आज संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस नेता के इस बयान का की आरएसएस के परिवार से किसी ने कोई क़ुरबानी नही दी, यहां तक की एक कुत्ता तक नही मरा, जवाब देते हुए कहा की वो कुत्तों की परम्परा में पले बढ़े नही हैं।
अब होने को तो इस बयान के बहुत से मतलब हो सकते हैं। लेकिन हमारे देश की महान परम्परा के अनुसार अगर किसी वाक्य के चार मतलब होते हों, तो छह तो निकाल ही लिए जाते हैं। सारे देश में इस बयान पर बहस हो रही है। लोग मजाक उड़ा रहे हैं। उनमे से एक आदमी की राय इस प्रकार है -
प्रधानमंत्री ने आखिर इस बात को स्वीकार कर ही लिया। अब तक हम कहते थे तो वो इंकार करते थे। आज मान लिया। कुत्तों वाली परम्परा का मतलब होता है वफादारी की परम्परा। पूरी दुनिया में कुत्ते को वफादारी का प्रतीक माना जाता है। और जब हम कहते थे की आरएसएस की परम्परा देश से गद्दारी की परम्परा रही है, उसने हमेशा दुश्मनो का साथ दिया। आजादी की लड़ाई में जब सारा देश गोलियां खा रहा था, लोग जेल जा रहे थे, तब आरएसएस अंग्रेजो का समर्थन कर रहा था। वह देश की जनता और अपने सदस्यों को आजादी की लड़ाई से अलग रहने को कह रहा था। अंग्रेजो के लिए मुखबिरी कर रहा था। आजादी के सिपाहियों के खिलाफ गवाहियां दे रहा था। जब मुस्लिम लीग बंटवारे की मांग कर रही थी तब उसके नेता मुस्लिम लीग के साथ साझा सरकार चला रहे थे। जब बंटवारा हुआ और दंगे भड़के, तब उसके सदस्य सीधे तौर पर दंगों में शामिल थे। जब आजादी मिली तब उसके सदस्य तिरंगा जला रहे थे। और यहां तक की उसके लोगों ने आजादी की लड़ाई के सबसे बड़े नेता और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कत्ल भी कर दिया। वो अलग बात है की आरएसएस गोडसे के बारे में कहता है की उसने गाँधी हत्या से पहले आरएसएस छोड़ दिया था। लेकिन जो संगठन अपनी सदस्यता का रिकार्ड तक नही रखता हो उसकी इस बात पर कितना भरोसा किया जा सकता है। गोडसे के धरवाले तो आज भी कहते हैं की गोडसे ने कभी आरएसएस नही छोड़ा था।
उसके बाद उसने अपनी साम्प्रदायिक विचारधारा से हमेशा इस देश की एकता अखण्डता और भाईचारे की जड़ों में मट्ठा डाला। आजादी के बाद हुए कितने ही दंगो की जाँच करने वाले आयोगों ने उसमे आरएसएस का हाथ होने की बात कही है। इसलिए जो संगठन देश के खिलाफ काम करता हो, उसकी तुलना कुत्तों वाली परम्परा से कैसे की जा सकती है। अच्छा हुआ आज प्रधानमंत्री ने खुद ही मान लिया।
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