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Tuesday, October 1, 2019

डरावने आंकड़े आ रहे हैं अर्थ व्यवस्था के।

            पिछले कई क़्वार्टर से अर्थ व्यवस्था बैक गियर में जा रही है। अब ये स्पष्ट हो चूका है की ये गिरावट किसी क़्वार्टर की किसी खास वजह से नहीं है बल्कि एक लगातार जारी ढलान की तरफ और ढांचागत कारणों से है। अब तो इसको लगभग सरकार ने भी मान लिया है भले ही दबी जुबान में सही। लेकिन सरकार और उसके कुछ खास लोगों को अब भी उम्मीद है की ये अपने आप ठीक हो जाएगी। इसके लिए सरकार ने कुछ कदमो की घोषणा भी की लेकिन जानकारों का मानना है की सरकार के कदमो से कॉरपोरेट सैक्टर को आर्थिक लाभ तो मिलेगा लेकिन इन कदमो से बाजार में मांग पैदा नहीं होगी और लिहाजा अर्थ व्यवस्था में कोई सुधार नहीं होगा।
              जानकारों का मानना है की अर्थ व्यवस्था में मंदी लोगों की क्रय शक्ति कम होने के चलते मांग में आयी गिरावट की वजह से है और जिस पर इन कदमो का कोई असर होने वाला नहीं है। फिर भी एक आशावादी तबके को सुधार की उम्मीद है और वो इसका इंतजार कर रहे हैं।
                 लेकिन जब भी अर्थ व्यवस्था से संबंधित कोई भी आंकड़ा सामने आता है तो उसमे बीमारी के बढ़ने के संकेत हैं न की घटने के। अब इस क्रम में जो ताज़ा आंकड़े आये हैं वो तो बहुत ही डरावने हैं। 30 सितम्बर 2019 को जारी आंकड़ों के अनुसार अर्थ व्यवस्था की हालत निम्न अनुसार है।

१. देश का फिस्कल डेफिसिट 5538.40 B  डॉलर हो गया जो पिछले महीने से करीब 62 B डॉलर ज्यादा है।

२. भारत का चालू खाता घाटा -14.30 B डॉलर हो गया जो  पहले -4.60  B  डॉलर था।

३.  भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी के -2.00 % हो गया जो पहले -0.70 % था।

४.  भारत का भुगतान संतुलन -46.20  B  डॉलर हो गया जो पिछली अवधी में। 35.20  B  डॉलर था।

५.  सबसे भयानक बात ये की भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर आउटपुट -0.5 % हो गया जो 52 महीने का निचला स्तर है और जो पिछली अवधि में 2.7 % था।

            इसका सीधा सा मतलब ये है की औद्योगिक उत्पादन तेजी से गिर रहा है , भुगतान संतुलन बिगड़ रहा है और घाटा बढ़ रहा है। इसका सीधा असर ये होता है की सरकार इ हस्तक्षेप करने की क्षमता घट जाती है और सुधार की उम्मीद फीकी होती चली जाती है। 

