Saturday, July 16, 2016

Vyang -- आधुनिक परशुराम - लक्ष्मण संवाद।

                       महाराजा जनक की सभा में जैसे ही शिव धनुष टूटा, क्रोधित परशुराम ने धड़धड़ाते हुए प्रवेश किया। सभी लोग परशुराम के क्रोध से वाकिफ थे इसलिए एकबारगी तो सभा में सन्नाटा छा गया। लेकिन उसके तुरंत बाद स्थिति को समझते हुए महाराजा जनक ने खड़े होकर और हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया ,
        " आइये महर्षि  पधारिये , बड़े ही शुभ अवसर पर पधारे हैं। " जनक ने अपनी आवाज की सारी कोमलता उड़ेलते हुए कहा।
        " जाने दीजिये महाराजा जनक, ज्यादा समझदार बनने की जरूरत नहीं है। मुझे ये बताइए की मेरे प्रिय शिव धनुष को किसने तोडा ? मैं अपने परशु से उसका सिर काटूँगा। " परशुराम ने क्रोध से कहा।
         सभा में खुसपुसाहट हुई। "बोलो सरेआम हत्या की धमकी दे रहा है "
         " कोई मुझे उसका नाम बताएगा जिसने मेरे प्रिय शिव धनुष का हाल भूमि अधिगृहण बिल जैसा कर दिया है। वैसे मुझे मालूम है की इस साजिश में कौन कौन शामिल हैं। " परशुराम ने दोहराया।
          " हमने तोडा है। " अचानक लक्ष्मण ने अपने स्थान पर खड़े होकर कहा।
         " खामोश, तुम्हारे तो अभी दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं बच्चे, अपने खानदान का नाम  हटा दो तो तुम्हे कोई टके सेर नहीं पूछे। " परशुराम ने लक्ष्मण की तरफ हिकारत से देखा।
          " तोडा तो हमने ही है , और आगे भी जितने धनुष इस सभा में पेश होंगे, सबको तोड़ेंगे। " लक्ष्मण ने चुनौती देते हुए कहा।
           परशुराम का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने चिल्लाकर कहा, " क्या तुम्हे मालूम नहीं है की मैंने इक्कीस बार पृथ्वी को ' क्षत्रिय मुक्त ' किया है। "
          सभा में किसी ने फुसफुसा कर कहा, " गुजरात को पृथ्वी कह रहा है। "
          बात बिगड़ती देख कर जनक ने फिर बीचबचाव की कोशिश की, " महर्षि, सारी सभा की अनुमति से धनुष को तोडा गया है। आप चाहें तो सभा की राय ले सकते हैं। "
           " महाराजा जनक " राज्य सभा " की तरह बात मत करो। मुझे मालूम है की यहां तुम्हारा बहुमत है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है की मैं इसे बरदाश्त कर लूंगा। इससे " क्षत्रिय मुक्त भारत " के मेरे स्वप्न को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। " परशुराम ने एतराज जताया।
