Wednesday, September 28, 2016

शार्क सम्मेलन और भारत पाक विवाद

खबरी -- क्या भारत ने शार्क सम्मेलन का बायकाट करके पाकिस्तान को अलग थलग कर दिया ?

गप्पी -- भारत के बायकाट करने के बाद शार्क सम्मेलन का रदद् या स्थगित होना तय हो गया है। भारत सरकार इस पर अपनी पीठ ठोंक रही है। लेकिन इसका सीधा असर दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाये गए संगठन को कमजोर करने का होगा। ये अपनी ही मेहनत पर पानी फेरने जैसी बात है। इससे सबसे ज्यादा ख़ुशी अमेरिका को होगी जो इस तरह के संगठनों के बुनियादी तौर पर खिलाफ है। क्योंकि इस तरह के संगठन उसकी विश्व बाजार पर इजारेदारी को चुनोती देते हैं। बीजेपी हमेशा अमेरिका की समर्थक रही है इसलिए उसका भी शार्क को कमजोर करने का इरादा साफ झलकता है। इसका मतलब तो ये हुआ की -
        १. अगर अमेरिका को अलग थलग करने का मामला आये तो सयुंक्त राष्ट्र संघ का बहिस्कार कर दिया जाये, क्योंकि उसका मुख्यालय अमेरिका में है।
         २. अगर अपने देश की सरकार को अलग थलग करना है तो संसद से इस्तीफा दे दिया जाये।

 इस तरह के बहुत से संगठन हैं जिनके मुख्यालय या कार्यक्रम उन देशों में आयोजित होते हैं जिनके साथ कई देशों के मतभेद होते हैं। लेकिन उन संगठनों का कोई बहिस्कार नही करता। शीतयुद्ध के दिनों में जब रुसी और अमेरिकी खेमा सामने वाले के खेमे में आयोजित होने वाले ओलोम्पिक खेलों का बायकाट करते थे तो उसे सही नही माना जाता था। द्विपक्षीय झगड़ों को बहाना बना कर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों का बहिष्कार स्वस्थ तरीका नही है। इससे उसका छिछोरापन ही जाहिर होता है।

Monday, September 26, 2016

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Thursday, September 22, 2016

मोदी समर्थित मीडिया द्वारा विश्वसनीयता का श्राद्ध

खबरी -- आज कुछ अख़बारों में भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में हमले की झूठी खबरें  छपी हैं।

गप्पी -- मोदीजी का समर्थन करने वाला टीवी मीडिया बहुत पहले से झूठी और एकतरफा खबरें चलाता रहा है। इस तरह के टीवी चैंनल्स को लोग पहचानते हैं। अब उनको मिलने वाले फायदे जिसमे पदम् पुरस्कारों से लेकर कई चीजें शामिल हैं, को देखते हुए कुछ अख़बारों ने भी वही रास्ता अपनाया है। भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में हमले की झूठी खबर छापकर दिव्य भास्कर समेत कई अख़बारों ने अपनी विश्वसनीयता का श्राद्ध कर दिया है। ये इस बात को भूल गए की मीडिया के पास सबसे बड़ी पूंजी केवल विश्वसनीयता की ही होती है जो अब इनके पास नही है।
               वैसे भी इन्हें ये याद रखना चाहिए की मोदीजी की छवि इनकी झूठी खबरों से नही बल्कि उनके द्वारा किये गए कामो से बनेगी और लोग उसके आधार पर ही मूल्यांकन करेंगे।

