आज गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या है। इस दिन महामहिम राष्ट्रपति महोदय राष्ट्र के नाम सन्देश देते हैं। ये राष्ट्र कौन है और कहां रहता है ये मुझे कभी पता नही रहा। सो ये सोचकर की ये अपना काम नही है मैं महामहिम का सम्बोधन छोड़कर दिल्ली में टहलने निकल पड़ा।
अभी कुछ ही दूर चला था की एक आदमी मुझे मिला। उसने मुझसे पूछा की कहां जा रहा हूँ तो मैंने बता दिया की दिल्ली घूमने का विचार है यूं ही टहलते टहलते। तो उसने उत्सुकता से कहा की भैया अगर यमुना जी की तरफ जाओ तो वहां एक नजर डाल लेना और गणतंत्र दिख जाये तो मुझे फोन कर देना।
लेकिन गणतंत्र यमुना जी के किनारे क्योँ मिलेगा ? मैंने पूछा।
अब क्या बताएं भईया। गणतंत्र दिवस से ठीक दो दिन पहले केंद्र कैबिनेट ने अरुणाचल प्रदेश में चुनी हुई राज्य सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। उस समय से गणतंत्र को लग रहा है की इन लोगों के हाथों से मरने से तो अच्छा है की आत्महत्या ही कर लूँ। और घर छोड़कर चला गया। अब मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।
तो तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नही करते ? मैंने पूछा।
उसने एक खिसियानी सी हंसी हंसी और बोला की गया था भैय्या , लेकिन दरोगा ने कहा की तुम्हे दिखाई नही देता की 26 जनवरी के लिए कितनी तैयारियां करनी पड़ रही हैं। ऐसे समय में हम देश की सुरक्षा को छोड़कर इन ऐरे-गैरों को ढूंढते फिरें ? चलो भागो।
ठीक है मैं ध्यान रखूँगा, मैंने कहा और पहले यमुना जी के घाट पर ही जा पंहुंचा।
वहां घाट से कुछ दुरी पर कुछ मजदूर यमुना जी के किनारे पर पड़ा कचरा साफ कर रहे थे। एक बड़ी सी गाड़ी के पास एक मोटा सा आदमी शानदार कपड़े पहने खड़ा हुआ था। गाड़ी के अंदर डैशबोर्ड पर छोटा सा लेकिन खूबसूरत नया तिरंगा लगा हुआ था। मैंने उस झण्डे को ध्यान से देखने की कोशिश की तो उसने मुझे टोका।
क्या देख रहे हो भाई साहब ? कल गणतंत्र दिवस है। इस दिन हमारे देश को आजादी मिली थी। सो हर देश भक्त को अपनी गाड़ी पर तिरंगा लगाना चाहिए। मैं तो हर साल लगाता हूँ।
और जिसके पास गाड़ी ना हो वो क्या करें अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए ? उन मजदूरों की तरह के लोग। मैंने सफाई करते मजदूरों कि तरफ इशारा किया।
वो हँसा , उनको तो ये भी पता नही होगा की कल गणतंत्र दिवस है। ये तो देश पर बोझ हैं बोझ। वैसे भी इनके झण्डा लगाने ना लगाने से क्या फर्क पड़ता है ? उसने हाथ में पकड़ी हुई लिम्का की बोतल खत्म की और यमुना में उछाल दी। फिर उसने मेरी तरफ देख कर पूछा की तुम यहां क्या कर रहे हो ?
कुछ नही , किसी ने मुझे कहा था की गणतंत्र आत्महत्या करने निकला है सो मैं उसे यमुना जी के किनारे ढूंढने की कोशिश करूँ।
ये सब गए गुजरे लोग हैं जो आत्महत्या करके देश को बदनाम करते हैं। अब किसानो को ही देख लो, कायर कहीं के। काम धंधा तो करते नही हैं और निकल पड़ते हैं आत्महत्या करने के लिए, ताकि टीवी में नाम आ जाये। लेकिन इससे देश की कितनी बदनामी होती है इसका अंदाजा भी है उनको। उसने गहरी नाराजगी प्रकट की।
तो आपका मतलब है किसान टीवी में नाम आने के लिए आत्महत्या करते हैं ? मैंने आश्चर्य से बाहर आने की कोशिश की।
वरना क्या वजह है ? आप नही करते, मैं नही करता। अगर कोई दूसरा कारण होता तो आप और हम भी करते। खैर, उधर ढूंढो ! उसने कुछ भिखारियों के टोले की तरफ इशारा किया।
मेरा मन किया की मैं भी आत्महत्या कर ही लूँ। परन्तु मैं वहां से निकल गया। आगे एक पान वाले की दुकान पर खड़ा हो गया। उसकी दुकान के टीवी में पद्म पुरस्कार मिलने वालों के नाम की घोषणा हो रही थी। उसमे नाम बोले जा रहे थे, अनुपम खेर, मधुर भंडारकर, मालिनी वगैरा वगैरा। मुझे लगा ये पद्म पुरस्कारों की बजाए सहिष्णुता के मामले पर निकाले गए सरकारी जलूस में भाग लेने वालों की कमेंट्री की जा रही है। तभी एक आदमी ने कहा की इसमें बाबा रामदेव का नाम क्यों नही है ?