           तभी महर्षि विश्वामित्र खड़े हुए, " महर्षि परशुराम, आपको क्षत्रिय मुक्त भारत की जिद छोड़कर कुछ जन कल्याण की तरफ ध्यान देना चाहिए। "
            " ओह, महर्षि विश्वामित्र, आपको तो मैं शुरू से जानता हूँ। क्षत्रिय होने के बावजूद हमने आपको ऋषि माना लेकिन आपने सत्ता के लोभ में फिर क्षत्रिय राजाओं का साथ देना शुरू कर दिया। आप तो नितीश कुमार निकले। "  परशुराम ने व्यंग से कहा।
             " जाने दीजिये महर्षि परशुराम, सच मत उगलवाइए। मैंने ऋषि का पद अपने तप और तपश्या से प्राप्त किया है। आपकी तो आदत रही है लोगों का इस्तेमाल करके फेंक देने की। लेकिन मैंने समय रहते आपको फेंक दिया तो आपको तकलीफ हो रही है। " महर्षि विश्वामित्र ने जवाबी हमला किया।
             " लेकिन धनुष किसलिए तोडा गया ? " परशुराम फिर मुद्दे पर आ गए।
             " जाहिर है की सीता की प्राप्ति के लिए तोडा गया है। ये स्वयंबर का धनुष है। " लक्ष्मण ने कहा।
            " हाँ, महर्षि परशुराम, ये धनुष सत्ता की प्राप्ति के लिए ही तोडा गया है। और आप तो दिल्ली की हार की तरह बौखलाए हुए हैं। " सभा में से किसी ने कहा।
             " ये कौन है जो दिग्विजय सिंह की तरह बात कर रहा है ? ? परशुराम पीछे घूमे।
            सभा में ठहाका गूंजा।
             " खामोश " परशुराम आग बबूला हो गए। " मेरा मजाक उड़ाने की हिम्म्त ना करें। वर्ना हर राजा को उसकी सजा भुगतनी होगी। "
             " महर्षि, शादी के मौके पर आये हो। मिठाई विठाई खाओ और प्रस्थान करो। " लक्ष्मण ने फिर छेड़ा।
             तभी एक व्यक्ति ने राजसभा में प्रवेश किया और उसने परशुराम से मुखातिब होकर कहा , " महर्षि आप जाइये, इससे मैं निपट लेता हूँ। इस पर इतने मुकदमे कर दूंगा की अक्ल ठिकाने आ जाएगी। " उसने महर्षि परशुराम को वापिस ले जाने के लिए मना लिया और साथ ले गया।
                " ये कौन था ? " किसी ने पूछा।
                " सुब्र्मण्यम स्वामी था। " दूसरे ने जवाब दिया।
बाहर मीडिया के लोग खड़े थे। एक पत्रकार ने परशुराम से पूछा, " धनुष विवाद पर आपका क्या कहना है ? "
               " देखिये हम सहकारी संघवाद ( कोऑपरेटिव फेडरलिज्म ) में विश्वास रखते हैं। हम सभी राज्यों और पार्टियों से बात करके इस समस्या का हल निकालेंगे। आखिर लोकतंत्र इसी का नाम है। " परशुराम ने मुश्कुराते हुए जवाब दिया और आगे निकल गए। गाड़ी में बैठते ही स्वामी से बोले, " जो जो वहां शामिल था सब पर सीबीआई की रेड करवाओ। समझते क्या हैं अपने आप को ?