Saturday, September 17, 2016

Vyang -- आप वो बात क्यूँ पूछते हैं, जो बताने के काबिल नही है।

                  हैडिंग की लाइने किसी दुसरे संदर्भ में लिखी गयी थी। लेकिन अभी देश की जो स्थिति है, उसमे ये एकदम फिट बैठती हैं। हमारे देश में एक बीमारी शुरू हो गयी है। ये बीमारी है बड़े और समर्थ लोगों से पलटकर सवाल पूछने की। इससे स्थिति बड़ी विकट हो जाती है। क्योंकि हमारे देश में बड़े लोगों को केवल सवाल पूछने की आदत है और जवाब देने की आदत तो बिलकुल नही है। जो काम उन्होंने सदियों से नही किया, वो उन्हें आज करने को कहा जायेगा तो मुश्किल तो होगी ही। लेकिन लोग हैं की इस बात को समझते ही नही हैं। अभी देखिये लोग पलटकर क्या क्या पूछ लेते हैं। -
                   अब दिल्ली के LG ने उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को तुरन्त फ़िनलैंड से वापिस दिल्ली आने को कहा ताकि उनके अनुसार दिल्ली की गम्भीर चिकनगुनिया की समस्या को सम्भाला जा सके। अब इस पर होना तो ये चाहिए था की सिसोदिया को तुरन्त जी जनाब कहते हुए वापिस आ जाना चाहिए था। लेकिन नही। वही खराब आदत। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पूछ रहे हैं की जब हालत इतनी ही खराब है तो खुद LG विदेश में क्या कर रहे हैं ? कर लो बात। अब उन्हें कौन समझाये की LG का काम जवाब मांगना है, देना नही। अगर LG को इस तरह के सवालों के जवाब देने पड़े तो हो गयी गवर्नरी।
                      दूसरी तरफ लोगों ने मोदीजी जी को हलकान किया हुआ है। कुछ भी पूछ लेते हैं। 15 लाख वाली बात तो इतनी आम हो गयी है की बच्चा भी पूछ लेता है की कब तक आएंगे। अब ये कोई बात हुई। जब एक बार कह दिया की भाई ये जुमला था, तो अब तो पीछा छोड़ दो। कल मेरे पड़ोसी मुझसे कह रहे थे की जरा मोदीजी से पूछो की वो दस सिर और दाऊद कब आएंगे। मैं हैरान था। मैंने कहा की भाई तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं और मोदीजी रोज शाम को इक्कठे बैठते हों। और दूसरी बात, तुम्हे क्या दस सिरों का अचार डालना है ? रही दाऊद की बात, तो तुम्हारी क्या उधार बाकि है उसकी तरफ जो इतनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हो। अब इन सवालों के भला मोदीजी क्या जवाब दें और क्यों दें। प्रधानमंत्री जवाब देने के लिए होते हैं या राज करने के लिए ?
                       अब अमित शाह ने कह दिया की अच्छे दिन आने में तीस साल लगेंगे। कई लोग उखड़ गए। बोले, पहले तो पांच साल कहते थे। अब इस बात का क्या जवाब है ? भई, पहले पांच साल मिल जाएँ यही मुश्किल लग रहा था सो पांच साल कह दिया। अब जब राज मिल ही गया है तो जीवन भर वही रहने का जुगाड़ बिठा रहे हैं। मोदीजी 67 के हो गए, तीस साल बाद 100 के करीब हो जायेंगे सो हिसाब लगा कर तीस साल बोल दिया। अब इस पर भी पलटकर सवाल करोगे तो क्या जवाब दें ?
                     इसलिए मुझे लोगों की ये आदत खराब लग रही है। सवाल पूछने का अधिकार लोकतंत्र में लोगों को नही होता। लोकतंत्र का तो मतलब ही ये होता है की लोक हमेशा तन्त्र में फंसे रहते हैं। और उसके बावजूद भी अगर सवाल पूछने ही हैं तो ऐसे पूछो जैसे अर्णव गोस्वामी या IBN 7 के पत्रकार पूछ रहे थे। आप वो बात क्यूँ पूछते हैं जो बताने के काबिल नही है।

