Saturday, April 30, 2016

News Comment -- मोदीजी की डिग्री और शासन की जिम्मेदारी

खबरी -- आजकल मोदीजी की डिग्री पर बहुत सवाल उठ रहे हैं ?

गप्पी -- मोदीजी और स्मृति ईरानी जी की डिग्री पर शुरू से सवाल उठ रहे हैं। हमारे देश में मंत्री बनने और चुनाव लड़ने के लिए तो कोई शर्त है नहीं। उसके बावजूद इन दोनों नेताओं का अपनी डिग्री को छुपाना उनकी हीनभावना का परिचायक है। वर्ना देश में उनसे कम पढ़े लेकिन बहुत ही कामयाब और उचे दर्जे के नेता रहे हैं। इन दोनों नेताओं को हीन भावना से बाहर निकलना चाहिए।

खबरी -- अगुस्ता डील पर बीजेपी नेता कह रहे हैं की कांग्रेस बताए की पैसा किसने खाया ?

गप्पी -- बीजेपी के नेता भी कमाल के लोग हैं। अगुस्ता डील में पैसा किसने खाया ये कांग्रेस बताए, JNU में नारे लगे उसे कन्हैया रोके, पठानकोट हमला किसने किया ये पाकिस्तान बताए, माल्या को लोन क्यों दिया ये उस समय की सरकार बताए तो फिर तुम लोग कुर्सी पर घास छीलने के लिए बैठे हो। चुनाव से पहले तो बड़ी ढींगे हांकते थे की चौकीदारी करेंगे।

Wednesday, April 27, 2016

अगुस्ता हैलीकॉप्टर --बीजेपी की इच्छा केवल राजनीती करने की है जाँच करने की नहीं।

           अगुस्ता हैलीकॉप्टर घोटाले में इटली की अदालत का फैसला आने के बाद बीजेपी ने फिर से कांग्रेस पर हमला बोल दिया है। राजनीती में घोटालों का पर्दाफाश करना पार्टियों का दायित्व होता है। लेकिन कई बार यही चीज शुद्ध राजनितिक दावपेंच का माध्यम बन जाती है। कांग्रेस ने इसके जवाब में अन्य बातों के साथ ये भी पूछा है की दो साल से सारी जाँच एजेंसियां केंद्र सरकार के पास हैं, तो उसने इस मामले की जाँच अब तक पूरी क्यों नहीं की ?
              बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के बाद बीजेपी और आरएसएस को ये बात समझ में आ गई की मामलो को निपटाना उनके लिए खतरनाक हो सकता है। उससे पहले रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद मुद्दा बीजेपी के लिए एक प्रमुख और लाभदायक मुद्दा रहा था। लेकिन जैसे ही बाबरी मस्जिद गिराई गई तब से स्थिति बदल गई। अब ये मुद्दा बीजेपी के गले की हड्डी बन गया है। अब जवाब देने की बारी बीजेपी की है। अब हर चुनाव में पहले तो बीजेपी को ये राग अलापना पड़ता है की राम मंदिर हमारे लिए  कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं था। उसके बाद अपने कार्यकर्ताओं को समझाते हुए पहले वो लोकसभा में बहुमत ना होने का बहाना करती थी अब राज्य सभा में बहुमत का बहाना करती है। मान लो कभी ऐसा भी हो जाये की उसका राज्य सभा में भी बहुमत हो जाये   तो वो दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत का बहाना करेगी। उसके बाद अदालत को जिम्मेदार बताएगी।
               इसलिए बीजेपी को ये बात समझ में आ गई है की मसलों को लटकाना ही समझदारी है। आप चुनाव से पहले के केवल भृष्टाचार से जुड़े मुद्दों की बात कर लो तो उनकी लिस्ट इस प्रकार है।
१.  हमारी सरकार आते ही 100 दिन में विदेशों का काला  धन भारत आ जायेगा।
२   हमारी सरकार आते ही विदेशो में कालेधन के मालिकों के नाम सार्वजनिक कर दिए जायेंगे।
३.  हमारी सरकार आते ही राबर्ट वाड्रा जेल में होंगे और किसानों की जमीन वापिस ले ली जाएगी।
४.  सेना से जुडी हुई खरीद के तमाम सौदों की जाँच तुरंत खत्म करके उनके जिम्मेदार लोगों को सजा दी जाएगी।
५.  बंगाल के शारदा चिटफंड घोटाले की जाँच करके तुरंत गरीबों को उनका पैसा दिलवा दिया जायेगा।
                 लेकिन ऊपर की लिस्ट में से कौनसा काम हुआ। एक भी नहीं। क्योंकि बीजेपी को मालूम है की जिसकी जाँच पूरी हुई वो मुद्दा समाप्त। इसलिए उसका मकसद जाँच को लटकाना है। ऐसा नहीं है की कुछ जाँच सरकार की मर्जी के खिलाफ धीमी चल रही हैं। सरकार ने भृष्टाचार के मामले में एकदम एक तरफा रुख अपनाया है। एक  तरफ वो विपक्षी नेताओं के खिलाफ जाँच को लटकाए रखना चाहती है ताकि उनका चुनाव में प्रयोग किया जाये या गठबंधन के लिए दबाव डाला जाये। बिहार चुनाव में मुलायम सिंह का रुख सबने देखा था और सीबीआई का इस्तेमाल भी सबने देखा था।
                दूसरी तरफ उसने ये रुख अपनाया है की उसके लोगों और सरकारों के खिलाफ कितने ही मजबूत आरोप क्यों न हों वो एक भी आरोप की जाँच स्वीकार नहीं करेगी और पूरी दुनिया में ये कोरस गाती रहेगी की उसके ऊपर एक भी दाग नहीं है। साथ ही वो भृष्टाचार की जाँच करने वाले संवैधानिक संस्थाओं को भी काम नहीं करने देगी। इसलिए उसने दो साल होने के बावजूद ना तो लोकपाल की नियुक्ति की और ना ही CVC और CIC की। मोदीजी जब गुजरात के मुख्य्मंत्री थे तब भी उन्होंने 12 साल तक गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं होने दी थी। ये भृष्टाचार मुक्त सरकार का मोदी मॉडल है।

Tuesday, April 26, 2016

Vyang -- IIT's में संस्कृत लागु करने का समर्थन

खबरी -- मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की IIT में संस्कृत लागु करने की घोषणा पर तुम्हारा क्या विचार है ?

गप्पी -- मैं IIT 's में संस्कृत लागु करने का समर्थन करता हूँ। इसके निम्न कारण हैं।
             1.  देश में मंदिरों,  घाटों और गलियों में धक्के खाते हुए तिलकधारी ब्राह्मणो को रोजगार मिलेगा और लोगों का पीछा छूटेगा।
             2.  शादी में फेरे करवाने के लिए या सत्य नारायण की कथा करवाने के लिए फिर जो पंडित आएगा उसका परिचय इस तरह होगा  प. छछूंदर नाथ मिश्रा - प्रोफसर IIT खड़गपुर। इससे यजमान का रोब  बढ़ेगा।
             3.   संघ में भी कहने को कुछ पढ़े लिखे लोग हो जायेंगे।
             4.  IIT में नए शोध के अवसर पैदा होंगे। जैसे - कान से बच्चा पैदा होना , आदमी की धड़ पर हाथी या दूसरे पशु का सर लगना।
             5. विदेश से कोई पढ़ने नहीं आएगा इसलिए वेदों का सारा ज्ञान हमारे देश को ही मिलेगा।

मालेगांव ब्लास्ट और NIA

खबरी -- मालेगांव ब्लास्ट के फैसले पर क्या कहना है ?

गप्पी -- मालेगांव ब्लास्ट की जाँच के बाद NIA ने अदालत में कह दिया की उसके पास अभियुक्तों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। इससे पहले NIA 2008 के मालेगांव धमाकों पर भी सबूत ना होने की बात कह चुकी है। उससे पहले समझौता ब्लास्ट के मामले में भी NIA कह चुकी है की कर्नल पुरोहित खिलाफ कोई सबूत नहीं है। जिस तरह हर केस में NIA किसी के नहीं खिलाफ सबूत ना होने की बात कर रही है  लगता है की इसका नाम नालायक इन्वेस्टिगेशन एजेंसी रख दिया जायेगा।
 