वहां खड़े एक दूसरे आदमी ने उसका जवाब देते हुए कहा की बाबा रामदेव को नोबल पुरस्कार की लिस्ट में रखा गया है। नोबल पुरस्कार मिलने के बाद उनको सीधा भारत रतन दिया जायेगा।
प्रश्न करने वाला संतुष्ट नजर आया। उसके बाद मुलायम सिंह यादव का माफीनामा आया बाबरी मस्जिद तोड़ने के दौरान हुई कार्यवाही में कारसेवकों की मौत पर अफ़सोस व्यक्त करते हुए।
मुझे लगा मुलायम सिंह थोड़ा लेट हो गए वरना पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में उनका भी नाम हो सकता था। उसके बाद फ़्रांसिसी राष्ट्रपति होलांदे और प्रधानमंत्री मोदी की चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में उतारी गयी कुछ फोटो दिखाई गयी। फोटो ठीक उसी अंदाज में थी जिसमे युवा जोड़े अजीबोगरीब पोज बनाकर और लड़की लड़के के पीछे खड़ी होकर कन्धे पर हाथ रखकर उतरवाते हैं। मुझे शर्म आई और मैं दूसरी तरफ देखने लगा। टीवी देखते वक्त मुझे दिन में करीब बीस बार ऐसा करना पड़ता है जब कोई घर की महिला सदस्य या अगली पीढ़ी के लोग साथ बैठें हों।
उसके बाद खबर दी गयी की अगले पांच राज्यों में होने वाले चुनावो में भी हार की जिम्मेदारी लेने के लिए अमित शाह को ही चुना गया है। किस्मत अपनी अपनी।
उसके बाद नेताजी से जुडी हुई फाइलों में शामिल एक पत्र का नमूना दिखाया गया जिसमे जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस को युद्ध अपराधी कहने का जिक्र था। उस पत्र में जितनी भाषाई और तथ्यगत गलतियां हैं उतनी गलतियां तो दसवीं तक पढ़ा लिखा कोई आदमी भी नही करता। और ये पत्र उस जवाहरलाल नेहरू के नाम से दिखाया जा रहा है जिसकी लिखी हुई किताबें अंग्रेजी और विश्व साहित्य में क्लासिक का दर्जा रखती हैं। मुझे लगा नेहरू आज जिन्दा होते तो जरूर आत्महत्या कर लेते।
मेरी बर्दाश्त की हद आ गयी थी सो मैं घर की तरफ लौट पड़ा।
अभी कुछ ही दूर चला था की एक आदमी मुझे मिला। उसने मुझसे पूछा की कहां जा रहा हूँ तो मैंने बता दिया की दिल्ली घूमने का विचार है यूं ही टहलते टहलते। तो उसने उत्सुकता से कहा की भैया अगर यमुना जी की तरफ जाओ तो वहां एक नजर डाल लेना और गणतंत्र दिख जाये तो मुझे फोन कर देना।
लेकिन गणतंत्र यमुना जी के किनारे क्योँ मिलेगा ? मैंने पूछा।
अब क्या बताएं भईया। गणतंत्र दिवस से ठीक दो दिन पहले केंद्र कैबिनेट ने अरुणाचल प्रदेश में चुनी हुई राज्य सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। उस समय से गणतंत्र को लग रहा है की इन लोगों के हाथों से मरने से तो अच्छा है की आत्महत्या ही कर लूँ। और घर छोड़कर चला गया। अब मेरा दिल बहुत घबरा रहा है।
तो तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नही करते ? मैंने पूछा।
उसने एक खिसियानी सी हंसी हंसी और बोला की गया था भैय्या , लेकिन दरोगा ने कहा की तुम्हे दिखाई नही देता की 26 जनवरी के लिए कितनी तैयारियां करनी पड़ रही हैं। ऐसे समय में हम देश की सुरक्षा को छोड़कर इन ऐरे-गैरों को ढूंढते फिरें ? चलो भागो।
ठीक है मैं ध्यान रखूँगा, मैंने कहा और पहले यमुना जी के घाट पर ही जा पंहुंचा।
वहां घाट से कुछ दुरी पर कुछ मजदूर यमुना जी के किनारे पर पड़ा कचरा साफ कर रहे थे। एक बड़ी सी गाड़ी के पास एक मोटा सा आदमी शानदार कपड़े पहने खड़ा हुआ था। गाड़ी के अंदर डैशबोर्ड पर छोटा सा लेकिन खूबसूरत नया तिरंगा लगा हुआ था। मैंने उस झण्डे को ध्यान से देखने की कोशिश की तो उसने मुझे टोका।
क्या देख रहे हो भाई साहब ? कल गणतंत्र दिवस है। इस दिन हमारे देश को आजादी मिली थी। सो हर देश भक्त को अपनी गाड़ी पर तिरंगा लगाना चाहिए। मैं तो हर साल लगाता हूँ।
और जिसके पास गाड़ी ना हो वो क्या करें अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए ? उन मजदूरों की तरह के लोग। मैंने सफाई करते मजदूरों कि तरफ इशारा किया।
वो हँसा , उनको तो ये भी पता नही होगा की कल गणतंत्र दिवस है। ये तो देश पर बोझ हैं बोझ। वैसे भी इनके झण्डा लगाने ना लगाने से क्या फर्क पड़ता है ? उसने हाथ में पकड़ी हुई लिम्का की बोतल खत्म की और यमुना में उछाल दी। फिर उसने मेरी तरफ देख कर पूछा की तुम यहां क्या कर रहे हो ?
