नोटबंदी की विफलता इतनी बड़ी है की अब इसका उद्देश्य साबित करने की कोशिश में सरकार हकलाने लगी है। अब उसको खुद नहीं पता होता की वो क्या कह रही है और क्यों कह रही है। इस विफलता को छिपाने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है। शुरू में इसकी सफलता पर कुछ अर्थशास्त्री सवाल उठा रहे थे, कुछ समय बाद साधारण अर्थशास्त्र का विद्यार्थी भी इसकी विफलता को समझने लगा था। अब तो हालत ये है की साधारण आदमी, जिसका अर्थशास्त्र से कोई लेना देना नहीं है वो भी इसकी विफलता को खुली आँखों से देख सकता है। अब अगर कोई नोटबंदी के फायदे गिनवाने की कोशिश करता है तो सामने वाला पहले ही हसना शुरू कर देता है।
इस क्रम में सबसे ज्यादा फजीहत अगर किसी की हुई है तो वो है रिजर्व बैंक। सरकार के फैसले की जिम्मेदारी और उसकी विफलता को छुपाने की कोशिश में रिजर्व बैंक ने अपनी साख में बट्टा लगा लिया है। लगातार नो महीने तक ये कहना की अभी वो नोटों की गिनती कर रहा है, उसे हास्यास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। हालाँकि इस फैसले की सफलता और विफलता की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो अब मान-अपमान और हंसी मखौल से ऊपर उठ चुके हैं। अब तो हालत ये है की प्रधानमंत्री कुछ भी बोल देते हैं और सरकार तुरंत उस बयान की सफाई ढूढ़ने में लग जाती है। जैसे 56लाख नए करदाता जुड़ने वाला बयान। जिस पर वित्तमंत्रालय से लेकर CBDT तक सफाई नहीं पेश कर पा रहे हैं और उस पर बड़ी बात ये की ये आंकड़ा प्रधानमंत्री ने लालकिले से पेश कर दिया।
अब रिजर्व बैंक ने आखिर में ये आंकड़ा पेश कर दिया है की 99 % नोट बैंक में वापिस आ गए हैं। यानि रिजर्व बैंक के अनुसार जो केवल मात्र 16 हजार करोड़ के नोट वापिस नहीं आये उनकी रकम उतनी भी नहीं बनती जितना नए नोटों पर खर्चा हो गया है। और इसमें भी एक चालाकी की गयी है। रिजर्व बैंक ने ये आंकड़ा देते हुए (मार्च तक ) शब्द का प्रयोग किया है। सबको मालूम है की मार्च तक सरकार ने जिला कोपरेटिव बैंको में जमा 1000 और 500 के नोटों को स्वीकार नहीं किया था। अगर उस रकम को भी जोड़ लिया जाये तो लोगों की वो आशंका सही साबित हो जाएगी की कहीं घोषित रकम से ज्यादा नोट तो वापिस नहीं आ गए। क्योंकि लोगों को शक है की नोट जमा कराने के दौरान बड़े पैमाने पर नकली नोट भी जमा हुए हो सकते हैं, क्योंकि रिजर्व बैंक के पास तो नोट गिनने तक का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था फिर असली नकली देखने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है।
लेकिन अब रिजर्व बैंक का आंकड़ा सामने आने के बाद सरकार एक बार फिर नोटबंदी की सफलता के पक्ष में एक बहुत ही हास्यास्पद तर्क दे रही है। वो तर्क ये है की नोटबंदी के कारण 2 लाख फर्जी कम्पनियों का पता चला। जो लोग भी थोड़ा सा भी इस प्रक्रिया को समझते हैं की इन तथाकथित फर्जी कम्पनियों और नोटबंदी का आपस में कोई लेना देना नहीं है। असल में ये मामला इस तरह है - हर साल लाखों लोग रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ( ROC ) के पास नई कम्पनी रजिस्टर्ड करवाते हैं। इसके पीछे भविष्य में कोई काम शुरू करने की इच्छा होती है। लेकिन कई तरह के कारणों की वजह से वो कामकाज शुरू नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनमे से बहुत से लोग ROC में सालाना लेखा पेश नहीं करते। और कुछ शून्य कामकाज का लेखा पेश करते हैं। ROC अपने नियमो के हिसाब से लेखा पेश न करने वाली कंपनियों की सदस्य्ता हर साल कैंसिल कर देती है। ये एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका रिकार्ड हमेशा ROC के पास रहता है। इस साल सरकार के कहने पर ROC ने ऐसी कम्पनियों का रजिस्ट्रेशन बड़ी तादाद में एक साथ रद्द कर दिया। बस इतना सा मामला है और इसका नोटबंदी से कुछ भी लेना देना नहीं है। ROC को हमेशा पता होता है की कितनी कम्पनिया शून्य कामकाज के स्तर पर हैं।
