आज विदेश मंत्री शुष्मा स्वराज ने संसद में ये घोषणा कर दी की चार साल पहले इराक के मोसुल में लापता हुए 39 भारतीय नागरिक मर चुके हैं। ये एक ऐसी घोषणा थी जिसका बहुत से लोगों को पहले से ही अनुमान था। लेकिन अब तक सरकार ये कहती रही थी वो पुख्ता सबूत के अभाव में इन नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि नहीं करेगी।
ये लोग मुख्यतया पंजाब से और बाकी शेष भारत के वो गरीब मजदूर थे जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए अनजान और खतरनाक जगहों में जाकर मजदूरी करते हैं। इनके द्वारा अपने खून पसीने से कमाई गयी विदेशी मुद्रा सरकार के आंकड़ों की चमक बढ़ाती है। इन सबको विदेश में काम करते हुए जिन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है उसकी हजारों कहानिया हैं। विपरीत हालत में फंसे देशवासियों की मदद करना सरकारों की नैतिक और क़ानूनी जिम्मेदारी होती है। ये सभी मजदूर एक सरकारी कम्पनी के प्रोजक्ट में काम कर रहे थे और उसी दौरान अमेरिका द्वारा जन्मित, पालित और पोषित ISIS द्वारा उनका अपहरण कर लिया गया और हत्या कर दी गयी।
आज संसद में विदेश मंत्री की घोषणा के बाद जब विपक्ष ने इस पर सरकार से कुछ सवाल पूछे तो सरकार के कुछ मंत्रियों ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया। विपक्ष द्वारा ये पूछने पर की सरकार को इनकी मौत की पुष्टि करने में चार साल क्यों लगे, उस पर राजनीति करने का आरोप लगाया गया। पिछले चार साल से इनके परिवार कितनी बुरी हालत में होंगे, कितना मानसिक तनाव झेल रहे होंगे और किन आर्थिक हालात से गुजर रहे होंगे, इस पर सवाल पूछना राजनीति है जो नहीं करनी चाहिए। अगर सरकार समयसर इनकी मृत्यु की घोषणा कर देती या उस पर केवल आशंका ही जाहिर कर देती तो इन गरीबों के परिवार को क़ानूनी तौर पर भी कुछ मुआवजा मिल जाता। लेकिन ये सवाल पूछना तो राजनीति है। अगर विपक्ष किसानो की फसल के भाव और उनकी आत्महत्या पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की किसानो पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष छात्रों की फ़ीस और स्कूलों की हालत पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की छात्रों पर राजनीति मत करो। अगर विपक्ष सीमा पर रोज मारे जा रहे जवानो पर सवाल पूछ लेता है तो जवाब मिलता है की राष्ट्रिय सुरक्षा के मामले पर राजनीती मत करो। यानि अब राजनीति करने के लिए केवल गाय और गोबर, हिन्दू मुसलमान ही बचे हैं।
सरकार ने कहा है की बिना पुख्ता सबूत के वो किसी की मौत हो जाने की घोषणा नहीं कर सकती , तो पिछले दिनों वायुसेना का एक विमान लापता हुआ था जिसमे हमारे बहुत से सैनिक सवार थे। एक समय के बाद जब उसका कोई पता नहीं चला तो सरकार में उन सैनिकों के मारे जाने की घोषणा कर दी। क्या सरकार बता सकती है की उनकी मृत्यु का कौनसा पुख्ता सबूत उसके पास है ? इस तरह की घटनाएँ बहुत बार होती हैं और उसमे से बहुत सी ऐसी भी होती है जो सरकार के नियंत्रण से बाहर होती हैं। लेकिन उनका सही विश्लेषण करके प्रभावित परिवारों को सहायता पहुंचाना सरकार का काम होता है। और अगर सरकार इसमें असफल होती है और विपक्ष इस पर सवाल पूछता है तो वो उसका काम होता है। इस पर राजनीति करने का आरोप लगाना अत्यंत गैरजिम्मेदार और दुर्भाग्यपूर्ण है।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.