Wednesday, October 12, 2016

राष्ट्रवाद के नारों के बीच डूब रहा है अर्थव्यवस्था का जहाज

           चारों तरफ मारो-काटो और बदला लेने के राष्ट्रवादी नारों का शोर मचा हुआ है। पीठ थपथपाई जा रही हैं, अभिनन्दन समारोह आयोजित किये जा रहे हैं। चारों तरफ एक उन्माद का वातावरण है। और इस वातावरण के बीच एक खतरनाक स्थिति का निर्माण हो रहा है। जिस स्थिति की तरफ सरकार के समर्थक देखना नही चाहते, सरकार जवाब नही देना चाहती और शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छुपाकर आनन्द मनाया जा रहा है।
              ये स्थिति है हमारी अर्थव्यवस्था के बारे में। पिछले कुछ दिनों से खुद सरकार की तरफ से जो आकंड़े जारी किये गए हैं, वो बहुत ही डरावने हैं। निराशाजनक शब्द  उनके लिए छोटा पड़ने लगा है। सरकार के मंत्री और मीडिया भले ही इसके बारे में भरमपूर्ण जानकारियां दे, लेकिन आंकड़े बिलकुल दूसरी ही तस्वीर पेश कर रहे हैं।
IIP के ताजा आंकड़े --
                                  दो दिन पहले ही औद्योगिक उत्पादन के ताजा आंकड़े जाहिर किये गए हैं। उनके अनुसार औद्योगिक उत्पादन में 0 . 8 % की गिरावट दर्ज की गयी है। ये लगातार दूसरा महीना है जिसमे मैनुफक्चरींग की दर गिर रही है। मौजूद आंकड़े पिछले एक दशक में सबसे खराब स्तर पर हैं। इस पर उद्योग जगत भी चिंता जाहिर कर रहा है। ( IIP आंकड़ों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं। http://economictimes.indiatimes.com/topic/IIP-data  ) उद्योग जगत के लोग भी अब अर्थव्यवस्था में किसी रिवाईवल को मुश्किल मन रहे हैं। एसोचेम के महासचिव रावत ने भी इस पर निराश प्रकट की है। देखिये http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/policy/iip-data-shows-revival-a-major-challenge-india-inc/articleshow/52693325.cms    

विदेशी कर्ज का फन्दा --
                                    किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खराब स्थिति वह होती है जब उसे अपने पुराने कर्जों का ब्याज चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़े। आजकल हम उसी स्थिति में पहुंच गए हैं। हमे अपने कर्जों और ब्याज के भुगतान के लिए नया कर्ज लेना पड़ रहा है। Sunday guardian के लिए लिखते हुए Jehangir Pocha ने इस स्थिति को काफी खतरनाक बताया है। ( देखिये लिंक http://www.sunday-guardian.com/analysis/in-the-end-india-will-still-be-trapped-in-debt )  

वितीय घाटे की स्थिति --
                                   ये सरकार अब तक अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि वितीय घाटे को बजट की सीमा के अंदर रखने को बताती थी। इस बार बजट में सरकार ने वितीय घाटे की सीमा 3 . 5 % निर्धारित की थी जिसे एक सकारात्मक कदम माना गया था। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी इसके लिए सरकार की पीठ थपथपाई थी। लेकिन अब स्थिति ये है की अप्रैल से जून के प्रथम क्वार्टर में ही कुल टारगेट का 61 % खत्म हो चूका है। अब इसको पूरा करने के लिए सरकार पब्लिक सैक्टर के कारखानों को बेचने जैसे कदम उठाएगी। अपने वितीय घाटे को पूरा करने के लिए राष्ट्र की सम्पत्तियां बेचना वैसा ही है जैसे कोई घर का खर्च चलाने के लिए जेवर बेचे। इसका ब्यौरा आप यहां देख सकते हैं। http://www.thehindu.com/business/Economy/indias-gross-fiscal-deficit-to-exceed-target/article8429683.ece   और   http://www.business-standard.com/article/economy-policy/apr-jun-fiscal-deficit-at-61-of-fy17-target-116072901314_1.html

घटते हुए रोजगार --
                                इस मोर्चे पर सबसे खराब खबर ये है की बेरोजगारी के स्तर में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। सरकार के श्रम विभाग द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार इस समय बेरोजगारी अपने उच्चतम स्तर पर है। लेबर ब्यूरो के अनुसार बेरोजगारी पिछले पञ्च साल के सबसे ऊँचे स्तर पर है। इसके बावजूद की सरकार मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमो की सफलता का दावा कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर विस्तार से ब्यौरा दिया है। देखें -http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/unemployment-india-paints-grim-picture-highest-in-5-years-in-2015-16-3056290/     

                इस तरह ये आंकड़े बता रहे हैं की अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार असफल हो रही है। इसका बोझ आने वाले दिनों में आम जनता के कन्धों पर डाला जाना है। लोगों की जरूरी मदों में कटौती के साथ साथ नए नए करों की शुरुआत हो सकती है। और इससे ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रवाद की शराब पिलाई जा रही है।