Saturday, January 2, 2016

Opinion -- दो सरकारें, दो एजेंडे, दो रुख और दो परिणाम।

              सरकारों का रुख किसी मुश्किल काम को किस तरह प्रभावित करता है इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण हमारे सामने है। हम दो सरकारों के सामने आये दो महत्त्वपूर्ण कामों और उनके लिए अपनाये गए दो अलग अलग रुख की और उनके परिणामों की तुलना कर रहे हैं। ये दो सरकारें हैं एक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और दूसरी दिल्ली की केजरीवाल सरकार। इसमें मोदी सरकार के सामने एक महत्त्वपूर्ण सवाल था GST बिल को लागु करना और केजरीवाल सरकार के सामने था ओड-ईवन फार्मूला लागु करना। इसमें दोनों सरकारों ने जो रणनीति अपनाई उस पर नजर डालने की जरूरत है।

ओड-ईवन फार्मूला ----
                                     दिल्ली  बढ़ते हुए प्रदूषण कारण दिल्ली की सरकार के लिए इस पर कोई ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया था। दिल्ली की जनता की परेशानी के साथ साथ उच्चत्तम न्यायालय का हस्तक्षेप भी इस सवाल पर तुरंत काम करने की जरूरत को रेखांकित करता है। लेकिन प्रदूषण का सवाल बहुत ही उलझा हुआ और तकनीकी सवाल है। प्रदूषण के कारणों पर ही अलग अलग विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। जाहिर है की प्रदूषण किसी एक कारण से नही है। उसकी वजह से इस पर किये जाने वाले उपायों पर भी आम सहमति होना एक नामुमकिन सा काम है। दूसरी बड़ी समस्या ये है की प्रदूषण के जिस भी कारण पर कार्यवाही की जाती है तो वो समाज के एक हिस्से को प्रभावित करती है। उन चीजों पर कार्यवाही करनी पड़ती है जिनसे लोगों के रोजगार और रोजमर्रा की जिंदगी जुडी हुई होती है। इसलिए हर नए उपाय पर कुछ न कुछ लोगों का विरोध स्वाभाविक है। इसकी शुरुआत करते हुए जो कदम दिल्ली की सरकार ने उठाने की घोषणा की उसमे वाहनो के लिए ओड-ईवन फार्मूला लागु करना भी शामिल था। इससे बहुत बड़े पैमाने पर लोगों के प्रभावित होने का सवाल था। अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह की मुश्किलें आने वाली थी और ये जायज मुश्किलें थी। लेकिन दिल्ली की सरकार ने इस पर बहुत ही लचीला और व्यवहारिक रुख अपनाया। विपक्षी पार्टियां, और विशेषकर बीजेपी पहले  इसको फेल करने के प्रयास करने लगी। उसने इसके खिलाफ लाइन ले ली और  ये भी नही सोचा की इससे भविष्य में दिल्ली की जनता को कितना बड़ा नुकशान हो सकता है। बीजेपी का विरोध इतना बढ़ गया की पिछले दस दिन का दूरदर्शन के खबरों का आकलन करोगे तो ये सामने आ जायेगा की एक सरकारी न्यूज एजेंसी तक का कितना दुरूपयोग किया गया। लेकिन केजरीवाल सरकार ने इसमें आने वाली समस्याओं और लोगों के जायज सवालों पर बहुत ही लचीला रुख अपनाया। इस पर जो सवाल सामने आये और उनको सरकार ने जिस तरह से हल किया उसका एक उदाहरण नीचे दिया गया है।
सवाल --- इस पर पहला सवाल ये उठा की ये फार्मूला लागू ही नही हो सकता।
                         इसके जवाब में सरकार ने कहा की इसे पंद्रह दिन के ट्रायल पर लागू किया जायेगा और अगर कोई बहुत बड़ी परेशानी सामने आती है तो इसे वापिस ले लिया जायेगा। सरकार इसे जबरदस्ती लागू करने की इच्छा नही रखती।
सवाल --  दूसरा सवाल ये उठा की जो लोग रात की शिफ्ट में गाड़ी लेकर जाते हैं उनके वापिस आते वक्त तारीख बदल जाएगी तो क्या होगा ?
                           इसके जवाब में सरकार ने इसे सुबह आठ बजे से रात को आठ बजे तक सिमित कर दिया।
सवाल -- उसके बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखने की बात आई और कुछ शारीरिक रूप से अक्षम लोगों का सवाल सामने रक्खा गया।
                          इसके जवाब में सरकार ने महिलाओं और विकलांगों को इस फार्मूले से बाहर कर दिया।
सवाल -- उसके बाद दुपहिया वाहनो के बंद होने से आने वाली मुश्किलों का मामला सामने आया।
                         सरकार ने पहले चरण में दुपहिया वाहनो को भी इससे मुक्त कर दिया।
       इस तरह जो भी व्यवहारिक सवाल सामने आये उन पर सरकार ने बहुत ही सकारात्मक तरीके से जवाब दिया और हल निकाला। उसके जवाब में दिल्ली की जनता ने भी इसे उतने ही खुले मन से स्वीकार किया। पहले दो दिनों की जो सूचना सामने है उसके अनुसार इसकी सफलता उम्मीद से भी ज्यादा है।
                 
