जबसे मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ाई है, पूरी सरकार और उसके टीवी चैनल उस पर लगातार कार्यक्रम किये जा रहे हैं। मूडीज, एस&पी, और फिच जैसी संस्थाएं पूरी दुनिया में सरकारों और वित्तीय संस्थानों की रेटिंग जारी करती रहती हैं जिससे देशी विदेशी निवेशकों को वहां के माहौल की जानकारी मिल सके। लेकिन जब ये एजेंसियां किसी देश की रेटिंग कम करती हैं तो वहां की सरकार उस पर सवाल उठाती हैं, उनके रेटिंग के तरीके में दोष निकालती हैं। और जब रेटिंग बढ़ती है तो पुरे जोर शोर से उसका श्रेय लेती हैं। लेकिन क्या ये एजंसियां वाकई किसी देश की सही रेटिंग जारी करती हैं? या ये इसको manipulate भी करती हैं ?
इसके बहुत से उदाहरण हमारे सामने हैं जिनमे इन एजेंसियों पर manipulation के आरोप लगे हैं। खुद Moody,s पर जर्मनी, UK और अमेरिका में manipulation के लिए भारी भरकम जुर्माने लगे हैं। Moody,s पर तो अमेरिका में ऐसी सिक्योरिटीज को अच्छी रेटिंग देने के आरोप लगे हैं जो असल में कोई कीमत ही नहीं रखती थी और उन्ही सिक्योर्टीज के कारण 2008 का संकट पैदा हुआ था, जिसके बाद Moody,s पर अमेरिका में केस चला और जिसे निपटाने के लिए Moody,s को लाखों डालर देकर उसे अदालत से बाहर निपटाना पड़ा।
ये एजेंसियां रेटिंग तय करने की फ़ीस लेती हैं। इसलिए ये आरोप भी लगते रहे हैं और साबित भी होते रहे हैं की विश्व की कुछ वित्तीय संस्थाएं अपना घटिया मॉल ( बांड्स इत्यादी ) बेचने के लिए इन एजेंसियों का सहारा लेती हैं।
लेकिन इससे अलग भी, अगर ये सही पैमानों का इस्तेमाल करके भी रेटिंग जारी करती हों तो उसका क्या मतलब होता है ये समझना बहुत जरूरी है। इनकी रेटिंग का अर्थ होता है की किसी देश के कानून और व्यवस्था वहां मुनाफाखोरी और वित्तीय संस्थाओं के प्रति कितने उदार हैं। अगर किसी देश में अन्य चीजों के साथ इन कंपनियों को मुनाफा कमाने और उसे लेजाने के अबाधित रास्ते उपलब्ध हैं तो उसकी रेटिंग ज्यादा ऊँची होगी। इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं -
१. अगर किसी देश की सरकार किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करती है और उसे सही तरीके से लागु करती है तो उसकी रेटिंग कम हो जाएगी क्योंकि ये एजंसियां उसे मुक्त व्यापार के रास्ते में रुकावट मानती हैं।
२. इसी तरह अगर किसी देश में सख्त श्रम कानून हैं और सरकार सामाजिक सेवाओं पर ज्यादा पैसा खर्च करती है तो उसकी रेटिंग भी कम हो जाएगी। जैसे अगर सरकार स्कूलों और हस्पतालों पर पैसा खर्चना बंद करके उन्हें प्राइवेट कर दे तो उसकी रेटिंग बढ़ जाएगी।
३. इसी तरह अगर सरकार कंपनियों को करों में छूट देती है और आम आदमी पर करों का बोझ बढ़ाती है तो उसकी रेटिंग ज्यादा रहेगी।
इसलिए इन एजेंसियों की ऊँची रेटिंग किसी देश की जनता के जीवन स्तर को तय नहीं करती, अलबत्ता वहां मुनाफा कमाने की कितनी सहूलियत है इसको प्रतिबिम्बित करती है। इसलिए इन एजेंसियों की बढ़ती हुई रेटिंग पर खुश होने के लिए आम आदमी के पास कोई कारण नहीं होता है।
इसके बहुत से उदाहरण हमारे सामने हैं जिनमे इन एजेंसियों पर manipulation के आरोप लगे हैं। खुद Moody,s पर जर्मनी, UK और अमेरिका में manipulation के लिए भारी भरकम जुर्माने लगे हैं। Moody,s पर तो अमेरिका में ऐसी सिक्योरिटीज को अच्छी रेटिंग देने के आरोप लगे हैं जो असल में कोई कीमत ही नहीं रखती थी और उन्ही सिक्योर्टीज के कारण 2008 का संकट पैदा हुआ था, जिसके बाद Moody,s पर अमेरिका में केस चला और जिसे निपटाने के लिए Moody,s को लाखों डालर देकर उसे अदालत से बाहर निपटाना पड़ा।
ये एजेंसियां रेटिंग तय करने की फ़ीस लेती हैं। इसलिए ये आरोप भी लगते रहे हैं और साबित भी होते रहे हैं की विश्व की कुछ वित्तीय संस्थाएं अपना घटिया मॉल ( बांड्स इत्यादी ) बेचने के लिए इन एजेंसियों का सहारा लेती हैं।
लेकिन इससे अलग भी, अगर ये सही पैमानों का इस्तेमाल करके भी रेटिंग जारी करती हों तो उसका क्या मतलब होता है ये समझना बहुत जरूरी है। इनकी रेटिंग का अर्थ होता है की किसी देश के कानून और व्यवस्था वहां मुनाफाखोरी और वित्तीय संस्थाओं के प्रति कितने उदार हैं। अगर किसी देश में अन्य चीजों के साथ इन कंपनियों को मुनाफा कमाने और उसे लेजाने के अबाधित रास्ते उपलब्ध हैं तो उसकी रेटिंग ज्यादा ऊँची होगी। इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं -
१. अगर किसी देश की सरकार किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करती है और उसे सही तरीके से लागु करती है तो उसकी रेटिंग कम हो जाएगी क्योंकि ये एजंसियां उसे मुक्त व्यापार के रास्ते में रुकावट मानती हैं।
२. इसी तरह अगर किसी देश में सख्त श्रम कानून हैं और सरकार सामाजिक सेवाओं पर ज्यादा पैसा खर्च करती है तो उसकी रेटिंग भी कम हो जाएगी। जैसे अगर सरकार स्कूलों और हस्पतालों पर पैसा खर्चना बंद करके उन्हें प्राइवेट कर दे तो उसकी रेटिंग बढ़ जाएगी।
३. इसी तरह अगर सरकार कंपनियों को करों में छूट देती है और आम आदमी पर करों का बोझ बढ़ाती है तो उसकी रेटिंग ज्यादा रहेगी।
इसलिए इन एजेंसियों की ऊँची रेटिंग किसी देश की जनता के जीवन स्तर को तय नहीं करती, अलबत्ता वहां मुनाफा कमाने की कितनी सहूलियत है इसको प्रतिबिम्बित करती है। इसलिए इन एजेंसियों की बढ़ती हुई रेटिंग पर खुश होने के लिए आम आदमी के पास कोई कारण नहीं होता है।
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