Saturday, December 31, 2016

मोदीजी हमने तो पिंजरा देखकर ही बता दिया था की आप चुहिया पकड़ेंगे।

               लोगों ने कहा खोदा पहाड़ और निकली चुहिया। तो मोदीजी ने तुरन्त कह दिया की मुझे तो चुहिया ही पकड़नी थी। क्यों पकड़नी थी चुहिया ? क्योंकि ये चुहिया ही थी जो देश की अर्थव्यवस्था को कुतर कुतर कर खा रही थी। ये कहा मोदीजी ने।
                  लेकिन मोदीजी हमने तो पहले ही बता दिया था की आप चुहिया ही पकड़ने निकले हैं। आपके हाथ में ३"x ६" का पिंजरा था। उसमे तो बड़े साइज का चूहा भी नही आ सकता। वो अलग बात है की आप मगरमच्छ पकड़ने के दावे कर रहे थे। और हमेशा की तरह आप इतनी ऊँची आवाज में और एक ही बात को इतनी बार बोलते हैं की लोगों का ध्यान आपके हाथ में पकड़े पिंजरे की तरफ गया ही नही। आपने पहले दिन दावा किया की बड़े बड़े मगरमच्छों के यहां जो नोटों का ढेर लगा हुआ है वो कागज के टूकड़ों में बदल जायेगा। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए ये साफ हो गया की कोई भी नोट कागज के टुकड़े में नही बदलेगा। उसके बाद आप बातें बदलने लगे। और अंत में चुहिया पर आ गए।
                 लेकिन आपकी नियत कभी भी मगरमच्छ पकड़ने की थी ही नही। आपने जनधन खातों पर पाबन्दी लगाई और बदनाम किया। जबकि उनमे केवल 26000 करोड़ रूपये जमा हुए थे जो 15 लाख करोड़ के सामने चुहिया जितनी ही रकम थी। आपने किसानों और मजदूरों का दानापानी बन्द कर दिया जो इस मामले में चूहे की ही हैसियत रखते हैं। आपने बड़े मगरमच्छों और कालेधन के कुबेरों के सामने बयान देने के अलावा कुछ नही किया। उल्टा आपने चुहिया मारकर बागड़ बिल्लों को परोसने का पूरा इंतजाम कर दिया। लोगों की मेहनत की एक एक पाई बैंको में जमा करवा कर कॉरपोरेट को सस्ता कर्ज देने का रास्ता बना दिया।
                   जो लोग आपको पहले से जानते हैं वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की ये आदमी कभी भी चुहिया पकड़ने से आगे नही जायेगा। लेकिन लोग थे की मान ही नही रहे थे। आपने कष्ट सहने के लिए  धन्यवाद तो दे दिया लेकिन ये नही बताया की ये कष्ट कितने दिन और चलेगा। कम  से कम नोट शहीदों का एक स्मारक ही बनवा देते। सुना है आपकी सरकार ने टोल नाको पर हुए नुकशान की भरपाई करने के लिए कम्पनियों को करीब 900 करोड़ रूपये देने का फैसला किया है। लेकिन जो मजदूर काम बन्द होने के कारण रेल भर भर कर गांव वापिस आ गए उनको भी कुछ दे देते। जो चाय के बागानों और जंगल में मर गए उनके लिए भी कुछ करते। लेकिन उन चूहों को केवल धन्यवाद और बागड़ बिल्लों को मलाई।
                     ये ठीक है मोदीजी की आपने मान लिया की आप केवल चुहिया ही पकड़ना चाहते थे। क्योंकि आपके ये प्यारे बिल्ले अब इतने कमजोर हो चुके हैं की वो अब दौड़ भाग करके चूहे पकड़ने की पोजीशन में नही हैं। सो अब इनको चूहे पकड़कर देने पड़ेंगे। क्योंकि ये तो मुंहलगे खास बिल्ले हैं। लेकिन लोगों का कहना है की इनकी कमजोरी ज्यादा खाने की वजह से हुई अपच के कारण है। इनके लिए अच्छा होता की अगर आप इनको कुछ दिन हल्का खाना खिलाते। कई बार ज्यादा लाड़ प्यार नुकशान का कारण भी बन सकता है। कोई मुझे बता रहा था की अब इनको चुहिया का सूप पिलाया जायेगा इसलिए आप चुहिया पकड़ने निकले थे।
                       बस एक सवाल पूछना है। कृपया ये बता दीजिये की वो कौन थे जो देश का पब्लिक सैक्टर खा गए, बैंक खा गए, सड़कें और पुल खा गए, खदान खा गए, किसानों की जमीन खा गए और,
                                                             वो भी
    जो भाईचारा खा गए, शान्ति और संस्कृति खा गए, गंगा जमनी तहजीब खा गए, सुरक्षा का अहसास खा गए , कम से कम चुहिया के बस की बात तो ये है नही।

Tuesday, December 27, 2016

व्यंग -- नोटबन्दी के बाद 31 दिसम्बर की सुबह और नया भारत।

                 सारा देश 30 दिसम्बर के गुजरने का इंतजार इतनी शिद्दत से कर रहा था जैसे विश्व युद्ध के खत्म होने का कर रहा हो। ऐसा लगता था जैसे शादी के 68 साल बाद पुत्र होने जा रहा हो। रात गुजरनी मुश्किल हो रही रही थी की कब आँख लग गयी पता ही नही चला। आँख लगते ही एक बहुत ही अजीब सपना आया। मनोवैज्ञानिक सपनो को मनुष्य की दबी हुई इच्छाओं की विभिन्न रूपों में अभिव्यक्ति होना बताते हैं, शायद मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।
                   मैंने खुद को शहर की मुख्य सड़क पर खड़ा पाया। मैंने देखा की सड़क पर कोई गड्ढा नही था, कोई कूड़ा कचरा नही था। सामने चौराहे पर ट्रैफिक हवलदार एक स्कूटर सवार से पैसे लेने से इनकार कर रहा था और स्कूटर सवार को श्रीमान कह कर सम्बोधित कर रहा था। मेरी नजर सड़क के किनारे पर पड़ी जहां से हमेशा नाली का बदबूदार पानी ओवरफ्लो होता है। तो मैंने देखा की उसमे दूध बह रहा है। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था। तभी मेरी नजर सड़क के किनारे रखे गए सीमेंट के बैंच पर बैठे हमारे मुहल्ले के कुछ भक्त टाइप लोगों पर पड़ी। मैं उनके पास गया और उसने पूछा की क्या वो थर्टी फस्ट का कोई विशेष प्रोग्राम बना रहे हैं। वो बड़ी शालीनता से मुस्कुराये और आहिस्ता से बोले, बन्धु, अब तो सारा देश स्वर्ग की प्रतिलिपी है सो विशेष प्रोग्राम क्या बनाना। कहीं भी उत्सव मना लेंगे। इतने में मुझे सामने से मुकेश अम्बानी हाथ में सब्जी का थैला लेकर आते दिखाई दिए। मैंने अचरज से उनकी तरफ देखा तो वो  मुस्कुराये और  बोले, बन्धु, मैंने 25 -30 साल में जो भी टैक्स की चोरी की थी वो सब जमा करवा दिया है। अब मेरे पास मेरे पुश्तैनी गांव चोरवाड़ में केवल दो कमरे बचे हैं। वहां अनन्त के गुल्लक में कुछ पैसे पड़े थे उनसे सब्जी खरीदने चला आया। आप एक काम करना, थोड़ी देर बाद अडानी जी यहां आएं तो उन्हें बता देना की मैं घर चला गया हूँ और वो भी मेरे घर आ सकते हैं। उनके तो बेचारे के पास कुछ भी नही बचा। मेरे कान सुन्न हो गए।
                      तभी एक बैलगाड़ी में सवार कुछ लोग हाथों में हँसिया लिए वहां से निकले तो एक भक्त ने बताया की ये सब कल तक आतंकवादी थे, जिन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है। तभी एक आदमी दौड़ा दौड़ा आया और बोला की सुना तुमने, बाबा रामदेव ने दवाइयों में मिलावट करने का अपना अपराध स्वीकार करते हुए अदालत में समर्पण कर दिया है। एक भक्त ने कहा की सचमुच देश सोने की चिड़िया बन गया है। उसने एक पेड़ की तरफ इशारा किया, तो मैंने देखा की सचमुच उस पर कई सोने के रंग वाली चिड़िया बैठी हुई थी। मुझे चक्कर आ गया तो एक भक्त ने दौड़ कर मुझे सहारा दिया और डॉक्टर के पास चलने का आग्रह किया। मैंने कहा की मैं कल चला जाऊंगा, आज पैसे लेकर नही आया। भक्त हँसा, कैसे पैसे बन्धु, सारे डॉक्टरों ने निजी प्रैक्टिस बन्द कर दी है। सारी दवाइयाँ और इलाज मुफ्त है। मैंने अपने आसपास देखा और पूछा की कोई बच्चा दिखाई नही दे रहा जो मुझे घर तक छोड़ दे। भक्त ने जवाब दिया की सभी बच्चे स्कूल गए हैं और स्कूल के समय में आपको कोई बच्चा सड़क या गली में नही मिलेगा। आप चाहें तो घर तक जाने के लिए पुलिस की मदद ले सकते हैं। पुलिस ! मैं कांपने लगा तो भक्त हंसा, डरो मत, ये नए भारत की पुलिस है जो लोगों की सेवा करती है। अब कोई अपराधी नही बचा है सो पुलिस केवल जनसेवा कर रही है। मेरी तबियत खराब हो गयी। तभी रेडियो पर सन्देश प्रसारित हुआ की प्रधानमंत्री देश को सम्बोधित करेंगे। सब रेडियो के आसपास सरक आये। सम्बोधन शुरू हुआ ,
                                 मित्रो, जैसा की मैंने आपसे वादा किया था की 50 दिन बाद आप जैसा भारत मांगेंगे , वैसा मिलेगा। मैंने अपना वादा पूरा किया। मित्रों, पहले हमारे देश में जो विदेशी आते थे वो देश की खराब छवि लेकर जाते थे, अब विदेशी लगभग आने ही बन्द हो गए हैं सो देश की इज्जत को कोई खतरा नही है। पहले आप देखते थे की शहर के चौराहों पर काम की इंतजार में मजदूर बैठे रहते थे जो बहुत ही खराब दृश्य होता था। अब 50 दिन काम का इन्तजार करते करते वो थक कर गांव वापिस चले गए। इससे शहरों पर दबाव कम होगा। प्रदूषण फ़ैलाने वाले जो कारखाने पहले अधिकारियों को हफ्ता देकर चलते रहते थे अब काम की कमी में बन्द हो गए और सरकार को कुछ नही करना पड़ा। हमने देशी उत्पादन पर भी पूरा जोर दिया है। किसानों के पास हाइब्रिड बीज खरीदने को पैसे ही नही बचे तो उन्होंने अपने घरों में खाने के लिए रखा अनाज ही बो दिया। अब हम उनको खाद के पैसे नही दे रहे हैं तो अनाज और खाने पीने के सामान में जहां एक तरफ रासायनिक और जहरीले तत्व नही आएंगे तो दूसरी तरफ कम अनाज पैदा होने से उसकी भंडारण की समश्या से छुटकारा मिलेगा।
                              इसके बाद हमने अपनी सरहद पर अमेरिकी फोजों को तैनाती की मंजूरी दे दी है। अब चीन और पाकिस्तान की हिम्मत ही हमारे तरफ देखने की नही पड़ेगी। इस पर बस हमे एक मुश्त रकम अमेरिका को देनी होगी जो अभी के रक्षा बजट से बहुत कम होगी। हमने अपनी सेना को भंग कर दिया है और अब सीमा पर हमारा कोई  जवान शहीद नही होगा। हमने अमेरिका के साथ हुए इस रक्षा समझौते में ये प्रावधान भी किया है की अगर अमेरिकी सैनिकों पर किसी हत्या या बलात्कार का आरोप लगता है तो उसकी जाँच भी अमेरिका को ही करनी होगी और हम उस पर कोई खर्चा नही करेंगे।
                               और मित्रों , आप देख ही रहे होंगे की हमने आज भी वही सूट पहना है जो कल पहना था। और मैं ये भी बताना चाहता हूँ की आपने मुझे चौकीदार चुना था। बेशक ललित मोदी या विजय माल्या जैसे 50 -100 लोग निकल गए हों, लेकिन क्या कोई जनधन खाते वाला अपने ही पैसे में से 5000 रूपये भी निकलवा सकता है। नही। हमने 42 करोड़ जनधन खाता धारकों का जो हाल किया है वो आपके सामने है।  एक दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहता हूँ वो ये की मेरी नोटबन्दी से कालेधन की कमर टूट गयी है, भृष्टाचार के पैर टूट गए है, आतंकवाद की गर्दन टूट गयी है, स्मगलिंग बन्द हो गयी है, बच्चों और महिलाओं  व्यापार और अपहरण खत्म हो गए हैं,  चोरी असम्भव हो गयी है और हवाला कारोबार मर गया है। हमारे कुछ युवाओं के स्टार्ट - अप को छोड़ दिया जाये तो जाली नोट छपने बन्द हो गए हैं। कुछ दूसरी चीजें बची हैं वो भी जल्दी ही मर जाएँगी।
                           इसके अलावा हमने सभी पार्टियों के नेताओं को कह दिया है अगर वो सीबीआई और इनकम टैक्स से बचना चाहते हैं तो उनके पास केवल दो रास्ते हैं, या तो वे राजनीती से सन्यास ले लें या फिर बीजेपी में शामिल हो जाएँ। अब तक कालेधन के सेफ हैवन केवल विदेशों में होते थे, अब हमने बीजेपी को ही कालेधन का सेफ हैवन बना दिया है। मित्रों, मैं ज्यादा कुछ नही कहना चाहूंगा, बस आप दिन में तीन बार RBI के नियम देखते रहें। धन्यवाद। इसके बाद भक्तों ने कई मिनट तक तालियां बजाई और नारे लगाए।
                               मैं वहां से धीरे धीरे चलता हुआ थोड़ा ही आगे गया था की मेरा सिर शीशे से टकराया। ये एकतरफा शीशा था जिसके दूसरी तरफ का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। मैं उसको टटोलते टटोलते उसके साथ साथ चला तो एक जगह जाकर वो खत्म हुआ। मैं उसके दूसरी तरफ पहुँचा तो देखता हूँ की एक चौराहे पर हजारों लोग हाथ में जूता लिए खड़े हैं। मैंने पूछा तो बोले की एक फकीर का इंतजार कर रहे हैं जो 50 दिन का वादा करके गया था। मुझे कुछ बदबू का अहसास हुआ। मैंने देखा की गन्दा नाला ओवरफ्लो हो कर मेरे पैरों के नीचे तक पहुंच गया है।

मोदीजी, ये रहा कालाधन !

