जब से विज्ञापन की खोज हुई है सब कुछ बिक जाता है। माल कितना ही घटिया हो, उसे विज्ञापन में सर्वगुण सम्पन्न बता कर लोगों को चिपका सकते हैं। इसी तरह का हाल चुनाव लड़ने वाली पार्टियों का है। अपना रद्दी माल बेचने के लिए चुनाव आयोग ने उन्हें विज्ञापन की छूट दी है। विज्ञापन की छूट लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है क्योंकि उसके बिना तो पार्टियों की हालत वोट मिलने लायक है नहीं। अगर वोट नहीं मिले तो सरकार कैसे बनेगी, सरकार नहीं बनी तो लोकतंत्र का क्या होगा ? अगर वोट से सरकार नहीं बनती तो बड़ी बड़ी कम्पनियों और उच्च वर्ग को जबरदस्ती सत्ता पर बैठना होगा। इससे भांडा फूट जाने का डर है। चुनाव से सरकार बनती है तो किसी को पता नहीं चलता की सत्ता पर कौन बैठा है।
खैर बात विज्ञापन की चल रही थी सो उसी पर आते हैं। जब किसी वस्तु का विज्ञापन आता है तो उसमे किये गए वायदे सही होंगे, इसका भरोसा किसी को नहीं होता। फिर भी लोग उस सामान को खरीद लेते हैं। क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। आजकल राजनीती में भी ऐसा ही है। लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। सो चुन लेते हैं। लेकिन कुछ लोग थोड़ा ज्यादा चालाक होते हैं। वो विज्ञापन में कही गई बातों को ध्यान से सुनते हैं और जब वो सही नहीं निकलती तो शिकायत करते हैं। विज्ञापन देने वाली कम्पनियों ने इसका रास्ता भी निकाल रक्खा है। टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनी विज्ञापन देती है की "इसमें 24 घण्टे कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता है " ये विज्ञापन साल छह महीने चलता है। जैसे ही लोगों का भरोसा इससे खत्म होने लगता है दूसरी लड़की आकर खड़ी हो जाती है " क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ?" लोग नई पैकिंग खरीदना शुरू कर देते हैं।
अब विज्ञापन की दुनिया के प्रशांत किशोर राजनीती में भी आ गए हैं। अब तक वो झूठे वायदों के सहारे माल बेचते थे, अब केवल वायदे बेचते हैं। इसमें उत्पादन का कोई खर्च नहीं होता। वो वायदा करते हैं की " सौ दिन में काला धन वापिस ना आये तो मुझे फांसी चढ़ा देना " विज्ञापन चल निकलता है। विज्ञापन में डायलॉग बोलने वाला अभिनेता बहुत लोकप्रिय है। अभिनेता को लोकप्रिय करने के लिए मीडिया पिछले कई साल से प्रोग्राम कर रहा है। माल सामान के विज्ञापन के लिए पहले किसी को मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स का ख़िताब दिया जाता है तो राजनीती के अभिनेता को नंबर वन मुख़्यमंत्री का ख़िताब दिया जाता है। लेकिन सौ के पांचसौ दिन हो जाते हैं, लोग काले धन का इंतजार करके थक जाते हैं तो टीवी पर दूसरा डायलॉग आ जाता है ," अगर उत्तर प्रदेश से अपराध समाप्त ना कर दूँ तो लात मारकर निकाल देना। "
कोई सवाल नहीं करता है। जब तक सवाल पूछने का समय आएगा तब तक डायलॉग बदल चूका होगा। कोई पूछ भी ले की भाई साब, इन दोनों वायदों में क्या फर्क है ? तो कहेंगे की आपको फांसी चढ़ाने और लात मारने में कोई फर्क नहीं दिखाई देता ?
हम बचपन में एक चुटकुला सुनते थे। जिसमे एक गीतकार एक फिल्म डायरेक्टर के पास जाता है। उससे कहता है की वो गीतकार है और उसे अपनी फिल्म में एक मौका दें। डायरेक्टर उससे कहता है की अगर उसने कुछ लिखा है तो सुनाए। गीतकार सुनाना शुरू करता है -
गाड़ी जा रही कलकत्ता, गाड़ी जा रही कलकत्ता।
गाड़ी जा रही गाड़ी जा रही कलकत्ता, कलकत्ता।
गाड़ी जा रही कलकत्ता, गाड़ी जा रही कलकत्ता।
वो इसी लाइन को दस बार दुहरा देता है। डायरेक्टर परेशान होकर कहता है की इससे आगे भी तो सुनाओ। तो गीतकार कहता है की साब पहले गाड़ी एकबार कलकत्ता तो पहुंच जाये। डायरेक्टर नाराज होकर उसे चले जाने को कहता है। लेकिन वो उससे विनती करके एक हफ्ते का समय ले लेता है। एक हफ्ते बाद दुबारा आता है तो डायरेक्टर कहता है की सुनाओ क्या लिखा है ? गीतकार सुनाना शुरू करता है -
गाड़ी जा रही मुम्बई, गाड़ी जा रही मुम्बई।
गाड़ी जा रही मुम्बई, गाड़ी जा रही मुम्बई।
डायरेक्टर गुस्से से चिल्लाकर कहता है की इसमें और पहले वाली में क्या फर्क है ? तो गीतकार कहता की कमाल है साहब, आपको कलकत्ता और मुंबई में कोई फर्क ही नजर नहीं आता ?
