख चाय की तरफ मुड़ गया।
                   एक आदमी ने कहा की अगर किसी से पूछा जाये की दुनिया में सबसे घटिया चाय कहाँ मिलती है तो वो बिना सोचे बता देगा की रेल में। रेल मंत्री प्रभुजी बेसक रेल में सर्ज प्राइस लागु करवा सकते हैं, लेकिन रेल की चाय का स्तर नही सुधार सकते।
                   भाई लेकिन एक बात है, एक चायवाला चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की उसने रेल में चाय बेचीं है फिर भी लोगों ने पुरे देश की चाय बनाने का ठेका उसको ही दे दिया और अब चाय की शिकायत कर रहे हैं। दूसरे आदमी ने हंसते हुए कहा।
                  सब जोर से हंस पड़े। तभी एक चायवाला डिब्बे में दाखिल हुआ। उसने आते ही आवाज लगाई। गरमागरम चाय पी लो, अदरक इलायची वाली चाय !अच्छी ना लगे तो पैसे मत देना।
                  एक आदमी ने पूछा की भाई चाय गर्म तो है ना ?
                  बिलकुल, अभी अभी ताजी बना कर लाया हूँ , दस मिनट भी नही हुए।  चाय वाले ने जवाब दिया।
                  दूसरे आदमी ने पूछा की इसमें अदरक इलायची है क्या सचमुच में ?
                  एकदम है  भाई साब , बिना अदरक और इलायची के चाय क्या ख़ाक बनेगी ? वो तो डालनी ही पड़ती है। चाय वाले ने कहा।
                 देखो अगर चाय अच्छी नही हुई तो पैसे नही देंगे, पहले बता देते हैं। एक और यात्री ने तसल्ली करने के लिए कहा।
                  अरे अगर चाय अच्छी नही होगी तब न ! पहले पी लो बाद में पैसे देना। चाय वाले ने पुरे आत्मविश्वास से कहा।
                   सबने उससे चाय ले ली। पहली घूंट भरते ही मुंह का स्वाद बिगड़ गया। चाय वैसी ही थी जैसी रेल में होती है।
                   ये तो लगभग ठंडी हो चुकी है।  एक यात्री ने कहा।
                  अब घर से यहां तक आते आते इतनी ठंडी तो हो ही जाती है। वैसे अभी भी काफी गर्म है। इससे ज्यादा गरम तो पी भी नही जा सकती। चाय वाले ने आराम से उत्तर दिया।
                  लेकिन इसमें अदरक और इलायची का तो निशान भी नही है।  दूसरे यात्री ने शिकायत की।
                   हम तो डालते है साब, आपको मालूम नही पड़ा होगा। यकीन ना हो तो मेरे घर चल कर देख लीजिये, अब तक छलनी में मिलेगी।  चाय वाले ने इत्मिनान से कहा।
                   हम नही लेंगे इतनी घटिया चाय। लो वापिस लो। एक यात्री ने झल्लाकर कहा।
                    अब झूठी चाय कैसे वापिस ले सकता हूँ। आपको वापिस देनी थी तो बिना झूठी किये देते। चाय वाले ने कहा।
                    लेकिन तुमने तो कहा था की अच्छी ना लगे तो पैसे मत देना। अब क्या हो गया ? और बिना पिए कैसे पता चलेगा की चाय कैसी है।  उस यात्री ने प्रतिवाद किया।
                    देखिये भाई साब, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे। जहां तक मेरे कहने का मतलब था तो चाय बेचने के लिए कुछ बातें तो कह दी जाती हैं उन को पकड़ कर नही बैठना चाहिए। समझ लीजिये की वो जुमला था।  चाय वाले ने पूर्ण शांति से बात पूरी की।
                     सब एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। आखिर में एक यात्री ने कहा, " दोनों एक जैसे निकले, ऊपर वाला भी और नीचे वाला भी। "
                 
            