                     किसी ने मुझे बताया की मोदीजी कालाधन ढूंढ रहे हैं। मुझे बड़ी हैरानी हुई। जो चीज सामने पड़ी हो उसे ढूंढने की क्या जरूरत है, बस आँखे खोलो और देख लो। फिर उसने बताया की पुरे देश में फोन नम्बर और ईमेल बांटे गए हैं की अगर किसी को कहीं भी कालेधन का पता चले तो इन पर सुचना दे। मुझे बड़ी हँसी आयी। हमारे देश के नेता लोगों को कैसे कैसे मूर्ख बनाते हैं। फिर सोचा की चलो कुछ कालेधन के बारे में मैं भी बता देता हूँ, क्या पता सरकार को सचमुच नही मालूम हो। इसलिए मैंने कालेधन के दो एक सबसे बड़े ठिकाने बताने का फैसला किया। इसलिए ये पोस्ट लिखी गयी।
राजनैतिक पार्टियों का चंदा --
                                              तो मोदीजी कालेधन का सबसे बड़ा पार्क राजनैतिक पार्टियों का चंदा है। उन पर इनकम टैक्स तो है नही, उल्टा ये छूट भी है की 20000 रूपये से कम के चंदे पर उनको ये नही बताना पड़ता की ये किसने दिया है। इस तरह ये पार्टियां कालेधन में मिले इस करोड़ों के चंदे को 20000 से छोटी रकम में जमा कर देती हैं और सारे क़ानूनी पचड़ों से बाहर हो जाती हैं। और सबसे खास बात ये है की इस तरह का सबसे ज्यादा चंदा आपकी पार्टी को मिलता है। जब भी इस कानून को बदलने की बात आती है तो आप वही बहाने बनाते हैं जो महिला आरक्षण बिल पर बनाते हैं। आप ये कभी नही कर सकते क्योंकि इससे सबसे ज्यादा नुकसान आपको और आपकी पार्टी को होगा।
                                             इस मामले में आप और आपकी सरकार कितनी ईमानदार है उसका सबसे बड़ा सबूत विदेशी चंदे का मामला है। आपकी पार्टी और कांग्रेस पर इस तरह से गैर क़ानूनी विदेशी चंदा लेने का आरोप लगा। मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में गया जिसने दोनों पार्टियों को दोषी पाया। उसके बाद आप लोग ये मामला सुप्रीम कोर्ट में ले गए। और इससे पहले की सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई फैसला सुनाये, आपकी सरकार ने कानून बदल कर विदेशी चन्दे को क़ानूनी बना दिया और वो भी पिछली तारीख से। लेकिन लोग हैं की फिर भी कहते फिर रहे हैं की आप कालाधन ढूंढ रहे हैं।
शेयर बाजार में लगा कालाधन ----
                                                    कालेधन का दूसरा सबसे बड़ा मामला शेयर मार्किट में लगे धन का है। ये उसी शेयर मार्केट की बात है जिसको अगर छींक भी आ जाती है तो तुरन्त वित्त मंत्री को नँगे पैर दौड़ कर आना पड़ता है सफाई देने के लिए। शेयर मार्केट को सम्भाले रखने के लिए वित्त मंत्रालय जितनी तेजी दिखाता है काश उससे आधी भी हमारा डिजास्टर मैनेजमेंट दिखा पाता। शेयर मार्केट में दाऊद और दूसरे हवाला कारोबारियों और आतंकवादियों का पैसा लगा हुआ है, इसके बारे में जानकार बार बार सवाल उठाते रहे हैं। आपको भी मालूम है की शेयर बाजार में P - Notes के माध्यम से लगे पैसे को ये छूट प्राप्त है की वो लाखों करोड़ रुपया असल में किसका है, ये बताना जरूरी नही है। पूरी दुनिया के जानकर ये मानते हैं की P - Notes के माध्यम से लगा पैसा आमतौर पर गैर क़ानूनी संगठनों का होता है। किसी भी ईमानदार आदमी को या संस्था को P - Notes का सहारा लेने की कोई जरूरत नही होती। लेकिन आपकी सरकार ने इसकी इजाजत दे रखी है।
                           What is P-Notes ?  P - Notes के बारे में जाने।
                           इस कालेधन को पकड़ने और मार्किट से बाहर करने तो दूर, आप उनसे टैक्स तक नही ले सकते। क्या आप देश की जनता को ये बताएंगे की एक साल तक शेयर अपने पास रखने वाला व्यापारी पूरी तरह से करमुक्त है जबकि सेना के जवान को भी एक आय के बाद टैक्स देना पड़ता है।
                         इसलिए मुझे इस अफवाह पर कोई भरोसा नही है की आप कालाधन ढूंढ रहे हैं। असल में आप वोट ढूंढ रहे हैं, जिनका मिलना अब दिन प्रतिदिन ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। खैर अगर आप सचमुच में कालाधन ढूंढ रहे हैं तो आप इन दो सबसे बड़े ढेरों पर कार्यवाही करें, उसके बाद हम आपको दूसरे सामने दिखाई देने वाले स्रोत बता देंगे।

Thursday, December 22, 2016

Vyang - आधुनिक दौर में औरंगजेब की पुनः समीक्षा

              औरंगजेब भी भारत का एक मशहूर बादशाह रहा है। उसे मुगल सल्तनत का अंतिम ताकतवर और योग्य बादशाह माना जाता है। लेकिन उसे भी कुछ लोग तानाशाह मानते थे। हालाँकि वो भी ये मानते थे की उसकी प्रशासनिक योग्यताएं लाजवाब हैं। उसके बारे में कहा जाता था की वो अपने फैसलों में किसी की दखलंदाजी पसन्द नही करता था। उसके सभी मंत्री और सलाहकार उसकी हाँ में हाँ मिलाना ही पसन्द करते थे। उसकी नाराजगी से भी सबको बहुत डर लगता था। उसने कई हिन्दू मन्दिर तोड़े और कुछ बनवाये भी। लोग उसे भी कट्टर धर्मान्ध मानते थे।
                  उसके सैनिक अभियानों के चलते पश्चिम के मराठों और पंजाब के सिखों को छोड़कर लगभग सारा उत्तर भारत उसके सामने समर्पण कर चुका था। उत्तर भारत लगभग हरेक दिल्ली शासक के सामने समर्पण करता रहा है और उसकी ये परम्परा लगभग आज भी जारी है। उसका भी दक्षिण में कोई खास दबदबा नही था। उस समय के कर्नाटक क्षेत्र को छोड़कर उसकी भी ज्यादा पूछ नही थी। और कर्नाटक में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बनाये रखने के लिए उसे भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन वो भी एक तेज तर्रार शासक था।
                  व्यक्तिगत जीवन में उसे बहुत ही ईमानदार और इस्लामी उसूलों को मानने वाला माना जाता है। वह खुद अपनी मेहनत से कमाये पैसे का ही खाना खाता था और इसके लिए वो कुरान की प्रतिलिपि करने और टोपियां बुनने तक का काम करता था। हालाँकि वो हिंदुस्तान का बादशाह था और चाहता तो काजू के आटे की बनी हुई रोटियां खा सकता था। वह जमीन पर सोता था। हालाँकि वो भी पांच बार कपड़े बदलने की हैसियत रखता था लेकिन वो पांच बार केवल नमाज पड़ता था। उसने सैनिक अभियानों के अलावा कभी विदेश यात्रायें नही की। अगर उसके भाई सत्ता के लिए उसके रास्ते में नही आते तो उसे भी उन्हें मारना नही पड़ता। इसी तरह अगर उसके अब्बा शहंशाह भी चुपचाप मार्ग दर्शक बनने को तैयार हो जाते तो उसे भी कैद में रखने की जरूरत नही पड़ती।
                    बस इतना फर्क और है की वो फिजूलखर्ची के बहुत खिलाफ था और खुद भी फिजूलखर्ची नही करता था। वो खुद को फकीर नही कहता था लेकिन जीवन फकीरों जैसा जीता था। वो राज्य के पैसे को हाथ भी नही लगाता था। यहां तक की उसकी वशीयत के अनुसार उसका मकबरा बनाने में जब उसका खुद का पैसा खत्म हो गया तो राज्य के पैसे से उस पर छत भी नही डाली गयी और आज भी उसका मकबरा बिना छत के अधूरा खड़ा है। उस पर भी धार्मिक उत्पीड़न और कत्लेआम के आरोप थे लेकिन वो कभी न्यायालय में साबित नही हो पाए।

Wednesday, December 21, 2016

अधिकारों के उपयोग और दुरूपयोग का सवाल !


                        जब कोई व्यक्ति या सरकार किसी अधिकार का उपयोग, परम्परा, न्याय, संविधान, और समानता के सिद्धांतों को छोड़कर अपने व्यक्तिगत पसन्द- नापसन्द और फायदे नुकशान को ध्यान में रखकर करता है तो वह दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। इसी तरह की कुछ कोशिशें पिछले काफी समय से केंद्र सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के मामले में किया जा रहा है। हर बार नियुक्ति तय मापदण्डों और परम्परा या कानून के अनुसार ना करके अपनी पसन्द के आधार पर की जा रही हैं और इसलिए उन नियुक्तियों पर विवाद उठ खड़े हो रहे हैं। जिसके एवज में ये तर्क दिया जा रहा है की सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार है। या फिर पिछले किसी समय के दौरान हुए फैसले को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक की उन नियुक्तियों को सम्भव करने के लिए भी अधिकारों का दुरूपयोग किया जाता है, जैसे उससे सीनियर अधिकारियों का तबादला करना या नियुक्ति को तब तक रोके रखना जब तक पसन्दीदा अधिकारी सीनियर का दर्जा ना प्राप्त कर ले।
                        एक पुलिस और टैक्स अधिकारी को ये क़ानूनी अधिकार हासिल है की वो सड़क पर जा रही किसी भी गाड़ी की तलाशी ले सकता है और उसके लिए वो ट्रक में लदे हुए सामान को खोलकर देख सकता है। अगर कोई अधिकारी हर ट्रक के मामले में इस अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दे तो ये दुरूपयोग कहलाता है और इससे कामकाज में अव्यवस्था फ़ैल जाएगी। इसलिए उक्त अधिकारी को इस तरह का फैसला, उसके पीछे के वाजिब कारणों की उपस्थिति के अधीन लेना होता है। अगर वो केवल ये तर्क दे की उसको इसका क़ानूनी अधिकार है तो उसे ठीक नही समझा जाता /ठीक इसी तरह जब हर विवादित नियुक्ति को जायज ठहराने के लिए केंद्र सरकार का ये कहना की उसे इसका अधिकार है, इसी श्रेणी में आता है।

Sunday, December 18, 2016

नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

                व्यक्ति के अहंकार का मूल उसकी मूर्खता में होता है। हर मुर्ख व्यक्ति दम्भी और अहंकारी होता है। जब ये स्थिति किसी सरकार चलाने वालों के साथ होती है तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाती है। ठीक वैसी ही, जैसी अब है। लोग भूख से मर रहे हैं, अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है, काम धंधे बन्द हैं और सरकार के मंत्री अपनी वफादारी सिद्ध करने की होड़ में इस फैसले को कभी ऐतिहासिक तो कभी गेम चेंजर बता रहे हैं। रोज बैंक की लाइनों से लाशें घर लोट रही हैं, मजबूर, रोते बिलखते लोगों के फोटो अख़बार में छप रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ट्रेने वापिस लौटते हुए मजदूरों से भरी हुई हैं। किसान अपनी उपज को सड़कों पर फेंक देने को मजबूर हैं। सभी छोटे और मध्यम उद्योग लगभग बन्दी की हालत में हैं। और सरकार के वरिष्ठ मंत्री, प्रधानमंत्री सहित, टीवी पर डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बता रहे हैं। एक लोकतान्त्रिक देश के लोगों के साथ इससे क्रूर मजाक हो नही सकता।
                  कॉरपोरेट मीडिया और कॉरपोरेट की सरकार द्वारा तय किये गए मापदण्ड कुछ लोगों के दिमाग पर इतने हावी हो चुके हैं की वो अपनी समझबूझ खो चुके हैं। अब भी कुछ लोग हैं जो नोटबन्दी के फायदे समझाने लगते हैं। उन्हें देख कर तरस आता है। आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत के फायदे गिनवाते थे। अंग्रेजो को विकास का प्रतीक बताया जाता था। अब भी वैसा ही है। उन्हें कुछ भी दिखाई नही देता।
                    लोगों की तकलीफों को छुपाने की भरसक कोशिशों के बावजूद टीवी कुछ ऐसे दृश्यों को दिखाने के लिए मजबूर है जिसमे चाय बागानों के मजदूर झाड़ियों के पत्ते उबाल कर खा रहे हैं। उन्हें कहा जा रहा है की भविष्य की बेहतरी के लिए सब्र करें। किसका भविष्य ? जिन लोगों को दो वक्त की रोटी विलासिता लगती हो वो भूखे रहकर किस भविष्य की उम्मीद करें। पीठ पर बैग लटकाये बेरोजगार नोजवानो की एक भीड़,  जिसके लिए देश का सबसे क्रन्तिकारी नेता वो है जो फ्री वाईफाई दे दे , आज देश में विचार के मुद्दे तय कर रही है। जो कारपोरेट की भाषा बोलती है और गैस की सब्सिडी लेने पर अपने माँ बाप को मुफ्तखोर कहती है। क्या उसे मालूम है की जो किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक कर जा रहा है वो उसके आधा साल की मेहनत का परिणाम है। आज जब उसे खेत में डालने के लिए खाद नही मिल रहा है तो उसका भविष्य उसकी आँखों के सामने बरबाद हो रहा है। अगर दो या तीन महीने के बाद स्थिति थोड़ी बहुत सामान्य हो भी जाती है, जिसकी उम्मीद नही है तो भी उसके किस काम की ? ये कोई मोबाइल का रिचार्ज नही है की जब पैसा आएगा तब करवा लेंगे। पहले से जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा कृषि क्षेत्र तब तक लकवे का शिकार हो जायेगा।
                   उसके बावजूद सरकार अपने जनविरोधी फैसले पर अडिग है। उसके सारे वायदे एक एक करके खोखले साबित हो चुके हैं। अब ना कालेधन का कोई सवाल बचा है, ना आतंकवाद की टूटी हुई कमर दिखाई दे रही है और जाली नोटों का तो ये हाल है की शायद जितने जाली नोट अब पकड़े गए हैं उतने तो दस साल में भी नही पकड़े गए होंगे। अब सरकार मुंह छुपाने के लिए डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है। क्या करेगी सरकार उसके लिए ? बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भेजेगी लोगों को डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बताने और paytm की app कैसे काम करती है उसकी ट्रेनिग देने ? जिस देश की 35 % जनता को सरकार 70 साल में क ख ग नही सीखा पाई ( गुजरात सहित ) , उसे अब दो महीने में डिजिटल कर दिया जायेगा ? इससे बड़ा मजाक हो नही सकता। इस पर टीवी पर भाषण देने वाले लोग असल में इस देश के बारे में कुछ नही जानते। हर रोज सरकार के प्रतिनिधि नए नियम और नई धमकियां लेकर आ जाते हैं। संसद को पहली बार सरकार ने नही चलने दिया। जब विपक्ष ने बहस के किसी नियम पर सहमति दिखाने की कोशिश की तभी सरकार  सांसद तख्तियाँ लिए नारे लगाते हुए नजर आये। प्रधानमंत्री रैली में कहते हैं की उन्हें संसद में बोलने नही  दिया गया, क्या वो एक फुटेज दिखा सकते हैं की जब वो बोलने के लिए खड़े हुए हों। नही। हर रोज नोटबन्दी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने पार्टी के सांसदों को विपक्ष का पर्दाफाश करने का आव्हान कर रहे हैं। उन्हें कालेधन के समर्थक करार दे रहे हैं। अब किसका पर्दाफाश करेंगे ? सारे बैंकों, सरकार के दिए गए संवैधानिक वचनों और नागरिक अधिकारों का तो पहले ही पर्दाफाश हो चूका है।
नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

