Wednesday, August 30, 2017

नोटबंदी के कारण 2 लाख फर्जी कम्पनियां पकड़े जाने का झूठ

                       नोटबंदी की विफलता इतनी बड़ी है की अब इसका उद्देश्य साबित करने की कोशिश में सरकार हकलाने लगी है। अब उसको खुद नहीं पता होता की वो क्या कह रही है और क्यों कह रही है।  इस विफलता को छिपाने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है। शुरू में इसकी सफलता पर कुछ अर्थशास्त्री सवाल उठा रहे थे, कुछ समय बाद साधारण अर्थशास्त्र का विद्यार्थी भी इसकी विफलता को समझने लगा था। अब तो हालत ये है की साधारण आदमी, जिसका अर्थशास्त्र से कोई लेना देना नहीं है वो भी इसकी विफलता को खुली आँखों से देख सकता है। अब अगर कोई नोटबंदी के फायदे गिनवाने की कोशिश करता है तो सामने वाला पहले ही हसना शुरू कर देता है।
                         इस क्रम में सबसे ज्यादा फजीहत अगर किसी की हुई है तो वो है रिजर्व बैंक। सरकार के फैसले की जिम्मेदारी और उसकी विफलता को छुपाने की कोशिश में रिजर्व बैंक ने अपनी साख में बट्टा लगा लिया है। लगातार नो महीने तक ये कहना की अभी वो नोटों की गिनती कर रहा है, उसे हास्यास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। हालाँकि इस फैसले की सफलता और विफलता की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो अब मान-अपमान और हंसी मखौल से ऊपर उठ चुके हैं। अब तो हालत ये है की प्रधानमंत्री कुछ भी बोल देते हैं और सरकार तुरंत उस बयान की सफाई ढूढ़ने में लग जाती है। जैसे 56लाख नए करदाता जुड़ने वाला बयान। जिस पर वित्तमंत्रालय  से लेकर CBDT तक सफाई नहीं पेश कर पा रहे हैं और उस पर बड़ी बात ये की ये आंकड़ा प्रधानमंत्री ने लालकिले से पेश कर दिया।
                        अब रिजर्व बैंक ने आखिर में ये आंकड़ा पेश कर दिया है की 99 % नोट बैंक में वापिस आ गए हैं। यानि रिजर्व बैंक के अनुसार जो केवल मात्र 16 हजार करोड़ के नोट वापिस नहीं आये उनकी रकम उतनी भी नहीं बनती जितना नए नोटों पर खर्चा हो गया है। और इसमें भी एक चालाकी की गयी है। रिजर्व बैंक ने ये आंकड़ा देते हुए (मार्च तक ) शब्द का प्रयोग किया है। सबको मालूम है की मार्च तक सरकार ने जिला कोपरेटिव बैंको में जमा 1000 और 500 के नोटों को स्वीकार नहीं  किया था। अगर उस रकम को भी जोड़ लिया जाये  तो लोगों की वो आशंका सही साबित हो जाएगी की कहीं घोषित रकम से ज्यादा नोट तो वापिस नहीं आ गए। क्योंकि लोगों को शक है की नोट जमा कराने के दौरान बड़े पैमाने पर नकली नोट भी जमा हुए हो सकते हैं, क्योंकि रिजर्व बैंक के पास तो नोट गिनने तक का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था फिर असली नकली देखने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है।
                      लेकिन अब रिजर्व बैंक का आंकड़ा सामने आने के बाद सरकार एक बार फिर नोटबंदी की सफलता के पक्ष में एक बहुत ही हास्यास्पद तर्क दे रही है। वो तर्क ये है की नोटबंदी के कारण 2 लाख फर्जी कम्पनियों का पता चला। जो लोग भी थोड़ा सा भी इस प्रक्रिया को समझते हैं की इन तथाकथित फर्जी कम्पनियों और नोटबंदी का आपस में कोई लेना देना नहीं है। असल में ये मामला इस तरह है - हर साल लाखों लोग रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ( ROC ) के पास नई कम्पनी रजिस्टर्ड करवाते हैं। इसके पीछे भविष्य में कोई काम शुरू करने की इच्छा होती है। लेकिन कई तरह के कारणों की वजह से वो कामकाज शुरू नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनमे से बहुत से लोग ROC में सालाना लेखा पेश नहीं करते। और कुछ शून्य कामकाज का लेखा पेश करते हैं। ROC अपने नियमो के हिसाब से लेखा पेश न करने वाली कंपनियों की सदस्य्ता हर साल कैंसिल कर देती है। ये एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका रिकार्ड हमेशा ROC के पास रहता है। इस साल सरकार के कहने पर ROC ने ऐसी कम्पनियों का रजिस्ट्रेशन बड़ी तादाद में एक साथ रद्द कर दिया। बस इतना सा मामला है और इसका नोटबंदी से कुछ भी लेना देना नहीं है। ROC को हमेशा पता होता है की कितनी कम्पनिया शून्य कामकाज के स्तर पर हैं।
                      अब सरकार इसको इस तरह पेश कर रही है जैसे उसने बहुत बड़ा गोलमाल पकड़ लिया हो जो सालों से चल रहा था। अगर ऐसा है तो सरकार बताये की कितने लोगों पर केस दर्ज हुआ है। और कितने लोग जेल के अंदर हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। सरकार का व्यवहार खिसियायी बिल्ली जैसा हो गया है और इसके  कारण हमारा देश पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बन गया है।