अब सवाल पूछने वालों को भक्तगण यही कह रहे हैं।
खैर बात विज्ञापन की चल रही थी सो उसी पर आते हैं। जब किसी वस्तु का विज्ञापन आता है तो उसमे किये गए वायदे सही होंगे, इसका भरोसा किसी को नहीं होता। फिर भी लोग उस सामान को खरीद लेते हैं। क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। आजकल राजनीती में भी ऐसा ही है। लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। सो चुन लेते हैं। लेकिन कुछ लोग थोड़ा ज्यादा चालाक होते हैं। वो विज्ञापन में कही गई बातों को ध्यान से सुनते हैं और जब वो सही नहीं निकलती तो शिकायत करते हैं। विज्ञापन देने वाली कम्पनियों ने इसका रास्ता भी निकाल रक्खा है। टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनी विज्ञापन देती है की "इसमें 24 घण्टे कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता है " ये विज्ञापन साल छह महीने चलता है। जैसे ही लोगों का भरोसा इससे खत्म होने लगता है दूसरी लड़की आकर खड़ी हो जाती है " क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है ?" लोग नई पैकिंग खरीदना शुरू कर देते हैं।
अब विज्ञापन की दुनिया के प्रशांत किशोर राजनीती में भी आ गए हैं। अब तक वो झूठे वायदों के सहारे माल बेचते थे, अब केवल वायदे बेचते हैं। इसमें उत्पादन का कोई खर्च नहीं होता। वो वायदा करते हैं की " सौ दिन में काला धन वापिस ना आये तो मुझे फांसी चढ़ा देना " विज्ञापन चल निकलता है। विज्ञापन में डायलॉग बोलने वाला अभिनेता बहुत लोकप्रिय है। अभिनेता को लोकप्रिय करने के लिए मीडिया पिछले कई साल से प्रोग्राम कर रहा है। माल सामान के विज्ञापन के लिए पहले किसी को मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स का ख़िताब दिया जाता है तो राजनीती के अभिनेता को नंबर वन मुख़्यमंत्री का ख़िताब दिया जाता है। लेकिन सौ के पांचसौ दिन हो जाते हैं, लोग काले धन का इंतजार करके थक जाते हैं तो टीवी पर दूसरा डायलॉग आ जाता है ," अगर उत्तर प्रदेश से अपराध समाप्त ना कर दूँ तो लात मारकर निकाल देना। "
कोई सवाल नहीं करता है। जब तक सवाल पूछने का समय आएगा तब तक डायलॉग बदल चूका होगा। कोई पूछ भी ले की भाई साब, इन दोनों वायदों में क्या फर्क है ? तो कहेंगे की आपको फांसी चढ़ाने और लात मारने में कोई फर्क नहीं दिखाई देता ?
हम बचपन में एक चुटकुला सुनते थे। जिसमे एक गीतकार एक फिल्म डायरेक्टर के पास जाता है। उससे कहता है की वो गीतकार है और उसे अपनी फिल्म में एक मौका दें। डायरेक्टर उससे कहता है की अगर उसने कुछ लिखा है तो सुनाए। गीतकार सुनाना शुरू करता है -
गाड़ी जा रही कलकत्ता, गाड़ी जा रही कलकत्ता।
गाड़ी जा रही गाड़ी जा रही कलकत्ता, कलकत्ता।
गाड़ी जा रही कलकत्ता, गाड़ी जा रही कलकत्ता।
वो इसी लाइन को दस बार दुहरा देता है। डायरेक्टर परेशान होकर कहता है की इससे आगे भी तो सुनाओ। तो गीतकार कहता है की साब पहले गाड़ी एकबार कलकत्ता तो पहुंच जाये। डायरेक्टर नाराज होकर उसे चले जाने को कहता है। लेकिन वो उससे विनती करके एक हफ्ते का समय ले लेता है। एक हफ्ते बाद दुबारा आता है तो डायरेक्टर कहता है की सुनाओ क्या लिखा है ? गीतकार सुनाना शुरू करता है -
गाड़ी जा रही मुम्बई, गाड़ी जा रही मुम्बई।
गाड़ी जा रही मुम्बई, गाड़ी जा रही मुम्बई।
डायरेक्टर गुस्से से चिल्लाकर कहता है की इसमें और पहले वाली में क्या फर्क है ? तो गीतकार कहता की कमाल है साहब, आपको कलकत्ता और मुंबई में कोई फर्क ही नजर नहीं आता ?
अब सवाल पूछने वालों को भक्तगण यही कह रहे हैं।
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