Thursday, September 15, 2016

Vyang -- चिकनगुनिया और कश्मीर समस्या।

                 पहले  मुझे भी चिकनगुनिया और कश्मीर समस्या में कोई समानता नजर नही आयी। लेकिन जैसे जैसे दोनों का अध्ययन आगे बढा तो पता चला की दोनों समस्याएं एकदम समान हैं। माने अगर एक का हल ढूंढ लिया जाये तो दूसरे का भी मिल सकता है। दोनों में निम्नलिखित समानताये हैं।
                 कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी की मिली जुली सरकार है। केंद्र में भी दोनों की सरकार है। अब कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन तेज हो रहा है तो दोनों सरकारों का कहना है की सारी समस्या की जड़ पाकिस्तान है। उसमे कश्मीर के अंदर हुर्रियत कांफ्रेंस के लोग हैं जो सरकार के अनुसार पैसा भारत सरकार से लेते हैं और सलाह पाकिस्तान से लेते हैं। हुर्रियत के लोग कश्मीर की भलाई से ज्यादा पाकिस्तान की भलाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
                     दूसरी तरफ दिल्ली की चिकनगुनिया की समस्या है। वहां कहने को तो अरविन्द केजरीवाल की सरकार है, लेकिन केंद्र से लेकर LG तक, और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कोई उसको सरकार मानने को तैयार नही है। केजरीवाल का कहना है की जिस तरह कश्मीर समस्या का कारण पाकिस्तान है उसी तरह चिकनगुनिया का कारण केंद्र और LG हैं। जिस तरह कश्मीर में हुर्रियत पैसा भारत से लेती है और सुर पाकिस्तान के साथ मिलाती है, तो दिल्ली में ये काम MCD करती है। जिसका बजट तो दिल्ली की केजरीवाल सरकार ( एक बार बातचीत के लिए सरकार मान लेते हैं ) से जाता है लेकिन वो सुर केंद्र सरकार के साथ मिलाती है। हुर्रियत महबूबा से सहयोग नही कर रही और MCD केजरीवाल से।
                      वहां केंद्र हुर्रियत के लोगों पर शिकंजा कस रही है और दिल्ली में केजरीवाल के विधायकों पर। लेकिन इससे न अलगाववाद कम हो रहा है और न चिकनगुनिया। मुझे लगता है की दोनों का हल एक साथ ढूँढना पड़ेगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह शांति और सहयोग की अपील कर रहे हैं। लेकिन MCD को सहयोग करने के लिए नही कह रहे और न LG को कह रहे हैं। इन हालात में हुर्रियत और पाकिस्तान से सहयोग की उम्मीद करना तो बेकार की बात है।

व्यंग -- सुना है सरकार हँड़िया चैक कर रही है ?

                  मैंने जब से ये सुना है की सरकार हँड़िया चैक कर रही है, दिल को सकून सा मिल गया है। एक बार तो लगा की शायद अच्छे दिन आ गए। इस दिन के लिए लोगों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं। लेकिन सरकार अब तक हँड़िया चैक करने से इंकार करती रही है। क्योंकि हँड़िया चैक करना बहुत खतरनाक हो सकता है। सरकार के सारे दावों की हवा निकल सकती है। हर झूठ पकड़ में आ सकता है। इसलिए अब तक कोई भी सरकार हँड़िया चैक करने से इंकार करती रही है।
                    लोग बार बार कह रहे थे की सरकार आओ, और हमारी हण्डिया चैक करो। इनमे से कितनी हँड़िया ऐसी हैं जो हफ्ते में एक-दो बार ही चूल्हे पर चढ़ती हैं। करोड़ों हँड़िया दो तीन दिन में एकबार चूल्हे पर चढ़ती हैं। कुछ हँड़िया तो ऐसी भी हैं जिन्होंने चूल्हे का मुंह ही नही देखा। क्योंकि जो लाखों लोग और बच्चे कचरे के डब्बे में से खाना चुन कर खाते हैं उन्हें हँड़िया की जरूरत ही नही पड़ती। कितनी विलासिता है। पका पकाया मिल रहा है। ये वो हँड़िया हैं जिनके लिए बाबा नागार्जुन ने ये कविता लिखी थी,-
                      कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।
                      कई दिनों तक काली कुतिया सोई उसके पास।
      वरना बाबा को क्या पड़ी थी ऐसा लिखने की। अगर सरकार उससे पहले हँड़िया चैक कर लेती तो इसकी क्या जरूरत रह जाती। सरकार कह सकती है की उसने अब तक हँड़िया चैक ना करके साहित्य की बहुत सेवा की है। दुनिया का आधा साहित्य भूख और रोटी पर आधारित है। अगर सरकार पहले हँड़िया चैक कर लेती तो उसका क्या होता। सरकार पर साहित्य विरोधी होने का आरोप लगता।
                     दूसरा एक बड़ा खतरा ये भी है की कुछ हंडियों में 30000 रूपये किलो के मशरूम भी मिलते। लोगों को तो अब तक पता ही नही है इस बात का। क्योंकि आदमी अपनी ओकात से बाहर तो कल्पना भी नही कर सकता, ये एक वैज्ञानिक तथ्य है। और हमारे देश का गरीब तो बेचारा इस बात पर आश्चर्य चकित हो जाता है की फलां आदमी " दुबार " ( दिन में दो बार खाना खाने वाला ) है। यहां तक की मध्यम वर्ग तक की ये हालत है की 90 रूपये किलो की गोभी खरीदने के लिए पूरे परिवार की मीटिंग बुलानी पड़ती है। सो ये बड़ा खतरा है की लोगों को ये मालूम पड़ जाये की चाय का एक कप 10000 रूपये का भी होता है और काजू के आटे की रोटी भी होती है।
                  इसलिए अगर सरकार हँड़िया चैक करने को तैयार हो गयी है तो उसका भरपूर स्वागत होना चाहिए।

