Sunday, May 29, 2016

मोदी सरकार के दो साल पर हरियाणवी महिलाओं का गीत

म्हारा मोदी घर पै आया, दो साल मैं घर पै आया ,
सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

मंगोलिया जा कै आया, निशाना ला कै आया,
दो बिलियन देकै आया, एक खचचर लेकै आया,
इतना महंगा खचचर तनै कुनसै काम लगाया।
सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

अमरीका घूमके आया, एक चस्मा टोपी ल्याया ,
कालाधन क्यूँ नहीं ल्याया , तो 15 लाख नहीं ल्याया ,
मन्नै दो दिन ध्याड़ी छोड़के खाता भी खुलवाया ,
 सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

जापान मैं जाकै आया, औडै पूल मैं नहाकै आया ,
आबे न लेकै आया , उनै गँगा घाट दिखाया ,
मोदीजी तेरी बाट मैं,यो महाराष्ट्र मरै तिसाया ,
 सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

जब हरियाणा जलरया था, मोदी तू कित बडरया था,
तेरी गवर्नेंस का पारा म्हारी सड़कां पै खिंड रया था,
ना संसद अंदर पाया ना ट्वीटर ऊपर पाया ,
 सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

तू जर्मनी जाकै आया, तू यूरोप जाकै आया,
तेरा दबदबा पूरी दुनिया मैं बोलें छाया ,
तू इटली के अपराधी बता क्यूँ छोड़के आया ,
 सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

सोच्या पाकिस्तान जावैगा, दस सिर लेके आवैगा ,
दाऊद इब्राहिम नै गोड्यां तलै दाब ल्यावैगा ,
तू हलवा खाकै आया , तू केक काटकै आया ,
 सारी दुनिया मैं घुमकै ल्यो सुणल्यो के के ल्याया।

 

Saturday, May 28, 2016

भारत की जीडीपी ( GDP ) ग्रोथ के आंकड़े विश्वसनीय क्यों नहीं हैं ?