Tuesday, December 6, 2016

बैंकिंग व्यवस्था से उठता विश्वास , अर्थव्यवस्था के लिए मौत की घण्टी साबित होगा।

                    नोटबन्दी के फैसले के बाद इसके जो लाभ गिनवाए गए थे वो एक एक करके छलावा साबित हो रहे हैं। अब इसके दुष्परिणाम एक एक करके सामने आने लगे हैं। उनमे से कुछ इतने बड़े, स्पष्ट और विनाशकारी हैं की आम आदमी को भी सामने दिखाई दे रहे हैं। इन्ही में से एक है बैंकिंग व्यवस्था से उठता हुआ विश्वास।
                     कोई आदमी जब अपना पैसा बैंक में रखता है तो उसके सामने दो उद्देश्य होते हैं। एक तो ये की उसका पैसा सुरक्षित है और डूबेगा नही। दूसरा ये की उसे जरूरत के समय तुरन्त पैसा मिल जायेगा। ब्याज की आमदनी इसमें कोई भूमिका नही रखती। क्योंकि बाहर मार्किट में ब्याज की दर बैंक से दुगनी तिगुनी होती है। लेकिन उसके साथ उपरोक्त दो जोखिम जुड़े होते हैं। बाहर मार्किट में पैसा ब्याज पर देने से एक तो उसके डूबने का डर रहता है जिसके लिए लोग बैंक का रुख करते हैं। लेकिन ऐसा भी नही है की बाहर ब्याज पर दिया हुआ सारा पैसा डूब ही जाता है। बाहर मार्किट में भी ऐसे लोग हैं जिनका भरोसा और साख बहुत बड़ी है। लेकिन कई बार वो भी जरूरत के समय तुरन्त पैसा नही लोटा पाते। वो महीना बीस दिन का समय लगा देते हैं। इसके लिए लोग एमरजेंसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए पैसा बैंक में रखते हैं ताकि जरूरत के समय तुरन्त मिल जाये।
                     नोटबन्दी के बाद बैंक की इसी विशेषता पर चोट पहुंची है। जिन लोगों का पैसा बैंक में था और उन्हें उसकी बहुत सख्त जरूरत थी, उन्हें भी वो पैसा नही मिला। लोगों को शादियां टाल देनी पड़ी, हस्पतालों में इलाज नही करवा पाए और गरीब लोगों को तो राशन तक की तकलीफ खड़ी  हो गयी। लाखों रुपया बैंको में जमा होने के बाद भी लोगों की हालत भिखारियों जैसी हो गयी। इस पर भी सरकार ने इसका हल निकालने की बजाय उन्हें कैशलेस इकोनॉमी के चुटकले सुनाये। आज बैंक की लाइन में खड़ा हर आदमी इस मानसिक स्थिति में पहुंच गया है की कभी भी और किसी भी तरह एक बार उसका पैसा निकल जाये, फिर वो कभी बैंक का रुख नही करेगा। लोगों का बैंकिंग व्यवस्था से विश्वास उठ गया।
                     इसके कुछ साफ और अंधे को भी दिखाई देने वाले सबूत हैं। बैंक ने एक महीने के दौरान लोगों को करीब ढाई लाख करोड़ के नए नोट बांटे हैं। लेकिन उनमे से एक भी नोट वापिस बैंक में जमा नही हुआ। ये बात SBI के अधिकारियों ने मीडिया के सामने कही है। ये लोगों के उठते हुए विश्वास का साफ संकेत हैं। इस तरह जो बैंक आज जमा हुए पैसे से छलक रहे हैं एक समय के बाद वो सूखे के शिकार हो जायेंगे। जैसे जैसे लोगों का पैसा निकलता जायेगा वो कभी वापिस नही आएगा। आयेगा भी तो बहुत कम। और ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए मौत की घण्टी साबित होगा। बैंकिंग सिस्टम पर भरोसा किसी भी अर्थव्यवस्था की नींव होता है।
                    वैसे भी बैंको पर एक दूसरा संकट आने वाला है। वो है बड़े पैमाने पर NPA का संकट। अब तक बैंक केवल बड़े उद्योगों के NPA से जूझ रहे थे, अब लम्बी चलने वाली मन्दी के कारण आम लोगों द्वारा लिए गए लोन, चाहे वो घर के लिए हों, गाड़ी के लिए हों या पर्सनल लोन हो, कमाई की कमी के कारण उनका एक बड़ा हिस्सा डूबने वाला है। 2008 की मन्दी के बाद जिस तरह का संकट सामने आया था उसे एक बार फिर दोहराया जाने वाला है। अब तक रिजर्व बैंक ने बैंको को नवम्बर और दिसम्बर की डिफाल्ट हुई किस्तो को NPA में नही दिखाने की छूट दे दी है, लेकिन उसके बाद, यानि जनवरी में क्या होगा ?
                      सरकार पता नही क्यों इस खतरे की तरफ से आँख मूंदे हुए है। सारा देश एक दिन में कैशलेस नही हो जाने वाला है। अर्थव्यवस्था के सामने खड़े इस संकट को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए।

Monday, December 5, 2016

जन धन खाता धारकों को चोर क्यों समझती है सरकार ?