Friday, December 16, 2016

व्यंग -- रेल यात्रा के दौरान चाय " वाले " पर चर्चा

                 अभी अभी रेल द्वारा दिल्ली से घर पहुंचा हूँ। रेल की यात्रा भी किसी भारत भृमण से कम नही होती है। पहले तो इस पर इम्तिहान में प्रस्ताव तक लिखवाये जाते थे। आज भी ऐसा ही हुआ। रेल में सबसे ज्यादा चर्चा नोटबन्दी पर हो रही थी। लगभग सभी लोग अपनी अपनी परेशानियां गिनवा रहे थे। तभी किसी ने कहा की क्यों ना चाय पी ली जाये। उसके बाद चर्चा का रुख चाय की तरफ मुड़ गया।
                   एक आदमी ने कहा की अगर किसी से पूछा जाये की दुनिया में सबसे घटिया चाय कहाँ मिलती है तो वो बिना सोचे बता देगा की रेल में। रेल मंत्री प्रभुजी बेसक रेल में सर्ज प्राइस लागु करवा सकते हैं, लेकिन रेल की चाय का स्तर नही सुधार सकते।
                   भाई लेकिन एक बात है, एक चायवाला चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की उसने रेल में चाय बेचीं है फिर भी लोगों ने पुरे देश की चाय बनाने का ठेका उसको ही दे दिया और अब चाय की शिकायत कर रहे हैं। दूसरे आदमी ने हंसते हुए कहा।
                  सब जोर से हंस पड़े। तभी एक चायवाला डिब्बे में दाखिल हुआ। उसने आते ही आवाज लगाई। गरमागरम चाय पी लो, अदरक इलायची वाली चाय !अच्छी ना लगे तो पैसे मत देना।
                  एक आदमी ने पूछा की भाई चाय गर्म तो है ना ?
                  बिलकुल, अभी अभी ताजी बना कर लाया हूँ , दस मिनट भी नही हुए।  चाय वाले ने जवाब दिया।
                  दूसरे आदमी ने पूछा की इसमें अदरक इलायची है क्या सचमुच में ?
                  एकदम है  भाई साब , बिना अदरक और इलायची के चाय क्या ख़ाक बनेगी ? वो तो डालनी ही पड़ती है। चाय वाले ने कहा।
                 देखो अगर चाय अच्छी नही हुई तो पैसे नही देंगे, पहले बता देते हैं। एक और यात्री ने तसल्ली करने के लिए कहा।
                  अरे अगर चाय अच्छी नही होगी तब न ! पहले पी लो बाद में पैसे देना। चाय वाले ने पुरे आत्मविश्वास से कहा।
                   सबने उससे चाय ले ली। पहली घूंट भरते ही मुंह का स्वाद बिगड़ गया। चाय वैसी ही थी जैसी रेल में होती है।
                   ये तो लगभग ठंडी हो चुकी है।  एक यात्री ने कहा।
                  अब घर से यहां तक आते आते इतनी ठंडी तो हो ही जाती है। वैसे अभी भी काफी गर्म है। इससे ज्यादा गरम तो पी भी नही जा सकती। चाय वाले ने आराम से उत्तर दिया।
                  लेकिन इसमें अदरक और इलायची का तो निशान भी नही है।  दूसरे यात्री ने शिकायत की।
                   हम तो डालते है साब, आपको मालूम नही पड़ा होगा। यकीन ना हो तो मेरे घर चल कर देख लीजिये, अब तक छलनी में मिलेगी।  चाय वाले ने इत्मिनान से कहा।
                   हम नही लेंगे इतनी घटिया चाय। लो वापिस लो। एक यात्री ने झल्लाकर कहा।
                    अब झूठी चाय कैसे वापिस ले सकता हूँ। आपको वापिस देनी थी तो बिना झूठी किये देते। चाय वाले ने कहा।
                    लेकिन तुमने तो कहा था की अच्छी ना लगे तो पैसे मत देना। अब क्या हो गया ? और बिना पिए कैसे पता चलेगा की चाय कैसी है।  उस यात्री ने प्रतिवाद किया।
                    देखिये भाई साब, पैसे तो आपको देने ही पड़ेंगे। जहां तक मेरे कहने का मतलब था तो चाय बेचने के लिए कुछ बातें तो कह दी जाती हैं उन को पकड़ कर नही बैठना चाहिए। समझ लीजिये की वो जुमला था।  चाय वाले ने पूर्ण शांति से बात पूरी की।
                     सब एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। आखिर में एक यात्री ने कहा, " दोनों एक जैसे निकले, ऊपर वाला भी और नीचे वाला भी। "
                 
            

Tuesday, December 6, 2016

बैंकिंग व्यवस्था से उठता विश्वास , अर्थव्यवस्था के लिए मौत की घण्टी साबित होगा।

                    नोटबन्दी के फैसले के बाद इसके जो लाभ गिनवाए गए थे वो एक एक करके छलावा साबित हो रहे हैं। अब इसके दुष्परिणाम एक एक करके सामने आने लगे हैं। उनमे से कुछ इतने बड़े, स्पष्ट और विनाशकारी हैं की आम आदमी को भी सामने दिखाई दे रहे हैं। इन्ही में से एक है बैंकिंग व्यवस्था से उठता हुआ विश्वास।
                     कोई आदमी जब अपना पैसा बैंक में रखता है तो उसके सामने दो उद्देश्य होते हैं। एक तो ये की उसका पैसा सुरक्षित है और डूबेगा नही। दूसरा ये की उसे जरूरत के समय तुरन्त पैसा मिल जायेगा। ब्याज की आमदनी इसमें कोई भूमिका नही रखती। क्योंकि बाहर मार्किट में ब्याज की दर बैंक से दुगनी तिगुनी होती है। लेकिन उसके साथ उपरोक्त दो जोखिम जुड़े होते हैं। बाहर मार्किट में पैसा ब्याज पर देने से एक तो उसके डूबने का डर रहता है जिसके लिए लोग बैंक का रुख करते हैं। लेकिन ऐसा भी नही है की बाहर ब्याज पर दिया हुआ सारा पैसा डूब ही जाता है। बाहर मार्किट में भी ऐसे लोग हैं जिनका भरोसा और साख बहुत बड़ी है। लेकिन कई बार वो भी जरूरत के समय तुरन्त पैसा नही लोटा पाते। वो महीना बीस दिन का समय लगा देते हैं। इसके लिए लोग एमरजेंसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए पैसा बैंक में रखते हैं ताकि जरूरत के समय तुरन्त मिल जाये।
                     नोटबन्दी के बाद बैंक की इसी विशेषता पर चोट पहुंची है। जिन लोगों का पैसा बैंक में था और उन्हें उसकी बहुत सख्त जरूरत थी, उन्हें भी वो पैसा नही मिला। लोगों को शादियां टाल देनी पड़ी, हस्पतालों में इलाज नही करवा पाए और गरीब लोगों को तो राशन तक की तकलीफ खड़ी  हो गयी। लाखों रुपया बैंको में जमा होने के बाद भी लोगों की हालत भिखारियों जैसी हो गयी। इस पर भी सरकार ने इसका हल निकालने की बजाय उन्हें कैशलेस इकोनॉमी के चुटकले सुनाये। आज बैंक की लाइन में खड़ा हर आदमी इस मानसिक स्थिति में पहुंच गया है की कभी भी और किसी भी तरह एक बार उसका पैसा निकल जाये, फिर वो कभी बैंक का रुख नही करेगा। लोगों का बैंकिंग व्यवस्था से विश्वास उठ गया।
                     इसके कुछ साफ और अंधे को भी दिखाई देने वाले सबूत हैं। बैंक ने एक महीने के दौरान लोगों को करीब ढाई लाख करोड़ के नए नोट बांटे हैं। लेकिन उनमे से एक भी नोट वापिस बैंक में जमा नही हुआ। ये बात SBI के अधिकारियों ने मीडिया के सामने कही है। ये लोगों के उठते हुए विश्वास का साफ संकेत हैं। इस तरह जो बैंक आज जमा हुए पैसे से छलक रहे हैं एक समय के बाद वो सूखे के शिकार हो जायेंगे। जैसे जैसे लोगों का पैसा निकलता जायेगा वो कभी वापिस नही आएगा। आयेगा भी तो बहुत कम। और ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए मौत की घण्टी साबित होगा। बैंकिंग सिस्टम पर भरोसा किसी भी अर्थव्यवस्था की नींव होता है।
                    वैसे भी बैंको पर एक दूसरा संकट आने वाला है। वो है बड़े पैमाने पर NPA का संकट। अब तक बैंक केवल बड़े उद्योगों के NPA से जूझ रहे थे, अब लम्बी चलने वाली मन्दी के कारण आम लोगों द्वारा लिए गए लोन, चाहे वो घर के लिए हों, गाड़ी के लिए हों या पर्सनल लोन हो, कमाई की कमी के कारण उनका एक बड़ा हिस्सा डूबने वाला है। 2008 की मन्दी के बाद जिस तरह का संकट सामने आया था उसे एक बार फिर दोहराया जाने वाला है। अब तक रिजर्व बैंक ने बैंको को नवम्बर और दिसम्बर की डिफाल्ट हुई किस्तो को NPA में नही दिखाने की छूट दे दी है, लेकिन उसके बाद, यानि जनवरी में क्या होगा ?
                      सरकार पता नही क्यों इस खतरे की तरफ से आँख मूंदे हुए है। सारा देश एक दिन में कैशलेस नही हो जाने वाला है। अर्थव्यवस्था के सामने खड़े इस संकट को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए।

Monday, December 5, 2016

जन धन खाता धारकों को चोर क्यों समझती है सरकार ?

             जिन खातों को खुलवाते समय प्रधानमंत्री ये कह रहे थे की गरीब को भी सम्मान देना चाहती है सरकार। की अब गरीब भी ये कह सकता है की उसका बैंक में खाता है। और केवल खाता खुलवा देने को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थी सरकार। तो ऐसा क्या हो गया की अचानक सभी जन धन खाता धारक सरकार को चोर नजर आने लगे ?
                8 नवम्बर को नोटबन्दी के बाद पुरे देश में बैंको में रुपया जमा होने लगा क्योंकि अब वो बाजार में नही चल सकता था। जिसके पास 500 और 1000 की नोटों में पैसा था वो सब उसे अपने खाते में डालने लगे। यही काम जन धन खातों में भी हुआ। लेकिन सरकार ने दूसरे लोगों का पैसा अपने खातों में जमा करने का आरोप केवल जन धन खातों पर ही लगाया। सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों ने अपने खातों को किराये पर दे दिया और दूसरों का काला धन सफेद करने के लिए इस्तेमाल किया। क्योंकि सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों के पास पैसा कहाँ से आएगा ? जिन खातों को सम्मान का प्रतीक बताकर खुलवाया गया था वो सब चोरी का कारण करार दे दिए गए। ये गरीबों के प्रति सरकार चलाने वालों का पूर्वाग्रह है जो बात चाहे जो भी करें लेकिन उनकी समझ यही है। लेकिन असलियत क्या है ?
               8 नवम्बर नोटबन्दी से पहले भी जन धन खातों में 45000 करोड़ रूपये जमा थे। नोटबन्दी के बाद इनमे 27000 हजार करोड़ रूपये जमा हुए। देश में कुल 25 . 5 करोड़ जन धन खाते हैं। इस तरह औसतन हर खाते में 1100 रूपये जमा हुए। बाकी खातों में करीब 12 लाख करोड़ जमा हो गए। लेकिन उनसे कोई शिकायत नही है। वो तो खाते पीते लोगों के खाते हैं सो उनमे तो सफेद धन जमा हुआ है। क्या सरकार का ये मानना है की देश में केवल 27000 करोड़ का ही काला धन था ? अगर नही तो केवल जन धन खातों को बदनाम करने और उन पर पाबन्दी लगाने का क्या मतलब है। लोगों का जो 45000 करोड़ रुपया उनमे पहले जमा था,  उस पर भी पाबन्दी लगा दी गयी। एक तो दूरदराज के गाँवों में नोटबन्दी के कारण वैसे ही भुखमरी के हालात हैं उस पर ये पाबन्दी उनके लिए निश्चित मौत का पैगाम है।
               बाकी सभी खातों पर खाता अनुसार जाँच होगी और जवाब माँगा जायेगा। लेकिन जन धन खातों को पहले ही काले धन के खाते मान लिया गया है। सरकार की निगाह में हर जन धन खाता धारक चोर है क्योंकि वो गरीब है।

Sunday, December 4, 2016

कैशलेस इंडिया किसके लिए ?

                  नोटबन्दी के बाद अब जब कहने को बहुत कुछ नही बचा है तब इसके समर्थन में दो तर्क दिए जा रहे हैं। एक कैशलेस इंडिया बनाने और दूसरा ब्याज दर कम होने के। लेकिन क्या इन दोनों चीजों का जो मतलब है उसे लोग समझते हैं ? इसकी पड़ताल करना जरूरी है।
कैशलेस इंडिया --
                          सरकार का कहना है की लोगों को अपने छोटे छोटे खर्चे भी अपने मोबाइल फोन से paytm इत्यादि के द्वारा करने चाहियें। सरकार और मीडिया पुरे जोर शोर से इसके प्रचार में लग गया है। उसे इस बात से भी कोई फर्क नही पड़ता की paytm उसी चीन की कम्पनी है जिसके बहिष्कार के लिए अभी बीस दिन पहले तक बीजेपी और मीडिया ने कुछ भी बाकि नही रखा था और 20 रूपये के पटाखे खरीदने वाले को भी देश का गद्दार घोषित कर दिया था। उस समय देश की अर्थव्यवस्था को बचाने का केवल एक ही उपाय था की चीन का बहिष्कार करो, आज देश की अर्थव्यवस्था बचाने का केवल एक ही तरीका है की चीनी कम्पनी paytm को अपनाओ।
                        लेकिन हम इसके दूसरे पहलुओं पर बात करना चाहते हैं। मोबाइल फोन इत्यादि से और कार्ड के इस्तेमाल से उसके हैक होने और धोखाधड़ी का खतरा बढ़ जाता है। अब तक इसका बहुत इस्तेमाल न होने के बावजूद करीब 40000 शिकायतें सरकार को मिली थी। जब सरकार इस पर इतना जोर दे रही है तो क्या वो इसकी जिम्मेदारी लेगी की अगर किसी ग्राहक का अकाउन्ट हैक करके कोई उसका पैसा निकाल लेता है तो सरकार, बैंक या paytm जैसी कम्पनी उसकी भरपाई करेगी। नही। सरकार ने इससे साफ इंकार कर दिया है। फिर सरकार एक ऐसे तरीके पर क्यों जोर दे रही है जिसकी सुरक्षा की गारन्टी नही दी जा सकती ?
                       दूसरा एक और कारण है जिससे ये तरीका लोगों के हित में नही है। paytm या कार्ड द्वारा किये गए भुगतान पर बैंक और ये कम्पनियां डेढ़ से साढ़े तीन प्रतिशत तक का ट्रांजैक्शन चार्ज लेती हैं। ये चार्ज भुगतान लेने वाले दुकानदार को करना पड़ता है। इसलिए दुकानदार उतना भाव बढ़ा लेता है। अगर वो भाव नही बढ़ाता है तो उसका नुकशान होता है। अब ये नुकशान उन छोटे छोटे दुकानदारों को भी उठाना पड़ेगा जो अब तक नकद में व्यापार करते थे। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 75 लाख करोड़ का नकद लेन देन होता है। इसका सालाना हिसाब निकाला जाये और ट्रांजैक्शन चार्ज को केवल 1 . 25 % भी मान लिया जाये तो इसकी सालाना कुल रकम करीब सवा लाख करोड़ बैठती है। ये रकम सीधे paytm और रिलाएंस मनी जैसी कम्पनियों की जेब में जाएगी। इन उद्योगपतियों को बिना कुछ किये इतनी बड़ी रकम घर बैठे मिल जाएगी। यही कारण है की सरकार और मीडिया इस पर इतना जोर दे रहा है।
                          अगर सरकार लोगों के हित में इस व्यवस्था को लागु करना चाहती है तो उसे तुरन्त हमेशा के लिए ट्रांजैक्शन चार्ज को खत्म करने और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन ऐसा कभी नही होगा।
घटती ब्याज दर --
                            नोटबन्दी के पक्ष में जो दूसरा तर्क अब बड़ी जोर से दिया जा रहा है वो ये है की इससे ब्याज दरें कम होगी और आम लोगों को सस्ते ब्याज में मकान इत्यादि खरीदने का मौका मिलेगा। लेकिन इस पर भी थोड़ी जाँच पड़ताल की जरूरत है। आम तोर पर बैंको में आम लोगों का पैसा जमा होता है जिसमे लाखों पेंशन धारक और अपनी सारी उम्र की कमाई बैंको में रखकर उसके ब्याज की आमदनी से गुजारा करने वाले बुजुर्ग शामिल हैं। इसके साथ ही लाखों करोड़ों कर्मचारी भी शामिल हैं जिनके वेतन से एक निश्चित रकम हर महीने कटती है। दूसरी तरफ बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज लेते हैं जिसके द्वारा वो उद्योगों की स्थापना करते हैं और अपना वैभवी जीवन जीते हैं। जब उद्योग नुकशान में होता है तो इनके अपने खर्चों पर कोई फर्क नही पड़ता लेकिन बैंको का पैसा डूब जाता है। इस तरह के डूबने के कगार पर खड़े कर्जों जिन्हें बैंक की भाषा में NPA कहा जाता है की राशी करीब 9 लाख 75 हजार करोड़ पर पहुंच चुकी है। आम जनता का बहुत ही छोटा हिस्सा बैंको से कर्ज लेता है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल ये है की पूरे देश के सभी किसानों पर बैंको का जितना कर्ज है, अकेले अडानी समूह की कम्पनियों का कर्ज उसके बराबर है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है की ब्याज दरें कम होने का फायदा हमेशा उद्योगपतियों को होता है और नुकशान आम लोगों को होता है।
                       केवल इन दो तथ्यों पर ही तर्कपूर्ण जाँच पड़ताल की जाये तो सामने आता है की ये फैसला बड़े लोगों और उद्योगपतियों को ध्यान में रखकर लिया गया है जिसका भुगतान आम आदमी को करना है।