Sunday, April 24, 2016

न्याय व्यवस्था, सरकार और लूट को समर्थन

               आज उच्च न्यायालय के जजों और मुख्य्मन्त्रियों के सम्मेलन  में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री तीरथ सिंह ठाकुर की भावुक अपील चर्चा का मुद्दा है। सभी टीवी चैनल दिखा रहे हैं की न्यायमूर्ति प्रधानमंत्री के सम्मुख भावुक हो गए। लेकिन एक भी चैनल ने उनके भाषण के जरूरी अंशों और उनके भावुक होने के कारणों पर बात नहीं की। एकाध चैनल ने ये जरूर जोड़ा की मुख्य न्यायाधीश ने सारा दोष जजों पर डालने को गलत बताया। लेकिन ये बहुत ही भयंकर तरिके की कवरेज है जो इतने महत्त्वपूर्ण विषय पर जरूरी चीजों को छुपाने की कोशिश करती है।
                मुख्य न्यायाधीश ने अपने भाषण में साफ तरीके से और उदाहरणों के साथ बताया की अदालतों में केसों की भराई के लिए किस तरह केवल सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने प्रधानमंत्री के सामने ही बताया की किस तरह हाई कोर्ट के स्तर पर 434 जजों के स्थान खाली हैं। और कोलेजियम द्वारा 169 जजों के नाम स्वीकृत किये जाने के बावजूद सरकार उनकी मंजूरी रोके हुए है।
                उन्होंने ये भी बताया की भारत में जजों द्वारा जो काम निपटाया जा रहा है वो अपने आप में एक मिसाल है। 1987 में तत्कालीन ला कमीशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया की भारत में प्रति दस  लाख की आबादी पर जजों की संख्या केवल 10 है जिसको उस समय बढ़ाकर 50 करने पर सहमति हुई थी लेकिन कुछ नहीं किया गया। उन्होंने ये भी बताया की देश में हर साल  नए केसों की संख्या पांच करोड़ होती है और निपटाए जाने वाले केसों की संख्या केवल दो करोड़ होती है। भारत का हर एक जज अपनी क्षमता से ज्यादा काम करता है और निरंतर दबाव में रहता है। उसके बावजूद न्याय में देरी को इस तरह पेश किया जाता है जैसे उसके लिए जज जिम्मेदार हैं। भारत में नीचे से ऊपर तक केसों को निपटाने की औसत संख्या प्रति जज सालाना 2600 है जबकि अमेरिका में 81 है। बाहर के देशों के जज इस पर आष्चर्य व्यक्त करते हैं।
                  उनके बाद प्रधानमंत्री ने अपने जवाबी भाषण में कुछ इधर उधर की बातें तो जरूर की लेकिन कोई स्प्ष्ट वायदा नहीं किया की वो जजों की संख्या बढ़ाने और पैंडिंग नियुक्तियों को मंजूरी देंगे। जाहिर है की प्रधानमंत्री ने केवल जुडिशियरी और सरकार के आपसी सहयोग जैसी गोलमोल बातें करके अपनी बात खत्म कर दी।
                   न्याय व्यवस्था में इस तरह की अभूतपूर्व देरी से सबसे ज्यादा नुकशान गरीब आदमी का ही होता है। लाखों की तादाद में गरीब लोग जेलों में बंद हैं और न्याय का इंतजार कर रहे हैं। उनमे से अधिकतर लोग केस समाप्त  होने तक उसकी पूरी सजा काट चुके होते हैं और फिर सबूत न होने के कारण बरी हो जाते हैं। लोग दस-दस , पंद्रह- पंद्रह साल सजा काट कर बरी हो जाते हैं और उनकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। हमारी न्याय व्यवस्था में इस तरह गलत तरीके से जेल काटने पर कोई जवाबदेही तो है ही नहीं उल्टा उनको किसी मुआवजे का प्रावधान भी नहीं है। बड़े और दबंग लोगों द्वारा जमीनों पर किये गए अवैध कब्जे के लाखों केस अदालतों में पैंडिंग हैं और सालों लम्बी लड़ाई से थककर गरीब लोग उनके हिसाब से समझौता करने पर मजबूर हो जाते हैं।
                मजदूरों के केसों का तो ये आलम है की गलत तरिके से नौकरी से हटाए जाने के केस का फैसला तब होता है जब मजदूर रिटायरमेंट की उम्र पार कर चूका होता है।
                   लेकिन क्या ये महज अदालतों पर किये जाने वाले खर्च का मामला है ? नहीं। गरीबों को न्याय मिलना दूभर करना भी उसी व्यवस्था का हिस्सा है जो केवल शोषण पर निर्भर है। इस व्यवस्था में जनता को मजबूर किया जाता है की वो ऊपर वालों के सामने समर्पण कर दे। अगर लोगों को त्वरित न्याय मिलने लगेगा तो जुल्म का प्रतिरोध करने की लोगों की क्षमता बढ़ जाएगी। और सत्ता यही नहीं चाहती। लूट को सुलभ करने के लिए न्याय व्यवस्था का कमजोर होना  जरूरी है।

Friday, April 22, 2016

उत्तराखंड पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब

 खबरी -- उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश का क्या मतलब है ?

गप्पी -- केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाए जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी की इस फैसले पर तुरंत रोक लगाई जाये। उसका कहना अब तक उच्च न्यायालय का लिखित फैसला भी नहीं आया है और हरीश रावत कैबिनेट की मीटिंग करके फैसले ले रहे हैं।
               इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल तक सबको फैसले की साइन की हुई कॉपी देने को कहा है और उसके बाद 27 अप्रैल को अगली सुनवाई रखी है और तब तक उच्च न्यायालय के फैसले पर अंतरिम यानि 27 अप्रैल तक रोक लगा दी है। अब सुप्रीम कोर्ट फैसले की कॉपी मिलने के बाद इस पर निर्णय करेगा।
               दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण आदेश जो इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जरी किया है वो ये है की केंद्र सरकार तब तक राष्ट्रपति शासन हटाने का फैसला नहीं कर सकती। इसके लिए अटार्नी जनरल से गारंटी ली गई है। आखिर एक बार फिर पीछे से राष्ट्रपति शासन हटाकर अपना मुख्य्मंत्री बिठाने की बीजेपी की मंशा पर पानी फिर गया है।