Sunday, August 20, 2017

गोरखपुर में हुई बच्चों की मौत के लिए राहुल गाँधी जिम्मेदार

                    गोरखपुर में ऑक्सीजन के बिना हुई बच्चों की मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? ये एक ऐसा सवाल बना दिया गया जैसे की ये बहुत बड़ा रहस्य हो। गनीमत है की केंद्रीय गृहमंत्रालय ने FBI को जाँच के लिए नहीं बुलाया। पूरी बीजेपी और उसके चैनल इस पर थूक बिलो रहे हैं और हाथ झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच में कल योगीजी का बयान आया की इसके लिए पिछली सरकार जिम्मेदार है। देश को उनसे ऐसी ही उम्मीद थी। वैसे भी ऐसे लोगों को जिन्होंने मुख्यमंत्री चुना है, उन्होंने कोई विज्ञानं की खोज के लिए थोड़ा न चुना है। इसी तरह की बातें करने के लिए चुना है। किसी पढ़े लिखे को चुन लेते तो उसको ऐसा कहने में दिक्क्त हो सकती थी। इसलिए बीजेपी ने हरियाणा से उत्तरप्रदेश तक हर जगह ऐसे लोगों को ही बिठाया है ताकि कल कोई असुविधा न हो।
                     कल हमारे मुहल्ले के चबूतरे पर इस पर गहन विचार विमर्श हुआ। उसमे व्यक्त किये  गए विचार इस प्रकार हैं। -
                      एक बुजुर्ग ने कहा की भाई जिसे ऑक्सीजन का प्रबंध करना था और जिस सरकार को निगरानी करनी थी उनकी जिम्मेदारी बनती है। बस फिर क्या था। भक्तों में कोहराम मच गया। एक भक्त ने कहा की ये बुड्ढा तो पुराना कांग्रेसी है इसलिए ऐसा कह रहा है। ये बात कोई भी टीवी चैनल नहीं कह रहा।
                     दूसरे भक्त ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा की कोई डॉक्टर कफील है जो इसके लिए जिम्मेदार है। उस पर पहले रेप का आरोप लगा है।
                       एक दूसरे आदमी ने कहा की ये कोई छेड़खानी का मामला है क्या जो पिछले रेप का उदाहरण दे रहे हो।
                  इस पर एक भक्त चिल्लाया, ये देशद्रोही है , मैंने इसे पाकिस्तान और इंग्लैंड के मैच में पाकिस्तान की टीम का समर्थन करते देखा है।
                  तभी एक आचार्यजी ने वहां प्रवेश किया जो सीधे संघ के बौद्धिक से पधार रहे थे। भक्तों ने उसके लिए अतिरिक्त सम्मान का परिचय देते हुए उनको इस विषय पर विशेष कमेंट करने के लिए कहा।
                    आचार्यजी ने इधर उधर देखा और कहा , आज संघ के बौद्धिक में इस विषय पर गहन विचार विमर्श हुआ है। इसके सभी पहलुओं की बारीकी से  छानबीन करने के बाद ये निष्कर्ष निकला है। -
                      जैसे योगी जी ने कहा की इसके लिए पिछली सरकार जिम्मेदार है, उससे संघ सहमत है। लेकिन पिछली सरकार से मतलब अखिलेश की सरकार से नहीं है। इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। उसके लिए हमे उस आंदोलन तक जाना होगा जिसे देश के कुछ लोग आजादी का आंदोलन कहते हैं। हम उसे आजादी का आंदोलन नहीं कहते, और इसीलिए हमने उसमे हिस्सा नहीं लिया था। हम अंग्रेजो की उस बात से सहमत थे की हिंदुस्तानिओं को शासन करना नहीं आता। और अंग्रेज इस देश को सभ्य बनाने के लिए आये हैं। लेकिन उस समय की कांग्रेस और दूसरे लोगों ने मिलकर अंग्रेजों की इस योजना पर पानी फेर दिया। उस समय तक केवल संघ से जुड़े लोग ही सभ्य हो पाए थे और बाकी सारा देश असभ्य ही था। लेकिन जवाहरलाल नेहरू के सत्ता के लालच ने  अंग्रेजों को अपना सभ्यता का मिशन बीच में ही छोड़कर वापिस जाने के लिए मजबूर कर दिया। वरना अब तक अंग्रेज राज कर रहे होते और हम इस घटना की जिम्मेदारी उन पर डाल सकते थे। लेकिन नेहरू गाँधी परिवार और कांग्रेस के सत्ता के लालच के चलते ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए संघ इस घटना के लिए राहुल गाँधी को जिम्मेदार मानता है और उससे देश से माफ़ी मांगने की मांग करता है।
                      भक्तों ने तालियां बजाई और आचार्यजी देश की बाकी समस्याओं पर प्रवचन देने लगे।