Saturday, December 3, 2016

व्यंग -- कैशलेस देश और कैशलेस भृष्टाचार


              8 नवम्बर को रात होते होते लोगों को पता चल गया की सरकार क्या क्या कर सकती है। जिन लोगों को सुबह दूध खरीदना था और उनके पास केवल पांच सौ का नोट था, उनकी हालत भी ऐसी हो गयी थी जैसे वर्ल्ड बैंक की क़िस्त डिफाल्ट होने वाली है। लोगों ने पूछा की ऐसा क्यों कर रहे हो ?
सरकार ने कहा की आतंकवाद बन्द करना है की नही ?
लोगों ने कहा की करना है।
तो ये आतंकवाद बन्द करने के लिए किया है।
सरकार इतना कह कर मुड़ने ही वाली थी की आतंकवादी हमले की खबर आ गयी।
लोगों ने सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की जाली नोट बन्द होने चाहियें की नही ?
लोगों ने कहा की होने चाहियें।
तो ये जाली नोट बन्द करने के लिए किया है।
सरकार फिर मुड़ने वाली थी की जाली नोट पकड़े जाने की खबर आ गयी।
लोगों ने फिर सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की कालाधन खत्म करना है की नही ?
लोगों ने फिर कहा की करना है।
सरकार ने कहा की सारा कालाधन कागज के टुकड़ों में बदल जायेगा। जिन लोगों के पास काले नोट हैं वो बैंकों  में ही नही आएंगे। और सारे कालेधन वाले बर्बाद हो जायेंगे। सरकार इतना कह कर मुड़ने ही वाली थी की लगातार खबरें आने लगी की ज्यादातर नोट बैंकों में जमा हो गए हैं। जिन लोगों के पास जनता को कालाधन होने का शक था वो सब बारी बारी टीवी पर आकर मुस्कुराते हुए नोटबन्दी का समर्थन कर रहे हैं।
लोगों ने फिर सरकार की तरफ देखा।
सरकार ने तुरन्त कहा की कैशलैस इकॉनोमी बनानी है।
अब लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा।
एक नोजवान जो जीन्स शर्ट पहने और पीछे बैग लटकाये हुए स्मार्ट फोन में बीजी था वो आगे आया और बोला की कैशलेस का मतलब है बिना नोटों वाला देश।
सरकार खुश हुई।
लोगों ने कहा की भइये, हम तो पहले ही बिना नोटों के हैं। और जिनके पास नोट हैं उनको बदल कर तुम पहले से भी बड़े नोट दे रहे हो। और नोटों के बिना हम दूध सब्जी और राशन कैसे खरीदें ?
नोजवान ने कहा की PAYTM करो।
लोगों ने फिर एक दूसरे की तरफ देखा और बोले की भाई करके दिखाओ।
तभी एक दूधवाला साईकिल पर ड्रम लादे वहां से गुजरा। नोजवान ने उसे रोककर कहा की दो लीटर दूध दो।
दूधवाले ने कहा की लाओ पैसा।
नोजवान ने कहा PAYTM है न ?
दूधवाले ने कहा -हट  और चला गया।
लोगों ने नोजवान की तरफ देखा।
नोजवान ने कहा की यही लोग देश को आगे नही बढ़ने दे रहे। जब तक देश के सारे दूधवाले, रेहड़ी सब्जी वाले, फुटपाथ पर सामान बेचने वाले और चौराहे पर बैठे मजदूर PAYTM नही करेंगे, तब तक देश आगे नही बढ़ सकता और ना ही भृष्टाचार खत्म हो सकता है। सबसे बड़े भृष्टाचारी तो यही लोग हैं।
लोगों ने एक दूसरे की तरफ देखा, फिर नोजवान की तरफ देखा, लेकिन नोजवान तब तक डाटा पैक रिचार्ज करवाने के लिए कनेक्टिविटी ढूंढने चला गया था।

Friday, November 25, 2016

नोटबंदी -- पाबन्दी और छूट का खेल

खबरी -- सरकार ने नोटबंदी के बाद कई चीजों पर पुराने नोटों के इस्तेमाल की छूट का समय बढ़ाया।

गप्पी -- नोटबन्दी के बाद जो छूट और पाबन्दी का खेल चल रहा है वो इस प्रकार है। -

१.  किसान से सब्जी नही खरीद सकता, लेकिन पट्रोल डीजल खरीद सकता है।
२.  मजदूर को मजदूरी नही दे सकता, लेकिन मोबाइल का रिचार्ज कूपन खरीद सकता है।
३.  मुहल्ले के दुकानदार से राशन नही खरीद सकता , लेकिन उन पैसों को खाते में डालकर कार्ड से बिग बाजार से खरीद सकता है।
४.  शादी के खर्चों का भुगतान नही कर सकता, लेकिन प्राइवेट बिजली कम्पनियों के बिल का भुगतान कर सकता है।
५.  बुआई के लिए खाद नही खरीद सकता, लेकिन प्राइवेट एयर लाइन्स का टिकट खरीद सकता है।
६.  बीमार बच्चे के लिए डॉक्टर का बिल नही दे सकता , लेकिन प्राइवेट कम्पनियों के टेलीफोन का बिल दे सकता है।
७.  आटा नही खरीद सकता, लेकिन टैक्स जमा करवा सकता है।
८.   गाड़ी का पार्किंग चार्ज नही दे सकता, लेकिन प्राइवेट कम्पनियों का टोल टैक्स दे सकता है।

सरकार के लिए सभी छोटे काम धंधे करने वाले चोर हैं और बड़ी कम्पनियां ईमानदार हैं।

Tuesday, November 8, 2016

राजनाथ सिंह और गाय के जीन्स

खबरी -- राजनाथ सिंह ने कहा है की गाय के 80 % जीन्स आदमी से मिलते हैं।

गप्पी -- विज्ञानं के हिसाब से ये कोई बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन नही है। बन्दर और चिम्पाजी के तो 95 - 98 % जीन्स आदमी से मिलते हैं। मगर असली सवाल ये है की राजनाथ सिंह ने ये बात गोरक्षा के सन्दर्भ में कही  है। हैरत इस बात की है की उन्हें दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक दिखाई नही देते जो 100 % उनके खुद के जीन्स से मिलते हैं।

खबरी -- नन्दिनी सुंदर और दूसरे लोगों पर छतीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर दिया है।

गप्पी -- सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्रों और राजनितिक कार्यकर्ताओं पर बीजेपी द्वारा दमन की कार्यवाही के रूप में फर्जी मुकदमे दायर करना कोई नई बात नही है। ये लिस्ट गुजरात से शुरू होती है  जैसे -
१. मल्लिका साराभाई  ( जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता और मशहूर वैज्ञानिक डा विक्रम साराभाई की पुत्री )
२.  संजीव भट्ट           ( गुजरात के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी )
३. तीस्ता सीतलवाड़    ( सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट की वकील )
४. कन्हैया और दूसरे JNU के छात्र    ( JNU छात्र संघ अध्यक्ष और पदाधिकारी )
५. सोनी सोरी                     ( छतीशगढ की आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता )
६.  दिल्ली के आप विधायक
७.  नन्दिनी सुंदर                 (  दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता )
८.  संजय पराते               ( मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के छतीसगढ़ राज्य सचिव और केंद्रीय कमेटी सदस्य )
९. अजय तिवारी           ( मध्यप्रदेष प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव )
१०. जी एन साईबाबा     ( दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर )
११.  अर्चना प्रशाद         ( प्रोफेसर, JNU  )

                इनके अलावा सैंकड़ों अन्य लोगों के खिलाफ भी दमनात्मक कार्यवाही की गयी है।

Monday, November 7, 2016

Congress and BJP , about Democracy, Freedom and Federalism

खबरी -- राहुल गाँधी के बयान पर वेंकैया नायडू ने कहा  है की कांग्रेस को लोकतंत्र पर बोलने का कोई हक नही है।

गप्पी -- वैकेंया नायडू का बयान राहुल गाँधी के उस बयान के जवाब में आया है जिसमे NDTV पर बैन को राहुल गाँधी ने लोकतंत्र का काला पन्ना कहा था। वेंकैया नायडू ने अपने बयान में इमरजेंसी की याद दिलाते हुए कहा है की कांग्रेस को लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर बोलने का कोई हक नही है।
            बीजेपी के प्रवक्ता लगभग हर सवाल पर चाहे वो भृष्टाचार से जुड़ा हो या दूसरी किसी चीज से, कांग्रेस   अधिकार पर सवाल उठाते हैं। अगर इस हिसाब से लिया जाये तो --
            आजादी की लड़ाई में गद्दारी करने वाली आरएसएस को देशभक्ति के सर्टिफिकेट बाँटने का क्या अधिकार है ?
             मनुस्मृति का समर्थन करने वाली आरएसएस और बीजेपी को दलितों के सवाल पर बोलने का क्या अधिकार है ?
              दिल्ली की चुनी हुई सरकार को पंगु कर देने वाली केंद्र सरकार को संघीय ढांचे की बात करने का क्या अधिकार है ?
              

व्यंग -- प्रदूषण के लिए सरकार कुछ और क्यों नही करती ?

                 दिल्ली से प्रदूषण की बहुत ही बुरी बुरी खबरें आ रही हैं। हमारे बड़े भाई साब का परिवार दिल्ली में ही रहता है। सोचा एक फोन कर लूँ वरना कहेंगे की इतनी बड़ी बात थी तो भी एक फोन तक नही किया। पिछली बार जब भूकम्प आया था तब हमारे साथ ऐसा ही हुआ था। हमने टीवी में खबर तो सुनी थी लेकिन टीवी वाले कह रहे थे की जान मॉल का कोई नुकशान नही हुआ तो हमने फोन करने की जरूरत नही समझी। भाभी जी ने उसी का उलाहना दे दिया था। सो सोचा आज तो कर ही लूँ।
 *  हैलो, हैलो। कौन भाभीजी ? नमस्कार।
  #  नमस्कार।
 *  वो टीवी में प्रदूषण की खबरें आ रही थी तो हमे चिंता हुई , इसलिए फोन किया था।
 #  प्रदूषण की तो पूछो मत, बहुत बुरा हाल है।
  * तो सरकार इसपे कुछ करती क्यों नही ?
  # सरकार को क्या जरूरत है ? उसको तो वोट लेनी थी, सो ले ली।
  * अच्छा भाभीजी, बबलू क्या कर रहा है ?
  #  क्या करेगा ? दिवाली पर आधी रात तक पटाखे चलाता रहा और दो दिन से सरकार ने स्कुल बन्द कर रखे हैं , इसलिए सो रहा है।
  * ये भला स्कूल बन्द करने की क्या बात हुई ? सरकार कुछ और क्यों नही करती ? बच्चों की पढ़ाई खराब करने का क्या मतलब हुआ ?
  # ये क्यों कुछ करने लगे। दिवाली से पहले दिन स्कूल में आकर कह रहे थे की इस बार पटाखे मत चलाना। बोलो दिवाली पर पटाखे नही चलाएंगे तो कब चलाएंगे। सरकार को कुछ और करना चाहिए।
   * सही बात है। मैं तो आज सुबह सुबह अँधेरे में ही जाकर खेत में पराली जलाकर आ गया। वरना दिन में तो कोई न कोई जुर्माना करने आ जाता।
   # इनको तो अपनी जेब भरनी हैं। पराली तो जलानी ही पड़ेगी। प्रदूषण के लिए सरकार कुछ और क्यों नही करती ?
    * अच्छा भाभीजी, भाई साब कहाँ हैं ?
    # कहाँ होंगे ? दो दिन पहले ही थर्ड फ्लोर की कन्स्ट्रुक्शन शुरू की थी, आज सरकार ने बैन कर दी। कुछ सामान मंगवाया था उसको मना करने गए हैं। इस तरह लोगों को परेशान करके क्या होगा ? सरकार कुछ और क्यों नही करती ?
  * हाँ, सुना है की 15 साल पुराने ट्रक बन्द कर रही है ? अपना ट्रक भी तो 15 साल पुराना है।
  # हाँ, तुम्हारे भाई कह रहे थे की पहले ही गांव में भेज देते हैं। वरना इनका क्या भरोसा कब बन्द कर दें। लोगों को परेशान करना है।  मैं तो कहती हूँ की सरकार प्रदूषण के लिए कुछ और क्यों नही करती ?
  * सुना है दुबारा से ऑड इवन शुरू करने वाले हैं।
  # बस लोगों को परेशान करना है। खुद तो कुछ करना नही है।
 * सही बात है। सरकार को तो कुछ करना नही है केवल लोगों को परेशान करना है। प्रदूषण कम करना इस सरकार के बस की बात ही नही है।