Thursday, April 21, 2016

व्यंग -- भारतीय टीवी चैनल और जनजीवन के सवाल

                   ढम '''''''ढम '''''''''धाम ढम '''''''' दं दांव '''''''''''''  ढम
 चौराहे पर खड़ा ढोल वाला पुरे जोर शोर से ढोल पीट रहा था। कुछ लोग भी जमा हो गए थे। वो मुनादी करने वाले की तरह बोल रहा था। सुनिए, भाइयो और बहनो , सबसे पहले हम आपको देंगे सारी जरूरी खबरें। सभी तरह की खबरें चाहे वो राजनीती की हो, खेल के मैदान की हो, सिनेमा की हो या सिनेमा वालों की हो, राष्ट्रिय हो या अंतर्राष्ट्रीय हो, सबसे पहले हमसे जानिए। साथ ही हम आपको बताएंगे की आपकी समस्याओं का हल क्या है। इतना ही नहीं ये भी हम ही आपको बताएंगे की आपकी समस्या क्या है और क्यों है। इसके लिए हमारे पास है विषय से संबंधित विशेषज्ञों का पैनल। जिसमे हर समस्या पर पुरे तोर पर विश्लेषण  किया जायेगा ,इसलिए भाइयो और बहनो कहीं मत जाइये और देखते रहिये " कब तक " .ये प्रोग्राम हम यहीं इसी चौराहे पर आपके बीच में पेश करेंगे देश के हर चौराहे की तरह। धम''''''''''  ढम'''''''''''  ढम'''''''''  ढम''''  .
               आज के इस कार्यक्रम में हमारे साथ जो मेहमान हैं मैं उनका परिचय आपसे करवा दूँ। हमारे साथ हैं सत्ताधारी पार्टी के प्रतिनिधि मिस्टर ऊल और विपक्षी पार्टी के प्रतिनिधि मिस्टर जलूल। इसके साथ ही हमारे साथ दो विशेषज्ञ भी मौजूद हैं जो निष्पक्ष होकर अपनी राय रखेंगे।  इसके साथ ही मैं हमारे आज के विषय के बारे में भी बता देना चाहता हूँ। हमारे हर विषय की तरह आज का विषय भी आपके जीवन से सीधे जुड़ा हुआ है और वो विषय है " क्या चाँद में लगा दाग गहरा हो रहा है। " अब एंकर ने ढोल बजाना कुछ देर के लिए बंद कर दिया था और उसे बाजू में रख लिया था ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत उठाया जा सके।
                   सबसे पहले मैं सरकारी पार्टी के प्रवक्ता श्री ऊल साहब से पूछना चाहूंगा की इस बात में कितनी सच्चाई है और इसमें सरकार कितनी जिम्मेदार है ? एंकर ने कहकर एक टेपरिकार्डर का बटन दबा दिया।
                  मि. ऊल ने बोलना शुरू किया। " देखिये इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा की जब चाँद में दाग लगा था तब किसकी सरकार थी ? इसलिए हमे ये दाग  विरासत में मिला है। और इस पर विपक्षी पार्टी को तो सवाल करने का हक ही नहीं है। हमारी सरकार दाग को समाप्त करने का पूरा प्रयास कर रही है और ये बात गलत है की दाग गहरा हो रहा है। "
                    उसके बाद एंकर ने कहा की अब मैं विपक्ष के प्रवक्ता मि. जलूल से इस बारे में पूछना चाहूंगा। उसके बाद उसने दुसरे टेपरिकार्डर का बटन दबाया।
                मि. जलूल ने बोलना शुरू किया। " देखिये सरकार गलतबयानी कर रही है। ये दाग हमारे समय में नहीं लगा था। और लगा भी होगा तो इतना हल्का था की किसी का ध्यान ही इस पर नहीं जाता था। ये तो सरकार के कुकर्मो का फल है। और सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। हमारी मांग है की इसकी स्वतंत्र जाँच होनी चाहिए। इसलिए ये मामला एक संसदीय कमेटी को सौंपा जाये , ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। "
                     उसके बाद एंकर ने फिर ढोल उठाया और लगभग दस मिनट  तक उसे पीट पीट कर साबुन और चॉकलेट इत्यादि बेचता रहा। उसके बाद उसने ढोल फिर बाजू में रख दिया। उसने कहा की हम इस विषय के जानकार श्री चन्द्र प्रशाद जी से जानना चाहेंगे की आखिर सच्चाई क्या है ? फिर उसने एक और टेपरिकार्डर का बटन दबाया।
                     चन्द्र प्रशाद जी जो अब तक खाली बैठे थे और अपनी बारी आने  इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बारी आने पर जेब से रुमाल निकाला, फिर सामने रखा पानी पिया और रुमाल से मुंह साफ करके उसे वापिस जेब में रखा। उसके बाद वो बोले। " देखिये जहां तक दाग की बात है उसके लिए सरकार और विपक्ष दोनों बराबर जिम्मेदार हैं। पहले हमे ये देखना होगा की आखिर दाग दीखता किस तरह का है। खासकर अमेरिका से कैसा दिखाई देता है।  अमेरिकी नजरिया हमारे लिए बहुत मायने रखता है। अगर अमेरिका में  कुछ खास दिखाई नहीं देता है तो फिर इस पर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। पिछले दिनों मेरी अमेरिकी विदेश सचिव से मुलाकात हुई थी तब तो उन्होंने ये मुद्दा नहीं उठाया था। अब हो सकता है की पाकिस्तान ने उनके कान भरें हों। हमे इस दाग को अंतर्राष्ट्रीय नजरिए से देखना होगा। "
                      उसके बाद एंकर ने फिर ढोल उठाया और जोर जोर से पीटकर फिर कई चीजें बेचीं। क्रिकेट के मैच की जानकारी दी और शाम को प्रसारित होने वाले सास बहु के नाटक में आज क्या होने वाला है इसकी एक झलक बताई। उसके बाद उसने अपना ढोल फिर बाजू में रख लिया। फिर उन्होंने एक और टेपरिकार्डर  दबाते हुए दूसरे विशेषज्ञ की तरफ देखते हुए कहा की मि. चंद्रम आपका इस पर क्या कहना है ?
                      मि. चंद्रम जैसे भरे बैठे थे। उन्होंने तुरंत और जोर जोर से बोलना शुरू किया। " मैं कहता हूँ की ये चीन की साजिश है। उसने नई तकनीक विकसित करके इस दाग को गहरा किया है। वो आहिस्ता आहिस्ता इसे गहरा करता रहेगा और एक दिन भारत में चाँद की रौशनी आनी  बंद हो जाएगी। 1962 में नेहरू ने जो गलती की थी देश उसका परिणाम भुगत रहा है। अगर 1962 में सरदार पटेल हमारे प्रधानमंत्री होते तो आज हमे ये दिन नहीं देखना पड़ता। " उसका दम फूल गया था।
               '  लेकिन 1962 में सरदार पटेल प्रधानमंत्री कैसे हो सकते थे ?" एंकर ने पूछा।
               "  क्यों नहीं हो सकते थे ? अगर महात्मा गांधी टांग नहीं अड़ाते तो जरूर हो सकते थे।"  मि. चंद्रम  ने कहा।
                 "  लेकिन जहाँ तक हमारी जानकारी है सरदार पटेल और महात्मा गांधी, दोनों का निधन 1962 से पहले हो चूका था।" एंकर ने फिर कहा।
               "  ये कांग्रेस और कम्युनिष्टों द्वारा फैलाई गई अफवाह है। मैं केंद्र सरकार से इससे संबंधित फाइलें सार्वजनिक करने की मांग करता हूँ।"  मि. चंद्रम ने जैसे चैलेंज किया।
                       उसके बाद सरकारी प्रवक्ता ने कुछ कहने की कोशिश की। वो कह रहा था की वो इस बारे में सरकार से बात करेगा ताकि सच्चाई सामने आ सके। साथ ही विपक्ष के प्रवक्ता ने भी कुछ कहने की कोशिश की। दोनों विशेषज्ञ भी साथ साथ बोल रहे थे। प्रोग्राम खत्म होने में पांच मिनट बाकि थी इसलिए एंकर पांच मिनट पूरी होने का इंतजार करता रहा फिर सारे टेपरिकार्डर बंद करके फिर ढोल पीट पीट कर सामान बेचने लगा।
                       ये हमारा राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया था जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाता है। जो जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर जनतंत्र को समृद्ध कर रहा है।

Tuesday, April 19, 2016

व्यंग -- महत्त्वपूर्ण केसों की जाँच टीवी चैनलों को दे दो।

                कई सालों से हम सुनते आ रहे हैं की अदालतों पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है। इसी तरह सीबीआई वगैरा जाँच एजंसियों पर भी बहुत बोझ बढ़ गया है। सरकार चिंतित है। सर्वोच्च न्यायालय चिंतित है। कभी कभी राजनैतिक पार्टियां भी चिंतित होती हैं खासकर जब विपक्ष में होती हैं। हालात कई बार ऐसी हो जाती है की जैसे सारा देश एक साथ चिंतित हो गया हो। पुराने केसों की तादाद लगभग 40 लाख हो गई है। इनका निपटारा कैसे हो इस पर मैराथन मीटिंगे होती हैं। बड़े बड़े सेमिनार होते हैं। न्यायाधीशों और सरकार की सयुंक्त मीटिंग होती हैं, बड़े बड़े विशेषज्ञ बैठते हैं की ऐसा क्या किया जाये की न्याय में देरी ना हो। बाद में वही तुच्छ कारण सामने आता है की जजों की संख्या कम है और इसे बढ़ाना चाहिए। इंतजार कर रहे लोगों के मुंह से निकलता है धत्त तेरी। ये तो किसी बच्चे से पूछ लेते तो वो भी बता देता। हम तो समझ रहे थे  दूसरा ऐसा मामला निकलेगा जो किसी के ध्यान में ही ना आया हो। उसके बाद मुख्य न्यायाधीश महोदय प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे और प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश महोदय को पत्र लिखेंगे। हालाँकि मीटिंग में दोनों ही शामिल थे।
                     लेकिन मुझे अब इसका इलाज मिल गया है। इस इलाज से अदालतों का बोझ तो कम होगा ही होगा, जाँच एजंसियों का बोझ भी कम हो जायेगा। बाद में कोई अपील वगैरा का झंझट भी नहीं होगा। यानि एक तीर से पांच-छः निशाने लगाए जा सकते हैं। इसका इलाज ये है की देश में जो भी महत्त्वपूर्ण घटना घटे और जो भी केस महत्त्वपूर्ण लगे उसे जाँच एजेंसी को देने की बजाए टीवी चैनलों को सौंप दिया जाये। ज्यादा से ज्यादा दो या तीन दिन लगेंगे और केस खत्म हो जायेगा। जाँच भी हो जाएगी, मुकदमा भी हो जायेगा और फैसला भी हो जायेगा। इतना त्वरित परिणाम तो दुनिया की कोई भी एजेंसी नहीं दे सकती।
                      टीवी चैनलों को केस सौंपने के कई फायदे हो जायेंगे। पहला तो यही फायदा है की टीवी चैनल अब भी ऐसे केसों की समानांतर कार्यवाही तो चलाते ही हैं सो केवल उन्हें क़ानूनी दर्जा देने भर की जरूरत है। टीवी चैनल वो सारे सबूत दो या तीन दिन में ढूंढ लेते हैं जिन्हे ढूढ़ने में सीबीआई या NIA जैसी एजंसियों को सालों लग जाते हैं। जब तक अदालत तक कार्यवाही पहुंचती है उससे तो बहुत पहले टीवी चैनल अपना फैसला सुना चुके होते हैं। और देश का एक तबका उसे स्वीकार भी कर चुका होता है फिर चाहे अदालत का फैसला जो भी हो और जैसा भी हो।
                     इस तेजी का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। जाँच एजंसियां पहले सबूत ढूढ़ती हैं फिर उसे अदालत के सामने रखती हैं। फिर अदालत उनकी जाँच पड़ताल करती है और ज्यादातर उन सबूतों को ख़ारिज कर देती हैं। टीवी चैनल ऐसा नहीं करते। वो पहले ये तय करते हैं की दोषी किसे ठहराना है फिर ये तय होने के बाद वो उसके हिसाब से सबूत इकट्ठा करते हैं। उन सबूतों के लिए वो जी तोड़ मेहनत करते हैं। अगर ऐसे सबूत नहीं मिलते तो वो अपनी तकनीकी टीम की सहायता से फर्जी विडिओ वगैरा बनवा लेते हैं। फर्जी गवाहों के बयान जो की उनके अनुसार चस्मदीद होते हैं टीवी पर तब तक चलाते हैं जब तक लोगों को वो जुबानी याद नहीं हो जाते। फिर भी काम ना चले तो टीवी चैनल पर लोगों से पोल करवा लेते हैं। अब बताओ की उसके बाद क्या कमी रह सकती है।
                  इसमें सरकार को भी घबराने की कोई जरूरत नहीं है। जिस तरह सीबीआई, ED और NIA जैसी संस्थाएं सरकार के कहे अनुसार काम करती हैं उसी तरह कई टीवी चैनल भी सरकार के हिसाब से ही काम करते हैं। अफसरों को इसके लिए वेतन मिलता है और टीवी चैनलों को विज्ञापन। जो अधिकारी बहुत अच्छा काम करता है उसे तरक्की मिलती है, रिटायर होने के बाद दूसरे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति मिलती है तो टीवी चैनलों के मालिकों और पत्रकारों को राज्य सभा की सीट मिलती है और पदम पुरस्कार मिलते हैं। दोनों में होड़ लगी रहती है वफादारी की। मुझे ये नहीं पता की इनमे कोनसी नस्ल ज्यादा वफादार है। जीभ की लम्बाई तो एक जैसी ही है।
                    इसलिए देश की अदालतों पर बढ़ते हुए बोझ को कम करने के लिए सरकार को मेरे सुझाव पर गम्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।

