मैंने महाभारत को छः बार पढ़ा। एक चीज जो मुझे तब भी समझ में नहीं आई वो ये थी की महाभारत के युद्ध में महारथी शल्य किसकी तरफ से लड़ रहे थे ? मद्र नरेश शल्य पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे इसलिए नकुल और सहदेव के मामा थे। उनके पास बड़ी सेना थी और वो खुद भी बड़े योद्धा थे इसलिए कौरव और पांडव दोनों चाहते थे की वो उनके पक्ष में शामिल हों। लेकिन चूँकि वो पांडवों के मामा थे इसलिए वो पाण्डवों का साथ देने के लिए अपनी सेना के साथ निकले। लेकिन वो प्रशंसा को बहुत पसंद करते थे। दुर्योधन ने उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठाया। उसने उनके रास्ते में जगह जगह जलपान और विश्राम का प्रबंध किया। उनके स्वागत के लिए इंतजाम किये। इससे फूलकर महारथी शल्य ने उनके समर्थन का वचन दे दिया।
उसके बाद जब कर्ण सेनापति बने और उनका मुकाबला अर्जुन से होना था तो अर्जुन के सारथी कृष्ण थे, सो कर्ण के लिए उनके मुकाबले का सारथी चाहिए। इसलिए दुर्योधन और उनके सलाहकारों ने महारथी शल्य को उनका सारथी बना दिया। बाद में युद्ध के दौरान उसने कर्ण को इतना हतोत्साहित किया की कर्ण भी लगभग भरम का शिकार हो गया और अंत में मारा गया। महाभारत के जानकार कर्ण की हार के पीछे उनके सारथी शल्य को एक प्रमुख कारण मानते हैं।
ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राज्य सभा में सुब्र्मण्यम स्वामी को अरुण जेटली का सारथी नियुक्त कर दिया। अब सुब्र्मण्यम स्वामी योद्धा तो हैं लेकिन उनका कोई स्थाई पक्ष नहीं है। इसलिए उन्होंने पराक्रम दिखाते हुए पहले अरुण जेटली को ही घेरना शुरू कर दिया। युद्ध में मुख्य योद्धा को हराने के लिए ये जरूरी होता है की पहले उसके सहयोगी योद्धाओं को समाप्त किया जाये। इसलिए सुब्र्मण्यम स्वामी ने सबसे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली के सबसे मजबूत योद्धा रघुराम राजन को समाप्त किया। फिर उसने दूसरे योद्धा अरविन्द सुब्र्मण्यम का रूख किया। इसी दौरान दुर्योधन, मेरा मतलब है की नरेंद्र मोदी बीच में आ गए और उन्होंने उन्हें शत्रु पक्ष की तरफ बाण छोड़ने की सलाह दी। वरना अब तक अरुण जेटली भी कर्णगति को प्राप्त हो चुके होते। लेकिन बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी। अगर सुब्र्मण्यम स्वामी को शत्रु पक्ष में पराक्रम दिखाने का मौका नहीं मिला तो उनका रूख फिर अपने ही पक्ष की तरफ हो सकता है। वो आखिर योद्धा हैं और किसी भी योद्धा का प्रथम उद्देश्य पराक्रम दिखाना होता है , ये देखना नहीं होता की सामने कौन है।
जिस तरह मुझे ये समझ में नहीं आ रहा की शल्य किसकी तरफ थे, उसी तरह कुछ राजनितिक विश्लेषकों को ये समझ में नहीं आ रहा की सुब्र्मण्यम स्वामी आखिर किस तरफ हैं। वो बीजेपी की तरफ किसी विचारधारा की वजह से तो हैं नहीं, बल्कि उन्हें Z सिक्योरिटी देने, फिर दिल्ली के दिल में बंगला देने और उसके बाद राज्य सभा सीट देने के कारण महारथी शल्य की तरह बीजेपी के अहसानो का बदला चुका रहे हैं। वरना ये वही सुब्र्मण्यम स्वामी हैं जिन्होंने बाकायदा अख़बार में लेख लिखकर और सबूतों के साथ अटल बिहारी बाजपेयी पर आजादी की लड़ाई में गद्दारी करने और अमेरिका के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया था।
उसके बाद जब कर्ण सेनापति बने और उनका मुकाबला अर्जुन से होना था तो अर्जुन के सारथी कृष्ण थे, सो कर्ण के लिए उनके मुकाबले का सारथी चाहिए। इसलिए दुर्योधन और उनके सलाहकारों ने महारथी शल्य को उनका सारथी बना दिया। बाद में युद्ध के दौरान उसने कर्ण को इतना हतोत्साहित किया की कर्ण भी लगभग भरम का शिकार हो गया और अंत में मारा गया। महाभारत के जानकार कर्ण की हार के पीछे उनके सारथी शल्य को एक प्रमुख कारण मानते हैं।
ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राज्य सभा में सुब्र्मण्यम स्वामी को अरुण जेटली का सारथी नियुक्त कर दिया। अब सुब्र्मण्यम स्वामी योद्धा तो हैं लेकिन उनका कोई स्थाई पक्ष नहीं है। इसलिए उन्होंने पराक्रम दिखाते हुए पहले अरुण जेटली को ही घेरना शुरू कर दिया। युद्ध में मुख्य योद्धा को हराने के लिए ये जरूरी होता है की पहले उसके सहयोगी योद्धाओं को समाप्त किया जाये। इसलिए सुब्र्मण्यम स्वामी ने सबसे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली के सबसे मजबूत योद्धा रघुराम राजन को समाप्त किया। फिर उसने दूसरे योद्धा अरविन्द सुब्र्मण्यम का रूख किया। इसी दौरान दुर्योधन, मेरा मतलब है की नरेंद्र मोदी बीच में आ गए और उन्होंने उन्हें शत्रु पक्ष की तरफ बाण छोड़ने की सलाह दी। वरना अब तक अरुण जेटली भी कर्णगति को प्राप्त हो चुके होते। लेकिन बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी। अगर सुब्र्मण्यम स्वामी को शत्रु पक्ष में पराक्रम दिखाने का मौका नहीं मिला तो उनका रूख फिर अपने ही पक्ष की तरफ हो सकता है। वो आखिर योद्धा हैं और किसी भी योद्धा का प्रथम उद्देश्य पराक्रम दिखाना होता है , ये देखना नहीं होता की सामने कौन है।
जिस तरह मुझे ये समझ में नहीं आ रहा की शल्य किसकी तरफ थे, उसी तरह कुछ राजनितिक विश्लेषकों को ये समझ में नहीं आ रहा की सुब्र्मण्यम स्वामी आखिर किस तरफ हैं। वो बीजेपी की तरफ किसी विचारधारा की वजह से तो हैं नहीं, बल्कि उन्हें Z सिक्योरिटी देने, फिर दिल्ली के दिल में बंगला देने और उसके बाद राज्य सभा सीट देने के कारण महारथी शल्य की तरह बीजेपी के अहसानो का बदला चुका रहे हैं। वरना ये वही सुब्र्मण्यम स्वामी हैं जिन्होंने बाकायदा अख़बार में लेख लिखकर और सबूतों के साथ अटल बिहारी बाजपेयी पर आजादी की लड़ाई में गद्दारी करने और अमेरिका के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया था।
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