                जब से सरकार ने जीडीपी को मापने का तरीका बदला है तब से भारत की जीडीपी में एकदम उछाल आ गया है। सरकार तब से तेजी से विकास की रट लगाए हुए है और दावा कर रही है की भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है। और जाहिर है की इसका श्रेय नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों को  दिया जा रहा है। लेकिन दुनिया का कोई भी जाना माना अर्थशास्त्री इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। पूरी दुनिया की रेटिंग एजेंसियां, अर्थशास्त्री और निवेशक भारत सरकार द्वारा जारी किये गए आंकड़ों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।  यहां तक की अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन भी इस पर सवाल उठा चुके हैं। सबका मानना है की जीडीपी के आंकड़े जमीनी हकीकत से  मेल नहीं खाते। इसको  दूसरे तरिके से समझें तो बात कुछ ऐसी है।
                मान लो आपका कोई जान पहचान वाला ये दावा करें की उसकी आय में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। और आप देखते हैं की उसने कार की जगह स्कूटर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, बच्चों को महंगे स्कुल से उठाकर सस्ते स्कूल में दाखिल कर दिया है , पूरे साल में उसने नए कपड़े नहीं बनवाए हैं  खर्चा चलाने के लिए बैंक से पैसा निकाला है तो आप उसके दावे पर कैसे भरोसा करोगे। वही हालत हमारी सरकार की है। उसके द्वारा उठाये गए कदम और जीडीपी से संबंधित दूसरे आंकड़े सरकार की जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों से मेल नहीं खाते।
               पिछला बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में भारी कटौतियां की हैं। इसके साथ ही दूसरी सामाजिक योजनाओं में भी जैसे मनरेगा हो या बच्चों के मिड डे मील का बजट हो, उनमे भी भारी कमी की गई है। अगर सरकार की हालत अच्छी है तो इन मदो में इजाफा होना चाहिए था। इसके अलावा जो दूसरे इंडेक्स हैं वो भी जीडीपी के आंकड़ों से मेल नहीं खाते।
                सरकार ने 2015 -16 के लिए जीडीपी की वृद्धि दर 7. 6 % घोषित की थी जिसे अब घटाकर 7. 5 % कर दिया गया है। पिछले तरीके के हिसाब से ये वृद्धि दर करीब 5. 5 % बैठती है। दोनों तरीकों में करीब 2 % का फर्क है। अर्थशास्त्रियों का मानना है की तरीका भले ही जो हो, वृद्धि दर तो समान ही आनी चाहिए। इसकी विवेचना करते हुए वो दूसरे आंकड़ों पर नजर डालते हैं। जीडीपी में कई चीजें शामिल होती हैं जैसे औद्योगिक उत्पादन, कृषि उत्पादन, सेवा क्षेत्र और अन्य चीजें। साथ ही जब जीडीपी दर बढ़ती है तो उससे रोजगार में बढ़ोतरी होती है, बचत की दर बढ़ती है और निवेश की मांग में बढ़ोतरी होती है। लेकिन उनके आंकड़े भी कुछ और ही कहानी कहते हैं। जैसे - 2015 -16 की औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर केवल 2.4 % रही है।
            कृषि विकास दर --
                                      2015 -16 के लिए कृषि विकास दर भी केवल 1. 1 % ही रही है जो 2013 -14 में 4.2 %
और 2014 -15 में -0. 2 % थी।
            निर्यात वृद्धि दर --
                                       2013 -14 के दौरान निर्यात वृद्धि दर 4. 7 % थी जो 2014 -15 के दौरान घटकर -1.3 % रह गई थी जो और घटकर 2015 -16 में -17. 6 % रह गई। जो पूरा साल के दौरान हर महीने घटकर रिकार्ड हुई है।
            पूंजी निर्माण (बचत दर ) --
                                                    भारत में बचत की दरें हमेशा बाकी दुनिया के मुकाबले ज्यादा ही रहती है। लेकिन वो भी लगातार घटते हुए 2013 -14 में 31 . 6 % और 2014 -15 में 30 . 8 % और 2015 -16 में 29. 4 % रह गई। लेकिन इसके साथ ही बैंकों से कर्ज की मांग की  वृद्धि दर भी 2013 -14 के 13 . 9 % से घटकर 2015 -16 में केवल 11. 3 % रह गई।
                      इस तरह मौजूदा जीडीपी को मापने के तरीके  को लेकर लोगों में भारी संदेह है। सबसे बड़ी बात ये है की जीडीपी के आंकड़े केवल सरकार की वाहवाही के लिए नहीं होते बल्कि उनके हिसाब से योजनाएं बनाने के लिए होते हैं। अगर आंकड़े ही गलत हैं तो सही योजनाएं कैसे बनेंगी।
 