             जिन खातों को खुलवाते समय प्रधानमंत्री ये कह रहे थे की गरीब को भी सम्मान देना चाहती है सरकार। की अब गरीब भी ये कह सकता है की उसका बैंक में खाता है। और केवल खाता खुलवा देने को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थी सरकार। तो ऐसा क्या हो गया की अचानक सभी जन धन खाता धारक सरकार को चोर नजर आने लगे ?
                8 नवम्बर को नोटबन्दी के बाद पुरे देश में बैंको में रुपया जमा होने लगा क्योंकि अब वो बाजार में नही चल सकता था। जिसके पास 500 और 1000 की नोटों में पैसा था वो सब उसे अपने खाते में डालने लगे। यही काम जन धन खातों में भी हुआ। लेकिन सरकार ने दूसरे लोगों का पैसा अपने खातों में जमा करने का आरोप केवल जन धन खातों पर ही लगाया। सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों ने अपने खातों को किराये पर दे दिया और दूसरों का काला धन सफेद करने के लिए इस्तेमाल किया। क्योंकि सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों के पास पैसा कहाँ से आएगा ? जिन खातों को सम्मान का प्रतीक बताकर खुलवाया गया था वो सब चोरी का कारण करार दे दिए गए। ये गरीबों के प्रति सरकार चलाने वालों का पूर्वाग्रह है जो बात चाहे जो भी करें लेकिन उनकी समझ यही है। लेकिन असलियत क्या है ?
               8 नवम्बर नोटबन्दी से पहले भी जन धन खातों में 45000 करोड़ रूपये जमा थे। नोटबन्दी के बाद इनमे 27000 हजार करोड़ रूपये जमा हुए। देश में कुल 25 . 5 करोड़ जन धन खाते हैं। इस तरह औसतन हर खाते में 1100 रूपये जमा हुए। बाकी खातों में करीब 12 लाख करोड़ जमा हो गए। लेकिन उनसे कोई शिकायत नही है। वो तो खाते पीते लोगों के खाते हैं सो उनमे तो सफेद धन जमा हुआ है। क्या सरकार का ये मानना है की देश में केवल 27000 करोड़ का ही काला धन था ? अगर नही तो केवल जन धन खातों को बदनाम करने और उन पर पाबन्दी लगाने का क्या मतलब है। लोगों का जो 45000 करोड़ रुपया उनमे पहले जमा था,  उस पर भी पाबन्दी लगा दी गयी। एक तो दूरदराज के गाँवों में नोटबन्दी के कारण वैसे ही भुखमरी के हालात हैं उस पर ये पाबन्दी उनके लिए निश्चित मौत का पैगाम है।
               बाकी सभी खातों पर खाता अनुसार जाँच होगी और जवाब माँगा जायेगा। लेकिन जन धन खातों को पहले ही काले धन के खाते मान लिया गया है। सरकार की निगाह में हर जन धन खाता धारक चोर है क्योंकि वो गरीब है।

Sunday, December 4, 2016

कैशलेस इंडिया किसके लिए ?

