ये एक पुरानी हिंदी फिल्म का गीत है जो अब हम सब भारतीयों पर खरा उतर रहा है। जब से नोटबन्दी हुई है और सरकार रोज नए नए नियम तय कर रही है उससे लोगों का जीना तो मुश्किल हो ही गया था, अब मरणा भी मुश्किल हो गया है। जैसे -
रिजर्व बैंक ने करंट खातों से रकम उठाने की सीमा खत्म करने की घोषणा कर दी। साथ ही एटीएम से भी सीमा हटा ली गयी। लेकिन इसके साथ निजी कम्पनियों की तरह एक टर्म एंड कन्डीशन लगा दी। वो ये है की रिजर्व बैंक ने भले ही सीमा हटा ली हो, लेकिन बैंक अपनी सुविधा के अनुसार सीमा तय कर सकते हैं। अब हाल ये है की बैंक में 20000 का चैक लेकर जाओ तो बैंक कहता है की केवल 12000 मिल सकते हैं। अब क्या करें ? यानी जीना भी मुश्किल, और मरना भी मुश्किल।
यही हाल एटीएम का है। सीमा समाप्त कर दी गयी है लेकिन एटीएम बन्द हैं। पुरे शहर में 15 - 20 % एटीएम ही चालू हैं। उनमे भी कब कैश खत्म हो जायेगा पता नही है। मार्च के बाद सरकार और RBI सारी सीमाएं हटाने की घोषणा कर देंगी। लेकिन देश बन्द एटीएम और बैंक में नाकाफी नकदी के भरोसे रह जायेगा।
दूसरा मुद्दा सरकार के दूसरे नियमो का है। सरकार कहती है की आप घर पर एक सीमा से ज्यादा पैसा नही रख सकते। अगर जरूरत है तो डिजिटल पेमेन्ट करिये। डिजिटल पेमेन्ट करेंगे तो चार्ज लगेगा। आप बैंक से नकदी निकालेंगे तो चार्ज लगेगा। आपकी मजबूरी है की आप चार्ज देकर भुगतान करें। सारा देश बंधक हो गया और इसको लोकतंत्र कहते हैं। ये पूरी दुनिया में अपनी तरह का अकेला लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री कहते हैं की पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों के पास हमारी नोटबन्दी का मूल्यांकन करने का पैमाना ही नही है। यानि पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने अब तक जो पढ़ा है वो सब बेकार गया। अब इस लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिए भी दुनिया के समाजशास्त्रियों और राजनीती के विद्यार्थियों को नए पैमाने तय करने पड़ेंगे। उन्हें ये सीखना होगा की अब तक वो जिसे तानाशाही कहते आये हैं, उसे अब लोकतंत्र में कैसे फिट किया जाये।
अब आपको जिन्दा रहने का चार्ज देना पड़ेगा। कैश निकलोगे तो चार्ज और डिजिटल पेमेंट करोगे तो चार्ज। और लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इसमें भी बायें हाथ से जेब काटने का प्रबन्ध किया गया है। सरकार कहती है की कार्ड से पट्रोल खरीदने पर ग्राहक को कोई चार्ज नही देना पड़ेगा और की चार्ज का भुगतान तेल कम्पनियां करेंगी। यानि तेल कम्पनियां चार्ज का खर्च निकालने के लिए कीमत उस हिसाब से तय करेंगी। सरकार तो पहले ही कह चुकी है की अब तेल की कीमतें तय करना कम्पनियों पर छोड़ दिया गया है और सरकार का उसमे कोई दखल नही है। यानि अब आपको तेल की कीमत में चार्ज जोड़ कर देना होगा। इसी तरह बाकि सामान की कार्ड पेमेंट करने पर दुकानदार को जो चार्ज देना होता है वो सामान की कीमत में जुड़ जाता है। जाहिर है की कोई भी व्यापारी अपने पास से उसका भुगतान क्यों करेगा। इस तरह अब आपकी जेब काटने से पहले आपको देशभक्ति और भृष्टाचार से लड़ने वाले सिपाही होने का एनस्थिसिया दिया जायेगा और फिर आपकी जेब काटी जाएगी। और आप जेब कटवाकर ख़ुशी ख़ुशी मोदी मोदी करते हुए घर चले जायेंगे। जो लोग सरकार की इस बाजीगरी को नही समझते हैं और भक्ति की मुद्रा में हैं उनको तो कोई परेशानी नही है। जो लोग इसको समझते हैं उनके लिए तो जीना भी मुश्किल, मरना भी मुश्किल।