Thursday, April 14, 2016

पनामा पेपर लीक -- एक तरफ दुनिया और एक तरफ हम

                     कुछ दिन पहले पनामा से कुछ पेपर लीक हो गए। सारी दुनिया में बवण्डर मच गया। हमारे देश के भी लगभग 500 लोगों का नाम उसमे होने की खबर है। जो खबरें आई हैं उनमे अमिताभ बच्च्न, ऐशवर्या बच्च्न, अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी, और कांग्रेस के अनुसार छत्तीसगढ़ के नुख्य्मन्त्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक का नाम भी उसमे है। अब इसका असर क्या हुआ ?
                      पूरा देश ट्विटर के सामने बैठकर प्रधानमंत्री के ट्वीट का इंतजार करता रहा परन्तु नहीं आया। उसके बाद दुनिया भर में इस पर कुछ प्रतिक्रियाएं इस तरह हैं।
 1.   आइसलैंड के प्रधानमंत्री ने अपना नाम आने के बाद इस्तीफा दे दिया।
 2.   यूक्रेन के प्रधानमंत्री ने अपना नाम आने के बाद इस्तीफा दे दिया।
 3.   ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने अपना नाम आने के बाद खुलासा किया की उनका नाम उनके राजनीती में आने से पहले का है। राजनीती में आने के बाद उन्होंने वहां कोई हिस्सा नहीं रखा। इसके सबूत के रूप में उन्होंने अपनी सभी इनकम टैक्स रिटर्न प्रकाशित कर दी। लेकिन उन पर सवाल अभी बाकी हैं।

                हमारी सरकार ने मुख्य्मंत्री के बेटे का नाम आने पर कहा की इसमें अपराध हुआ ये साबित करो। उसके बाद से सरकार के सभी मंत्री देश को आश्वासन दे रहे हैं की किसी को बख्शा नहीं जायेगा। ठीक उसी तरह जैसे विदेशों में कालाधन छिपाने वालों को नहीं बख्शा गया।

Wednesday, April 13, 2016

बंगाल चुनाव में वोटिंग के दौरान बीच के दो घंटे।

                     11 अप्रैल को बंगाल चुनाव के पहले चरण के दूसरे भाग का मतदान हुआ। इससे पहले प्रथम भाग में 18 सीटों के लिए हुए मतदान में दो दिन बाद वोटर टर्नआउट में 3.5 % की बढ़ोतरी पर सभी राजनितिक पार्टियों के कान खड़े हो गए थे।
                    लेकिन 11 अप्रैल को दूसरे भाग की 31 सीटों के मतदान के दौरान उससे भी अजीब बात सामने आई। वो ये की वहां मतदान सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक था। उसमे मतदान के जो आंकड़े  सामने आये वो इस तरह हैं।
                       सुबह 7 --- 9 बजे तक ---- करीब 19.5 %
                                9 ---- 11 बजे तक -- करीब 12 % ---    11 बजे तक का कुल आंकड़ा 31 % है।
                                11 -----1 बजे तक --करीब  29 % -----  1 बजे तक का कुल आंकड़ा  60 % है।
                                  1 ----5 बजे तक  ---करीब  20 % ------- कुल मतदान का आंकड़ा 80 % है।
 इसमें सुबह और शाम को जब गर्मी कम होती है और मतदाता वोट डालने के लिए बड़ी संख्या में बाहर निकलते हैं उस समय प्रति घंटा वोटिंग की रफ़्तार 5 से 8 प्रतिशत है। और दोपहर में जब बहुत गर्मी का वक्त था तब मतदान का प्रतिशत 14 से 15 % है। इसका कोई कारण समझ में नहीं आ रहा। आमतौर पर किसी भी मतदान  केंद्र पर मतदान का प्रतिशत 8 % से ज्यादा नहीं होता। तो क्या इसका मतलब ये है की बिच के दो घंटों में जब बूथ पर लोग नहीं थे तब फर्जी वोट का खेल हो गया।

Tuesday, April 12, 2016

व्यंग -- गुरुग्राम, महाभारत और हरियाणा सरकार।

                   हरियाणा सरकार ने गुडग़ांव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया। इस तरह सरकार ने एक ऐतिहासिक भूल का सुधार कर दिया। पिछले 850 साल की गुलामी के दौरान जो जो भूलें देश ने की हैं, ये सरकार उन सब को सुधारने के लिए कटिबद्ध है। इसमें 1947 में की गई आजादी नाम की भूल भी शामिल है।
                   गुडग़ांव नाम का ये ऐतिहासिक नगर हरियाणा में दिल्ली से सटा हुआ है। हमारी कमनसीबी देखिये की हमे दिल्ली शब्द का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। कितना अच्छा लगता की दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ या हस्तिनापुर होता। तब हम सर उठकर कहते की गुरुग्राम इन्द्रप्रस्थ से सटा हुआ है। तब कोई हमसे पूछता की ये हरियाणा के किस हिस्से में है तो हम बताते की ये करुक्षेत्र से इतने किलोमीटर दूर है। लेकिन पिछली केंद्र सरकारों ने देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने के कोई कदम नहीं उठाये। अब हम 850 साल के बाद देश की पहली हिन्दू सरकार से निवेदन करेंगे की वो दिल्ली का नाम बदल दे।
                      बात गुरुग्राम की चल रही थी सो हम आपको बताना चाहते हैं की ये वही नगर है जो कुरु शासकों ने अपने राजकुमारों को शिक्षा देने की एवज में गुरु द्रोणाचार्य को भेंट किया था। उस समय इसे विद्या का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता था। जहां कई देशो और विदेशों से राजकुमार पढ़ने के लिए आते थे। विदेशों से हमारा मतलब मगध और सिंध आदि देशों से है। तब इन्हे विदेश कहा जाता था। उस समय महान हिन्दू राष्ट्र हस्तिनापुर की सीमाएं एक अनुमान के अनुसार एक तरफ मथुरा को छूती थी और दूसरी तरफ पटना तक जो उस समय पाटलिपुत्र कहलाता था फैली हुई थी। इस विशाल साम्राज्य के महान योद्धा गुरुग्राम से ही शिक्षा प्राप्त करते थे।राजकुमारों से अलग आम आदमी के लिए यहां शिक्षा प्राप्त करना महाभारत काल में भी असम्भव था और आज भी असम्भव है। उस समय ब्र्ह्मास्त्र का निर्माण भी हो चूका था लेकिन लड़ाई के दौरान तीरों और गदा का इस्तेमाल किया जाता था।
                       खैर बात गुरुग्राम और शिक्षा की चल रही थी। उस समय विद्या के इस महान केंद्र में केवल क्षत्रियों को ही शिक्षा दी जाती थी। वैसे तो इस बात का ध्यान रखा जाता था की कोई शुद्र गलती से भी शिक्षा प्राप्त ना कर ले, लेकिन फिर भी दुष्टात्माओं की कमी तो किसी भी काल में नहीं रही और कोई शुद्र छिप छिपाकर शिक्षा प्राप्त भी कर ले तो उससे निपटने के उपाय भी तैयार होते थे। इसमें सभी गुरुकुलों के बीच एक साझा समझ थी और एकमत था। एकलव्य और कर्ण दोनों के उदाहरण सामने हैं।
                     इसलिए मौजूदा हरियाणा सरकार भी 850 साल के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठी पहली हिन्दू सरकार का ही गौरवपूर्ण हिस्सा है इसलिए वो भारत खण्ड को उसका खोया हुआ गौरव वापिस दिलवाने का प्रयास करती रहेगी। इस सरकार ने ये भी नॉट किया है की मौजूदा समय में शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकने के लिए कुछ विशेष प्रयास करने की जरूरत है। इसलिए सरकार ने हरियाणा के 350 सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है। सरकार को उम्मीद है की इससे शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होगी। और इससे हमारी महान संस्कृति की रक्षा हो सकेगी।
                 इसके साथ ही हरियाणा सरकार पुरे देश में दिल्ली सरकार द्वारा विश्व विद्यालयों में की जा रही पुराने गौरव को वापिस दिलाने वाले सभी कदमो का पुरजोर समर्थन करती है। जिन विश्व विद्यालयों में एकलव्य और कर्ण जैसे शिष्यों की संख्या ज्यादा हो गई है उनको या तो बंद करने की कोशिश की जाएगी या फिर कम से कम अध्यापन कार्य को बाधित करने को कोशिश तो अवश्य की जाएगी। सरकार द्वारा सत्ता सम्भालते ही इस तरह के प्रयास पुरे जोर शोर से किये जा रहे हैं।
                   हरियाणा सरकार का मानना है की जल्दी ही महान आर्यावर्त के इस भूभाग को जिसे अब हरियाणा कहा जाता है उसका खोया हुआ गौरव फिर से हासिल होगा। हमने एक ही परिवार को दो पक्षों में बांटकर आपस में लड़ाने की पुराणी प्रथा को भी पुनर्जीवित किया है और अभी अभी हरियाणा में उसका सफल प्रयोग भी किया है। कुछ लोग जनता को एक ही परिवार के दो पक्षों द्वारा लड़े गए महाभारत के युद्ध के नतीजों को याद करवा रहे हैं। ऐसे लोग प्राचीन भारतीय संस्कृति के दुश्मन हैं इसलिए उन्हें देशद्रोही करार दिया जा चूका है। ये सरकार अपने एजेंडे पर कायम है और किसी को भरम में रहने की जरूरत नहीं है।

Monday, April 11, 2016

समाज में विभाजन पैदा करना देशभक्ति कैसे है ?

