इसमें दोनों संभावनाएं हैं।
एक तरफ देश का एक बड़ा वर्ग ये मानता है की EVM को हैक करके नतीजों को बदला जाता है। उसके हिसाब से पहले भाजपा के नेता सीटों की संख्या का प्रचार करते हैं, फिर मीडिया अपने ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल के जरिये उसे वैधता प्रदान करता है और उसके बाद EVM में पहले से फिक्स किये गए नतीजे घोषित कर दिए जाते हैं। इन नतीजों पर कोई सवाल खड़ा न करे इसलिए एग्जिट पोल का उपयोग किया जाता है।
इस स्थिति का सबसे खराब पहलु ये है की खुद चुनाव आयोग का रवैया इस पर ऐसा रहा है जो भरोसा पैदा करने की बजाय शक पैदा करता है। VVPAT की पर्चियों का मिलान EVM से किया जाये तो इस पर एक हद तक भरोसा पैदा हो सकता था लेकिन केवल भाजपा को छोड़ कर बाकि सभी दलों की न्यूनतम 25 % मशीनो की पर्चियों के मिलान की बात भी चुनाव आयोग ने ठुकरा दी। और इसके लिए बहुत ही लचर तर्क दिया गया की इसमें समय बहुत लगेगा। पहले तो सभी चुनाव बैलेट पेपर से होते थे और उनके रुझान दोपहर तक आने शुरू हो जाते थे और अगले दिन तक सभी नतीजे घोषित हो जाते थे। फिर केवल 25 % मशीनो के मिलान पर आयोग ने कहा की इसमें पांच दिन की देरी होगी जो की हास्यास्पद है। आयोग का ये रुख EVM पर लोगों का भरोसा कम करता है। इसके बाद आयोग ने EVM पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ धाक धमकी का सहारा लिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग को कोई भरोसे लायक निर्देश देने में कोताही की। जबकि होना ये चाहिए था की चुनाव आयोग सभी राजनैतिक दलों के साथ सलाह मशविरा करके कोई रास्ता निकालता ताकि लोगों का भरोसा चुनाव प्रणाली पर बना रहे।
इसलिए लोग इन एग्जिट पोल को एक साजिश की तरह देखते हैं।
दूसरी तरफ वो लोग हैं जो EVM में किसी तरह की टैम्परिंग की संभावना को ख़ारिज करते हैं। लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों पर हैरान हैं। मेरी हरियाणा चुनाव से सीधे जुड़े बहुत से लोगों से चुनाव से पहले और बाद में राजनैतिक हालात पर चर्चा हुई। इसमें लगभग आधे लोगों का मानना है की भाजपा हरियाणा में हार रही है , और बाकी आधे लोगों का मानना है की भाजपा की सरकार बन सकती है लेकिन बहुमत से नहीं। 90 % लोगों का मानना है की हरियाणा में हंग असेम्ब्ली की संभावना ज्यादा है। लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से वो भी हैरान हैं। एक बार अगर ये मान लिया जाये की एग्जिट पोल के नतीजे किसी साजिश का हिस्सा नहीं है तो फिर क्या ये गणितीय भूल है ?
ऐसा हो सकता है। ये किस तरह हो सकता है इसे इस तरह समझिये। मान लो पुरे हरियाणा के स्तर पर कोई एग्जिट पोल के लिए सैंपल इकट्ठे करता है और उसके सैंपलों का परिणाम इस प्रकार आता है - भाजपा 40 %, कांग्रेस 32 % और जजपा 28 % . तो तिकोने मुकाबले में भाजपा की दोनों पार्टियों से 8 से लेकर 12 % तक की बढ़त है। इतनी बड़ी बढ़त के दम पर 75 सीटें लेना बहुत ही आसान है और कोई भी स्टैटिटिक्स का जानकर इससे यही नतीजा निकालेगा।
लेकिन अगर धरातल पर सीट बाई सीट कांग्रेस और जजपा की बढ़त अलग अलग है जैसे जिस सीट पर जजपा मजबूत है वहां उसका वोट प्रतिशत 42 -43 % हो जाता है और जहाँ कांग्रेस मजबूत हैं वहां उसका वोट प्रतिशत 40 % को पार कर लेता है और बाकि सीटों पर इन दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत कम रहता है तो भाजपा आराम से हार सकती है। लोग भी यही कह रहे हैं। लोगों का कहना है की जहाँ कांग्रेस का उम्मीदवार मजबूत था वहां भाजपा विरोधी वोटों का धुर्वीकरण उसके पक्ष में हो गया और जहाँ जजपा मजबूत थी वहां उसके पक्ष में। इस तरह के हालात में पुरे प्रदेश के पैमाने पर गिना गया वोट प्रतिशत हमेशा गलत नतीजे देगा। कोई भी सफ़ॉलोजिस्ट बिना एक एक सीट के अलग सर्वे के सही नतीजे नहीं निकाल सकता। इसलिए एग्जिट पोल के नतीजे और असल नतीजे अलग अलग हो सकते हैं।