रिजर्व बैंक ने करंट खातों से रकम उठाने की सीमा खत्म करने की घोषणा कर दी। साथ ही एटीएम से भी सीमा हटा ली गयी। लेकिन इसके साथ निजी कम्पनियों की तरह एक टर्म एंड कन्डीशन लगा दी। वो ये है की रिजर्व बैंक ने भले ही सीमा हटा ली हो, लेकिन बैंक अपनी सुविधा के अनुसार सीमा तय कर सकते हैं। अब हाल ये है की बैंक में 20000 का चैक लेकर जाओ तो बैंक कहता है की केवल 12000 मिल सकते हैं। अब क्या करें ? यानी जीना भी मुश्किल, और मरना भी मुश्किल।
यही हाल एटीएम का है। सीमा समाप्त कर दी गयी है लेकिन एटीएम बन्द हैं। पुरे शहर में 15 - 20 % एटीएम ही चालू हैं। उनमे भी कब कैश खत्म हो जायेगा पता नही है। मार्च के बाद सरकार और RBI सारी सीमाएं हटाने की घोषणा कर देंगी। लेकिन देश बन्द एटीएम और बैंक में नाकाफी नकदी के भरोसे रह जायेगा।
दूसरा मुद्दा सरकार के दूसरे नियमो का है। सरकार कहती है की आप घर पर एक सीमा से ज्यादा पैसा नही रख सकते। अगर जरूरत है तो डिजिटल पेमेन्ट करिये। डिजिटल पेमेन्ट करेंगे तो चार्ज लगेगा। आप बैंक से नकदी निकालेंगे तो चार्ज लगेगा। आपकी मजबूरी है की आप चार्ज देकर भुगतान करें। सारा देश बंधक हो गया और इसको लोकतंत्र कहते हैं। ये पूरी दुनिया में अपनी तरह का अकेला लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री कहते हैं की पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों के पास हमारी नोटबन्दी का मूल्यांकन करने का पैमाना ही नही है। यानि पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने अब तक जो पढ़ा है वो सब बेकार गया। अब इस लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिए भी दुनिया के समाजशास्त्रियों और राजनीती के विद्यार्थियों को नए पैमाने तय करने पड़ेंगे। उन्हें ये सीखना होगा की अब तक वो जिसे तानाशाही कहते आये हैं, उसे अब लोकतंत्र में कैसे फिट किया जाये।
अब आपको जिन्दा रहने का चार्ज देना पड़ेगा। कैश निकलोगे तो चार्ज और डिजिटल पेमेंट करोगे तो चार्ज। और लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इसमें भी बायें हाथ से जेब काटने का प्रबन्ध किया गया है। सरकार कहती है की कार्ड से पट्रोल खरीदने पर ग्राहक को कोई चार्ज नही देना पड़ेगा और की चार्ज का भुगतान तेल कम्पनियां करेंगी। यानि तेल कम्पनियां चार्ज का खर्च निकालने के लिए कीमत उस हिसाब से तय करेंगी। सरकार तो पहले ही कह चुकी है की अब तेल की कीमतें तय करना कम्पनियों पर छोड़ दिया गया है और सरकार का उसमे कोई दखल नही है। यानि अब आपको तेल की कीमत में चार्ज जोड़ कर देना होगा। इसी तरह बाकि सामान की कार्ड पेमेंट करने पर दुकानदार को जो चार्ज देना होता है वो सामान की कीमत में जुड़ जाता है। जाहिर है की कोई भी व्यापारी अपने पास से उसका भुगतान क्यों करेगा। इस तरह अब आपकी जेब काटने से पहले आपको देशभक्ति और भृष्टाचार से लड़ने वाले सिपाही होने का एनस्थिसिया दिया जायेगा और फिर आपकी जेब काटी जाएगी। और आप जेब कटवाकर ख़ुशी ख़ुशी मोदी मोदी करते हुए घर चले जायेंगे। जो लोग सरकार की इस बाजीगरी को नही समझते हैं और भक्ति की मुद्रा में हैं उनको तो कोई परेशानी नही है। जो लोग इसको समझते हैं उनके लिए तो जीना भी मुश्किल, मरना भी मुश्किल।
Nice post, things explained in details. Thank You.
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