Sunday, November 6, 2016

काश ! इस अन्धेर नगरी में भी कोई चौपट राजा होता।

                   बचपन में एक बहुत मशहूर कहानी सुनी थी, अन्धेर नगरी चौपट राजा। वैसे तो ये कहानी बहुत से लोगों ने सुनी है। फिर भी इसका सार संक्षेप इस तरह है, एक नगरी जिसका नाम अन्धेर नगरी था उसमे चौपट नाम का राजा राज करता था। उस नगरी में सभी वस्तुएं चाहे वो सब्जी हो या मिठाई, एक ही भाव पर मिलती थी। इसलिए उसमे ये कहावत थी,
                                      अन्धेर नगरी चौपट राजा,
                                      टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
                   उसमे एक बार एक गुरु शिष्य घूमने के लिए आये। तो गुरु ने वहां की व्यवस्था देख कर शिष्य को वहां से चलने के लिए कहा। परन्तु शिष्य टके सेर की मिठाई खा कर खुश था। आखिर में गुरु वहां से चला गया। उसके बाद की कहानी इस प्रकार है की एक दिवार गिरने से एक बकरी मर जाती है। राजा दिवार के मालिक को गुनाहगार ठहराता है। तो दिवार का मालिक दिवार बनाने वाले कारीगर को गुनाहगार बताता है तो राजा कारीगर को पकड़ने का हुक्म दे देता है और फांसी की सजा सुना देता है। वो कारीगर बहुत पतला होता है और उसकी गरदन फंदे में नही आती है। तो राजा किसी मोटे आदमी को फांसी देने का हुक्म देता है और इस तरह टके सेर की मिठाई खा खा कर मोटे हुए शिष्य की बारी आ जाती है।
                     इस कहानी में दो चीजें मिलती हैं। एक तो सभी चीजों के भाव समान हैं और दूसरी चीज ये है की राजा ये मानता है की अगर गुनाह हुआ है तो किसी न किसी को तो सजा मिलनी ही चाहिए। वो अपराध को बिना सजा सुनाये नही जाने देता।
                   अब आजकल हमारे देश की जो हालत है उसमे मुझे उस चौपट राजा की बहुत कमी महसूस हो रही है। वरना लक्ष्मण पुर बाथे से लेकर शंकर बिगहा हत्याकांड तक में कोई आरोपी सिद्ध नही हुआ। ये मान लिया गया जैसे ये हत्याकांड हुए ही नही थे। गुलमर्ग सोसायटी हत्याकांड में तो जज मरने वाले को ही भीड़ को उकसाने का जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जिन लोगों को दंगों के लिए सजा हुई थी वो जमानत पर बाहर घूम रहे हैं और जिन पर अभी अपराध साबित नही हुआ है उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। जिन लोगों पर अपने ही देश के लोगों को कत्ल करने और घर जलाने के आरोप हैं, उन्हें राष्ट्रपति से सम्मानित करवाया जा रहा है और जिन्होंने सच बोलने की हिम्मत दिखाई उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है। जो अपना फर्ज निभा रहे हैं उनके मुंह पर टेप चिपका दी गयी है और जो चापलूसी पूर्ण भजन गा रहे हैं उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा और सम्मान दिया जा रहा है।
                     ऐसे में अगर चौपट राजा होते तो लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा के लिए शायद जाँच अधिकारी को ही फांसी पर चढ़ा देते। कम से कम इतने बड़े हत्याकांड को बिना जवाबदेही के तो नही जाने देते। वो ऐसी दातुन बेचने वाले को भी फांसी दे देते जिसकी दातुन से जेल का ताला खुल सकता है।

Tuesday, November 1, 2016

हर तानाशाह चाहता है की पूरा राष्ट्र आत्मसमर्पण करे।



                   इतिहास हमे बताता है की जब नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो उसके साथ कुछ हजार सैनिक थे। और उसने दिल्ली के सवा लाख नागरिकों के सर काटकर उनके ढेर पर अपनी पताका फहराई। ऐसा इसलिए हुआ की उन सवा लाख लोगों ने विरोध करने की बजाय गर्दन झुका कर सर कटवा लिए। नादिरशाह के लिए काम आसान हो गया। इसी तरह जब प्लासी के युद्ध के बाद विजयी ब्रिटिश जनरल ने शहर में प्रवेश किया तो उसके साथ केवल दो हजार सैनिक थे और उन्हें देखने के लिए बीस हजार लोग सड़क के दोनों और खड़े थे। जनरल ने अपनी डायरी में लिखा है की अगर वो लोग विरोध का फैसला लेते तो हमारी बोटियाँ भी नही बचती।
                    इस तरह के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है। हर तानाशाह की चाहत होती है की पूरा राष्ट्र उसके सामने आत्मसमर्पण कर दे। कोई उसका विरोध न करे। क्योंकि उसे अपनी ताकत की सीमा और अपनी कमजोरी दोनों का पता होता है। उसके शासन का पूरा दारोमदार इसी बात पर टिका होता है की लोग उसका विरोध न करें।
                    और विरोध की शुरुआत होती है सवाल करने से। जब कोई सवाल करता है तो विरोध की शुरुआत हो जाती है। इसलिए हर तानाशाह का पहला फतवा ये होता है की शासन पर कोई सवाल न किया जाये। और फिर किसी न किसी बहाने इसे हररोज दोहराया जाता है। जैसा अब हो रहा है। शासक पक्ष की मांग है की शासन पर कोई सवाल नही उठाया जाये। कभी उसे राष्ट्रवाद से जोड़ा जाता है, कभी आतंकवाद से। लेकिन शासन की वो व्यवस्था जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं और जिसमे हम स्वतन्त्र न्याय प्रणाली का भरोसा देते हैं उसकी तो शुरुआत ही सवाल करने से होती है। उसमे तो सवाल करने के लिए बाकायदा संस्थाओं का निर्माण किया गया है। CAG नाम की संस्था केवल सवाल उठाने के लिए ही बनाई गयी है। न्याय पालिका का तो आधार ही सवाल उठाने पर आधारित है। पुलिस के माध्यम से राज्य जब किसी नागरिक पर कोई आरोप लगाता है तो अदालत में उसे सवाल करने की पूरी छूट दी जाती है, पुलिस द्वारा पेश किये गए एक एक सबूत की स्वतन्त्र रूप से छानबीन होती है। और आरोप को साबित करने की जवाबदेही पुलिस यानि राज्य की होती है। जब तक अदालत सबूतों से सन्तुष्ट नही होती तब तक आरोपी को गुनाहगार नही माना जाता।
                      इसलिए अब सरकार के कामो पर सवाल उठाने को ही देशद्रोही घोषित किया जाने लगा है। और तो और सरकार के मंत्री तक इस बात को कहते हैं की सरकार और पुलिस पर सवाल उठाने बन्द कर दो। यानि अब लोकतंत्र और न्यायपालिका का कोई मतलब नही रह जाने वाला है। जिन आरोपियों के खिलाफ आपके पास कोई सबूत नही है उन्हें आप फर्जी एनकाउंटर में मार डालो और मीडिया को साथ में लेकर जोर जोर से चिल्लाओ की आतंकवादी मार दिए। कोई सवाल करे तो उसे देश द्रोही और आतंकवादियों का सहयोगी घोषित कर दो। इससे आने वाले समय की मुश्किलों का अंदाज लगाया जा सकता है।
                     दूसरी तरफ उसने लोगों के बीच में एक ऐसा तबका तैयार कर लिया है जो सरकार की भाषा बोलता है। जैसे ही कोई सवाल उठता है ये उस पर टूट पड़ते हैं। इस सरकार में बैठे हुए और इसकी तरफ से पागल कुत्तों की तरह भोकने वाले लोगों इन लोगों की साख ये है की ये वही लोग हैं जो अंग्रेजों का विरोध करने वालों के भी खिलाफ थे और इमरजेंसी में माफ़ी मांग मांग भागने वालों में सबसे आगे थे। इनका दोगलापन हररोज सामने आता है लेकिन इनको कोई फर्क नही पड़ता। असल में ये लोग उद्योगपतियों के पे रोल पर काम करते हैं और हर बयान को विज्ञापन का डायलॉग समझते हैं। इसलिए इन्हें कभी भी उसके गलत होने पर शर्म नही आती।
                      इसके कुछ उदाहरण है। जब गुजरात में फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आये तो इन्होंने जोर जोर से चिल्लाकर उन्हें सही ठहराया। दूसरी तरफ जब अदालत ने उस समय की गुजरात सरकार, जिसके उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे से इस बारे में अपना पक्ष रखने को कहा तो , उसने गुजरात हाईकोर्ट में हलफनामा देकर खुद उन एनकाउंटरों को फर्जी करार दिया। लेकिन उसके नेताओं और भक्तों को आज भी पूछा जाये तो वो इन्हें अब भी सही बताएंगे। ये चाहते हैं की जब ये  कन्हैया को गद्दार कहें तो पूरा देश उसे गद्दार कहे भले ही इनकी पुलिस अदालत में ये कहे की उसके पास कन्हैया के खिलाफ कोई सबूत नही है। ये इस बात का कभी जवाब नही देंगे की देश के गृहमंत्री जेनयू को हाफिज सईद से कैसे जोड़ रहे थे।
                   लेकिन इन्हें केवल इतना याद  रखने की जरूरत है की लोग सवाल करना बन्द नही करेंगे। और इनके लाख कोशिश करने के बावजूद देश की संस्थाए इतनी कमजोर नही हुई हैं की इनको जिम्मेदार नही ठहराया जा सके।

Saturday, October 29, 2016

व्यंग -- UNHRC चुनाव, कुछ चुनिंदा लोगों के मानवाधिकार।


                    अभी अभी खबर आयी है की सयुंक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के लिए हुए चुनाव में रूस को परिषद में दूसरी बार स्थान नही मिला, जबकि सऊदी अरब और अमेरिका को चुन लिया गया। इस पर कुछ मानवाधिकार संगठनों ने सन्तोष व्यक्त किया और इस बात पर अफ़सोस भी प्रकट किया की क्यूबा को फिर चुन लिया गया। मैं भी इस ख़ुशी और अफ़सोस में शामिल होने ही वाला था की मैंने सोचा की पहले ये तो पता कर लूँ की मैं ह्यूमन ( मानव ) की श्रेणी में आता भी हूँ या नही। ऐसा न हो मेरा अफ़सोस किसी काम का ही ना हो।
                    सो मैंने अपने सभी पहचान पत्र निकाले। इनमे ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और कुछ दूसरी संस्थाओं के पहचान पत्र भी शामिल थे। मैंने एक एक कर सबको ध्यान से और दो दो - तीन तीन बार पढ़ा, लेकिन किसी पर भी ये नही लिखा था की मैं ह्यूमन यानि मनुष्य हूँ। उन पर ये जरूर लिखा था की मैं male हूँ। लेकिन male होने से क्या होता है ? Male तो सभी प्राणियों में होते हैं। मेरा पता, उम्र, और फोटो भी थी लेकिन ह्यूमन लिखा हुआ नही था। मैं अंदर ही अंदर काँप उठा, फिर मैंने अलमारी के सभी कागज बाहर निकाल लिए, लेकिन किसी पर भी ह्यूमन लिखा हुआ नही मिला। तभी मुझे याद आया की पिछले दिनों मैंने एक टी शर्ट दुगने दाम पर खरीदी है और उसपे ये लिखा हुआ है। मैंने जल्दी जल्दी उसे निकाला। लेकिन उसपर भी Human Being लिखा होने की बजाय , Being Human लिखा हुआ था। यानि ये लोग भी मुझे Human Being नही मानते। मैं निराशा के अंतिम छोर पर था की मेरे पड़ोसी आ गए।
                       उन्होंने चारों तरफ देखा, और प्रश्नसूचक मुद्रा में हाथ हिलाया। मैंने कहा की मुझे अपने Human होने का कोई सबूत नही मिल रहा। उन्होंने हंसते हुए कहा की होंगे तो मिलेगा न।
                     " क्या मतलब ? " मैंने कहा।
                  " भई देखो, किसी के Human होने के कुछ खास लक्षण होते हैं। जैसे हमारे देश में ये लक्षण हैं, उच्च जाती का हिन्दू होना और वो भी सत्ताधारी पार्टी के किसी संगठन का सक्रिय सदस्य होना। बोलो तुम हो ? " उन्होंने मुझसे पूछा।
                     " नही। " मैंने कहा।
                    " लो, फिर क्यों अलमारी बरबाद कर रहे हो। तुम तो पहली शर्त ही पूरी नही करते। उसके बाद वाली शर्तें, जैसे पैसे वाला होना, पुलिस से रसूख रखना, किसी अपराध में वांटेड होना इत्यादि तो तुम क्या खाकर पूरी करोगे।  खैर ये बताओ की आज अचानक Human होने की क्या जरूरत आ पड़ी ?" वो सोफे पर बैठ गए।
                " कुछ नही, बस आज सयुंक्त राष्ट्र महासभा में UNHRC के लिए वोटिंग हुई थी। सुना है उसमे रूस दूसरी बार उसका सदस्य चुने जाने में असफल रहा। कहा गया है की उसके सीरिया में हस्तक्षेप करने और बमबारी करने के कारण उसने जो मानवाधिकारों का उलँघन किया है उसके लिए ऐसा हुआ। सो मैं ये देख रहा था की सयुंक्त राष्ट्र में Human किस किस को माना जाता है। " मैंने जवाब दिया।
                 " बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की व्याख्या एकदम स्पष्ट है। या तो आप अमेरिकी हों, वरना अमेरिकी खेमे में हों या कम से कम नाटो के सदस्य तो जरूर हों तो आपको Human मान लिया जायेगा। " पड़ोसी ने मुझे व्याख्या समझाई।
                  " लेकिन सीरिया में बमबारी तो तुर्की, सऊदी अरब, अमेरिका, फ़्रांस इत्यादि बहुत से देश कर रहे हैं। फिर उन पर सवाल क्यों नही उठाये जाते ?" मैंने कहा।
                   " अभी तुम्हे बताया गया था की अगर तुम अमेरिकी खेमे में हो तो तुम्हे मानवाधिकारों का रक्षक मान कर चला जायेगा। अब अगर रूस सीरिया में हस्तक्षेप नही करता तो अमेरिका अब तक सीरिया के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने में कामयाब हो चूका होता। जैसे उसने लीबिया और इराक के लोगों के अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा की थी। अब रूस की वजह से सीरिया के लोगों के अधिकारों की रक्षा नही हो पा रही। इसलिए रूस मानवाधिकारों का दुश्मन हुआ या नही ? "
                   " मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाली एक संस्था UN Watch ने कहा है की रूस को दुनिया ने बता दिया है की वो मानवाधिकारों का हनन बर्दाश्त नही करेगी। UNHRC के चुनाव में हुई वोटिंग, रूस के मुंह पर करारा तमाचा है। 193 देशों की संस्था में रूस के समर्थन में केवल 112 वोट गिरे। और जीतने वाले क्रोएशिया को पुरे 114 वोट मिले। अब इससे ज्यादा फजीहत रूस की और क्या होगी। उसने ये भी कहा है की अफ़सोस है की क्यूबा जैसे मानवाधिकारों के घोर विरोधी अभी भी इस संस्था में बैठे हैं। वो तो शुक्र है की सऊदी अरब और अमेरिका इसके सदस्य हैं वरना दुनिया में मानवाधिकारों की रक्षा कैसे होती । "
                  " हाँ, जहां तक क्यूबा का सवाल है वहां कई तरह के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। जैसे, वहां मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था है जो दवा कम्पनियों के मालिकों के अधिकारों का उलंघन है, इसी तरह मुफ्त शिक्षा व्यवस्था , शिक्षा की दुकान खोल कर रोटी रोजी कमाने वालों के अधिकारों का उलंघन है। और तो और, वहां पर भिखारियों तक के अधिकारों का उलंघन होता है। और वो बेचारे इतने परेशान हैं की आपको पुरे क्यूबा में एक भी भिखारी दिखाई नही देगा। अब ऐसा देश इस संस्था की परिषद में बैठा है तो ये शर्म की ही बात है। "
                   तभी टीवी पर खबर आयी की विकीलीक्स ने हिलेरी क्लिंटन की वो ईमेल छाप दी हैं जिसमे उसने कहा है की हमे इजराइल के लिए सीरिया को खत्म करना ही होगा। उसके बाद मानवाधिकारों के सवाल पर अमेरिका की प्रतिबद्धता एक बार फिर स्थापित हो गयी।

Friday, October 28, 2016

एक सैनिक भाई को एक बहन की तरफ से दीपावली की शुभ कामना का पत्र !

