कुछ दिन पहले सरकार ने घोषणा की थी की वो 100 शहरों को स्मार्ट बनाएंगे। अब जो लोग सोच रहे हैं की पुरे देश को क्यों नही तो मैं उन्हें बता देना चाहता हूँ की पुरे देश को पहले डिजिटल इंडिया बनाया जा चूका है। सो एक देश को दो चीजें तो नही बनाया जा सकता। इसलिए सरकार ने शहरों को स्मार्ट बनाने का फैसला लिया है। बाद में सरकार को ध्यान आया की ये कुछ ज्यादा हो गया, सो उसने घोषणा कर दी की पहले 20 शहरों को स्मार्ट किया जायेगा और बाकी को बाद में देखा जायेगा। सो पहले 20 शहरों की घोषणा कर दी। मेरे एक मित्र पूछ रहे थे की शहरों का चुनाव किस आधार पर किया गया है ? तो मैंने उन्हें बता दिया की पहले उन शहरों का चुनाव किया गया है जो पहले ही कुछ-कुछ स्मार्ट थे। इस पर मेरे मित्र बिदक गए और बोले की पहले मदद का हक तो कमजोर का होता है। मुझे हंसी आई। मैंने उन्हें कहा की भाई कमजोर को मदद की जा सकती है जिन्दा रहने के लिए। बहुत हुआ तो चलने फिरने के लिए। अगर उसे स्मार्ट बनाया जाने लगा तो हो गया काम। फिर क्या वो लोग जो पहले ही स्मार्ट हैं, क्या वो अपना घर-बार लेकर रहने के लिए वहां जाएँ।
और ये स्मार्ट लोग कौन हैं ? मित्र ने पूछा।
ये स्मार्ट लोग कई तरह के होते हैं। स्मार्ट शहरों में भी कुछ स्मार्ट मुहल्ले होते हैं जिन्हे पॉश एरिया कहा जाता है, इन्ही एरिया में ये लोग रहते हैं। जिन शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना है उनमे भी इन्ही एरिया पर ध्यान दिया जायेगा विशेष रूप से। जैसे पूरी दिल्ली को स्मार्ट नही बनाया जा रहा है। केवल नई दिल्ली म्युनिसिपल एरिया, जहां नेता, सांसद, बड़े-बड़े अफसर और पैसे वाले लोग रहते हैं उसी को स्मार्ट बनाने की योजना है। वैसे भी आम आदमी, जो खुद स्मार्ट नही है वो स्मार्ट सिटी में रहकर क्या करेगा ?
क्या करेगा का क्या मतलब ? ये स्मार्ट लोग क्या करते हैं ? मित्र था की ठंडा होने का नाम ही नही ले रहा था।
मैंने उसे फिर समझने की कोशिश की ," देखो भाई, ये स्मार्ट लोग बड़े बड़े काम करते हैं। लेकिन अलग अलग काम करने वाले इन स्मार्ट लोगों के काम में गजब का आपसी तालमेल होता है जो आम आदमी में नही पाया जाता। जैसे एक बड़ा स्मार्ट उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ का कर्ज ले लेता है। उस बैंक के स्मार्ट अधिकारी आँखे बंद करके उसे कर्ज दे देते हैं। फिर वो कर्ज लौटाने से स्मार्ट इंकार कर देता है। बैंक के लोग उससे पैसे की उगाही करते हैं तो उसके स्मार्ट वकील बैंक को अदालत में ले जाते हैं और बैंक पर आरोप लगाते हैं की बैंक उनके इज्जतदार मुवक्किल को परेशान कर रहा है और उसे पैसे मांगने का कोई हक ही नही है। उनके स्मार्ट टीवी चैनलों में बैठे स्मार्ट एंकर और स्मार्ट विशेषज्ञ आँसू बहाना शुरू करते हैं की देश में व्यापार का माहौल ही नही है। इस तरह से उद्योगपतियों को परेशान किया जायेगा तो विदेशी निवेश कैसे आएगा। रिजर्व बैंक चेतावनी जारी करता है की बैंको को खराब लोन कम करने चाहियें। रिजर्व बैंक की बात मानकर बैंक उसका लोन माफ़ कर देता है और उसके खराब लोन की संख्या कम हो जाती है। फिर वित्त मंत्री उसके उद्योग के लिए विशेष छूट का प्रस्ताव रखते हैं और बताते हैं की इससे रोजगार में बढ़ौतरी होगी। स्मार्ट विशेषज्ञ सरकार के स्मार्ट कदम का स्वागत करते हैं। जब तक वो उद्योगपति यूरोप में अपना स्मार्ट टूर खत्म करके वापिस आता है उसका कर्ज उत्तर चूका होता है, नए फायदे का रास्ता बन चुका होता है। वो उद्योगपति सीधा एयरपोर्ट से वित्त मंत्री के दफ्तर पहुंचता है, वहां से बाहर निकल कर नए निवेश की घोषणा करता है और बयान देता है की सरकार एकदम सही चल रही है और तेजी से विकास की संभावना बढ़ रही है। वो ये भी कहता है की उसके हाल के युरोप टूर के दौरान पूरी दुनिया में केवल हमारी ही चर्चा हो रही थी और की पूरी दुनिया हमारी तरफ देख रही है। टीवी चैनल में बैठा सरकारी पार्टी का स्मार्ट प्रवक्ता इसे उद्योगपतियों में बढ़ते हुए विश्वास के रूप में व्याख्यायित करता है और "