                  नोटबन्दी के बाद अब जब कहने को बहुत कुछ नही बचा है तब इसके समर्थन में दो तर्क दिए जा रहे हैं। एक कैशलेस इंडिया बनाने और दूसरा ब्याज दर कम होने के। लेकिन क्या इन दोनों चीजों का जो मतलब है उसे लोग समझते हैं ? इसकी पड़ताल करना जरूरी है।
कैशलेस इंडिया --
                          सरकार का कहना है की लोगों को अपने छोटे छोटे खर्चे भी अपने मोबाइल फोन से paytm इत्यादि के द्वारा करने चाहियें। सरकार और मीडिया पुरे जोर शोर से इसके प्रचार में लग गया है। उसे इस बात से भी कोई फर्क नही पड़ता की paytm उसी चीन की कम्पनी है जिसके बहिष्कार के लिए अभी बीस दिन पहले तक बीजेपी और मीडिया ने कुछ भी बाकि नही रखा था और 20 रूपये के पटाखे खरीदने वाले को भी देश का गद्दार घोषित कर दिया था। उस समय देश की अर्थव्यवस्था को बचाने का केवल एक ही उपाय था की चीन का बहिष्कार करो, आज देश की अर्थव्यवस्था बचाने का केवल एक ही तरीका है की चीनी कम्पनी paytm को अपनाओ।
                        लेकिन हम इसके दूसरे पहलुओं पर बात करना चाहते हैं। मोबाइल फोन इत्यादि से और कार्ड के इस्तेमाल से उसके हैक होने और धोखाधड़ी का खतरा बढ़ जाता है। अब तक इसका बहुत इस्तेमाल न होने के बावजूद करीब 40000 शिकायतें सरकार को मिली थी। जब सरकार इस पर इतना जोर दे रही है तो क्या वो इसकी जिम्मेदारी लेगी की अगर किसी ग्राहक का अकाउन्ट हैक करके कोई उसका पैसा निकाल लेता है तो सरकार, बैंक या paytm जैसी कम्पनी उसकी भरपाई करेगी। नही। सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया है। फिर सरकार एक ऐसे तरीके पर क्यों जोर दे रही है जिसकी सुरक्षा की गारन्टी नही दी जा सकती ?
                       दूसरा एक और कारण है जिससे ये तरीका लोगों के हित में नही है। paytm या कार्ड द्वारा किये गए भुगतान पर बैंक और ये कम्पनियां डेढ़ से साढ़े तीन प्रतिशत तक का ट्रांजैक्शन चार्ज लेती हैं। ये चार्ज भुगतान लेने वाले दुकानदार को करना पड़ता है। इसलिए दुकानदार उतना भाव बढ़ा लेता है। अगर वो भाव नही बढ़ाता है तो उसका नुकशान होता है। अब ये नुकशान उन छोटे छोटे दुकानदारों को भी उठाना पड़ेगा जो अब तक नकद में व्यापार करते थे। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 75 लाख करोड़ का नकद लेन देन होता है। इसका सालाना हिसाब निकाला जाये और ट्रांजैक्शन चार्ज को केवल 1 . 25 % भी मान लिया जाये तो इसकी सालाना कुल रकम करीब सवा लाख करोड़ बैठती है। ये रकम सीधे paytm और रिलाएंस मनी जैसी कम्पनियों की जेब में जाएगी। इन उद्योगपतियों को बिना कुछ किये इतनी बड़ी रकम घर बैठे मिल जाएगी। यही कारण है की सरकार और मीडिया इस पर इतना जोर दे रहा है।
                          अगर सरकार लोगों के हित में इस व्यवस्था को लागु करना चाहती है तो उसे तुरन्त हमेशा के लिए ट्रांजैक्शन चार्ज को खत्म करने और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन ऐसा कभी नही होगा।
घटती ब्याज दर --
                            नोटबन्दी के पक्ष में जो दूसरा तर्क अब बड़ी जोर से दिया जा रहा है वो ये है की इससे ब्याज दरें कम होगी और आम लोगों को सस्ते ब्याज में मकान इत्यादि खरीदने का मौका मिलेगा। लेकिन इस पर भी थोड़ी जाँच पड़ताल की जरूरत है। आम तोर पर बैंको में आम लोगों का पैसा जमा होता है जिसमे लाखों पेंशन धारक और अपनी सारी उम्र की कमाई बैंको में रखकर उसके ब्याज की आमदनी से गुजारा करने वाले बुजुर्ग शामिल हैं। इसके साथ ही लाखों करोड़ों कर्मचारी भी शामिल हैं जिनके वेतन से एक निश्चित रकम हर महीने कटती है। दूसरी तरफ बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज लेते हैं जिसके द्वारा वो उद्योगों की स्थापना करते हैं और अपना वैभवी जीवन जीते हैं। जब उद्योग नुकशान में होता है तो इनके अपने खर्चों पर कोई फर्क नही पड़ता लेकिन बैंको का पैसा डूब जाता है। इस तरह के डूबने के कगार पर खड़े कर्जों जिन्हें बैंक की भाषा में NPA कहा जाता है की राशी करीब 9 लाख 75 हजार करोड़ पर पहुंच चुकी है। आम जनता का बहुत ही छोटा हिस्सा बैंको से कर्ज लेता है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल ये है की पूरे देश के सभी किसानों पर बैंको का जितना कर्ज है, अकेले अडानी समूह की कम्पनियों का कर्ज उसके बराबर है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है की ब्याज दरें कम होने का फायदा हमेशा उद्योगपतियों को होता है और नुकशान आम लोगों को होता है।
                       केवल इन दो तथ्यों पर ही तर्कपूर्ण जाँच पड़ताल की जाये तो सामने आता है की ये फैसला बड़े लोगों और उद्योगपतियों को ध्यान में रखकर लिया गया है जिसका भुगतान आम आदमी को करना है।