                    मेरे प्यारे भाई, मैं ये पत्र दीपावली की शुभ कामनाये देने के लिए लिख रही हूँ। मेरी, बापू की और पुरे गांव की तरफ से तुम्हे और तुम्हारे सभी साथियों को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें। मुझे ये पत्र इसलिए लिखना पड़ा क्योंकि प्रधानमंत्रीजी ने सारे देश के लोगों को सैनिकों को दीपावली की शुभकामनायें देने के लिए कहा है। वरना हमारी तो ऐसी कौनसी साँस होगी जिसमे तुम्हारे लिए शुभकामनायें नही होती हों। आशा करती हूँ की ये पत्र तुम्हे मिल जाये और दीपावली से पहले मिल जाये।
                      बापू दस दिन से शहर में बैठे हैं। वरना वो भी अपनी तरफ से पत्र में कुछ जरूर लिखवाते। इस बार धान की फसल खराब हो गयी थी ,लेकिन जो भी और जैसी भी थी उसे बेचने के लिए बापू दस दिन पहले शहर गए थे और अब तक नही आये। काका बता रहे थे की सरकार कोई न कोई बहाना बना कर खरीदने से इंकार कर रही है। पता नही कब बिकेगी और कितने में बिकेगी। माँ की बीमारी में जो कर्जा लिया था उसको वापिस करने का बहुत दबाव है।
                        उम्मीद है तुम तो बिलकुल ठीक ठाक होंगे। और ये भी उम्मीद है की तुम्हारी ड्यूटी देश की रक्षा में ही लगी होगी और किसी सेठ साहूकार के दरवाजे पर नही होगी। किसी अफसर के घर के बर्तन मांजने में भी नही होगी। दो साल पहले जब तुम्हारी ड्यूटी किसी अफसर के घर में बर्तन मांजने की लगी थी और उस अफसर की घरवाली ने तुम्हे थप्पड़ मारा था तो ये बात काका के लड़के ने जब वो छुट्टी आया था तो बापू को बता दी थी। बापू उस दिन बहुत रोया था। वो तो उसी दिन तुम्हारी नोकरी छुड़वाने के लिए जा रहा था लेकिन माँ की बीमारी में पैसो की जरूरत के कारण नही जा पाया।
                     अभी कुछ दिन पहले जब टीवी में ये खबर आयी थी की छत्तीसगढ़ में सैनिको ने ही गांव वालों के घर जला दिए थे और बलात्कार और कत्ल तक किये थे। तब बापू का मुंह खुला का खुला रह गया था। उनको कुछ समझ नही आ रहा था। बहुत देर बाद उनके मुंह से केवल ये निकला की इससे तो बर्तन मांजना ही अच्छा। कई दिन तक बापू ने कम रोटी खाई।
                       अब तो तुम्हारी ड्यूटी सीमा पर ही है ना। मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ। टीवी पर बहुत खराब खराब खबरें आ रही हैं। अगर लड़ाई छिड़ जाये तो तुम किसी गांव में आग मत लगाना। तुम तो जानते ही हो अपना दो कमरे का मकान बनाने में बापू की पूरी जिंदगी लग गयी। इसी तरह उन लोगों की लगी होगी। तुम किसी बच्चे पर गोली मत चलाना। बच्चे थोड़ा ना लड़ाई के लिए जिम्मेदार हैं। अगर दुश्मन के सैनिक हमारे यहां इस तरह का काम करें तो तुम उन्हें मार डालना। और अगर दुश्मन के किसी गांव के लोग घर छोड़ कर भाग गए हों तो वहां तुम्हे कुछ बूढ़े और बीमार लोग मिलेंगे, जो घरवालों के साथ भाग नही सके होंगे। तुम उन्हें कुछ खाने के लिए देना और उनसे कहना की उनके रिश्तेदार जल्द वापिस आएंगे। मैं जानती हूँ की तुम कोई गलत काम नही करोगे , लेकिन जब सिर काटने की मांगे हो रही हों तो कुछ भी हो सकता है।
                        हम यहां बैठ कर ये दुआ करेंगे की लड़ाई ना हो। ताकि तुम और तुम्हारे साथी भी दीपावली मना सकें।
                                                                                                              तुम्हारी छोटी बहन
                                                                                                                      गुड्डी 

Thursday, October 27, 2016

व्यंग -- " हमारी बहनो " की रक्षा में


              जब से प्रधानमंत्री मोदी जी ने " हमारी बहनो " की तीन तलाक जैसे अन्यायी और अत्याचारी नियम से रक्षा करने की बात कही है , हमारे मुहल्ले के वो सभी लोग एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं जो पिछले दंगो के समय सक्रिय थे। लेकिन अबकी बार उनकी सक्रीयता जरा दूसरी तरह की है। पिछली बार वो भारतीय सँस्कृति और हिन्दू राष्ट्र की रक्षा कर रहे थे और इस बार वो मुस्लिम महिलाओं की रक्षा कर रहे हैं। अलबत्ता दुश्मन पहले भी मुस्लिम पुरुष थे और इस बार भी मुश्लिम पुरुष हैं। पिछली बार दुश्मनो की लिस्ट में पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे ( जो अभी पैदा नही हुए थे वो भी ) भी शामिल थे , इस बार पुरुष हैं। इसके लिए एक मीटिंग का आयोजन किया गया था। मेरे  पड़ोसी भी उस मीटिंग में जाने वाले थे क्योंकि वो भी इस राष्ट्र बचाओ समूह के सक्रिय सदश्य थे। मेरे बारे में वो जानते थे इसलिए इस बार वो मुझे साथ चलने के लिए मजबूर कर रहे थे क्योंकि उनके हिसाब से वो बहुत ही प्रगतिशील काम कर रहे थे, और मुझे दिखाना चाहते थे। मैं चूँकि हरबार उनके कार्यक्रमो की आलोचना ही करता था। सो वो मुझे भी घसीट ले गए।
                  हाल पूरा भरा हुआ था। मुख्य वक्ता बोलने के लिए खड़े हुए। उन्होंने महिलाओं की समानता की जरूरत, संविधान में इसका जिक्र और मुस्लिम महिलाओं की खराब स्थिति पर पूरा प्रकाश डाला। जब भी उनके भाषण में कोई तेजस्वी बात आती तो मेरे पड़ोसी जोर जोर से ताली पीटते और गर्व से मेरी तरफ देखते। मैं भी स्वीकार में सिर हिलाता और उनके अभिमान की छड़ी एक इंच लम्बी हो जाती। करीब दो घण्टे बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ। बाहर निकलते ही उन्होंने मुझसे पूछा, कैसा लगा ? ठीक था, मैंने कहा।
                 पैदल चलकर हम करीब आधे घण्टे में वापिस घर पहुंचे। देखा तो उनकी छोटी बहन आयी हुई थी और घर में माहौल थोड़ा खिंचा खिंचा सा था। मैं भी उसके साथ ही चला गया।
                  क्या बात है ? और तुम कब आयी सविता ? सब ठीक ठाक तो है न ? उसने चिंता से तुरन्त कई सवाल किये।
                   " ठीक क्या है ? इसके ससुराल वालों ने बहुत ही गिरी हुई हरकत की है। " जवाब पड़ोसी  की पत्नी ने दिया।
                  " हुआ क्या ? " पड़ोसी ने पूछा।
      उन्होंने जो बताया वो इस प्रकार था।
                मेरे पड़ोसी की बहन सविता की शादी करीब चार साल पहले हुई थी। शादी के एक साल बाद उसको एक लड़की पैदा हुई। उसके बाद तीन साल के बाद सविता फिर से माँ बनने वाली है। तो उसकी सास और पति उसको डॉक्टर से चैक करवाने के बहाने हॉस्पिटल लेकर गए। वहां उन्होंने पहले से सैटिंग की हुई थी। डॉक्टर ने उसकी सोनोग्राफी करके घरवालों को बताया की अब भी लड़की ही है। बस  उसके पति और सास ने तुरन्त गर्भ गिराने के लिए डॉक्टर को कह दिया। जब सविता को इस बात का पता चला तो उसने विरोध किया। वो किसी भी हालत में गर्भ गिराने को तैयार नही थी। झगड़ा हुआ। सब लोग वापिस आ गए। उसके बाद घर में भारी झगड़ा हुआ।  ससुराल वालों ने साफ कह दिया की यहां रहना है तो गर्भ तो गिराना हो पड़ेगा। पहले एक लड़की है और वो दूसरी लड़की पैदा करना नही चाहते। उसके बाद उन्हें लड़के के लिए तीसरी सन्तान का इंतजार करना पड़ेगा जो इस महंगाई के जमाने में कोई समझदारी भरा फैसला नही है। सविता ने भी कह दिया की कुछ भी हो जाये वो गर्भ तो नही गिराएगी। और वो मायके चली आयी।
                 मेरे पड़ोसी का चेहरा बिगड़ गया। उसने सविता को डांटते हुए कहा की इसमें घर छोड़ कर आने की क्या बात थी। और बच्चा उनका है, वो चाहे रखें या गिराएं। तुम्हे इसमें अपनी मर्जी घुसेड़ने की क्या जरूरत थी। और तुम्हारी ससुराल वाले कोई लड़कियों के दुश्मन नही हैं। पहले भी तो तुम्हारे लड़की ही हुई थी, तो क्या किसी ने कुछ कहा ? अब जमाने को देखकर थोड़ा बहुत तो उसके साथ चलना ही पड़ता है। इस बात पर हंगामा करना मुझे तो बिलकुल समझ में नही आया।
                    लेकिन मैं अपनी बच्ची की हत्या नही कर सकती। सविता रोने को हो गयी।
                     अपनी बच्ची का क्या मतलब है। जो अब तक पैदा भी नही हुई उसके लिए तू अपने परिवार से झगड़ा कर रही है। तेरी अक्ल घास चरने गयी है। अब फालतू की बातें बन्द कर और चल मेरे साथ। मैं तुझे छोड़कर आता हूँ।
                   मैंने "बीच में बोलने की कोशिश की। " अभी तुम मुस्लिम महिलाओं के लिए ----------- "
                  उसने मेरी बात बीच में ही काटते हुए कहा ," हाँ, तुम्हे मालूम है की दूसरी महिलाएं कैसी कैसी तकलीफ में रहती हैं। अभी हम लोग आये हैं। मुस्लिम महिलाएं बेचारी , उन्हें तो टेलीफोन पर तीन बार तलाक कह दिया जाता है और वो बेचारी अदालत तक नही जा सकती। तुम्हे तो स्वर्ग जैसी ससुराल मिली है और तुम वहां झगड़ा करती हो। थोड़ा समझो, अब तुम बच्ची नही हो। "

Tuesday, October 25, 2016

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव व दूसरी खबरें


खबरी -- अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव पर क्या कहना है ?

गप्पी -- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था की किसी भी देश की जनता को उससे अच्छा शासक नही मिल सकता, जिसे वो डिज़र्व करती है। अब भारत के बाद इस श्राप को भुगतने की बारी अमेरिकी जनता की है।

खबरी -- आरएसएस के अखण्ड भारत के नारे पर क्या कहना है ?

गप्पी -- अखण्ड भारत का नारा दो और हर शहर, हर कस्बे और हर मुहल्ले में दीवारें खींच दो। अगर आरएसएस की विचारधारा के अनुसार अखण्ड भारत बनाया जायेगा तो उसका क्षेत्रफल दिल्ली से भी कम होगा।

खबरी -- बीजेपी नेताओं के बहुत आपत्तिजनक फोटो अख़बारों में छप रहे हैं ?

गप्पी -- चाल, चेहरा और चरित्र देर सबेर सामने आ ही जाते हैं।

मुल्ला नसीरूदीन और भारतीय राजनीति

           
                मुल्ला नसीरूदीन की एक पुरानी कहानी है जो आज के राजनैतिक हालात पर एकदम फिट बैठती है। बात इस तरह है की मुल्ला नसीरूदीन अपने पडौस के राज्य में व्यापार करने जाते थे। एक बार उस राज्य के राजा ने दूसरे राज्यों से आने वाले कुछ सामान पर प्रतिबन्ध लगा दिया। और उस प्रतिबन्ध को लागु करने के लिए बड़ी मात्रा में सैनिको को राज्य के दरवाजे पर तैनात कर दिया। सैनिक पूरी ईमानदारी और मेहनत से बाहर से आने वाले व्यापारियों की तलाशी लेते की कहीं कोई प्रतिबन्धित वस्तु तो लेकर नही जा रहा। उन्हें मुल्ला नसीरूदीन पर पूरा शक था इसलिए उसके साथ वो अतिरिक्त सतर्कता से पेश आते। मुल्ला नसीरूदीन हररोज अपने गधों पर घास के बड़े बड़े गटठर लाद कर आते। सैनिक उनके गटठर खोल कर पूरी सतर्कता से तलाशी लेते लेकिन उन्हें कुछ नही मिलता। इस तरह काफी समय बीत गया। इस दौरान व्यापार से मुल्ला नसीरूदीन ने काफी पैसा कमाया। सैनिक हैरान थे। वो अच्छी तरह तलाशी लेते थे लेकिन उसकी घास में उन्हें कभी कुछ नही मिला। वो सोच रहे थे की आखिर मुल्ला नसीरूदीन इतना पैसा कैसे बना रहे हैं।
                   एक दिन वहां के दरोगा ने मुल्ला नसीरूदीन को कोई भी कार्यवाही ना करने और उन्हें आने जाने की पूरी छूट देने का भरोसा दिलाते हुए उससे पूछा की वो घास के गटठर में क्या छुपा कर ले जाते हैं ?
                   मुल्ला ने हंसते हुए बताया की वो घास का नही बल्कि गधों का व्यापार करते हैं। सैनिक घास की तलाशी में लगे रहते हैं और वो हररोज अपने साथ लाये गए गधे बेच कर वापिस आ जाता है।
                      यही हाल हमारी राजनीति का हो गया है। पूंजीपति वर्ग अपने गधे बेच रहा है और हम घास की तलाशी में लगे हुए हैं। सरकार ने सरकारी कम्पनियां बेच दी, किसानों और आदिवासियों की जमीने पूजीपतियों को थमा दी, रक्षा सौदों में दलाली को क़ानूनी कर दिया, बैंको का पैसा धन्ना सेठों को देकर माफ़ कर दिया और हम बीफ पर, तीन तलाक पर, सर्जिकल स्ट्राइक पर, समान सिविल कोड पर और राम मन्दिर पर बहस कर रहे हैं। हमे ये दिखाई ही नही देता की इन सब की आड़ में पूंजीपति वर्ग अपने गधे बेच रहा है और आराम से है।