अब सरकार इसको इस तरह पेश कर रही है जैसे उसने बहुत बड़ा गोलमाल पकड़ लिया हो जो सालों से चल रहा था। अगर ऐसा है तो सरकार बताये की कितने लोगों पर केस दर्ज हुआ है। और कितने लोग जेल के अंदर हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। सरकार का व्यवहार खिसियायी बिल्ली जैसा हो गया है और इसके कारण हमारा देश पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बन गया है।
इस क्रम में सबसे ज्यादा फजीहत अगर किसी की हुई है तो वो है रिजर्व बैंक। सरकार के फैसले की जिम्मेदारी और उसकी विफलता को छुपाने की कोशिश में रिजर्व बैंक ने अपनी साख में बट्टा लगा लिया है। लगातार नो महीने तक ये कहना की अभी वो नोटों की गिनती कर रहा है, उसे हास्यास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। हालाँकि इस फैसले की सफलता और विफलता की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की है, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो अब मान-अपमान और हंसी मखौल से ऊपर उठ चुके हैं। अब तो हालत ये है की प्रधानमंत्री कुछ भी बोल देते हैं और सरकार तुरंत उस बयान की सफाई ढूढ़ने में लग जाती है। जैसे 56लाख नए करदाता जुड़ने वाला बयान। जिस पर वित्तमंत्रालय से लेकर CBDT तक सफाई नहीं पेश कर पा रहे हैं और उस पर बड़ी बात ये की ये आंकड़ा प्रधानमंत्री ने लालकिले से पेश कर दिया।
अब रिजर्व बैंक ने आखिर में ये आंकड़ा पेश कर दिया है की 99 % नोट बैंक में वापिस आ गए हैं। यानि रिजर्व बैंक के अनुसार जो केवल मात्र 16 हजार करोड़ के नोट वापिस नहीं आये उनकी रकम उतनी भी नहीं बनती जितना नए नोटों पर खर्चा हो गया है। और इसमें भी एक चालाकी की गयी है। रिजर्व बैंक ने ये आंकड़ा देते हुए (मार्च तक ) शब्द का प्रयोग किया है। सबको मालूम है की मार्च तक सरकार ने जिला कोपरेटिव बैंको में जमा 1000 और 500 के नोटों को स्वीकार नहीं किया था। अगर उस रकम को भी जोड़ लिया जाये तो लोगों की वो आशंका सही साबित हो जाएगी की कहीं घोषित रकम से ज्यादा नोट तो वापिस नहीं आ गए। क्योंकि लोगों को शक है की नोट जमा कराने के दौरान बड़े पैमाने पर नकली नोट भी जमा हुए हो सकते हैं, क्योंकि रिजर्व बैंक के पास तो नोट गिनने तक का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था फिर असली नकली देखने का तो सवाल ही कहां पैदा होता है।
लेकिन अब रिजर्व बैंक का आंकड़ा सामने आने के बाद सरकार एक बार फिर नोटबंदी की सफलता के पक्ष में एक बहुत ही हास्यास्पद तर्क दे रही है। वो तर्क ये है की नोटबंदी के कारण 2 लाख फर्जी कम्पनियों का पता चला। जो लोग भी थोड़ा सा भी इस प्रक्रिया को समझते हैं की इन तथाकथित फर्जी कम्पनियों और नोटबंदी का आपस में कोई लेना देना नहीं है। असल में ये मामला इस तरह है - हर साल लाखों लोग रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ( ROC ) के पास नई कम्पनी रजिस्टर्ड करवाते हैं। इसके पीछे भविष्य में कोई काम शुरू करने की इच्छा होती है। लेकिन कई तरह के कारणों की वजह से वो कामकाज शुरू नहीं कर पाते हैं। इसलिए उनमे से बहुत से लोग ROC में सालाना लेखा पेश नहीं करते। और कुछ शून्य कामकाज का लेखा पेश करते हैं। ROC अपने नियमो के हिसाब से लेखा पेश न करने वाली कंपनियों की सदस्य्ता हर साल कैंसिल कर देती है। ये एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका रिकार्ड हमेशा ROC के पास रहता है। इस साल सरकार के कहने पर ROC ने ऐसी कम्पनियों का रजिस्ट्रेशन बड़ी तादाद में एक साथ रद्द कर दिया। बस इतना सा मामला है और इसका नोटबंदी से कुछ भी लेना देना नहीं है। ROC को हमेशा पता होता है की कितनी कम्पनिया शून्य कामकाज के स्तर पर हैं।
अब सरकार इसको इस तरह पेश कर रही है जैसे उसने बहुत बड़ा गोलमाल पकड़ लिया हो जो सालों से चल रहा था। अगर ऐसा है तो सरकार बताये की कितने लोगों पर केस दर्ज हुआ है। और कितने लोग जेल के अंदर हैं। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। सरकार का व्यवहार खिसियायी बिल्ली जैसा हो गया है और इसके कारण हमारा देश पूरी दुनिया में मजाक का पात्र बन गया है।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.