अभी अभी केंद्र सरकार का बयान आया है की उसने पिछले तीन सालों में सात करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है। और ये रोजगार उसने मुद्रा बैंक से साढ़े तीन लाख करोड़ लोन देकर दिया है। उसके बाद सब तरफ इसकी चर्चा है और कुछ भक्त तो ये भी कह रहे हैं की देखो, मोदीजी ने वायदा तो सालाना दो करोड़ नौकरियों का किया था और रोजगार सात करोड़ से ज्यादा लोगों को दे दिया।
इस पर सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है की लोगों को पता ही नहीं है की सरकार ने उनको रोजगार दे दिया। और लोग हैं की फालतू में लाइन लगा कर खड़े हैं और सरकार को कोस रहे हैं। अब सरकार का काम लोगों को रोजगार देना था सो दे दिया, लोगों को इसका पता लगे न लगे ये सरकार की जिम्मेदारी थोड़ी है। कुछ लोग कह रहे हैं की वायदा नौकरियों का था और सरकार अब घुमा फिरा कर रोजगार के आंकड़े दे रही है। इस पर भक्त लोग कह रहे हैं की रोजगार और नौकरी में क्या फर्क होता है ? लोगों की भाषा कमजोर है तो ये मोदीजी की जिम्मेदारी थोड़ी है।
ये बयान सुनते ही मेरे पड़ौसी तुरंत मेरे घर पर आ धमके। पता नहीं वो मेरे घर को सरकार का लोक सम्पर्क विभाग का दफ्तर क्यों समझते हैं ? आते ही सवाल दागा ," ये सात करोड़ लोगों को रोजगार कैसे दे दिया ?"
मैंने कहा, " जब सरकार कह रही है तो दिया ही होगा। वैसे सरकार का कहना है की उसने सात करोड़ लोगों को साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन मुद्रा योजना से दिया है जिससे उन्हें रोजगार मिला। "
" लेकिन लोन तो पहले से धंधा कर रहे लोगों को मिलता है। अगर किसी छोटे दुकानदार ने अपनी पूंजी की जरूरत के लिए पचास हजार का लोन ले लिया तो क्या उसे दूसरा रोजगार मिल गया। वो तो पहले से ही रोजगार शुदा था। " पड़ोसी ने अगला सवाल किया।
मैंने कहा ," देखो, अगर किसी दुकानदार के पास पैसे नहीं हैं तो उसे तो देर सबेर बेरोजगार होना ही था। तुम ऐसा समझ लो की सरकार ने उसे एडवांस में रोजगार दे दिया। "
" ऐसे कैसे समझ लें ? तुमने पहले से रोजगार शुदा लोगों को लोन दिया और अब उसे नए रोजगार में खपा रहे हो। " पड़ोसी ने सख्त एतराज किया और लगभग मुझे ही सरकार मान लिया।
" देखो, तुम ये तो मानते ही हो न की देश में बहुत भृष्टाचार है। इसमें बहुत से लोगों ने गलत काम धंधा दिखाकर और बैंक के लोगों से मिलीभगत करके भी लोन लिया होगा। इसके अलावा सरकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी लोन मिला होगा। तो उनको रोजगार मिला की नहीं ?" मैंने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की।
मेरे पड़ोसी की आँखे चौड़ी हो गयी। उसने गर्दन हिला कर कहा। " बहुत अच्छे, चलो ये बताओ की सरकार को कैसे पता चला की साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन दिया गया है ?"