" और "
और हम सब यानि देश की जनता, टीवी पर खबर सुनकर ऐसा महसूस करते हैं जैसे हमारा विकास हो रहा है। बिना आदमी और उसकी समस्याओं को छुए, उसे ये विश्वास दिलाना की उसका विकास हो रहा है क्या कम स्मार्ट बात है।
और ये स्मार्ट लोग कौन हैं ? मित्र ने पूछा।
ये स्मार्ट लोग कई तरह के होते हैं। स्मार्ट शहरों में भी कुछ स्मार्ट मुहल्ले होते हैं जिन्हे पॉश एरिया कहा जाता है, इन्ही एरिया में ये लोग रहते हैं। जिन शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना है उनमे भी इन्ही एरिया पर ध्यान दिया जायेगा विशेष रूप से। जैसे पूरी दिल्ली को स्मार्ट नही बनाया जा रहा है। केवल नई दिल्ली म्युनिसिपल एरिया, जहां नेता, सांसद, बड़े-बड़े अफसर और पैसे वाले लोग रहते हैं उसी को स्मार्ट बनाने की योजना है। वैसे भी आम आदमी, जो खुद स्मार्ट नही है वो स्मार्ट सिटी में रहकर क्या करेगा ?
क्या करेगा का क्या मतलब ? ये स्मार्ट लोग क्या करते हैं ? मित्र था की ठंडा होने का नाम ही नही ले रहा था।
मैंने उसे फिर समझने की कोशिश की ," देखो भाई, ये स्मार्ट लोग बड़े बड़े काम करते हैं। लेकिन अलग अलग काम करने वाले इन स्मार्ट लोगों के काम में गजब का आपसी तालमेल होता है जो आम आदमी में नही पाया जाता। जैसे एक बड़ा स्मार्ट उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ का कर्ज ले लेता है। उस बैंक के स्मार्ट अधिकारी आँखे बंद करके उसे कर्ज दे देते हैं। फिर वो कर्ज लौटाने से स्मार्ट इंकार कर देता है। बैंक के लोग उससे पैसे की उगाही करते हैं तो उसके स्मार्ट वकील बैंक को अदालत में ले जाते हैं और बैंक पर आरोप लगाते हैं की बैंक उनके इज्जतदार मुवक्किल को परेशान कर रहा है और उसे पैसे मांगने का कोई हक ही नही है। उनके स्मार्ट टीवी चैनलों में बैठे स्मार्ट एंकर और स्मार्ट विशेषज्ञ आँसू बहाना शुरू करते हैं की देश में व्यापार का माहौल ही नही है। इस तरह से उद्योगपतियों को परेशान किया जायेगा तो विदेशी निवेश कैसे आएगा। रिजर्व बैंक चेतावनी जारी करता है की बैंको को खराब लोन कम करने चाहियें। रिजर्व बैंक की बात मानकर बैंक उसका लोन माफ़ कर देता है और उसके खराब लोन की संख्या कम हो जाती है। फिर वित्त मंत्री उसके उद्योग के लिए विशेष छूट का प्रस्ताव रखते हैं और बताते हैं की इससे रोजगार में बढ़ौतरी होगी। स्मार्ट विशेषज्ञ सरकार के स्मार्ट कदम का स्वागत करते हैं। जब तक वो उद्योगपति यूरोप में अपना स्मार्ट टूर खत्म करके वापिस आता है उसका कर्ज उत्तर चूका होता है, नए फायदे का रास्ता बन चुका होता है। वो उद्योगपति सीधा एयरपोर्ट से वित्त मंत्री के दफ्तर पहुंचता है, वहां से बाहर निकल कर नए निवेश की घोषणा करता है और बयान देता है की सरकार एकदम सही चल रही है और तेजी से विकास की संभावना बढ़ रही है। वो ये भी कहता है की उसके हाल के युरोप टूर के दौरान पूरी दुनिया में केवल हमारी ही चर्चा हो रही थी और की पूरी दुनिया हमारी तरफ देख रही है। टीवी चैनल में बैठा सरकारी पार्टी का स्मार्ट प्रवक्ता इसे उद्योगपतियों में बढ़ते हुए विश्वास के रूप में व्याख्यायित करता है और "
" और "
और हम सब यानि देश की जनता, टीवी पर खबर सुनकर ऐसा महसूस करते हैं जैसे हमारा विकास हो रहा है। बिना आदमी और उसकी समस्याओं को छुए, उसे ये विश्वास दिलाना की उसका विकास हो रहा है क्या कम स्मार्ट बात है।