Wednesday, September 14, 2016

67 का होने की बधाई

खबरी -- दो दिन बाद नरेंद्र मोदी 67 के हो रहे हैं।

गप्पी -- हाँ, नरेन्द्र मोदी को 67 का होने की बधाई। साथ ही अमेरिकी डॉलर को भी 67 का  होने की बधाई। सबका साथ सबका विकास। 

Friday, September 9, 2016

जैन मुनि तरुणसागर , टीनू जैन, कपिल शर्मा और अमित शाह की सूरत रैली।

खबरी -- जैन मुनि तरुण सागर विवाद पर आपा पीटने वाले टीनू जैन पर क्यों चुप हैं ?

गप्पी -- मुनि तरुण सागर का कार्यक्रम हरियाणा की बीजेपी सरकार ने करवाया था। इसका मकसद संविधान को धत्ता बताते हुए धर्म के नाम पर राज करने की आरएसएस के पुराने लक्ष्य को गति देना था। इसकी आलोचना भी खूब हुई, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा आम आदमी पार्टी के नेता ददलानी की हुई। क्योंकि खुद आम आदमी पार्टी इस मामले में बीजेपी की लाइन ही फॉलो करती है। इसमें ददलानी ने 33 बार माफ़ी मांगी तो भी मुनि तरुणसागर का बयान ये था की मैंने तो माफ़ कर दिया लेकिन समाज नाराज है। अब टीनू जैन का लड़कियां सप्लाई  मामला सामने आया है तो ना तो  बीजेपी का कोई नेता या भक्त बोल  रहा है और ना जैन समाज नाराज है। विधान सभा में बैठकर पूरी दुनिया को प्रवचन देने वाले मुनि भी कुछ नही बोल रहे। ये हमारे देश में धर्म और समाज की ठेकेदारी करने वालों की असलियत है।

खबरी --  कपिल शर्मा के आरोप पर क्या कहना है ?

गप्पी -- शुक्र है की कपिल शर्मा हिन्दू ब्राह्मण है, वरना अब तक तो गद्दारी का ठप्पा लग चूका होता। जहां तक मुख्यमंत्री का ये कहना की कपिल शर्मा नाम बताएं तो कार्यवाही होगी , उसका दूसरा पहलू ये है की अब तक जिन लोगों ने नाम बताये हैं पहले उनका हाल देख लें। मुख्यमंत्री तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे वो चाँद पर रहते हों, भृष्टाचार तो चौबीस घण्टे खुलेआम चलने वाला कार्यक्रम है पता नही सरकारों को क्यों नही दिखाई देता ?

खबरी -- और अंत में अमित शाह की सूरत रैली पर ?

गप्पी -- अमित शाह की सूरत रैली में पाटीदारों ने वही किया जो अब तक भक्त दूसरों की रैली में करते थे। बीजेपी के कार्यकर्ता जब दूसरों की रैली में मोदी मोदी करते थे तो बीजेपी उसे लोगों की भावनाएँ बताती थी। अब अमित शाह और मोदी की रैली में ये होगा तो शायद विपक्ष की साज़िश बताये।