Friday, May 27, 2016

व्यंग -- सरकार के दो साल, शादी के गीतों में सच्चाई कहां होती है।

               मोदी सरकार को दो साल पूरे हो गए और उसके समारोह चल रहे हैं। इन समारोहों में भाषण हो रहे हैं।  भाषणों में कशीदे पढ़े जा हैं। पीठ थपथपाई जा रही हैं। एक दूसरे को गुलाल लगाए जा रहे हैं और मीडिया को इसमें शामिल करने के लिए करोड़ों के विज्ञापन बांटे जा रहे हैं।
                लेकिन एक लफड़ा है। विपक्ष के लोग सरकार के दावों को झूठा बता रहे हैं। और इस मामले में कुछ पत्रकार और आम लोग भी विपक्ष से मिल गये हैं। हमने उनको लाख समझाया की भाई शादी के गीतों में सच्चाई क्यों ढूंढ रहे हो ? शादी के गीतों में तो काने दूल्हे को भी हरियाला बन्ना बताया जाता है। दुल्हन को दादाजी के बागों की सैर करवाई जाती है भले ही दादा दूसरे के खेतों में मजदूरी करते मरा हो। लेकिन लोग हैं की मानते ही नहीं हैं। सरकार के हर बयान पर सवाल उठा देते हैं। कैसा देश हैं ? शादी, मेरा मतलब है की समारोह भी ख़ुशी से नहीं करने देता। दूसरों के समारोह में टांग अड़ाना ठीक नहीं होता।
               सुबह सुबह मेरे पड़ोसी आ गए। आते ही बोले, क्यों देश को मुर्ख बना रहे हो। दो साल में क्या काम कर दिया सरकार ने ?
               मुझसे सरकार हालत देखी नहीं गई। सो मैं तुरंत सरकार के बचाव में आ गया। मैंने कहा की दो  साल से भृष्टाचार मुक्त सरकार चल रही है।
               मेरे पड़ोसी की आँखे चौड़ी हो गई। तपाक से बोले, " अच्छा, तो ये व्यापम क्या है? छतीशगढ का चावल से लेकर नमक तक के घोटाले क्या हैं ? पनामा पेपर में मुख़्यमंत्री के लड़के का नाम आया है वो  क्या है ? वसुंधरा  के लड़के का घोटाला क्या है ? के जी बेसिन का घोटाला क्या है ? अनार पटेल का घोटाला क्या है ? "
                 मैंने उसे बिच में ही रोका। वर्ना पट्ठा इतने घोटाले याद किये था की अगर लोगों को याद रह जाएँ तो जमानत भी ना बचे। मैंने कहा, " ये सब बिजनेस ट्रांजेक्सन हैं। "
                 " बहुत अच्छे ! तो फिर घोटाले किसे कहते हैं ?" वो फ़ैल गया।
                  मैंने कहा, " देखो, घोटाले वो होते हैं जो विपक्ष के लोग करते हैं। विपक्ष के लोगों की बिजनेस ट्रांजेक्सन भी घोटालों के दायरे में आती हैं। उन पर जाँच बिठाई जा सकती है। एक जाँच खत्म हो जाये तो दूसरी बिठाई जा सकती है, तीसरी बिठाई जा सकती है। आखिर पांच साल ही तो निकालने होते हैं। वैसे भी तुम घोटालों के आरोप कैसे लगा सकते हो ? तुम्हारे पास क्या सबूत हैं ?"
                  " पहली नजर में दिख रहा है की घोटाला है। बाकि सबूत जाँच करने पर मिलेंगे। आखिर जाँच सबूत ढूंढने के लिए ही तो होती है। तुम जाँच क्यों नहीं करवा रहे ?" पड़ोसी ने ललकारते हुए कहा।
                 " सरकार के पास फालतू कामो के लिए टाइम नहीं है। तुम देश के विकास में रोड़े अटका रहे हो। दुनिया में देश की छवि खराब कर रहे हो। तुम देश विरोधी हो। " मैंने उसे धमका दिया।
                  " मैं तुम्हे देख लूंगा। " पड़ोसी ने कहा और चला गया /
                   मेरी पत्नी रसोई से दौड़ी हुई आई और बोली, "  ये तुम क्या कर रहे हो ? भला कोई पड़ोसी से इस तरह बात करता है ?"
                  " तुमने देखा नहीं की विपक्ष कैसे धमकी देने लगा है। ये लोग अलोकतांत्रिक हैं। इनसे सरकार बर्दाश्त नहीं हो रही। सरकार हमारी है, समारोह हमारा है, हम सरकार को कितनी ही अच्छी बताएं, ये कौन होते हैं हमारे उत्सव में खलल डालने वाले ?" मेरा स्वर ऊँचा हो गया।
                    मेरी पत्नी ने मुझे बाजू पकड़ कर झंझोड़ा। और बोली, "तुम्हारे बेटे की शादी नहीं है। "

