राज्य सभा में लम्बे समय तक अटके GST Bill का पास होना और इस तरह पास होना, कम से कम मेरे लिए तो आश्चर्यजनक है। इस बिल पर लोगों को बहुत आपत्तियां रही हैं। कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों को इस पर भारी एतराज था। वो इसका विरोध तब से कर रहे थे जब से कांग्रेस इसे पास कराने की कोशिश कर रही थी। अब इस पर कांग्रेस के एतराज को कुछ लोग बदले की कार्यवाही मान रहे थे, लेकिन जो सवाल कांग्रेस ने उठाये थे वो बहुत ही वाजिब सवाल थे। जिनमे से सरकार ने दो को मान लिया। एक महत्त्वपूर्ण सवाल, जिसे सरकार ने नही माना वो टैक्स की दर पर 18 % से ऊपर एक संवैधानिक रोक से सम्बन्धित था।
लेकिन इस पर राज्य सभा में जो बहस हुई, वो भी हैरत अंगेज थी। जदयू के नेता शरद यादव इस बिल पर आम सहमति बनाने का श्रेय ले रहे थे और नीतीश कुमार भी बाहर इस तरह की बात कर रहे थे जैसे ये बिल केवल उनके कारण ही पास हो रहा है।
दूसरा उदाहरण कामरेड सीताराम येचुरी का है। सी.पी.एम. जिन कारणों से इस बिल का विरोध कर रही थी वो सारे कारण सीताराम येचुरी ने अपने भाषण में एक बार फिर गिनवा दिए। उनमे सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल राज्यों के उस अधिकार से समन्धित था जिसमे स्थानीय स्तर पर टैक्स लगाने का उनका अधिकार इसके बाद समाप्त हो जाने वाला है। उन्होंने सभी कारणों को उसी कुशलता के साथ गिनाया, लेकिन बिल का विरोध नही किया। एक जनविरोधी बिल पर इस तरह की आमसहमति भय पैदा करने वाली है।
इस बिल के बाद जो टैक्स की व्यवस्था लागु होगी उसमे राज्य सरकारों की भूमिका केवल राजस्व विभाग जितनी रह जाएगी। अगर कोई राज्य सरकार ये समझती है की उसे किसी वस्तु पर लोगों को टैक्स में छूट देनी है तो नही दे पायेगी। बीजेपी और हमारी पूरी मोनोपलिस्टिक व्यवस्था जिस एकीकृत और केंद्रीकृत व्यवस्था का सपना देख रही थी, ये उसकी तरफ एक बड़ा कदम है।
राज्य सभा की बहस में जो चीज सबसे अजीब और वितृष्णा पैदा करने वाली थी, वो ये की GST के बारे में, जो की सीधे राज्यों से सम्बन्धित है, सरकार कोई भी फैसला ले तो सभी विपक्षी सांसद सरकार और वित्त मंत्री से आजिजी कर रहे थे की उस बिल को मनी बिल के रूप में ना लाया जाये। क्योंकि मनी बिल पर राज्य सभा को वोट का अधिकार हासिल नही है। ये कैसी व्यवस्था है जिसमे राज्यों के सीधे प्रतिनिधियों को राज्यों के बारे में फैसला करने वाले बिल पर वोटिंग का अधिकार नही है। टैक्स की आमदनी बढ़ने की ख़ुशी में अतिउत्साहित सांसद इसमें इतना बदलाव तक नही करवा पाए की इससे सम्बन्धित कोई भी बिल मनी बिल के रूप में पेश नही होगा।
दूसरा जो उल्टा अर्थशास्त्र लोगों को पढ़ाया जा रहा है वो ये है। वित्त मंत्री बार बार ये कह रहे हैं की इससे राज्यों की आमदनी बढ़ेगी। जो दिखाई भी दे रहा है। अगर सरकार GST की दर 18 % के न्यूनतम स्तर पर भी रखती है ( जो की सम्भव नही लगता ) तो भी सभी चीजों पर सर्विस टैक्स 14 % से बढ़कर 18 % हो जायेगा। बाकि चीजों के दाम भी बढ़ेंगे। इससे राज्यों और केंद्र, दोनों की कमाई बढ़ेगी। लेकिन उसके बाद ये कहना की इससे लोगों को सस्ती चीजें मिलेंगी, हद दर्जे का मजाक है। राज्य की कमाई बढ़ जाये और चीजें सस्ती हो जाएँ, तो बीच का पैसा क्या अमेरिका आपको देगा ? कॉरपोरेट मीडिया द्वारा बार बार बोले जा रहे इस झूठ की सच्चाई तो ये टैक्स लागु होते ही लोगों के सामने आ जाएगी। उसके बाद ?