" कमाल करते हो, बैंको के आंकड़े हैं और कैसे पता चलेगा। " मैंने कहा।
"लेकिन रिजर्व बैंक में तो अभी तक नोटों की गिनती चल रही है। उसको तो ये भी नहीं मालूम की उसके पास कितना पैसा है। वो कैसे बता सकता है की कितने का लोन दिया। अगर सारे नोट गिनने के बाद एक दो लाख करोड़ का फर्क आ गया तो क्या करोगे ?" मेरे पड़ोसी ने आखरी पैंतरा आजमाया।
" तो सरकार अपने आंकड़े सुधार लेगी और क्या करेगी। अगर रकम बढ़ गयी तो विजय माल्या के खाते में जमा कर देंगे। " मैंने पीछा छुड़वाना चाहा।
हा हा हा। पड़ोसी ने ठहाका लगाया और चला गया।
इस पर सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है की लोगों को पता ही नहीं है की सरकार ने उनको रोजगार दे दिया। और लोग हैं की फालतू में लाइन लगा कर खड़े हैं और सरकार को कोस रहे हैं। अब सरकार का काम लोगों को रोजगार देना था सो दे दिया, लोगों को इसका पता लगे न लगे ये सरकार की जिम्मेदारी थोड़ी है। कुछ लोग कह रहे हैं की वायदा नौकरियों का था और सरकार अब घुमा फिरा कर रोजगार के आंकड़े दे रही है। इस पर भक्त लोग कह रहे हैं की रोजगार और नौकरी में क्या फर्क होता है ? लोगों की भाषा कमजोर है तो ये मोदीजी की जिम्मेदारी थोड़ी है।
ये बयान सुनते ही मेरे पड़ौसी तुरंत मेरे घर पर आ धमके। पता नहीं वो मेरे घर को सरकार का लोक सम्पर्क विभाग का दफ्तर क्यों समझते हैं ? आते ही सवाल दागा ," ये सात करोड़ लोगों को रोजगार कैसे दे दिया ?"
मैंने कहा, " जब सरकार कह रही है तो दिया ही होगा। वैसे सरकार का कहना है की उसने सात करोड़ लोगों को साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन मुद्रा योजना से दिया है जिससे उन्हें रोजगार मिला। "
" लेकिन लोन तो पहले से धंधा कर रहे लोगों को मिलता है। अगर किसी छोटे दुकानदार ने अपनी पूंजी की जरूरत के लिए पचास हजार का लोन ले लिया तो क्या उसे दूसरा रोजगार मिल गया। वो तो पहले से ही रोजगार शुदा था। " पड़ोसी ने अगला सवाल किया।
मैंने कहा ," देखो, अगर किसी दुकानदार के पास पैसे नहीं हैं तो उसे तो देर सबेर बेरोजगार होना ही था। तुम ऐसा समझ लो की सरकार ने उसे एडवांस में रोजगार दे दिया। "
" ऐसे कैसे समझ लें ? तुमने पहले से रोजगार शुदा लोगों को लोन दिया और अब उसे नए रोजगार में खपा रहे हो। " पड़ोसी ने सख्त एतराज किया और लगभग मुझे ही सरकार मान लिया।
" देखो, तुम ये तो मानते ही हो न की देश में बहुत भृष्टाचार है। इसमें बहुत से लोगों ने गलत काम धंधा दिखाकर और बैंक के लोगों से मिलीभगत करके भी लोन लिया होगा। इसके अलावा सरकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी लोन मिला होगा। तो उनको रोजगार मिला की नहीं ?" मैंने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की।
मेरे पड़ोसी की आँखे चौड़ी हो गयी। उसने गर्दन हिला कर कहा। " बहुत अच्छे, चलो ये बताओ की सरकार को कैसे पता चला की साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन दिया गया है ?"
" कमाल करते हो, बैंको के आंकड़े हैं और कैसे पता चलेगा। " मैंने कहा।
"लेकिन रिजर्व बैंक में तो अभी तक नोटों की गिनती चल रही है। उसको तो ये भी नहीं मालूम की उसके पास कितना पैसा है। वो कैसे बता सकता है की कितने का लोन दिया। अगर सारे नोट गिनने के बाद एक दो लाख करोड़ का फर्क आ गया तो क्या करोगे ?" मेरे पड़ोसी ने आखरी पैंतरा आजमाया।
" तो सरकार अपने आंकड़े सुधार लेगी और क्या करेगी। अगर रकम बढ़ गयी तो विजय माल्या के खाते में जमा कर देंगे। " मैंने पीछा छुड़वाना चाहा।
हा हा हा। पड़ोसी ने ठहाका लगाया और चला गया।
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