Thursday, July 7, 2016

Vyang -- जरा इस फेरबदल का मतलब समझाइये।


                    एक मशहूर शायर का मशहूर शेर है,
                      बहुत शोर सुनते थे, पहलू में दिल का ,
                       जब काटा तो कतरा -ए -खून न निकला।
            अभी अभी जो मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ है उसके बारे में यही सच है। कई दिन से इस फेरबदल की चर्चाएं थी, राजनैतिक विश्लेषक अपने अपने कयास लगा रहे थे और टीवी चैनलों को खबर ढूढ़ने के लिए फिल्ड में धक्के नहीं खाने पड़ रहे थे। फेरबदल हुआ, बिलकुल वैसा ही जैसे हमेशा होता था। फिर विश्लेषणों का सिलसिला  शुरू हुआ। इस बार पार्टी के लीडर और प्रवक्ता भी शामिल थे। मैं इंतजार कर रहा था की कोई न कोई इसे ऐतिहासिक कहेगा, लेकिन ऐसा तो किसी ने नहीं कहा अलबत्ता इसे खास साबित करने की कोशिश जरूर हो रही थी। मैं एक आम नागरिक की हैसियत से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ और इसके मेरा कोई राजनैतिक मंतव्य भी नहीं है। कोई भी विश्लेषक अगर इन सवालों का जवाब दे सके तो मेहरबानी होगी।
              १. इस फेरबदल के बारे में एक नेता ने कहा की इसमें पढ़े लिखे लोगों को लिया गया। मेरा सवाल ये है की अगर पढ़ा लिखा मंत्री होना अच्छी बात है तो बाकि के अनपढ़ या कम पढ़े लिखे मंत्री क्यों नहीं बदले गए ? अगर पढ़ा लिखा होना किसी अच्छे मंत्री के लिए जरूरी नहीं तो फिर इस बात को क्यों कहा जा रहा है? क्या गम है जिसको छुपा रहे हो ?
               २. अगर कोई मंत्री किसी विभाग में ठीक काम नहीं कर रहा है तो अब उसे बदल  कर दूसरे विभाग का  भट्ठा बिठाने की  जिम्मेदारी क्यों दी गई है ?
                ३. अगर कोई मंत्री किसी विभाग में अच्छा काम कर रहा है, उसे दूसरे विभाग में क्यों बदला गया है ? क्या अब पहले विभाग में योग्य आदमी की जरूरत नहीं है ?
                ४. जो मंत्री निककमे थे, और जिनको हटाया गया है तो एक डिजिटल सरकार को ये पहचानने में दो साल क्यों लग गए ?
                 ५.  अगर किसी मंत्री को उसके विवादित बयानों के कारण हटाया गया है तो उसकी जगह उससे  भी ज्यादा  विवादित बयान देने वालों को क्यों रक्खा गया है ?
                 ६. अगर किसी मंत्री को इसलिए हटाया गया है की उसे केवल चुनाव को ध्यान में रखकर मंत्री बनाया गया था तो अब ऐसे लोग जो आने वाले चुनाव को ध्यान में रखकर मंत्री बनाए गए हैं, उन्हें कब हटाया जायेगा ? और ऐसे लोगों को टैक्स पेयर के पैसे से वेतन इत्यादि दिया जायेगा या नहीं ?
                 ७.  बड़ा मंत्रिमण्डल कुशलता की निशानी होता है या फिजूलखर्ची की ?  अगर कुशलता की होता है तो बाकि के सांसदों को भी मंत्री क्यों नहीं बनाया गया ? अगर फिजूलखर्ची की होता है तो देश की कौनसी लाटरी लग गई है जो इतना बड़ा मंत्रिमंडल बना दिया गया ?  

Monday, July 4, 2016

Vyang -- पार्टी ( Party ) हो या प्रोडक्ट ( Product ), बस विज्ञापन का ही सहारा है।