इस बिल के जो दुष्प्रभाव होंगे, लोगों पर जो बोझ पड़ेगा , उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? क्या उसके बाद शरद यादव , अरुण जेटली, सीताराम येचुरी या तृणमूल के नेता संसद में और बाहर छाती ठोंककर ये कहेंगे की हाँ, हम हैं इसके जिम्मेदार। या फिर वही राजनैतिक बयानबाजी का दौर चलेगा। हमारी कोई सुन नही रहा, सरकार ने हमे धोखे में रक्खा, हम इस महंगाई के खिलाफ है आदि आदी।
या फिर लोगों को मान लेना चाहिए की सब नूरा कुश्ती है।
लेकिन इस पर राज्य सभा में जो बहस हुई, वो भी हैरत अंगेज थी। जदयू के नेता शरद यादव इस बिल पर आम सहमति बनाने का श्रेय ले रहे थे और नीतीश कुमार भी बाहर इस तरह की बात कर रहे थे जैसे ये बिल केवल उनके कारण ही पास हो रहा है।
दूसरा उदाहरण कामरेड सीताराम येचुरी का है। सी.पी.एम. जिन कारणों से इस बिल का विरोध कर रही थी वो सारे कारण सीताराम येचुरी ने अपने भाषण में एक बार फिर गिनवा दिए। उनमे सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल राज्यों के उस अधिकार से समन्धित था जिसमे स्थानीय स्तर पर टैक्स लगाने का उनका अधिकार इसके बाद समाप्त हो जाने वाला है। उन्होंने सभी कारणों को उसी कुशलता के साथ गिनाया, लेकिन बिल का विरोध नही किया। एक जनविरोधी बिल पर इस तरह की आमसहमति भय पैदा करने वाली है।
इस बिल के बाद जो टैक्स की व्यवस्था लागु होगी उसमे राज्य सरकारों की भूमिका केवल राजस्व विभाग जितनी रह जाएगी। अगर कोई राज्य सरकार ये समझती है की उसे किसी वस्तु पर लोगों को टैक्स में छूट देनी है तो नही दे पायेगी। बीजेपी और हमारी पूरी मोनोपलिस्टिक व्यवस्था जिस एकीकृत और केंद्रीकृत व्यवस्था का सपना देख रही थी, ये उसकी तरफ एक बड़ा कदम है।
राज्य सभा की बहस में जो चीज सबसे अजीब और वितृष्णा पैदा करने वाली थी, वो ये की GST के बारे में, जो की सीधे राज्यों से सम्बन्धित है, सरकार कोई भी फैसला ले तो सभी विपक्षी सांसद सरकार और वित्त मंत्री से आजिजी कर रहे थे की उस बिल को मनी बिल के रूप में ना लाया जाये। क्योंकि मनी बिल पर राज्य सभा को वोट का अधिकार हासिल नही है। ये कैसी व्यवस्था है जिसमे राज्यों के सीधे प्रतिनिधियों को राज्यों के बारे में फैसला करने वाले बिल पर वोटिंग का अधिकार नही है। टैक्स की आमदनी बढ़ने की ख़ुशी में अतिउत्साहित सांसद इसमें इतना बदलाव तक नही करवा पाए की इससे सम्बन्धित कोई भी बिल मनी बिल के रूप में पेश नही होगा।
दूसरा जो उल्टा अर्थशास्त्र लोगों को पढ़ाया जा रहा है वो ये है। वित्त मंत्री बार बार ये कह रहे हैं की इससे राज्यों की आमदनी बढ़ेगी। जो दिखाई भी दे रहा है। अगर सरकार GST की दर 18 % के न्यूनतम स्तर पर भी रखती है ( जो की सम्भव नही लगता ) तो भी सभी चीजों पर सर्विस टैक्स 14 % से बढ़कर 18 % हो जायेगा। बाकि चीजों के दाम भी बढ़ेंगे। इससे राज्यों और केंद्र, दोनों की कमाई बढ़ेगी। लेकिन उसके बाद ये कहना की इससे लोगों को सस्ती चीजें मिलेंगी, हद दर्जे का मजाक है। राज्य की कमाई बढ़ जाये और चीजें सस्ती हो जाएँ, तो बीच का पैसा क्या अमेरिका आपको देगा ? कॉरपोरेट मीडिया द्वारा बार बार बोले जा रहे इस झूठ की सच्चाई तो ये टैक्स लागु होते ही लोगों के सामने आ जाएगी। उसके बाद ?
इस बिल के जो दुष्प्रभाव होंगे, लोगों पर जो बोझ पड़ेगा , उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? क्या उसके बाद शरद यादव , अरुण जेटली, सीताराम येचुरी या तृणमूल के नेता संसद में और बाहर छाती ठोंककर ये कहेंगे की हाँ, हम हैं इसके जिम्मेदार। या फिर वही राजनैतिक बयानबाजी का दौर चलेगा। हमारी कोई सुन नही रहा, सरकार ने हमे धोखे में रक्खा, हम इस महंगाई के खिलाफ है आदि आदी।
या फिर लोगों को मान लेना चाहिए की सब नूरा कुश्ती है।
Rambilas ji, मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ | आपने केवल Service Tax के बारे में बात की है जबकि excise tax जो कि काफी कम हो जायेगा उस पर कुछ नहीं कहा है | आपसे निवदेन है कि आप एक बार GST पर मेरी post http://www.khayalrakhe.com/2016/08/Goods-and-Service-Tax-GST-in-hindi.html जरुर पढ़ें |
ReplyDeleteबबीता जी आपकी जानकारी सही नही है। EXCISE DUTY की दर 12 % है। लगभग 95 % वस्तुओं पर यही दर है। इसलिए इससे टैक्स की दर कम होगी ये तो ख्याम ख्याली ही है। आपका आर्टिकल बहुत ही कम जानकारी पर आधारित है। GST पर मेरे दूसरे दो आर्टिकल भी इसी ब्लॉग में हैं, जिनमे उस पर विस्तार से चर्चा की गयी है। वैसे भी लोगों को कम पैसा देना पड़े और सरकार की जाये, इस कोई तरीका अब तक ईजाद नही हुआ है।
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