एक तरफ देश का एक बड़ा वर्ग ये मानता है की EVM को हैक करके नतीजों को बदला जाता है। उसके हिसाब से पहले भाजपा के नेता सीटों की संख्या का प्रचार करते हैं, फिर मीडिया अपने ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल के जरिये उसे वैधता प्रदान करता है और उसके बाद EVM में पहले से फिक्स किये गए नतीजे घोषित कर दिए जाते हैं। इन नतीजों पर कोई सवाल खड़ा न करे इसलिए एग्जिट पोल का उपयोग किया जाता है।
इस स्थिति का सबसे खराब पहलु ये है की खुद चुनाव आयोग का रवैया इस पर ऐसा रहा है जो भरोसा पैदा करने की बजाय शक पैदा करता है। VVPAT की पर्चियों का मिलान EVM से किया जाये तो इस पर एक हद तक भरोसा पैदा हो सकता था लेकिन केवल भाजपा को छोड़ कर बाकि सभी दलों की न्यूनतम 25 % मशीनो की पर्चियों के मिलान की बात भी चुनाव आयोग ने ठुकरा दी। और इसके लिए बहुत ही लचर तर्क दिया गया की इसमें समय बहुत लगेगा। पहले तो सभी चुनाव बैलेट पेपर से होते थे और उनके रुझान दोपहर तक आने शुरू हो जाते थे और अगले दिन तक सभी नतीजे घोषित हो जाते थे। फिर केवल 25 % मशीनो के मिलान पर आयोग ने कहा की इसमें पांच दिन की देरी होगी जो की हास्यास्पद है। आयोग का ये रुख EVM पर लोगों का भरोसा कम करता है। इसके बाद आयोग ने EVM पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ धाक धमकी का सहारा लिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग को कोई भरोसे लायक निर्देश देने में कोताही की। जबकि होना ये चाहिए था की चुनाव आयोग सभी राजनैतिक दलों के साथ सलाह मशविरा करके कोई रास्ता निकालता ताकि लोगों का भरोसा चुनाव प्रणाली पर बना रहे।
इसलिए लोग इन एग्जिट पोल को एक साजिश की तरह देखते हैं।
दूसरी तरफ वो लोग हैं जो EVM में किसी तरह की टैम्परिंग की संभावना को ख़ारिज करते हैं। लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों पर हैरान हैं। मेरी हरियाणा चुनाव से सीधे जुड़े बहुत से लोगों से चुनाव से पहले और बाद में राजनैतिक हालात पर चर्चा हुई। इसमें लगभग आधे लोगों का मानना है की भाजपा हरियाणा में हार रही है , और बाकी आधे लोगों का मानना है की भाजपा की सरकार बन सकती है लेकिन बहुमत से नहीं। 90 % लोगों का मानना है की हरियाणा में हंग असेम्ब्ली की संभावना ज्यादा है। लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से वो भी हैरान हैं। एक बार अगर ये मान लिया जाये की एग्जिट पोल के नतीजे किसी साजिश का हिस्सा नहीं है तो फिर क्या ये गणितीय भूल है ?
ऐसा हो सकता है। ये किस तरह हो सकता है इसे इस तरह समझिये। मान लो पुरे हरियाणा के स्तर पर कोई एग्जिट पोल के लिए सैंपल इकट्ठे करता है और उसके सैंपलों का परिणाम इस प्रकार आता है - भाजपा 40 %, कांग्रेस 32 % और जजपा 28 % . तो तिकोने मुकाबले में भाजपा की दोनों पार्टियों से 8 से लेकर 12 % तक की बढ़त है। इतनी बड़ी बढ़त के दम पर 75 सीटें लेना बहुत ही आसान है और कोई भी स्टैटिटिक्स का जानकर इससे यही नतीजा निकालेगा।
लेकिन अगर धरातल पर सीट बाई सीट कांग्रेस और जजपा की बढ़त अलग अलग है जैसे जिस सीट पर जजपा मजबूत है वहां उसका वोट प्रतिशत 42 -43 % हो जाता है और जहाँ कांग्रेस मजबूत हैं वहां उसका वोट प्रतिशत 40 % को पार कर लेता है और बाकि सीटों पर इन दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत कम रहता है तो भाजपा आराम से हार सकती है। लोग भी यही कह रहे हैं। लोगों का कहना है की जहाँ कांग्रेस का उम्मीदवार मजबूत था वहां भाजपा विरोधी वोटों का धुर्वीकरण उसके पक्ष में हो गया और जहाँ जजपा मजबूत थी वहां उसके पक्ष में। इस तरह के हालात में पुरे प्रदेश के पैमाने पर गिना गया वोट प्रतिशत हमेशा गलत नतीजे देगा। कोई भी सफ़ॉलोजिस्ट बिना एक एक सीट के अलग सर्वे के सही नतीजे नहीं निकाल सकता। इसलिए एग्जिट पोल के नतीजे और असल नतीजे अलग अलग हो सकते हैं।