मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वोट डालने का काम खत्म हो चुका है। अब सभी को 11 दिसंबर का इंतजार है। लेकिन चुनाव की समाप्ति के बाद भाजपा के नेता तनाव में दिख रहे हैं। कुछ दिन पहले तक जिन राज्यों को भाजपा के लिए आसान माना जा रहा था, वहां स्थिति बदल चुकी है। कुछ संकेत भाजपा नेताओं को लगातार परेशान कर रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के खेमे में शान्ति और निश्चिन्तता दिखाई दे रही है। इसकी एक झलक कांग्रेस नेता कमलनाथ के उस जवाब में भी दिखाई देती है। जब उनसे चुनाव के बाद अपना आकलन बताने को कहा गया तो उनका जवाब था, " दो चीजें एकदम आसानी से निपट गयी, एक चुनाव और दूसरी भाजपा। "
वैसे भाजपा के तनाव की कुछ ख़ास वजहें भी हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेशों में भाजपा 15 साल की एंटी-इंकम्बैंसी से मुकाबिल थी जो किसी के लिए भी चिंता का कारण हो सकती हैं। लेकिन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस ने कोई मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत नहीं किया था जिसे भाजपा अपने लिए फायदे का सौदा मान रही थी। दूसरा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के प्रचार पर बहुत भरोसा था। लेकिन इस बार कांग्रेस ने मोदीजी को कोई मौका दिया। मोदीजी ने हमेशा की तरह, मेरी माँ को गाली दी , जैसे वाक्यों में प्रचार को लपेटने की कोशिश जरूर की लेकिन इस बार वो कामयाब नहीं हुए। मोदीजी के जिस करिश्मे का भाजपा को भरोसा था वो इस बार गायब था।
भाजपा नेताओं की चिंता का दूसरा कारण इस बार किसानो और बेरोजगारी के सवालों का इलेक्शन पर हावी होना था। इस बार हिंदुत्व और गाय जैसे मुद्दों की जगह किसानो की समस्याएं केंद्र में थी। कांग्रेस के कर्जमाफी के वायदे के बाद जिस तरह किसानो ने चुनाव से पहले फसल बेचना बंद कर दिया वो अपने आप में हैरान कर देने वाला है। जब किसान मंडी में अपनी फसल बेचता है तो फसल की कीमत उसके बैंक खाते में जमा होती है। बैंक इस में से अपनी राशी काट लेता है। इसलिए किसान अपनी फसल लेकर मंडी में ही नहीं जा रहे। वो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने और कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं।
इसके अलावा जो सबसे बड़ा कारण भाजपा नेताओं को चिंता में डाले हुए है वो है 2019 मोदीजी को होने वाली मुश्किल के अनुमान का। असल में चुनाव वाले तीनो भाजपा शासित राज्यों में भाजपा राजस्थान को पहले ही कमजोर मान कर चल रही है। इन तीनो राज्यों में कांग्रेस ने किसी को भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। अगर इनमे नतीजे भाजपा के खिलाफ आ जाते हैं तो 2019 के चुनाव में उसके सबसे बड़े मुद्दे की हवा निकल जाएगी। ये मुद्दा है मोदी के सामने कौन? लोग ये मान लेंगे की चुनाव जीतने के लिए चेहरा कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। यही है भाजपा की चिंता का सबसे बड़ा कारण।
वैसे भाजपा के तनाव की कुछ ख़ास वजहें भी हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेशों में भाजपा 15 साल की एंटी-इंकम्बैंसी से मुकाबिल थी जो किसी के लिए भी चिंता का कारण हो सकती हैं। लेकिन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस ने कोई मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत नहीं किया था जिसे भाजपा अपने लिए फायदे का सौदा मान रही थी। दूसरा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के प्रचार पर बहुत भरोसा था। लेकिन इस बार कांग्रेस ने मोदीजी को कोई मौका दिया। मोदीजी ने हमेशा की तरह, मेरी माँ को गाली दी , जैसे वाक्यों में प्रचार को लपेटने की कोशिश जरूर की लेकिन इस बार वो कामयाब नहीं हुए। मोदीजी के जिस करिश्मे का भाजपा को भरोसा था वो इस बार गायब था।
भाजपा नेताओं की चिंता का दूसरा कारण इस बार किसानो और बेरोजगारी के सवालों का इलेक्शन पर हावी होना था। इस बार हिंदुत्व और गाय जैसे मुद्दों की जगह किसानो की समस्याएं केंद्र में थी। कांग्रेस के कर्जमाफी के वायदे के बाद जिस तरह किसानो ने चुनाव से पहले फसल बेचना बंद कर दिया वो अपने आप में हैरान कर देने वाला है। जब किसान मंडी में अपनी फसल बेचता है तो फसल की कीमत उसके बैंक खाते में जमा होती है। बैंक इस में से अपनी राशी काट लेता है। इसलिए किसान अपनी फसल लेकर मंडी में ही नहीं जा रहे। वो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने और कर्जमाफी का इंतजार कर रहे हैं।
इसके अलावा जो सबसे बड़ा कारण भाजपा नेताओं को चिंता में डाले हुए है वो है 2019 मोदीजी को होने वाली मुश्किल के अनुमान का। असल में चुनाव वाले तीनो भाजपा शासित राज्यों में भाजपा राजस्थान को पहले ही कमजोर मान कर चल रही है। इन तीनो राज्यों में कांग्रेस ने किसी को भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। अगर इनमे नतीजे भाजपा के खिलाफ आ जाते हैं तो 2019 के चुनाव में उसके सबसे बड़े मुद्दे की हवा निकल जाएगी। ये मुद्दा है मोदी के सामने कौन? लोग ये मान लेंगे की चुनाव जीतने के लिए चेहरा कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। यही है भाजपा की चिंता का सबसे बड़ा कारण।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.