GST बिल का सवाल --
                                   दूसरा सवाल मोदी सरकार के सामने था। खुद मोदी सरकार के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था और विकास इस बिल से सीधे जुड़े हुए हैं। पुरे सत्र के दौरान सरकार के मंत्री इस बिल की जरूरतों पर भाषण देते रहे। लेकिन इसको पास करवाने के लिए सरकार ने कोई भी असरकारक कदम नही उठाया। उसने इस बिल पर विपक्ष के साथ बात करने की बजाय विपक्ष को विकास विरोधी साबित करने में अपनी पूरी ताकत लगाई। उसने केवल एक बार कांग्रेस के नेताओं के साथ बात की। उसके अलावा उसने किसी भी विपक्षी पार्टी के साथ इस पर कोई बातचीत नही की। कांग्रेस ने इस बिल पर अपनी तीन आपत्तियां दर्ज करवाई। उनमे दो पर सरकार सहमत  है इस तरह की खबरें मीडिया में आई। अब केवल एक विषय पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच असहमति बाकि रही। कांग्रेस ने GST की अधिकतम दर 18 % रखने और इसे बिल में शामिल करने की शर्त रखी। इसे सरकार ने ख़ारिज कर दिया। अगर सरकार इसको भी मान लेती तो ये बिल पास हो जाता और बकौल सरकार इससे अर्थव्यवस्था को बड़ी तेजी से सहारा मिलता। लेकिन सरकार ने अपने अड़ियल रुख के कारण इस शर्त को नही माना। पहले विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने इसे दस साल पास नही होने दिया और अब सरकार में रहते हुए दो साल से इसे लटका कर बैठ गयी।
                                 सवाल ये है की अगर सरकार इस शर्त को मान लेती तो इसके क्या क्या नुकशान थे। इससे सरकार किसी भी वस्तु पर 18 % से ज्यादा टैक्स नही लगा सकती थी। जबकि सरकार का दूसरी तरफ ये कहना है की GST की दर इससे कम ही रहने वाली है। फिर तो कोई समस्या ही नही थी। दूसरी बात ये की मान लो इससे कोई व्यवहारिक समस्या पैदा होती है तो इस पर फिर संशोधन किया जा सकता था। ये एक नया तरीका है और इस पर दूसरे कारणों से भी कुछ संशोधन करने पड़ सकते हैं। एक बार इसे लागु किया जाता तो कई चीजें सामने आती। अभी तक तो इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार नही है। सो सरकार को इतना अड़ियल रुख अपनाने की क्या जरूरत थी।
                            हम दो सरकारों के दो रुख और उनके परिणामो के बारे में तुलना कर रहे थे। इससे यही साबित होता है की सरकारों को अपनी नीतियों पर लोगों की तकलीफों और सुझाओं पर खुले दिल से विचार तो करना ही चाहिए और जरूरत दिखाई दे तो उसमे बदलाव भी करना चाहिए। हर सवाल को प्रतिष्ठा से जोड़ना और अड़ियल रुख अपनाना देश हित और जनहित में नही होता।

1 comment:

  1. आपने लिखा...
    और हमने पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 03/01/2016 को...
    पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
    आप भी आयीेगा...

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