Saturday, December 3, 2016

व्यंग -- कैशलेस देश और कैशलेस भृष्टाचार


              8 नवम्बर को रात होते होते लोगों को पता चल गया की सरकार क्या क्या कर सकती है। जिन लोगों को सुबह दूध खरीदना था और उनके पास केवल पांच सौ का नोट था, उनकी हालत भी ऐसी हो गयी थी जैसे वर्ल्ड बैंक की क़िस्त डिफाल्ट होने वाली है। लोगों ने पूछा की ऐसा क्यों कर रहे हो ?
सरकार ने कहा की आतंकवाद बन्द करना है की नही ?
लोगों ने कहा की करना है।
तो ये आतंकवाद बन्द करने के लिए किया है।
सरकार इतना कह कर मुड़ने ही वाली थी की आतंकवादी हमले की खबर आ गयी।
लोगों ने सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की जाली नोट बन्द होने चाहियें की नही ?
लोगों ने कहा की होने चाहियें।
तो ये जाली नोट बन्द करने के लिए किया है।
सरकार फिर मुड़ने वाली थी की जाली नोट पकड़े जाने की खबर आ गयी।
लोगों ने फिर सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की कालाधन खत्म करना है की नही ?
लोगों ने फिर कहा की करना है।
सरकार ने कहा की सारा कालाधन कागज के टुकड़ों में बदल जायेगा। जिन लोगों के पास काले नोट हैं वो बैंकों  में ही नही आएंगे। और सारे कालेधन वाले बर्बाद हो जायेंगे। सरकार इतना कह कर मुड़ने ही वाली थी की लगातार खबरें आने लगी की ज्यादातर नोट बैंकों में जमा हो गए हैं। जिन लोगों के पास जनता को कालाधन होने का शक था वो सब बारी बारी टीवी पर आकर मुस्कुराते हुए नोटबन्दी का समर्थन कर रहे हैं।
लोगों ने फिर सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की कैशलैस इकॉनोमी बनानी है।
अब लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा।
एक नोजवान जो जीन्स शर्ट पहने और पीछे बैग लटकाये हुए स्मार्ट फोन में बीजी था वो आगे आया और बोला की कैशलेस का मतलब है बिना नोटों वाला देश।
सरकार खुश हुई।
लोगों ने कहा की भइये, हम तो पहले ही बिना नोटों के हैं। और जिनके पास नोट हैं उनको बदल कर तुम पहले से भी बड़े नोट दे रहे हो। और नोटों के बिना हम दूध सब्जी और राशन कैसे खरीदें ?
नोजवान ने कहा की PAYTM करो।
लोगों ने फिर एक दूसरे की तरफ देखा और बोले की भाई करके दिखाओ।
तभी एक दूधवाला साईकिल पर ड्रम लादे वहां से गुजरा। नोजवान ने उसे रोककर कहा की दो लीटर दूध दो।
दूधवाले ने कहा की लाओ पैसा।
नोजवान ने कहा PAYTM है न ?
दूधवाले ने कहा -हट  और चला गया।
लोगों ने नोजवान की तरफ देखा।
नोजवान ने कहा की यही लोग देश को आगे नही बढ़ने दे रहे। जब तक देश के सारे दूधवाले, रेहड़ी सब्जी वाले, फुटपाथ पर सामान बेचने वाले और चौराहे पर बैठे मजदूर PAYTM नही करेंगे, तब तक देश आगे नही बढ़ सकता और ना ही भृष्टाचार खत्म हो सकता है। सबसे बड़े भृष्टाचारी तो यही लोग हैं।
लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा, फिर नोजवान की तरफ देखा, लेकिन नोजवान तब तक डाटा पैक रिचार्ज करवाने के लिए कनेक्टिविटी ढूंढने चला गया था।