Tuesday, September 6, 2016

व्यंग -- लुट गयी खटिया राहुल की।

               एकदम ताजा समाचार है की देवरिया की राहुल गाँधी की सभा के बाद लोग वहां बिछाई गयी दो हजार खटिया भी उठा कर ले गए। पूरे मीडिया में ये खबर छाई हुई है। कुछ लोग मजाक कर रहे हैं। लेकिन मुझे इसमें कुछ नए समीकरण दिखाई दे रहे हैं। जैसे -
                हिंदी में एक कहावत है खाट खड़ी कर देना। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो लोग उसकी खाट तो 2014 में ही खड़ी कर चुके हैं। अब वो चाहें तो भी कांग्रेस की खाट खड़ी नही कर सकते। तो क्या लोगों ने ये मान लिया की खाट को लूट ही क्यों ना लिया जाये। अगर लोगों ने ऐसा सोचा है तो ये कांग्रेस के लिए चिंता की बात है।
                 या फिर ऐसा हो सकता है की लोगों ने हिंदी की दूसरी कहावत को आजमाया हो। वो कहावत है की भागते चोर की लँगोटी ही सही। राजनैतिक पार्टियों की साख अब लोगों में इतनी ही बची है। लोगों को मालूम है की बाद में कोई मिलने वाला है नही, सो जो भी मिलता हो अभी ले लो भले ही वो खाट ही क्यों न हो। वरना ऐसा  न हो की 15 लाख वाली बात हो जाये। जब देने की बारी आये तो कह दें की जुमला था।
                 एक और कारण जो हो सकता है वो ये की लोग वापिस अपने घर में कांग्रेस की खाट बिछाना चाहते हों। आखिर जो खाट लूटी गयी हैं, वो कहीं न कहीं तो बिछेंगी जरूर। अगर उत्तर प्रदेश में एक बार कांग्रेस की खाट बिछ गयी तो बाकि पार्टियों को अपनी खाट फुटपाथ पर बिछाने की नोबत आ जाएगी।
                  वैसे इस घटना के बाद खाट का महत्त्व अब साहित्य के बाद फिल्मों से होता हुआ राजनीती तक पहुंच गया है। सरकाई ले खटिया -------- लोगों को ये गाना याद ही होगा। सुना है की राहुल गाँधी 2500 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर रहे हैं और हर जगह खाट पंचायत भी करेंगे। अब ये तो यात्रा पूरी होने के बाद ही पता चलेगा की खाट सहिंता कितनी लम्बी होने वाली है।

Monday, September 5, 2016

लोगों की समझ ही उनकी समस्याओं का कारण है।

                लोगों की समझ ही उनकी समस्याओं का मुख्य कारण है और लोग पता नही किस हिसाब से प्रतिक्रिया करते हैं ? पिछले हफ्ते घटी दो घटनाओं ने मुझे ये लिखने के लिए मजबूर किया।
                 पहली घटना है सूरत में केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी का आगमन। सूरत कपड़ा उद्योग का बड़ा केंद्र है इसलिए कपड़ा उद्योग से सम्बन्धित सरकार के फैसलों और नीतियों का यहां के लोगों पर सीधा असर होता है। कपड़ा मंत्रालय सम्भालने के बाद श्रीमती स्मृति ईरानी की यह पहली सूरत यात्रा थी। यहां के उद्योगपति और व्यापारी उनसे बहुत उम्मीद लगाए हुए थे। इसलिए उनके कार्यक्रम में उनके लिए चापलूसी भरे व्यक्तव्यों की भरमार थी। लोगों ने कहा की नारी शक्ति का आगमन कपड़ा मंत्रालय में हुआ है इसलिए इस उद्योग को उसका फायदा जरूर मिलेगा। मुझे उनकी समझ पर आश्चर्य हो रहा था। उसके बाद उन्होंने मंत्री जी के सामने ये मांग रक्खी की कपड़ा उद्योग को GST के दायरे से बाहर रक्खा जाये। और GST को केवल यार्न के उत्पादन तक सिमित रखा जाये। जाहिर है की ये सम्भव नही था। सो मंत्री जी ने साफ कह दिया की किसी भी उद्योग को किसी भी स्तर पर टैक्स से छूट का प्रावधान GST में नही है। इस बिल का उद्देश्य और प्रारूप दोनों इस बात को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं की टैक्स का दायरा बढ़े और टैक्स की उगाही बढ़े। चूँकि इसमें सर्विस टैक्स और एक्साइज ड्यूटी भी शामिल है, इसलिए किसी उद्योग को इससे बाहर रखने का मतलब होगा उस उगाही को भी छोड़ देना जो अब तक हो रही थी। इसलिए मंत्री ने इसमें असमर्थता जाहिर कर दी। उसके बाद पुरे व्यापारी वर्ग में ये चर्चा थी की इस तरह तो सूरत कपड़ा उद्योग का भट्ठा बैठ जायेगा। जब हम GST का विरोध कर रहे थे तब ये पूरा समुदाय हमे देशद्रोही और विकास विरोधी बता रहा था। तब ये लोग GST को देश के विकास के लिए सबसे जरूरी कदम बता रहे थे। उसके समर्थन में सेमिनार और जलसे कर रहे थे। अब कह रहे हैं की हम पर मत लगाओ बाकि देश पर लगा दो। देश के विकास की जिम्मेदारी से हमे मुक्त रखो और ये काम दूसरों से करवा लो। कई लोग तो इसकी दुष्प्रभावों की आशंका से डरे हुए हैं। लेकिन जब इसका विरोध करने और इस पर विचार करने का समय था तब उनका पूरा व्यवहार भक्तों की तरह था। जो प्रभु कह रहे हैं वही सत्य है।
                       दूसरी घटना दो सितम्बर की हड़ताल से सम्बन्धित है। दो सितम्बर से कुछ दिन पहले मैं अपने बैंक में गया था। वहां हड़ताल से सम्बन्धित एक बैनर लगा हुआ था। मैंने बैंक के कर्मचारियों से उसके बारे में बात की। सभी लोग इस बात पर एकमत थे की निजीकरण और दूसरे फैसलों को रुकवाने के लिए हड़ताल बहुत जरूरी है। हर एक कर्मचारी के पास हड़ताल के लिए मजबूत तर्क थे। फिर मैंने उनसे पूछा की उनमे से किस किस ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी को वोट दिया था। उनमे से एक को छोड़कर सबने मोदी को वोट दिया था। तब मैंने उनसे पूछा की आप लोग एक ऐसी पार्टी और नेता को वोट देकर सत्ता में लेकर आ रहे हो जो निजीकरण का समर्थक है, मजदूरों को हासिल अधिकारों में कटौती का समर्थक है , सार्वजनिक क्षेत्र को समाप्त कर देने की नीति रखता है। बीजेपी और नरेन्द्र मोदी, दोनों की नीतियां इस मामले में एकदम साफ रही हैं और उनको छिपाया भी नही गया है। बीजेपी और नरेन्द्र मोदी दोनों प्राइवेट सैक्टर को विकास का इंजन मानते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र को देश पर बोझ मानते हैं। सत्ता में आने के बाद जब वो अपनी नीतियों को आगे बढ़ाते हैं तो आप उसके विरोध में हड़ताल करते हैं। इससे क्या होगा। इस सरकार को आपने खुद चुना है। उनके पास इसका कोई जवाब नही था।
                        मैंने ये बहुत शिद्दत से महसूस किया है की लोग वोट देने का फैसला और हड़ताल पर जाने का फैसला भी बहुत ही सतही तरीके से करते हैं। और ज्यादा पढ़े लिखे कहे जाने वाले लोग ज्यादा कन्फ्यूज होते हैं।