                    इस बात पर तो कोई बहस नहीं है की एक विभाजित समाज कभी भी मजबूत राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता। भारत एक बहुजातीय, बहुधार्मिक और उससे भी आगे बहुसांस्कृतिक समाज है। लेकिन हमारे कर्णधारों का प्रयास रहा की इस विविधता को ही भारत की एकता का आधार बनाया जाये। इसके लिए जरूरी था सभी को सम्मान और न्याय मिले। हर तरह की संस्कृति और विचारों को मानने वाले यहां अपने को सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें। इसके लिए हमने हमेशा दो धर्मो और जातियों में एकता के सूत्र खोजे। चाहे भक्ति आंदोलन हो या सूफी मत हो, सबकी कोशिश हमेशा विभाजनकारी प्रतीकों के खिलाफ एकता के प्रतीक ढूढ़ने की रही। अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए लोगों ने कुछ मूल्यों की स्थापना की और वही मूल्य ना केवल आजादी का आधार बने बल्कि उन्ही मूल्यों को आधार बना कर एक मजबूत देश का निर्माण शुरू हुआ। इस तरह सदियों में ये देश एक मजबूत देश के रूप में उभरा।
                    लेकिन कुछ ताकतों को ये बात रास नहीं आई। उन्होंने हमेशा किसी ना किसी बहाने इसकी विविधताओं को विभाजन  में परिभासित करने की कोशिशें की। उन्होंने हमेशा विविध धर्म और संस्किर्तिओं को मानने वाले लोगों के बीच में टकराव पैदा करने की कोशिश की। धर्म इसमें मुख्य कारक रहा। अंग्रेजों ने इस बिभाजन को चौड़ा करने की सारी कोशिशें की। क्योंकि वो एक विदेशी सत्ता थी और उसे देश की एकता से खतरा था। इसलिए उसने फूट डालने और राज करने की नीति अपनाई।
                  लेकिन अब तो कोई विदेशी सत्ता नहीं है। फिर भी कुछ संगठन इस एकता को विभाजन में बदलने पर क्यों उतारू हैं। खासकर आरएसएस पुरे जोर शोर से इस बिभाजन को टकराव तक ले जाने की पूरी कोशिश कर रहा है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, सरकार के सक्रिय सहयोग से उसकी ये कोशिशें खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई हैं। आज विभिन्न धर्मों, जातियों, राज्यों और संस्कृतियों के बीच में जो भी विविधता है, आरएसएस उसे विभाजन के रूप में पेश कर रही है। देश में जितने भी टकराव के आधार हो सकते थे उन सबको सक्रिय कर दिया गया है। उसमे हिन्दू बनाम मुस्लिम है, हिन्दू बनाम ईसाई है, दलित बनाम स्वर्ण है, कश्मीरी बनाम गैर कश्मीरी है, आदिवासी बनाम गैर आदिवासी है, ऐसे सभी पक्षों को टकराव में धकेला जा रहा है।
                 इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल ये है की जो लोग समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, समुदायों में फूट डाल रहे हैं वो देशभक्त कैसे हो सकते हैं।  समाज की दरारों को चौड़ा करना देशभक्ति है? हररोज नया बहाना ढूंढ कर कुछ लोगों को गद्दार घोषित करना और पुरे देश को इस तरह के सवालों पर तनाव में रखना आखिर देशभक्ति कैसे है ? अगर ये देशभक्ति है तो फिर गद्दारी की क्या परिभाषा होगी ? लोगों को इस बात को समझना होगा की समाज में विभाजन पैदा करने वाले लोग देशभक्त नहीं हैं बल्कि देश के दुश्मन हैं।

Saturday, April 9, 2016

व्यंग -- आम आदमी तो तिरंगा फहराने की हैसियत ही नहीं रखता।

             मैंने भी सोचा की तिरंगा फहरा ही दूँ। और साथ में भारत माता की जय का नारा भी लगा दूँ। मैं ये सोच ही रहा था की वो हो गया जिसकी आम आदमी को उम्मीद ही नहीं होती। जैसे चार पांच साल पहले बहुत से लोग सोचते थे की एक घर खरीद ही लें। जब तक वो फैसला ले पाते घर की कीमत आम आदमी की हैसियत से बाहर हो गई और वो सोचता ही रह गया। वही मेरे साथ हो गया।
               सुबह सुबह टीवी चालू किया तो देखा की जयपुर में भूतपूर्व डाकुओं का सम्मेलन चल रहा है। इन्होने आत्मसमर्पण किया था। लेकिन दिल में अभी तक डाकुओं वाला जोश बाकि था। हाथों में बंदूकें थी जो पता नहीं पुलिस ने जब्त क्यों नहीं की थी। खैर उन्होंने तिरंगा फहराने और भारत माता की जय बोलने की घोषणा कर दी। साथ में कन्हैया की सुपारी भी दे दी। मैं सन्न रह गया। अब तिरंगा फहराने का हक पाने के लिए किसी की जीभ या सर काटने पर इनाम रखना जरूरी हो गया है। उसके बाद मुझे कुछ समय लग गया सम्भलने में। जैसे ही संभला तो सोचा की आज फहरा ही दूँ।
             तभी देखा की छः सात फर्जी मुठभेड़ों के आरोपी गुजरात के भूतपूर्व DGP बंजारा गुजरात में प्रवेश कर रहे हैं। उनके समर्थक तिरंगा लिए हुए हैं और भारत माता की जय के नारे लगा रहे हैं। पुरे जोश में उत्सव मनाया जा रहा है। उसके बाद बोलते हुए बंजारा साहब ने कहा की अब वो निपटेंगे भारत माता के विरोधियों से। मुझे चककर आ गया। उनका निपटने का तरीका मुझे मालूम है। अब मुझे तिरंगा फहराने का मौका मिलता नहीं लग रहा था। तभी टीवी में समाचार सुना की दिल्ली से AC बस में बैठकर कुछ भक्त, मेरा मतलब है देशभक्त श्रीनगर जा रहे हैं NIT के गेट पर तिरंगा फहराने। मुझे लगा की इसमें कोशिश करनी चाहिए। एक तो वहां तिरंगा फहराने की कोई पाबंदी नहीं है। दूसरा सारा इंतजाम आयोजकों का है सो अपना कोई खर्चा नहीं है। उल्टा आते वक्त एक पेटी कश्मीरी  सेब और अखरोट भी लाए जा सकते है जैसे वैष्णो देवी की यात्रा के समय करते हैं। इसके मेरी एप्लिकेशन ख़ारिज हो गई। आयोजकों ने मुझे उस स्तर का भक्त यानि के देशभक्त नहीं माना। अखरोट का सपना सपना ही रह गया। तभी मेरे पड़ोसी ने मुझे बताया की भैया इतना आसान मत समझो। कश्मीर की जिस आधी सरकार के समर्थकों ने वहां छात्रों को झंडा फहराने के लिए उकसाया था उसी सरकार की पुलिस ने उन्हें धुन दिया।
                  मैंने झंडा फहराने का कार्यक्रम और भारत माता की जय बोलने का कार्यक्रम उचित समय तक स्थगित करने का फैसला कर लिया। मैं अभी स्थगित कर ही रहा था की बाबा रामदेव प्रकट हुए। उनके हाथ में नंगी तलवार थी और आँखों में बगदादी वाली चमक थी। उन्होंने आते ही मेरे गले पर तलवार रख दी और बोले की जो भारत माता की जय नहीं बोलेगा ऐसी लाखों गर्दन काट दी जाएगी। और इसकी शुरुआत तुमसे होगी।
  "लेकिन मुझसे क्यों ?" मैंने हकलाते हुए पूछा।
   " क्योंकि हमेशा शुरुआत भी और अंत भी तुम्हारे जैसों से ही होता है। क्योंकि गर्दने तो केवल गद्दारों की कटनी हैं।"  रामदेव ने जवाब दिया।
  " पर मैं गद्दार कैसे हो गया ?" मैंने पूछा।
  " देखो, संघ से जो बाहर है, वो देश का गद्दार है। हम फालतू बहस में नहीं पड़ना चाहते। इसलिए हमने आसान फार्मूला निकाल लिया है। " रामदेव ने मुझे बताया।
मैं डर के मारे बेहोश हो गया। बेहोशी के दौरान या नींद के दौरान मैंने सपना देखा की विजय माल्या, ललित मोदी, छोटा राजन, और कई लोग इकट्ठे होकर तिरंगा फहराने की तैयारी कर रहे हैं। सभा में भारत माता की जय बोली जा रही है। घबराकर मुझे होंश आ गया। फिर मैंने सोचा की तिरंगा फहराना और भारत माता की जय बोलना मुझ जैसे आम यानी गए गुजरे आदमी का काम नहीं है। इसके लिए हैसियत चाहिए। रुतबा चाहिए और एक विशेष प्रकार का अनुभव चाहिए। उसके बिना अगर कोई केवल देशभक्ति से प्रभावित होकर ये दुस्साहस करेगा तो उसके साथ वही हो सकता है जो NIT श्रीनगर के छात्रों के साथ हुआ।