Tuesday, May 10, 2016

Vyang -- सूखे की स्थिति पर मन्त्री जी का भाषण।

                  मंत्रीजी कई दिन से भाषण देने की सोच रहे थे। आज उन्हें देश में सूखे की स्थिति पर भाषण देने का अवसर मिल ही गया। उन्होंने अपने भाषण को पूरी तरह विद्व्तापूर्ण बनाने के लिए उसमे कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश किया। उनका भाषण इस प्रकार है। -
                   " मित्रो, जैसा की आप सब को मालूम नहीं होगा की हमारे देश में सूखा पड़ा है। और मैंने जब गूगल पर सर्च किया तो पता चला की बहुत भारी सूखा पड़ा है। इसलिए मैं सरकार की तरफ से ये घोषणा करता हूँ की हमारे देश में सुखा पड़ा है। जहां तक सूखे का सवाल है उसमे कुछ खास चीजें होती हैं। हमने इन चीजों का बहुत ही विस्तारपूर्वक अध्ययन किया है और उसमे जो निष्कर्ष हमारे सामने आये हैं वो मैं आप सब के सामने रखना चाहता हूँ। "
                    उसके बाद उन्होंने अपनी जेब से एक कागज निकाला , जिस पर नोट लिखे हुए थे। फिर मुस्कुरा कर लोगों की तरफ देखा और बोले ," हमारे देश में अब भी कागज पर ही भाषण के नोट लिखने का रिवाज है। वर्ना  विदेशों में तो बिना दिखाई देने वाला एक शीशा आपके सामने रहता है और उस पर पूरा भाषण लिखा होता है जो आपके पढ़ने के साथ साथ आगे चलता रहता है और किसी को मालूम भी नहीं पड़ता की आप लिखा हुआ देख कर पढ़ रहे हैं। लेकिन हमारे यहां यह सुविधा अभी सबको उपलब्ध नहीं है। खैर जाने दीजिये, सवाल सूखे का था। तो उसकी जो खास बातें हम आपको बताना चाहते हैं आप वो ध्यान से सुनिए।
            1.  पहली बात ये है की सूखा हमेशा गर्मियों में पड़ता है।
            2.  दूसरी बात ये है की गर्मियों में कुंए और तालाब सूख जाते हैं।
            3.  जब कुंए और तालाब सूख जाते हैं तो उसे सूखा कहते हैं।
            4.  जब सूखा पड़ता है तो कुछ लोगों को पीने का पानी नहीं मिलता जिसके कारण ठंडे पेय पदार्थ बनाने वाली कम्पनियों के काम में तेजी आती है और देश का विकास होता है।
            5.  जब सूखा पड़ता है तो सूखा राहत के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं ताकि अफसर और नेता ठंडे पेय पदार्थ खरीद सकें।
            6.  सूखा हर बार और सबके लिए नुकशान का कारण नहीं होता। हर मौसम की तरह ये कुछ लोगों का नुकशान करता है और कुछ लोगों का फायदा करता है। इसलिए इस पर बहुत हायतौबा मचाने की जरूरत नहीं होती है।
            7.  अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सूखा अमीरी का प्रतीक होता है जैसे आप अरब देशों को देख सकते हैं। फर्क केवल ये है की वहां तेल निकलता है। इसलिए हमने भी उन जगहों पर भी तेल की खोज के ठेके दिए हैं जहां तेल मिलने की कोई सम्भावना नहीं है। इसका प्रमाण आप CAG की रिपोर्ट से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए सरकार सूखे पर गम्भीर नहीं है ये कहना सही नहीं है।
            8. सरकार ने इसके लिए कुछ योजनाएं भी बनाई हैं। जैसे हमने तीन संस्कृत विष्वविद्यालय बनाने की घोषणा की है। ताकि वेद  मंत्रो का सही उच्चारण करके इंद्र देवता को प्रसन्न करके बारिश करवाई जा सके। कुछ लोगों का मानना है की बारिश होने से सूखे का नुकशान कम किया जा सकता है। लेकिन इस बात पर सरकार में मतभेद हैं और कुछ लोग कह रहे हैं की उससे सूखे से होने वाले लाभ भी कम हो जायेंगे। सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति की रचना की है जो अगले साल अपनी रिपोर्ट देगी।
              9. मैं अपनी बात यहीं समाप्त करना चाहूंगा क्योंकि मुझे एक सूखा प्रभावित क्षेत्र के दौरे पर जाना है जहां सूखे के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों ने उस क्षेत्र में पानी की ट्रेन भेजने के लिए मुझे सम्मानित करने का फैसला लिया है। "