कुछ नही , किसी ने मुझे कहा था की गणतंत्र आत्महत्या करने निकला है सो मैं उसे यमुना जी के किनारे ढूंढने की कोशिश करूँ।
ये सब गए गुजरे लोग हैं जो आत्महत्या करके देश को बदनाम करते हैं। अब किसानो को ही देख लो, कायर कहीं के। काम धंधा तो करते नही हैं और निकल पड़ते हैं आत्महत्या करने के लिए, ताकि टीवी में नाम आ जाये। लेकिन इससे देश की कितनी बदनामी होती है इसका अंदाजा भी है उनको। उसने गहरी नाराजगी प्रकट की।
तो आपका मतलब है किसान टीवी में नाम आने के लिए आत्महत्या करते हैं ? मैंने आश्चर्य से बाहर आने की कोशिश की।
वरना क्या वजह है ? आप नही करते, मैं नही करता। अगर कोई दूसरा कारण होता तो आप और हम भी करते। खैर, उधर ढूंढो ! उसने कुछ भिखारियों के टोले की तरफ इशारा किया।
मेरा मन किया की मैं भी आत्महत्या कर ही लूँ। परन्तु मैं वहां से निकल गया। आगे एक पान वाले की दुकान पर खड़ा हो गया। उसकी दुकान के टीवी में पद्म पुरस्कार मिलने वालों के नाम की घोषणा हो रही थी। उसमे नाम बोले जा रहे थे, अनुपम खेर, मधुर भंडारकर, मालिनी वगैरा वगैरा। मुझे लगा ये पद्म पुरस्कारों की बजाए सहिष्णुता के मामले पर निकाले गए सरकारी जलूस में भाग लेने वालों की कमेंट्री की जा रही है। तभी एक आदमी ने कहा की इसमें बाबा रामदेव का नाम क्यों नही है ?
वहां खड़े एक दूसरे आदमी ने उसका जवाब देते हुए कहा की बाबा रामदेव को नोबल पुरस्कार की लिस्ट में रखा गया है। नोबल पुरस्कार मिलने के बाद उनको सीधा भारत रतन दिया जायेगा।
प्रश्न करने वाला संतुष्ट नजर आया। उसके बाद मुलायम सिंह यादव का माफीनामा आया बाबरी मस्जिद तोड़ने के दौरान हुई कार्यवाही में कारसेवकों की मौत पर अफ़सोस व्यक्त करते हुए।
मुझे लगा मुलायम सिंह थोड़ा लेट हो गए वरना पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में उनका भी नाम हो सकता था। उसके बाद फ़्रांसिसी राष्ट्रपति होलांदे और प्रधानमंत्री मोदी की चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में उतारी गयी कुछ फोटो दिखाई गयी। फोटो ठीक उसी अंदाज में थी जिसमे युवा जोड़े अजीबोगरीब पोज बनाकर और लड़की लड़के के पीछे खड़ी होकर कन्धे पर हाथ रखकर उतरवाते हैं। मुझे शर्म आई और मैं दूसरी तरफ देखने लगा। टीवी देखते वक्त मुझे दिन में करीब बीस बार ऐसा करना पड़ता है जब कोई घर की महिला सदस्य या अगली पीढ़ी के लोग साथ बैठें हों।
उसके बाद खबर दी गयी की अगले पांच राज्यों में होने वाले चुनावो में भी हार की जिम्मेदारी लेने के लिए अमित शाह को ही चुना गया है। किस्मत अपनी अपनी।
उसके बाद नेताजी से जुडी हुई फाइलों में शामिल एक पत्र का नमूना दिखाया गया जिसमे जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बॉस को युद्ध अपराधी कहने का जिक्र था। उस पत्र में जितनी भाषाई और तथ्यगत गलतियां हैं उतनी गलतियां तो दसवीं तक पढ़ा लिखा कोई आदमी भी नही करता। और ये पत्र उस जवाहरलाल नेहरू के नाम से दिखाया जा रहा है जिसकी लिखी हुई किताबें अंग्रेजी और विश्व साहित्य में क्लासिक का दर्जा रखती हैं। मुझे लगा नेहरू आज जिन्दा होते तो जरूर आत्महत्या कर लेते।
मेरी बर्दाश्त की हद आ गयी थी सो मैं घर की तरफ लौट पड़ा।
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