Monday, October 24, 2016

विदेशी कानूनों पर सलेक्टिव रवैया और राजनितिक दावपेंच


                   जिस तरह बाजार विज्ञापनों के जरिये पहले बिना जरूरत की वस्तुओं की मांग खड़ी करता है और फिर उन वस्तुओं को बेच कर मुनाफा कमाता है। ठीक उसी तरह राजनीती पहले समस्याएं पैदा करती है, उन्हें प्रचारित करती है और फिर उन्हें हल करने के वायदे के साथ वोट मांगती है। 
                   जिन देशों को दुश्मन घोषित करना होता है उनके बारे में रवैया और तर्क दूसरी तरह के होते हैं और जिनके साथ भागीदारी करनी होती  है उनके बारे में तर्क दूसरी तरह के होते हैं। 
                   बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई कुछ घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है। क्रिकेट की सट्टेबाजी से जुड़े मामलों में आरोप झेल रहे ललित मोदी भारत छोड़ कर चले गए। जब वो देश छोड़कर गए थे तब कांग्रेस का शासन था। उसके बाद ये सामने आया की विदेश मंत्री शुष्मा स्वराज ने उन्हें वीजा दिलाने में मदद की। इस पर संसद में बहुत हंगामा हुआ। ललित मोदी को वापिस लाने के लिए दबाव बढ़ा तो भारत सरकार को उसके लिए कुछ प्रयास करने पड़े। आखिर में मामला ये कह कर ठंडे बस्ते में चला गया की ब्रिटेन के कानून ललित मोदी को तुरन्त वापिस भेजने की इजाजत नही देते। इसके बारे में खुद अरुण जेटली ने संसद में बयान देकर ये बात बताई। बात खत्म।
                     उसके बाद विजय माल्या बैंको का 9000 करोड़ रुपया लेकर ब्रिटेन भाग गए। इस पर भी संसद में खूब हो हल्ला हुआ। उसके बाद फिर ये कहा गया की ब्रिटेन कानून इस तरह विजय माल्या को वापिस भारत भेजने की इजाजत नही देते। बात खत्म।
                      हररोज ये खबर आती है की डॉन दाऊद इब्राहिम दुबई में रहता है और वहीं से अपने कारोबार का संचालन करता है। उसके खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस भी है। लेकिन भारत सरकार कभी भी दुबई सरकार पर इसका दबाव नही डाल पाई की वो दाऊद को हमारे हवाले करे। दबाव डालना तो दूर, कभी बयान तक नही आया। दाऊद वहां बैठा है, बात खत्म।
                      अभी एक हफ्ते पहले ये खबर आयी भारत की अदालतों में वांटेड मोईन कुरैशी हवाई अड्डे पर अधिकारियों को चकमा देकर दुबई फरार हो गया। ( हम इस बहस में नही पड़ना चाहते की वो चकमा देकर फरार हुआ या उसे निकाला गया ) क्या आप में से किसी ने सरकार का कोई बयान सुना की दुबई की सरकार उसे गिरफ्तार करके भारत के हवाले करे। नही। बात खत्म।
                      लेकिन वही भारत सरकार पाकिस्तान की सरकार को हररोज कोसती है की वो हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत के हवाले नही कर रही। पाकिस्तान के ये कहने पर की उसकी अदालतें बिना किसी ठोस सबूत के उसके किसी नागरिक को दूसरे देश को सौंपने की इजाजत नही देंती , हम इसे उसकी ड्रामेबाजी कहते हैं। और उसे हररोज मुद्दा बनाते हैं। हमारी सरकार का ये भी कहना है की पाकिस्तान की सरकार जानबूझकर वहां की अदालत में पुख्ता सबूत नही रखती ताकि उन्हें बचाया जा सके। इस बात में दम हो सकता है। लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं की हम खुद कश्मीर में मसर्रत आलम को जेल में नही रख पाए और जम्मू कष्मीर हाई कोर्ट में उसे जेल में रखने की जरूरत पर पुख्ता सबूत नही पेश कर पाए।
                      इसके पीछे बीजेपी की पाकिस्तान विरोधी हवा को मजबूती देने की राजनीती भी है और हमारे देश के लोगों का करोड़ों, अरबों रुपया चाउ कर जाने वाले आर्थिक अपराधियों को बचाने और उनके साथ मिलीभगत भी एक कारण है। हमारी सुप्रीम कोर्ट जब रिलायन्स को दोषी ठहराते हुए उस पर करोड़ों का जुरमाना करती है तब उसे वसूल करने और कानून का उलँघन करने के लिए उसे लताड़ने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी खुद जिओ के विज्ञापन में नजर आते हैं।
                     ये सलेक्टिव नजरिया है जो अपनी राजनितिक जरूरतों और अपने लोगों की तरफदारी से संचालित होता है। पता नही लोग इसे कब समझेंगे।
                 

राजनितिक मिलीभगत और सत्ता के दुरूपयोग के प्रतीक - अनुराग ठाकुर

photo of anurag thakur and rajiv shukla sitting and talking

                जब से क्रिकेट में सट्टे बाजी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी का गठन किया है, तब से पुरे देश की आँखें फ़टी रह गयी हैं। रोज रोज जो नए नए रहस्योद्घाटन हो रहे हैं उनसे BCCI के रुतबे, उसके पदाधिकारियों की राजनीती से ऊपर उठ कर मिलीभगत और सत्ता के दुरूपयोग के जो किस्से बाहर आ रहे हैं वो किसी परीलोक से कम नही हैं। हजारों करोड़ की सट्टेबाजी, खिलाडियों की खरीद फरोख्त, खेल के नाम पर किये जाने वाले कुकर्म, और करोड़ों के वारे न्यारे करने की तरकीबें देख कर लोग अचंभित हैं। जो राजनैतिक दल किसी भी मामले पर एकमत नही होते, जो एक दूसरे के खिलाफ खोद खोद कर व्यक्तिक आरोप ढूढंते हैं, वो लोग कैसे BCCI में जाते ही पक्के रिस्तेदार हो जाते हैं।
                   खैर, हम ठाकुर की बात कर रहे थे। अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के बीजेपी के नेता हैं। हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल के सुपुत्र हैं और बीजेपी की युवा शाखा के राष्ट्रिय अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में हिमाचल से ही बीजेपी के लोकसभा के सांसद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जब राजनीतिकों और सरकारी अफसरों पर BCCI का पदाधिकारी बनने पर रोक लगाई तो अनुराग ठाकुर पर भी तलवार लटकने लगी। उसके बाद कहा गया की अनुराग ठाकुर खिलाडी कोटे से आये हैं। जब इसकी पूरी तफ्सील में जाया गया तो ये बात सामने आयी। -
                  जब श्रीमान धूमल जी हिमाचल के मुख्यमंत्री थे तो अनुराग ठाकुर को क्रिकेट की संस्थान में शामिल करने के लिए बहुत ही भारी तिकड़म की गयी।  चूँकि क्रिकेट की सलेक्शन कमेटी में शामिल होने के लिए किसी भी राष्ट्रिय स्तर की प्रतियोगिता में खेला हुआ खिलाडी होने की शर्त है, इसलिए एक दिन अचानक अनुराग ठाकुर को रणजी ट्रॉफी की हिमाचल की टीम का कप्तान बना दिया गया। उसका जम्मू-कश्मीर के खिलाफ मैच हुआ तो जनाब ठाकुर जीरो पर आउट हो गए। वो सात मिनट क्रीज पर रहे। और उन्हें राष्ट्रिय स्तर पर क्रिकेट खेलने का सर्टिफिकेट मिल गया। उससे पहले अनुराग ठाकुर किसी जिला स्तर की टीम में भी नही रहे। उसके पहले या बाद में उन्होंने कोई मैच नही खेला। इस तरह उनका हिमाचल क्रिकेट एसोसिएसन की सिलेक्शन कमेटी शामिल होने और उसके बाद BCCI  पदाधिकारी बनने का रास्ता साफ हो गया। इसके लिए कई बार नियमो को बदला गया। बाद में उनको हिमाचल में क्रिकेट अकेडमी बनाने के नाम पर करोड़ों की जमीन फ्री में दे दी गयी।
इसके बारे में पूरी कहानी नेट पर उपलब्ध है। http://www.dnaindia.com/sport/report-the-curious-case-of-anurag-thakur-the-cricketer-2185336  

             उसके बाद से अनुराग ठाकुर बखूबी BCCI को सम्भाल रहे हैं। कांग्रेस और एनसीपी समेत कई पार्टियों के नेता उनके सहयोगी हैं। किसी भी राजनितिक पार्टी ने उनके खिलाफ कोई प्रभावी जाँच की माँग नही की। संसद में अनुराग ठाकुर राबर्ट वाड्रा के खिलाफ जहर उगलते हैं, कांग्रेस और बीजेपी के सांसद दूसरे को कोसते हैं , लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट अनुराग ठाकुर सवाल उठाता है तो वकील के रूप में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल उनका  बचाव करते हैं। अब कुछ लोग इसे वकील के पेशे से जुडी जिम्मेदारी और दोनों चीजों को अलग करने की बात करेंगे, परन्तु जब नलिनी चिदम्बरम का मामला होता है तो ये बात नही होती और एथिक्स की बात की जाती है। सबको मालूम है की ये तुम भी खाओ, हमे भी खाने दो का मामला है। पहले भी एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल की बेटी को कान्ट्रेक्ट का मामला सामने आया था। इसलिए BCCI सत्ता के दुरूपयोग और राजनैतिक मिलीभगत का संस्थान बन गया है और अनुराग ठाकुर उसके सही प्रतीक हैं।
                   इसके साथ ये बात भी ध्यान रखने की है की वो बीजेपी के नेता है जो भृष्टाचार के नाम पर दूसरों को पानी पी पी कर कोसती है।  

Saturday, October 22, 2016

चीनी सामान का बहिष्कार छाती कूटने से नही, आत्मनिर्भर विकास से होगा।

                    पिछले कई दिनों से भक्त छाती कूट रहे हैं की चीनी सामान का बहिष्कार करो। कई जगह से इसे समर्थन मिलने की खबरें भी आ रही हैं। लेकिन अंत में ये मामला केवल फिजूल पीठ थपथपाने तक रह जाने वाला है। क्योंकि भक्तों को तो यही नही मालूम है की चीन का क्या क्या सामान हमारे देश में बिकता है।
                     चीन से हमारे देश में जो सामान आयात होता है उसमे, TB और कुष्ठ रोग की दवाइयाँ, टेक्सटाइल की मशीनरी और कच्चा मॉल, टीवी के सेट टॉप बॉक्स, मोबाइल फोन, रिमोट, बिजली का सामान, सजावट का सामान, फर्नीचर, पटाखे, दिवाली की सजावट का सामान, हार्डवेयर का सामान इत्यादि बहुत सी चीजें शामिल हैं। जिसमे भक्तों की निगाह केवल पटाखों और लड़ियों पर है जो चीनी आयात का बहुत छोटा सा हिस्सा है।
                    अगर चीन से सारे सामान का आयात बन्द कर दिया जाये तो उसका एक सबसे बुरा पहलू ये होगा की टेक्सटाइल जैसी कई चीजें इतनी महंगी हो जाएँगी की हम उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में  नही बेच पाएंगे। जो लोग केवल चीन से हमारे आयात और निर्यात की तुलना करते हैं वो ये भूल जाते हैं की जो सामान हम चीन से आयात करते हैं, उसे कच्चे मॉल के रूप में इस्तेमाल करके दूसरे देशों में बेचते हैं। चीन का सारा सामान हमारे देश में ही प्रयोग नही होता।
                    अपने देश के उद्योगों का विकास किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे जरूरी चीज है। लेकिन हमारे यहां तो राजनीती करने और पीठ थपथपाने से ही किसी को फुर्सत नही है। अब एक ही उदाहरण लो। नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की मूर्ति बनाने की घोषणा की। उसे सबसे ऊँची मूर्ति का ख़िताब मिले फिर भले ही राज्य लुट जाये। उसके लिए 2000 करोड़ का ठेका चीन की कम्पनी को दे दिया। जब आपके पास ऐसी मूर्ति बनाने की सुविधा ही नही है तो आपको उससे बचना चाहिए था। आप सरदार पटेल के नाम पर किसानों के लिए 3000 करोड़ का खर्च करके एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय बना सकते थे जो भारत का सबसे बड़ा कृषि विश्वविद्यालय होता। इससे शिक्षा और रिसर्च के क्षेत्र में हमारी हिस्सेदारी बढ़ती और देश को उसका लाभ मिलता। इससे सरदार पटेल को क्या एतराज था। लेकिन छाती कूटने की स्पर्धा में आपने इतना बड़ा खर्च करके  ना केवल विदेशी कम्पनी को ठेका दे दिया, बल्कि एक अनुत्पादक चीज भी बना ली। जो देश विकास के लिए हररोज दूसरों से निवेश की अपीलें करता हो उसके लिए इस तरह का खर्च करना समझदारी तो नही माना जा सकता।
                आज भी हमारी सरकार इस हालत में नही है की वो चीनी सामान पर रोक लगा सके। फिर भक्तों का छाती कूटना कोरी और गन्दी राजनीती ही माना जायेगा।

Friday, October 21, 2016

GST की टैक्स की स्लैब आम आदमी के विरुद्ध नही होनी चाहिए !


                       पहले दिन से ही, जब से GST लाने की बात हो रही थी, हम उसके जन विरोधी ढांचे पर सवाल उठाते रहे हैं। अब जबकि ये कानून संसद से पास हो चूका है, इसकी बहुत सी चीजें सामने आ चुकी हैं। उन चीजों से हमारी उन आशंकाओं की पुष्टि होती है जो हमने इसके सन्दर्भ में उठाई थी। जैसे --
                        इस कानून के आने के बाद राज्य सरकारों को टैक्स लगाने या हटाने के सारे अधिकार खो देने पड़े हैं। अब चाहकर भी कोई राज्य सरकार किसी भी चीज पर कोई टैक्स छूट नही दे सकती है और ना ही हानिकारक चीजों पर अतिरिक्त टैक्स लगा सकती है। खैर ये तो वो चीज है जिसका सबको पता था। लेकिन बहुत सी चीजें ऐसी भी हैं जिनसे उस समय सरकार इंकार कर रही थी और अब वो सामने आ रही हैं।
                       GST लागु होने के बाद भी टैक्स की कोई एक दर नही होगी। अभी जो प्रस्ताव GST काउन्सिल के पास है उसमे चार दरों का प्रावधान है। ये भी लगभग तय हो चूका है की टैक्स की स्लैब चार स्तरीय ही होगी। अब केवल उन दरों पर फैसला होना बाकी है।
                        लघु उद्योगों को जो अब तक 1 . 5 करोड़ की छूट हासिल थी, वो अब समाप्त हो जाएगी और 20 लाख से ऊपर टर्नओवर वाले सभी संस्थान GST के दायरे में होंगे। यानि लघु उद्योगों को अब तक हासिल सुरक्षा, जो उन्हें बड़ी कम्पनियों के कम्पीटिशन से बचाती थी, अब खत्म हो जाने वाली है। हम इसका जिक्र पहले भी करते रहे हैं। लेकिन तब सरकार इससे इंकार कर रही थी।
                          इसके अलावा जो सरकार अब तक कहती रही थी की इसके लागु होने के बाद राज्यों के टैक्स उगाही में कोई कमी नही आएगी। इसके लिए केंद्र सरकार का रुख ये था की सर्विस टैक्स को GST में शामिल करने के बाद उसमे से राज्य सरकारों को बड़ी रकम मिलेगी। ये बात अपने आप में सही भी है। लेकिन अब केंद्र सरकार अपनी ही कही बात से पीछे हट रही है। उसने राज्य सरकारों को इस कमी के भुगतान के लिए एक सेस लगाने का प्रस्ताव किया है। जिसका केरल सहित कई राज्यों ने विरोध किया है। अगर टैक्स की उगाही में कोई कमी ही नही आने वाली है तो उससे पहले ही सेस के नाम पर लोगों पर बोझ डालने का क्या मतलब है। केरल इत्यादि कुछ राज्यों का कहना है की अगर केंद्र को लगता है की टैक्स की उगाही कम होगी तो अभी से लक्जरी वस्तुओं पर प्रस्तावित टैक्स की दर जो 26 % है, उसे 30 % कर दिया जाये। सेस के नाम पर केंद्र अतिरिक्त उगाही करे ये ठीक नही है।
                      GST काउन्सिल की मीटिंग में सबसे बड़ा अंतर्विरोध इस बात पर है की टैक्स की दरें क्या हों। केंद्र सरकार ने चार दरों - 6 % - 12 % - 18 % - 26 % का प्रस्ताव दिया है। जिसमे आम आदमी की रोजमर्रा की चीजों पर 6 % की दर और तंम्बाकू, गुटखा, SUV और दूसरी विलासिता की चीजों पर 26 % की दर का प्रस्ताव है। लेकिन केरल के वित्त मंत्री और सीपीएम के नेता थॉमस इजाक ने इसका विरोध करते हुए कहा  है की न्यूनतम 6 % की दर को कम किया जाना चाहिए। क्योंकि सरकार का कहना है की नई दरों से पहले के मुकाबले हर वस्तु पर टैक्स की दर कम हो जाने वाली है। लेकिन आम आदमी के इस्तेमाल की चीजों पर अभी मौजूद दर 5 % है, इसलिए उसको क्यों बढ़ाया जा रहा है? दूसरी तरफ SUV इत्यादि वस्तुओं पर मौजूदा प्रभावी दर 48 % है जिसे कम करके 26 % किया जा रहा है। ये तो गरीबों की कीमत पर अमीरों को फायदा पहुंचाने वाली बात हुई। इसलिए इस मीटिंग में ये गतिरोध दूर नही हो पाया। इसलिए ये आशंका बढ़ गयी है की सरकार एक बार फिर गरीबों पर बोझ डालकर अमीरों को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर सकती है।
                         जब से सेस लगाने की बात हुई है तब से उद्योग जगत के लोग भी बहुत निराश हैं। उनका कहना है की अगर फिर वही टैक्स और अलग से सेस का जमाना चालू रहता है तो फिर पिछली प्रणाली और इसमें क्या फर्क रह जायेगा। सरकार ने सरलीकरण का जो वादा किया था उसका क्या हुआ ?
                          इसलिए ये प्रणाली भी अपने सारे वायदों और कस्मों के बावजूद केवल टैक्स बढ़ाने की कवायद ही ना रह जाये।