Friday, May 6, 2016

Vyang -- सरकार का सरकार के खिलाफ धरना।

                  अच्छा मजाक चल रहा है। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है सो उसे बाकी दुनिया को रास्ता भी दिखाना होता है। ये उसकी नैतिक जिम्मेदारी है। हम भारतीय नैतिक जिम्मेदारी से कभी पीछे नहीं हटते। हमारा हर काम ऐतिहासिक और दुनिया को रास्ता दिखाने का होता है।
                      जैसे पिछले हफ्ते खबर आई की देश में डॉकटरों की बेहद कमी है। ये खबर कई दिन लगातार आती रही। हमे लगा की अब हमे दुनिया को रास्ता दिखाना चाहिए। अगले ही दिन केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने तीन नए संस्कृत विश्विद्यालय बनाने की घोषणा कर दी। कई लोगों को बात समझ में नहीं आई। अरे भई, हम विश्व गुरु हैं। सीधे सीधे मेडिकल कालेज बनाते तो बाकि दुनिया में और हमारे में क्या फर्क रह जाता। हमने संस्कृत विष्वविद्यालय बनाए ताकि हम वेदों और पुराणों के अनुसार लोगों को ये समझा सकें की वर्तमान में तुम्हे जो रोग हुआ है वो तुम्हारे पिछले जन्मों का फल है। मालूम पड़ा आपको की हम विश्व गुरु क्यों हैं।
                       पिछले कई महीनों से दुनिया को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। सरकारों का काम करने का पुराना तरीका जो अब तक दुनिया अपनाए हुए है उसे हम बदल रहे हैं।जैसे पिछले दिनों हमारे पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ। लोगों ने कहा की जाँच करो। हमने कहा की हमे मुर्ख समझा है क्या ? जब हमला हमने नहीं किया है तो जाँच हम क्यों करें। जिसने हमला किया है वो जाँच करेगा। उसके बाद हमने पाकिस्तान को मजबूर किया की वो जाँच करे और उसको करनी पड़ी। इसे कहते हैं विश्व गुरु।
                        विश्व गुरु होने के प्रमाण आपको हमारी आर्थिक नीतियों में भी मिलेंगे। हमारे प्रधानमंत्री जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से लगातार विदेश दौरे पर हैं। देश के अंदर प्रधानमंत्री के पास वैसे भी कोई काम नहीं होता है। वो ना तो सूखे को रोक सकता है, ना बाढ़ को रोक सकता है। किसानों की आत्महत्या उसके बस से बाहर हैं तो दलितों की हत्या भी उसके बस से बाहर हैं। इसलिए यहां बैठकर टाइम खराब करने से अच्छा है की विदेश घूम लिया जाये। पता नहीं कब ऐसा समय आ जाये जब वीजा ना मिले। लेकिन ये विदेश दौरे देश की अर्थव्यवस्था के लिए किये गए हैं। जब भी हमारे प्रधानमंत्री किसी विदेशी यात्रा से वापिस आये उस महीने का निर्यात पहले से घटकर सामने आया। पिछले दो साल गवाह हैं की जितने ही प्रधानमंत्री विदेश घूमे उतना ही निर्यात कम हुआ। दुनिया का कोई दूसरा देश ऐसा करके दिखा दे तो हम मान जाएँ।
                        हमारा अगला रिकार्ड लोकतंत्र के मामले में है। हम मानते हैं की लोक और तंत्र दो विरोधी चीजें होती हैं। जिस किसी ने भी इन्हे मिलाकर इकट्ठा किया है उसने भारी भूल की है। हमे इस बात का गर्व है की ये भूल हमने नहीं की है। आज कांग्रेस ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रदर्शन किया। गलत चीज के लिए किया। हम पहले ही कहते थे की कांग्रेस हमेशा गलत चीज के लिए प्रदर्शन करती है और मजबूरी में हमसे भी करवाती है। सो हमारे लोगों ने बोला की हम भी करेंगे। सुनने वालों ने कहा की सरकार आपकी है तो आप किसके खिलाफ प्रदर्शन करोगे ? हमने कहा की हम महात्मा गांधी के खिलाफ करेंगे। क्योंकि लोकतंत्र नाम की इस बीमारी को देश पर थौंपने में उसका बहुत बड़ा हाथ है। सो सरकार ने संसद की गांधी प्रतिमा के सामने धरना दे दिया। गांधी को जवाब नहीं आया। चुपचाप खड़ा रहा। हमने नारे लगाए की हेलीकॉप्टर सौदे में पैसा खाने वालों के नाम बताओ। दो तीन लोग पास से हंस कर निकले और बोले की ये पता लगाना तो तुम्हारा काम है, तुम किस से पूछ रहे हो ? हमने कह दिया की अगर हम बताने लगे तो कल तुम हमसे पंजाब का गेहूं खा जाने वालों का नाम पूछोगे, फिर छत्तीस गढ़ का चावल खा जाने वालों का नाम पूछोगे, फिर माल्या और ललित मोदी के बारे में पूछोगे, हमे क्या बेवकूफ समझा है। हम सामने वाले से पूछेंगे। आखिर विश्व गुरु जो ठहरे।