Friday, April 8, 2016

विश्व विद्यालयों में संघ बनाम शेष भारत का खेल महंगा पड़ सकता है।

                    केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद देश के सभी प्रमुख विश्व्विद्यालय उबाल पर हैं। FTII से शुरू हुआ ये खेल अब NIT श्रीनगर तक पहुंच गया है। सभी जगह आरएसएस समर्थित तत्व एक तरफ हैं और दूसरी तरफ कहीं वामपंथी हैं, कहीं दलित हैं, कहीं कश्मीरी हैं और कहीं मुस्लिम हैं। इसके अलावा देश में बाकी जगहों पर भी इस तरह के टकराव उभर रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है की ये केंद्र सरकार की विफलताओं को छुपाने के लिए लोगों का ध्यान बटाने के लिए किया जा रहा है तो कुछ लोग इसे आरएसएस के एजंडे को लागु करने की बड़ी योजना का हिस्सा मानते हैं।
                   अभी अभी NIT श्रीनगर में हुई घटना की एक टीवी बहस में जानी मानी पत्रकार नीरजा चौधरी ने जब ये पूछा की दो दिन पहले ही कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनी है और उसके तुरंत बाद कश्मीर की सभी फॉल्ट लाइने क्यों सक्रिय हो गई हैं चाहे वो कश्मीरी और गैर कश्मीरी हो, लोकल बनाम बाहरी हो, पाकिस्तान समर्थक बनाम भारत समर्थक हो। उन्होंने ये भी कहा की पिछले नो सालों में NIT श्रीनगर में कभी कोई विवाद सामने नहीं आया। तो इसके जवाब में बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा की NIT श्रीनगर में जो लोग नो सालो से दबे हुए थे उनको ये सरकार आने के बाद लगता है की अब वो सबकुछ कर सकते हैं जो पहले नहीं कर पा रहे थे। उसमे भारत माता की जय के नारे लगाना भी शामिल है। असली खतरा इसी जवाब में छिपा हुआ है।
                  NIT श्रीनगर में लोकल कश्मीरी छात्रों की संख्या बहुत ही कम है। 4000 छात्रों में से 500 छात्र ही कश्मीर से आते हैं बाकी शेष भारत से आते हैं। जो कैंपस हमेशा शान्ती और सहयोग की मिसाल रहा है उसमे तिरंगा फहराने और भारत माता की जय के नारे लगाने से शुरू हुआ विवाद आज इतना बढ़ चूका है की पुरे विश्व विद्यालय को छावनी में बदल दिया गया है। दूसरी तरफ कश्मीरी पुलिस पर भेदभाव के आरोप लगाए जा रहे हैं। विश्व विद्यालय कैंटीन के लोकल स्टाफ पर आरोप लगाए जा रहे हैं और फैकल्टी पर भी आरोप लगाए जा रहे हैं जिनमे बड़े पैमाने पर अतिशयोक्ति की सम्भावना है। एक ही दिन में सबकुछ खराब हो गया हो ऐसा नहीं होता है। पहले ये दावा किया जा रहा था छात्रों की तरफ से कंकड़ तक नहीं फेंका गया लेकिन अब ऐसा भी विडिओ सामने आया है जिसमे छात्र पथराव कर रहे हैं। भेदभाव के आरोप से निराश एक पुलिस अधिकारी ने कहा है आखिर हम किसकी लड़ाई लड़ रहे हैं।
                   इस विवाद में MHRD का रवैया भी बेहद आष्चर्य जनक है। चूँकि मामला कश्मीरी बनाम गैर कश्मीरी बनाया जा रहा है तो MHRD गैर कश्मीरी छात्रों की हर मांग मानने को तैयार है। तुरंत वहां केंद्रीय अधिकारीयों की टीम भेज दी गई। कैंपस के अंदर कश्मीरी पुलिस को हटाकर CRPF की तैनाती कर दी गई। पुलिस कार्यवाही के खिलाफ न्यायायिक जाँच की घोषणा कर दी गई। परीक्षा तक स्थगित करने की घोषणाएं की जा रही हैं। दूसरी तरफ JNU और हैदराबाद विश्व विद्यालय में बर्बर पुलिस लाठीचार्ज में घायल छात्रों को जेल भेज दिया गया और उनका पानी तक काट दिया गया। जिस आदमी ने ( बीजेपी सांसद महेश गिरी ) ने JNU  छात्रों  खिलाफ फर्जी विडिओ के आधार पर देशद्रोह की FIR दर्ज करवाई थी वही महेश गिरी कल राजनाथ सिंह से मिलकर मांग कर  रहा था की NIT श्रीनगर के छात्रों के खिलाफ दर्ज केस वापिस लिए जाएँ। ये वही आदमी है जो समानता की शपथ लेकर सांसद है। केवल यही नहीं, पुरे बीजेपी के नेता इस विवाद को कश्मीरी और गैर कश्मीरी के रूप में बढ़ावा देकर राजनैतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं।
                   देश में सभी जगह इस तरह के दोहरे मापदंडों के आधार पर कार्यवाही की जा रही है। पुरे देश में संघ बनाम शेष भारत का खेल खेला जा रहा है। लेकिन विश्व विद्यालयों में ये खेल देश को काफी महंगा पड़ सकता है। NIT श्रीनगर के जिन छात्रों को बीजेपी मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रही है उनके माँ बाप को रात को नींद नहीं आ रही है।

Thursday, April 7, 2016

मनरेगा -- सरकार की नीति और नीयत का सवाल

                 शुरू से ही बीजेपी मनरेगा के खिलाफ रही है और उसने ये बात कभी छुपाई भी नहीं है। उसका मानना है की ये केवल पैसों की बर्बादी है क्योंकि इससे कोई सम्पत्ति निर्माण नहीं होता। उसने इसे कांग्रेस सरकार की विफलता का स्मारक बताया है।
                    दूसरी तरफ देश का बहुत बड़ा तबका  प्रबल समर्थक है। गावों में स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए इससे बड़ा कोई प्रोग्राम नहीं है। गांव के स्तर पर बेरोजगार लोगों को कम से कम 100 का रोजगार वहीं मिल जाये इसके लिए इस स्कीम को लाया गया था। उसके बाद देश में रोजगार गारंटी कानून भी आया। इस कार्यक्रम ने देहाती हलकों में काम उपलब्ध करवा कर बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन को रोकने में सफलता पाई है। इसके लाभ और असर इतने व्यापक हैं की अपनी सारी नकारात्मक समझ के बावजूद बीजेपी सरकार इसको बंद नहीं कर पाई।
                    लेकिन मनरेगा पर सरकार की जो समझ है उसने इसके रास्ते में कई समस्याएं भी खड़ी की हैं। बीजेपी ना तो इसे बंद करने का जोखिम मोल लेना चाहती और ना इसे चालू रखना चाहती। इसलिए उसने बीच का रास्ता निकाल लिया। वो रास्ता है मनरेगा को विफल करने का रास्ता। उसने पुरे देश के स्तर पर इसके लिए फण्ड जारी करने की कोई कोशिश नहीं की। जिसका परिणाम ये हुआ और  अपेक्षित भी था की जब मनरेगा में काम करने वाले लोगों को मजदूरी ही नहीं मिली  उन्होंने गाँवो से पलायन शुरू कर दिया। सूखे के हालात में जब लोगो को भूखे मरने की नौबत थी उस समय भी सरकार ने इसके लिए रकम जारी नहीं की। लोगों की बकाया मजदूरी लगभग 9000 करोड़ तक पहुंच गई।
                    इसके बाद बारी आई सूखा राहत के सवाल की। सरकार ने उस पर भी आँखे बंद करके बारिश का इंतजार करने का फैसला किया। बड़ी तादाद में भूख से मौतें हुई। लोग घरबार छोड़कर काम और रोटी की तलाश में निकल पड़े। लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा। तब लोग उच्च्त्तम न्यायालय में गए। एक PIL पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने इस पर ना केवल हैरानी जताई बल्कि सरकार को स्प्ष्ट चेतावनी भी दी की अदालत इस हालात में आँखे बंद करके नहीं बैठ सकती। न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा की जब मजदूरी का भुगतान ही नहीं होगा तो लोग काम क्यों करेंगे। उच्च्त्तम न्यायालय सरकार को पूरी जानकारी और बकाये के भुगतान के बारे में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया। उसके बाद अदालत का सख्त रुख देखते हुए सरकार ने माना की 9000 करोड़ रुपया मजदूरी बकाया है और वो एक हफ्ते के अंदर उसके लिए रकम जारी करेगी।
                      उससे पहले हम हररोज सरकारी प्रवक्ताओं के बयान सुनते थे की मनरेगा के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है। और अगर कोई रकम बकाया है तो तकनीकी कारणों से बकाया हो सकती है। सरकार कितनी बेशर्म और जनविरोधी हो सकती है ये उसका केवल एक नमूना है।

Tuesday, April 5, 2016

पनामा पेपर लीक -- सरकार की साख और गिरेगी ?