Sunday, September 4, 2016

दलित, अल्पसंख्यक और प्रधानमंत्री मोदी।

खबरी -- मोदीजी ने अपने इंटरव्यू में खुद को दलितों का हितैषी बताया है।

गप्पी -- अब जब दलितों पर चारों तरफ से हमलों की खबरें आ रही हैं, तब प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को दलितों का हितैषी बताया है। जब 2002 के गुजरात दंगों के बाद पुलिस एकतरफा कार्यवाही कर रही थी और सुप्रीम कोर्ट तक को दंगों के केस गुजरात से बाहर ट्रान्सफर करने पड़े थे, तब मोदीजी ने अपने आप को अल्पसंख्यकों का हितैषी बताया था। जब संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पेश किया गया था तब मोदीजी ने अपने आप को किसानों का हितैषी बताया था। जब देश के मजदूर और कर्मचारी श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर हड़ताल कर रहे थे तब मोदीजी ने खुद को मजदूरों का हितैषी बताया था। जब मोदीजी एक साँस में तीन बार हमारे सैनिकों की तारीफ कर रहे थे तब उनकी पुलिस जंतर मंतर पर सैनिकों की पिटाई कर रही थी।

खबरी -- तो फिर सरकार इस सबके खिलाफ काम क्यों करती है ?

गप्पी -- क्योंकि दलित, अल्पसंख्यक, किसान और मजदूर सब मोदीजी के अपने लोग हैं, और यदि सरकार अपने लोगों के लिए काम करेगी तो उस पर पक्षपात का आरोप लगेगा। इसलिए सरकार हमेशा अपने विरोधियों के लिए ही काम करती है चाहे वो अम्बानी हों या अडानी। क्योंकि सरकार हमेशा ये कहती रही है की वो उद्योगपतियों की सरकार नही है इसलिए उनका काम करने में कोई आरोप नही लगेगा।