                 जब से विज्ञापन की खोज हुई है सब कुछ बिक जाता है। माल कितना ही घटिया हो, उसे विज्ञापन में सर्वगुण सम्पन्न बता कर लोगों को चिपका सकते हैं। इसी तरह का हाल चुनाव लड़ने वाली पार्टियों का है। अपना रद्दी माल बेचने के लिए चुनाव आयोग ने उन्हें विज्ञापन की छूट दी है। विज्ञापन की छूट लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है क्योंकि उसके बिना तो पार्टियों की हालत वोट मिलने लायक है नहीं। अगर वोट नहीं मिले तो सरकार कैसे बनेगी, सरकार नहीं बनी तो लोकतंत्र का क्या होगा ? अगर वोट से सरकार नहीं बनती तो बड़ी बड़ी कम्पनियों और उच्च वर्ग को जबरदस्ती सत्ता पर बैठना होगा। इससे भांडा फूट जाने का डर है। चुनाव से सरकार बनती है तो किसी को पता नहीं चलता की सत्ता पर कौन बैठा है।
                     खैर बात विज्ञापन की चल रही थी सो उसी पर आते हैं। जब किसी वस्तु का विज्ञापन आता है तो उसमे किये गए वायदे सही होंगे, इसका भरोसा किसी को नहीं होता। फिर भी लोग उस सामान को खरीद लेते हैं। क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। आजकल राजनीती में भी ऐसा ही है। लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। सो चुन लेते हैं। लेकिन कुछ लोग थोड़ा ज्यादा चालाक होते हैं। वो विज्ञापन में कही गई बातों को ध्यान से सुनते हैं और जब वो सही नहीं निकलती तो शिकायत करते हैं। विज्ञापन देने वाली कम्पनियों ने इसका रास्ता भी निकाल रक्खा है। टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनी विज्ञापन देती है की "इसमें 24 घण्टे कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता है " ये विज्ञापन साल छह महीने चलता है। जैसे ही लोगों का भरोसा इससे खत्म होने लगता है दूसरी लड़की आकर खड़ी हो जाती है " क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ?" लोग नई पैकिंग खरीदना शुरू कर देते हैं।
                       अब विज्ञापन की दुनिया के प्रशांत किशोर राजनीती में भी आ गए हैं। अब तक वो झूठे वायदों के सहारे माल बेचते थे, अब केवल वायदे बेचते हैं। इसमें उत्पादन का कोई खर्च नहीं होता। वो वायदा करते हैं की " सौ दिन में काला धन वापिस ना आये तो मुझे फांसी चढ़ा देना " विज्ञापन चल निकलता है। विज्ञापन में डायलॉग बोलने वाला अभिनेता बहुत लोकप्रिय है। अभिनेता को लोकप्रिय करने के लिए मीडिया पिछले कई साल से प्रोग्राम कर रहा है। माल सामान के विज्ञापन के लिए पहले किसी को मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स का ख़िताब दिया जाता है तो राजनीती के अभिनेता को नंबर वन मुख़्यमंत्री का ख़िताब दिया जाता है। लेकिन सौ के पांचसौ दिन हो जाते हैं, लोग काले धन का इंतजार करके थक जाते हैं तो टीवी पर दूसरा डायलॉग आ जाता है ," अगर उत्तर प्रदेश से अपराध समाप्त ना कर दूँ तो लात मारकर निकाल देना। "
                    कोई सवाल नहीं करता है। जब तक सवाल पूछने का समय आएगा तब तक डायलॉग बदल चूका होगा। कोई पूछ भी ले की भाई साब, इन दोनों वायदों में क्या फर्क है ? तो कहेंगे की आपको फांसी चढ़ाने और लात मारने में कोई फर्क नहीं दिखाई देता ?
                       हम बचपन में एक चुटकुला सुनते थे। जिसमे एक गीतकार एक फिल्म डायरेक्टर के पास जाता है। उससे कहता है की वो गीतकार है और उसे अपनी फिल्म में एक मौका दें। डायरेक्टर उससे कहता है की अगर उसने कुछ लिखा है तो सुनाए। गीतकार सुनाना शुरू करता है -
                                       गाड़ी जा रही कलकत्ता,   गाड़ी जा रही कलकत्ता।
                                         गाड़ी जा रही   गाड़ी जा रही कलकत्ता, कलकत्ता।
                                             गाड़ी जा रही कलकत्ता,   गाड़ी जा रही कलकत्ता।
         वो इसी लाइन को दस बार दुहरा देता है। डायरेक्टर परेशान होकर कहता है की इससे आगे भी तो सुनाओ। तो गीतकार कहता है की साब पहले गाड़ी एकबार कलकत्ता तो पहुंच जाये। डायरेक्टर नाराज होकर उसे चले जाने को कहता है। लेकिन वो उससे विनती करके एक हफ्ते का समय ले लेता है। एक हफ्ते बाद दुबारा आता है तो डायरेक्टर कहता है की सुनाओ क्या लिखा है ? गीतकार सुनाना शुरू करता है -
                                        गाड़ी जा रही मुम्बई,   गाड़ी जा रही मुम्बई।
                                              गाड़ी जा रही मुम्बई,   गाड़ी जा रही मुम्बई।
           डायरेक्टर गुस्से से चिल्लाकर कहता है की इसमें और पहले वाली में क्या फर्क है ? तो गीतकार कहता की कमाल है साहब, आपको कलकत्ता और मुंबई में कोई फर्क ही नजर नहीं आता ?
             अब सवाल पूछने वालों को भक्तगण यही कह रहे हैं।