Tuesday, October 18, 2016

व्यंग -- चीनी सामान का बायकाट और हमारे शहर की मीटिंग।


                    पुरे देश में चीनी सामान और पाकिस्तानी कलाकारों के बायकाट की मुहीम चल रही है। कई दिन से हमारे शहर के निवासियों को भी लगता था की जैसे वो देशभक्त नही हैं। इसलिए कल हमारे शहर के निवासियों ने भी मीटिंग करके चीनी सामान के बॉयकाट की घोषणा कर दी। हम पाकिस्तान के कलाकारों का भी विरोध करना चाहते थे लेकिन उसपर एकराय नही बन पाई सो उसके लिए दुबारा मीटिंग करने का फैसला लिया गया। इस मीटिंग का ब्यौरा इस प्रकार है -
                    सबसे पहले शहर के एक गणमान्य नेता ने, जो सरकारी पार्टी के एक संगठन से जुड़े हैं, एक बहुत ही प्रभावशाली और प्रेरक भाषण दिया। जिसमे इस बॉयकाट की जरूरत पर जोर दिया और उसके कारणों की जानकारी दी। उन्होंने कहा, " भाइयो, हम आज पाकिस्तान के कलाकारों और चीनी सामान के बॉयकाट के लिए ये मीटिंग कर रहे हैं। मुझे इसमें भाग लेने का अवसर मिला है तो उसके लिए मैं इस सरकार का आभारी हूँ।  क्योंकि आजादी की लड़ाई में जब पूरा देश अंग्रेजी सामान की होली जला रहा था तब हम उसके विरोध में थे। इसका कारण ये था की हम अंग्रेजो को अपना माई बाप मानते थे और उनके खिलाफ आंदोलन  को देशद्रोह। आजादी के बाद हमे महसूस हुआ की हमे भी किसी ना किसी चीज का विरोध और बॉयकाट करना चाहिए। लेकिन हमे मौका ही नही मिला।
                           जब पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाइयां हुई तो अमेरिका उसके साथ खड़ा था। उस समय भी लोगों ने अमेरिका के सामान का बॉयकाट करने के लिए कहा था, लेकिन आजादी के बाद हम ने बाप बदलकर इंग्लॅण्ड की जगह अमेरिका कर लिया था सो हम उसका बॉयकाट नही कर सकते थे। इसलिए वो मौका हमारे हाथ से निकल गया।
                            उसके बाद जब भोपाल गैस दुर्घटना हुई तो बहुत से लोगों ने यूनियन कार्बाइड के सामानों के बॉयकाट की बात की। लेकिन वो कम्पनी भी अमेरिका की ही थी सो हम मन मार कर रह गए और उस बॉयकाट में शामिल नही हो सके। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है की इस बॉयकाट को कामयाब किया जाये ताकि हमारा नाम भी बॉयकाट करने वालों की लिस्ट में शामिल हो जाये। जय भारत। "
                        उसके बाद एक आदमी ने प्रश्न किया की क्या पाकिस्तानी कलाकारों के गाये हुए पुराने गानो को भी डिलीट किया जाये जैसे गुलाम अली वगैरा। या फिर नए गाने डाऊनलोड करने पर ही पाबन्दी है ?
                          इस  पर किसी ने कहा की केवल नए गानो पर ही प्रतिबन्ध है। तो उसने पूछा फिर उन फिल्मो का बॉयकाट क्यों कर रहे हो जो बन चुकी हैं ?
                          इस पर एक दूसरे आदमी ने कहा की पाकिस्तानी मतलब पाकिस्तानी। नया हो या पुराना, सब पर पाबन्दी है। हम कोई पुराना गाना भी नही सुनेगे।
                           एक बुजुर्ग ने पूछा की इक़बाल के लिखे उस गीत का क्या करें, " सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा। " क्योंकि बाद में इक़बाल भी पाकिस्तानी हो गए थे। और क्या फैज अहमद फैज जैसे लेखकों को पाकिस्तानी माना जाये या नही। और आजादी से पहले बनी फिल्मो के गीतों का क्या करें जिनके गायक बंटवारे में पाकिस्तान चले गए थे ?
                         इस पर काफी हो हल्ला हुआ। बाद में ये तय हुआ की इस मामले पर दुबारा से मीटिंग बुलाई जाएगी। इसलिए आज केवल चीनी सामान पर ध्यान दिया जाये।
                         चीनी सामान पर जब विचार हुआ तो ये बात आयी की जो सामान अब तक खरीदा जा चूका है उसका इस्तेमाल किया जाये या नही। मीटिंग में ऐसे बहुत लोग थे जिनके कारखानों में चीनी मशीने लगी हुई थी। और बहुत से लोगों के पास चीनी मोबाइल फोन थे और उनके घरों में चीनी सामान बड़ी तादाद  में था। सो इस सवाल पर मीटिंग में दो राय हो गयी। मामला बिदकने लगा तो अध्यक्ष ने कहा की पहले खरीदी हुई चीजों को बायकाट से  बाहर रखा जाये।
                          अगला सवाल ये आया की सरकार जो सामान चीन से खरीद रही है उसका क्या किया जाये ? जैसे सरदार पटेल की जो मूर्ति चीन से बनकर आएगी, उसे लगाने दिया जाये या नही ? जो मेट्रो रेल के समझौते चीन के साथ हुए हैं उनमे बैठा जाये या नही ? इस तरह के बहुत से सवाल खड़े हो गए।
                        बाद  में ये फैसला हुआ की बॉयकाट हो या न हो लेकिन बयान दे दिया जाये की हमारा शहर भी चीनी सामान का बॉयकाट करेगा। जिन लोगों के लड़के खाली हैं वो जलूस निकाल कर थोड़ा बहुत चीनी सामान को जला दें और किसी छोटे दुकानदार या रेहड़ी पटरी वाले के पास चीनी सामान दिखाई दे तो उसे तोड़ दिया जाये ताकि अख़बार में फोटो भी आ सके और सम्मानित नागरिकों का नुकशान भी ना हो।
                          इस तरह चीनी सामान के बॉयकाट की ये सफल मीटिंग समाप्त हुई।

Monday, October 17, 2016

भारत, आतंकवाद और ब्रिक्स सम्मेलन


           
  सार्क सम्मेलन को रदद् करवा देने में कामयाब होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी इस बात के लिए पूरे जोर से कोशिश कर रहे थे की ब्रिक्स भी पाकिस्तान की आतंकवाद के मामले पर निंदा करे। प्रधानमंत्री मोदी की ये भी कोशिश थी की सम्मेलन के बाद जारी घोषणा में पाकिस्तान का स्पष्ट रूप से जिक्र हो और ब्रिक्स मोदीजी की लाइन को समर्थन दे।
                   लेकिन ऐसा नही हुआ। ब्रिक्स में शामिल देशों ने पाकिस्तान का सीधा तो क्या परोक्ष रूप से भी जिक्र करने से इंकार कर दिया। भारत के महत्त्वपूर्ण सहयोगी और ब्रिक्स सम्मेलन के समानांतर हथियारों की खरीद के बड़े समझौते के बावजूद रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने समापन सम्बोधन में आतंकवाद का जिक्र तक नही किया। जहां तक चीन का सवाल है तो उसने आतंकवाद के मामले पर वही लाइन ली जो पाकिस्तान लेता रहा है। चीन के राष्ट्रपति ने भारत के लिए परोक्ष रूप से कश्मीर के सवाल पर कहा की सदस्य देशों को आतंकवाद के लक्षणों और परिणामो के साथ साथ उसके बुनियादी कारणों पर भी ध्यान देना होगा। ये वही बात है जो पाकिस्तान कहता रहा है की कश्मीर में आतंकवाद का बुनियादी कारण जो उसके हिसाब से कश्मीरी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार से जुड़ा है, को एड्रेस किये बिना आतंकवाद को खत्म करना मुश्किल है।
                    यहां तक की अंतिम घोषणा में "सीमापार आतंकवाद" शब्द तक का इस्तेमाल नही है। इसकी जगह केवल इतना शामिल किया गया है की किसी भी देश को आतंकवाद के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत नही देनी चाहिए। भारत में सीमापार आतंकवाद के लिए जिम्मेदार दो जाने माने संगठन लश्करे-तैयबा और जैसे-मोहम्मद के नाम को भी इसमें शामिल नही किया गया। जिन सगठनो के नाम का जिक्र इस घोषणा में किया गया है वो हैं ISIS और अल-नुसरा। इस दौरान के घटनाक्रम के बाद मोदीजी को विदेश नीति में किये गए नए और आक्रामक बदलावों की सीमा समझ में आ जानी चाहिए।
                       इसके अलावा भी मोदीजी प्रधानमंत्री बनने के तुरन्त बाद से सयुंक्त राष्ट्र संघ की मीटिंगों में भी ये मुद्दा उठा चुके हैं की आतंकवाद को परिभाषित किया जाये। वो बार बार सयुंक्त राष्ट्र संघ से इसका आग्रह करते रहे हैं और इसके ना किये जाने पर सयुंक्त राष्ट्र संघ की आलोचना भी कर चुके हैं। आज के हालात में दुनिया के लगभग सभी देश कम या ज्यादा आतंकवाद से पीड़ित हैं। फिर भी ये विश्व संस्था इसकी परिभाषा तय क्यों नही कर रही है तो इसका केवल एक ही कारण है की इसकी परिभाषा सम्भव नही है। आतंकवाद ऐसा विषय है जिस पर हर देश और धार्मिक और जातीय समूहों के अलग अलग विचार और समझ हैं, जिन्हें एक परिभाषा में नही बाँधा जा सकता।
                       जैसे अगर हम केवल भारत के अंदर का उदाहरण ही लें तो इस पर गहरे मतभेद हैं। अगर आतंक फैला कर अपनी बात मनवाने की कोशिश को आतंकवाद माना जाये तो बहुत लोगों के मत अनुसार संघ परिवार भी आतंकवाद की श्रेणी में आ जायेगा। संघ से जुड़े कई संगठनों पर दूसरे धर्म और दलित जातियों पर हमले और आतंक का आरोप लगता रहा है। अगर बम विस्फोटों और हत्याओं के जिम्मेदार लोगों और संगठनों को आतंकी संगठन माना जाये तो कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को भी स्पष्ट रूप से आतंकी घोषित करना पड़ेगा और मोदीजी को ये बताना पड़ेगा की भारतीय कानून के द्वारा ही इन लोगों पर मुकदमा चलने के बावजूद और प्रथम द्रष्टया सबूत होने के बावजूद संघ और सरकार के मंत्री इनकी तरफदारी क्यों करते हैं। हम पाकिस्तान को हररोज इस बात के लिए कोसते हैं आतंकवाद अच्छा या बुरा नही होता और केवल आतंकवाद होता है, लेकिन खुद एक समुदाय से जुड़े लोगों को आतंकी नही मानते, माने वो अच्छा आतंकवाद है।
                      इसके अलावा दूसरे कई संगठन हैं जिन पर आतंकी संगठन होने के बारे में मतभेद हैं। एक पक्ष नक्सलवादियों को आतंकवादी नही मानता, बल्कि उन्हें सत्ता द्वारा मजबूर किये गए लोगों का संगठन मानता है। इसी तरह उत्तर-पूर्व के कुछ संगठनों को जिनमे उल्फा और नागा पीपुल्स फ्रंट जैसे संगठन हैं, उन्हें वहां के बहुत से लोग आतंकवादी नही मानते।
                     अगर दुनिया के पैमाने पर स्थिति को देखा जाये तो स्थिति और भी खराब है। लीबिया और इराक में सरकार के खिलाफ लड़ने वाले लोगों को अमेरिका और उसके दोस्त आतंकवादी नही मानते थे और यमन की सरकार के खिलाफ लड़ने वाले विद्रोहियों को अमेरिका आतंकवादी मानता है। सीरिया में सरकार के खिलाफ लड़ने वाले अमेरिका और सऊदी अरब  समर्थक दस्तों को सीरिया और रूस आतंकवादी मानते हैं और अमेरिका नही मानता। यहां तक की खबरें हैं की अमेरिका ने उन देशों के खिलाफ, जहां अमेरिकी समर्थक सरकारें नही हैं,और उनका तख्त पलटने के लिए अल-कायदा और ISIS जैसे संगठनों को भी हथियार और सहायता उपलब्ध करवाई है। यही अमेरिका है जिसने पाकिस्तान के साथ मिलकर रूस को अफगानिस्तान से निकालने के लिए तालिबान को खड़ा किया था। आज जब उसका काम पूरा हो गया तो वही उनके खिलाफ लड़ रहा है और पाकिस्तान से चाहता है की वो इसमें उसकी मदद करे। अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने तालिबान को खड़ा करने के लिए जिन मदरसों की स्थापना की, धर्म के नाम पर उनमे जनून पैदा किया और इस लड़ाई को जिहाद का नाम दिया,वो पाकिस्तान कैसे एक झटके में उसे खत्म कर सकता है।
                           इसके अलावा फिलिस्तीन के मामले पर इसराइल के तोर तरीके किसी आतंकवादी संगठन से कम नही हैं। जिस तरह इसराइल की सेना फिलिस्तीन में छोटे छोटे बच्चों तक का कत्ल कर रही है उसे देखते हुए दुनिया के बहुत से लोग उसे आतंकवादी सरकार मानते हैं। पूरे लेटिन अमेरिका में जिस तरह के संगठनों को वहां की चुनी हुई सरकारों के खिलाफ, अपने हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी सरकार समर्थन दे रही है उसके बाद तो ये असम्भव हो जाता है की आतंकवाद की कोई वैश्विक परिभाषा दी जा सकती है।
                     इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद की कोई एक परिभाषा कभी तय नही होगी, और हर देश को दूसरों का मुंह ताकना छोड़कर अपनी सुरक्षा और अपने क्षेत्र में शांति स्थापना के प्रयास खुद करने होंगे।