                 कालेधन का मुद्दा भारत में एक ज्वलंत मुद्दा है। इतना ज्वलंत की केंद्र और राज्य, दोनों दिल्ली की सरकारें इसी मुद्दे पर बनी हैं। बीजेपी द्वारा कालेधन पर देश के लोगों से किये गए वायदे और बाद में उनसे पीछेहठ उसकी साख को ले डूबा। बीजेपी ने कालेधन पर दो प्रमुख वायदे किये थे। पहला ये की 100 दिन में कालाधन वापिस लाया जायेगा और दूसरा सरकार के पास जो कालेधन वालों के नाम हैं उन्हें उजागर किया जायेगा। बाद में सरकार दोनों से पलट गई। अब ये पनामा पेपर लीक सामने आ गया।
                    पनामा पेपर लीक पर कई बातें सामने आई हैं। जो संस्था इस लीक के लिए जिम्मेदार मानी जाती है, कहते हैं की उसे अमेरिका फण्ड मुहैया करवाता है। लीक पर जो पहला विवाद सामने आया है वो ये है की इसमें केवल अमेरिका विरोधी नेताओं का नाम है। जैसे रुसी राष्ट्रपति पुतिन, चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग, लीबिया के मरहूम राष्ट्रपति ,गद्दाफी, सीरिया के राष्ट्रपति असद इत्यादि। मध्य पूर्व के कुछ पत्रकार इस पर आष्चर्य व्यक्त कर रहे हैं की इसमें एक भी अमेरिकी, सऊदी अरेबिया, इजराइल और तुर्की के किसी नेता का नाम नहीं है। जबकि तुर्की, सऊदी अरब, इजराइल और अमेरिकी कम्पनियों पर हररोज 4 बिलियन डॉलर तेल की खरीद के बदले में ISIS को भुगतान करने का आरोप है।
                  भारत के मामले में भी लोगों को इस पर हैरानी है की एक भी भारतीय नेता का नाम इसमें नहीं है जबकि लोग नेताओं को कालेधन के मुख्य खिलाडी मानते हैं। खैर ये पेपर सुविधा के हिसाब से लीक किये हो सकते हैं या कुछ नाम इनमे जान बूझकर डाले हो सकते हैं। लेकिन भारत के जिन लोगों के नाम इसमें सामने आये हैं उनमे कुछ लोग नरेंद्र मोदी और बीजेपी के करीबी माने जाते हैं। इसलिए अरुण जेटली के सारे स्वागत के बावजूद लोगों को शक है की लीपापोती शुरू होने वाली है। अगर निकट अवधि में जाँच किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती है तो ये सरकार की गिरती हुई साख को रसातल में पहुंचा देगा। इसलिए सरकार के सामने बड़ी चुनौती है।

रामदेव, योग, व्यापार और राजनीती

खबरी -- रामदेव के सर काटने वाले बयान का क्या महत्त्व है ?

गप्पी -- रामदेव के होंसले से तो पूरा देश वाकिफ है सो उस पर तो कुछ कहने की जरूरत नहीं है। लेकिन योग के बारे में अब तक रामदेव  कुछ दूसरे लोग अब तक जो कहते रहे हैं जैसे योग से मानसिक संतुलन ठीक रहता है, गुस्से पर काबू रहता है और मनुष्य प्रकृति के नजदीक रहता है, वो सारी बातें हवा हो गई। रामदेव का बयान एक टुच्चे किस्म के गुंडे और घटिया किस्म के राजनितिक चमचे के ज्यादा नजदीक है।

बंगाल चुनाव पहला फेज --- तृणमूल के खिलाफ एक खामोश लहर।

                  बंगाल चुनाव का पहला चरण कल पूरा हो गया। बंगाल से जो ग्राउंड रिपोर्टें मिल रही हैं वो तृणमूल के लिए खतरे की घंटी की तरह हैं। इस चरण में लगभग 81 % वोट गिरी हैं जो पिछले चुनाव से 3. 5 % कम हैं।  चुनाव विश्लेषकों का मानना ये वो फर्जी वोटें थी जो पिछले चुनाव में तृणमूल ने डलवा दी थी। इस बार चुनाव आयोग की सख्ती और विपक्ष की मजबूती के कारण इस तरह की फर्जी वोटिंग में भारी कमी आई है जिससे तृणमूल नेता चिंता ग्र्रस्त हैं। चुनाव के बाद सीपीएम के पोलित ब्यूरो सदस्य और बंगाल के मशहूर नेता मोहम्म्द सलीम  ने पत्रकारों को कहा की इस बार धाधंली वाले बूथों की संख्या 1 % के लगभग थी जो पिछली बार के 20 % तुलना में नगण्य है। जाहिर  इससे तृणमूल को हर विधानसभा क्षेत्र में 7000 से 10000 वोटों का नुकशान होने जा रहा है। मिदनापुर में तो ये अन्तर 8 - 9 % तक है।
                   दूसरी जो चीज उभर कर सामने आई वो ये है की भृष्टाचार इस बार चुनाव मुख्य मुद्दा है जो पहले वहां कभी नहीं रहा। बंगाली अपने प्रदेश को भद्रलोक कहते हैं और इस बार  सरकार के खिलाफ जो खुलासे हुए हैं उनसे इन्हे भारी धक्का लगा है। पूरा स्थानीय मीडिया इस बात को नॉट कर रहा है।
                     तीसरा संकेत तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा पत्रकारों पर हमले करने से सामने आता है। पत्रकारों पर हमला शासक वर्ग की खीज का परिणाम है। उस पर इस बार लेफ्ट और कांग्रेस के गठजोड़ ने तृणमूल की सत्ता विरोधी वोटों  विभाजन की उम्मीद पर पानी फेर दिया है। दोनों का वोट अगर पूरा पूरा ट्रांसफर हो जाता है तो तृणमूल को 100 सीट का आंकड़ा छूना भी मुश्किल हो जायेगा।

Monday, April 4, 2016

जब भारत माता की जय बोलने पर जेल होती थी तब आप कहां थे रामदेव ?

                   देशभक्ति  का सीजन चल रहा है। हर खरगोश मारने वाला महान शिकारी का ख़िताब लगा कर घूम रहा है। इस दौर में एक नया नाम सामने आया है बाबा रामदेव का। रामदेव ने बड़े जोश से कहा है की वो कानून का सम्मान करते हैं वर्ना लाखों सर काटने का होंसला रखते हैं।
                 पहली बात तो  ये है की ये सारे देशभक्त तब सामने आ रहे हैं जब भारत माता की जय बोलने में कोई खतरा नहीं है। जब भारत माता की जय बोलने में खतरा था यानि आजादी की लड़ाई के समय तब आरएसएस और ये सब पोंगापंथी लोगों को उससे दूर रहने की सलाह देते थे। 1925 से 1947 तक पुरे बाइस साल आरएसएस के मुंह से ये नारा एक बार भी नहीं निकला। क्योंकि तब ये नारा खतरनाक माना जाता था। अब इसकी होड़ लगी है।
                   कानून के सम्मान की बात करने वाले और ये नारा लगाने वाले लोगों में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका विदेशों में काला धन जमा है। जो देश को गड्डे में उतारने के लिए जिम्मेदार हैं। इनमे बड़े पैमाने पर टैक्स चोर शामिल हैं। मिलावट करके हल्का सामान बेचने वाले शामिल हैं और किसानों की जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो देश को लूटने वाले बड़ी संख्या में शामिल हैं। रामदेव पर इनमे से कई आरोप हैं मजदूरों को कानून के हिसाब से वेतन तक ना देने के आरोप सहित।
                     उन्होंने दूसरी बात होंसले की की है। सो उनका होंसला लोगों ने देखा हुआ है जब वो 50000 समर्थकों को रामलीला मैदान पर पुलिस कार्यवाही से पीटते हुए छोड़कर महिलाओं के कपड़े पहन कर भाग गए थे। जिस आदमी में थोड़ी सी भी शर्म बाकी हो वो दुबारा लोगों को मुंह दिखाने की हिम्म्त भी नहीं करें। खैर अगर तब उनमे होंसला नहीं था और अब पतंजलि की दवाईंयां खाकर पैदा हो  गया है तो मैं उनको ये होंसला दिखाने का उपाय बता सकता हूँ। आप वही तरीका अपना सकते हैं जो उधम सिंह ने अपनाया था। आप पाकिस्तान जाइये और जिन मसूद अजहर , हाफिज सईद इत्यादि को रोज कोसते  हैं उनका सर काट कर ले आइए। इसमें केवल होंसला चाहिए और कोई क़ानूनी बाधा  नहीं है। लेकिन असल में आपमें होंसला नहीं है असल में आप निहायत डरपोक किस्म के आदमी हैं जो भीड़ को उकसाकर हत्या  करवा सकते हैं और पुलिस के डर से सलवार पहन कर भाग सकते हैं।
                  जो लोग सुविधा भोगी नारे लगा रहे हैं वो बहादुर नहीं हैं मक्कार हैं। अगर आप सचमुच देश से प्यार करते हैं तो मैं बताता हूँ की आपको क्या नारा लगाना चाहिए। आप बोलिए साम्राज्य वाढ मुर्दाबाद , आप बोलिए किसान मजदूर एकता जिंदाबाद, भाईचारा जिंदाबाद, पूंजीवाद मुर्दाबाद , टैक्स चोर मुर्दाबाद। क्या आप बोल पाएंगे। इतना भी नहीं कर सकते और केवल हिन्दुओं के ठेकेदार हैं तो कम से कम इतना तो बोलिए, दलित ब्राह्मण भाई भाई। सारी देशभक्ति और होंसले की हकीकत सामने आ जाएगी।