Wednesday, May 4, 2016

क्या ममता बैनर्जी बड़ी हार की तरफ बढ़ रही है ?

               ये एक ऐसा सवाल है जो राजनैतिक पंडितों से लेकर खुद ममता बैनर्जी तक को परेशान किये हुए है। क्योंकि बंगाल से जो चित्र दिखाई दे रहा है वो ममता के हक में नहीं दिखाई देता। उसके निम्न 10 कारण हैं।
             1. बंगाल के 2011 के चुनाव में सबकुछ वाम मोर्चे के खिलाफ होने के बावजूद उसे 40 % वोट मिले थे और तृणमूल कांग्रेस को 39 % , लेकिन कांग्रेस को मिले 10 % वोट जो उस समय ममता के साथ थे उसके लिए वाम मोर्चा बुरी तरह हारा। इस बार कांग्रेस वाम मोर्चा के साथ है।
              2.  सिंगुर से लेकर नंदीग्राम तक के वो सारे मुद्दे जो उस समय लेफ्ट की हार का कारण बने थे वो इस बार गायब हैं।
              3.  ममता ने जो परिवर्तन का नारा दिया था उसकी हवा निकल चुकी है और लोग उसे फ्लॉप मान रहे हैं। रोजगार के वायदे पुरे नहीं हुए हैं।
               4.  चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से ममता के लोग चुनावों को प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें हर जगह लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
               5.  NDTV के एक आकलन के अनुसार केवल 3 % वोट का स्विंग बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट की   सरकार बनवा सकता है। क्योंकि पिछली बार लेफ्ट ने जो सीटें हारी थी वो बहुत ही कम अंतर् से हारी थी।
               6.  राज्य पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल में लेफ्ट की सरकार बन रही है। इसलिए पिछले दो दौर के चुनाव में पुलिस का रवैया बदल गया है जिस पर ममता ने चेतावनी भी जारी की है।
               7.  नारदा से लेकर शारदा तक, पहली बार बंगाल में भृष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है। भद्रलोक कहे जाने वाले बंगाल में इस पर बहुत नाराजगी है।
               ८.   इस बार मुस्लिम वोट एकजुट ममता के साथ नहीं है। उसमे बहुत बड़े पैमाने पर टूट नजर आती है जो ममता की चिंता का मुख्य कारण है।
               9.   कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन होने के कारण वोटों का अंकगणित ममता के खिलाफ बैठता है और अगर ये मान लिया जाये की वो सभी  वोटर जो 2011 में ममता के साथ थे अब भी ममता के साथ हैं तो भी इस अंकगणित के कारण ममता 10 % वोट से पिछड़ रही है।
              10 .  इस बार वाम मोर्चा पूरी तरह एकजुट है। इसलिए थे टेलीग्राफ और आनद बाजार जैसे वाम विरोधी अख़बार भी इस बार ममता की जीत की बात नहीं कर रहे हैं।