Saturday, April 2, 2016

एक विफल मुख्य्मंत्री का राष्ट्रवादी विलाप

                     महाराष्ट्र, एक ऐसा प्रदेश जिसने सालों देश की अर्थव्यवस्था का नेतृत्व किया है। प्रति व्यक्ति आय में जो हमेशा ऊपर के स्तरों पर रहा है। जिसकी राजधानी मुंबई पता नहीं कितने नोजवानो के सपनो को पूरा करने का आधार रही है। लेकिन आज उस महाराष्ट्र की क्या हालत है ? देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की सबसे बड़ी संख्या यहीं से आती है। देश में पीने के पानी पर धारा 144  यहीं लगानी पड़ रही है। और जो आदमी पुरे देश के सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर का जिम्मेदार है वो इसी प्रदेश से आता है। पिछली बार जब विधानसभा  के चुनाव हुए थे तो बीजेपी ने कांग्रेस की नाकामियों को गिनाते हुए जनता से वायदा किया था की उसके पास इसका हल है। लेकिन आज लोगों को राहत देने के मामले में महाराष्ट्र सरकार देश की सबसे विफल सरकार है।
                   दूसरी तरफ नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के मामले में भी इसका रिकार्ड बहुत ही खराब है। महिलाओं को पूजा के अधिकार के मामले में इस सरकार का रुख हमेशा से कटटरपंथियों की तरफदारी का रहा है और संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार को कभी परम्परा और कभी व्यवस्था के नाम पर लागु करने से इंकार करती रही है। दो दिन पहले आये उच्च न्यायालय के सपष्ट आदेश के बावजूद सरकार उसे लागु करने में ना केवल विफल रही है बल्कि उसने उसके लिए कोई प्रयास भी नहीं किया है।
                      ऐसे हालातों में सरकार के पास छुपने के लिए कोई जगह बचती नहीं है। इसलिए बीजेपी के पुराने तरीके के अनुसार उसने फिर हिन्दू राष्ट्रवाद के पीछे छिपने की कोशिश की है। जब राज्य की जनता का जीना  मुहाल हो गया है, लाखों किसान कर्जमाफी की मांग पर डेरा डाले हुए हैं उस समय इन सब चीजों से ध्यान हटाने के लिए मुख्य मंत्री फडणवीस ने फिर भारत माता की जय के नारे के मुद्दे को उठाकर हिन्दू राष्ट्रवाद के पीछे छिपने की कोशिश की है। उनका बयान ना केवल संविधान विरोधी है और समुदायों के बीच नफरत पैदा करने की कोशिश तो है ही, असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश भी है।
                       जो लोग भारत माता  की जय नहीं बोलते उनको देश में रहने का अधिकार है या नहीं ये तो इस देश का संविधान तय कर  देगा लेकिन जो मुख्य मंत्री लोगों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था नहीं कर सकता उसे तो एक मिनट भी अपने पद पर रहने का अधिकार नहीं है।

Friday, April 1, 2016

ओपिनियन पोल बंगाल में ममता को आगे दिखाने के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं।

                     आज टाइम्स नाउ - सी वोटर का ओपिनियन पोल दिखाया गया। इन सभी ओपिनियन पोल में एक बात बहुत साफ नजर आती है और वो है इनका बीजेपी मोह और वाम विरोध। इसके लिए किस किस तरह की तिकड़में करनी पड़ती हैं वो भी अजीब है। इससे पहले जो ओपिनियन पोल आया था उसने ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 45 % वोट दिया था और लेफ्ट +   कांग्रेस को 44 % वोट दिया था। आज टाइम्स नाउ के ओपिनियन पोल ने तृणमूल कांग्रेस को 41 % वोट दिया है और लेफ्ट + कांग्रेस को 40 % वोट दिया है  यानि एक प्रतिशत का फर्क बरकरार रखा है। लेकिन अब उसने सीटों का अंतर् घटाकर 160 - 137 क्र दिया है। इसके साथ ही इसने बीजेपी का वोट बढ़ाकर 11 % क्र दिया है और कांग्रेस ( ८ % ) से ज्यादा कर दिया है। आज के ओपिनियन पोल ने ये भी स्वीकार कर लिया है की वाम मोर्चा तेजी से आगे बढ़ रहा है। लेकिन वो अब भी तृणमूल को आगे दिखाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। जबकि सच्चाई ये है की इन चुनावों में ममता बैनर्जी हार रही है। उसके पीछे कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है लेफ्ट + कांग्रेस गठबंधन।
                      इन ओपिनियन पोल का बीजेपी प्रेम आसाम में खुलकर नजर आता है जब ये कांग्रेस का वोट प्रतिशत बीजेपी से दो प्रतिशत ज्यादा दिखाते हैं और सीटें दो कम दिखाते हैं। लेकिन मुकाबला दिखाने के बावजूद ये बीजेपी की सरकार बनती हुई नहीं दिखा रहे हैं। असलियत ये है की इस चुनाव में बीजेपी को 5 -0 से हार मिलने वाली है। बीजेपी को असम में जित नहीं मिल रही है बाकि में तो खैर उसे खुद भी उम्मीद नहीं थी। जिन पांच राज्यों में ये चुनाव हो रहा है वहां से लोकसभा की 116 सीटें आती हैं और जितने क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को बढ़त प्राप्त हुई थी इस बार बीजेपी उसका एक तिहाई भी नहीं जितने जा रही है।
                  

भारत माता और धरती माता का झगड़ा।

खबरी -- अब ये भारत माता के नाम पर नया झगड़ा शुरू हो गया ?

गप्पी -- इसमें एक बात है जो समझ में नहीं आ रही। हमारे देश में पहले भी बहुत से लोग धरती माता की बात करते थे। इनमे बड़ा हिस्सा किसानों का होता था। लेकिन एक बात का कन्फ्यूजन है। अगर पूरी धरती को माँ मान लिया है तो फिर उसमे टुकड़े करने की क्या जरूरत है। अगर पूरी धरती माँ है तो वो धरती भी माँ हुई जो पाकिस्तान, चीन या अमेरिका में है। अब उसको हम क्या माने। ये तो भारत माता और धरती माता के बीच विवाद खड़ा करने की बात है।

कुछ शर्मनाक, हैरतनाक और दर्दनाक खबरें

                गुजरात के अहमदाबाद से खबर है की वहां 10 बाल मजदूरों को छुड़वाया गया है जिन्हे जंजीरों से बांध कर रखा गया था। इस तरह की दर्दनाक खबर उस प्रदेश से आई है जो नंबर वन होने का दावा करता है। नंबर वन होने के लिए क्या इस तरह का अमानवीय शोषण जरूरी है ?
                 इस नंबर वन गुजरात से ही दूसरी खबर ये भी आई है की देश में  पकड़ी गई नकली नोटों की सबसे बड़ी खेप भी यहीं पकड़ी गई है। एक आदमी के पास से एक करोड़ बयालीस लाख के नकली नॉट बरामद हुए।
                   तीसरी शर्मनाक खबर भी बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ से ही आई है। वहां जंगली हाथियों के एक झुण्ड ने तीन मजदूरों को मार डाला। इस पर वहां की सरकार ने इनके परिवारों को सहायता राशि की घोषणा की है। जानते हैं कितनी ? 2500 रूपये।
                   कोलकाता में पुल दुर्घटना के बाद बीजेपी ने इस बात को मान लिया है की इस तरह की दुर्घटनाएं भृष्टाचार के कारण होती हैं। सूरत में चार निर्माणाधीन पुलों पर हुई दुर्घटनाओं के समय उसने ये बात नहीं मानी थी।
                  कोलकाता पुल दुर्घटना के बाद ममता बैनर्जी ने भी ये बात मान ली है की कई काम वाम मोर्चा सरकार के दौरान भी शुरू हुए थे। वरना अब तक तो उसका कहना था की हर काम उसने ही शुरू किया था।