ये एक ऐसा सवाल है जो राजनैतिक पंडितों से लेकर खुद ममता बैनर्जी तक को परेशान किये हुए है। क्योंकि बंगाल से जो चित्र दिखाई दे रहा है वो ममता के हक में नहीं दिखाई देता। उसके निम्न 10 कारण हैं।
1. बंगाल के 2011 के चुनाव में सबकुछ वाम मोर्चे के खिलाफ होने के बावजूद उसे 40 % वोट मिले थे और तृणमूल कांग्रेस को 39 % , लेकिन कांग्रेस को मिले 10 % वोट जो उस समय ममता के साथ थे उसके लिए वाम मोर्चा बुरी तरह हारा। इस बार कांग्रेस वाम मोर्चा के साथ है।
2. सिंगुर से लेकर नंदीग्राम तक के वो सारे मुद्दे जो उस समय लेफ्ट की हार का कारण बने थे वो इस बार गायब हैं।
3. ममता ने जो परिवर्तन का नारा दिया था उसकी हवा निकल चुकी है और लोग उसे फ्लॉप मान रहे हैं। रोजगार के वायदे पुरे नहीं हुए हैं।
4. चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से ममता के लोग चुनावों को प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें हर जगह लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
5. NDTV के एक आकलन के अनुसार केवल 3 % वोट का स्विंग बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट की सरकार बनवा सकता है। क्योंकि पिछली बार लेफ्ट ने जो सीटें हारी थी वो बहुत ही कम अंतर् से हारी थी।
6. राज्य पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल में लेफ्ट की सरकार बन रही है। इसलिए पिछले दो दौर के चुनाव में पुलिस का रवैया बदल गया है जिस पर ममता ने चेतावनी भी जारी की है।
7. नारदा से लेकर शारदा तक, पहली बार बंगाल में भृष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है। भद्रलोक कहे जाने वाले बंगाल में इस पर बहुत नाराजगी है।
८. इस बार मुस्लिम वोट एकजुट ममता के साथ नहीं है। उसमे बहुत बड़े पैमाने पर टूट नजर आती है जो ममता की चिंता का मुख्य कारण है।
9. कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन होने के कारण वोटों का अंकगणित ममता के खिलाफ बैठता है और अगर ये मान लिया जाये की वो सभी वोटर जो 2011 में ममता के साथ थे अब भी ममता के साथ हैं तो भी इस अंकगणित के कारण ममता 10 % वोट से पिछड़ रही है।
10 . इस बार वाम मोर्चा पूरी तरह एकजुट है। इसलिए थे टेलीग्राफ और आनद बाजार जैसे वाम विरोधी अख़बार भी इस बार ममता की जीत की बात नहीं कर रहे हैं।
1. बंगाल के 2011 के चुनाव में सबकुछ वाम मोर्चे के खिलाफ होने के बावजूद उसे 40 % वोट मिले थे और तृणमूल कांग्रेस को 39 % , लेकिन कांग्रेस को मिले 10 % वोट जो उस समय ममता के साथ थे उसके लिए वाम मोर्चा बुरी तरह हारा। इस बार कांग्रेस वाम मोर्चा के साथ है।
2. सिंगुर से लेकर नंदीग्राम तक के वो सारे मुद्दे जो उस समय लेफ्ट की हार का कारण बने थे वो इस बार गायब हैं।
3. ममता ने जो परिवर्तन का नारा दिया था उसकी हवा निकल चुकी है और लोग उसे फ्लॉप मान रहे हैं। रोजगार के वायदे पुरे नहीं हुए हैं।
4. चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से ममता के लोग चुनावों को प्रभावित नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें हर जगह लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
5. NDTV के एक आकलन के अनुसार केवल 3 % वोट का स्विंग बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट की सरकार बनवा सकता है। क्योंकि पिछली बार लेफ्ट ने जो सीटें हारी थी वो बहुत ही कम अंतर् से हारी थी।
6. राज्य पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल में लेफ्ट की सरकार बन रही है। इसलिए पिछले दो दौर के चुनाव में पुलिस का रवैया बदल गया है जिस पर ममता ने चेतावनी भी जारी की है।
7. नारदा से लेकर शारदा तक, पहली बार बंगाल में भृष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है। भद्रलोक कहे जाने वाले बंगाल में इस पर बहुत नाराजगी है।
८. इस बार मुस्लिम वोट एकजुट ममता के साथ नहीं है। उसमे बहुत बड़े पैमाने पर टूट नजर आती है जो ममता की चिंता का मुख्य कारण है।
9. कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन होने के कारण वोटों का अंकगणित ममता के खिलाफ बैठता है और अगर ये मान लिया जाये की वो सभी वोटर जो 2011 में ममता के साथ थे अब भी ममता के साथ हैं तो भी इस अंकगणित के कारण ममता 10 % वोट से पिछड़ रही है।
10 . इस बार वाम मोर्चा पूरी तरह एकजुट है। इसलिए थे टेलीग्राफ और आनद बाजार जैसे वाम विरोधी अख़बार भी इस बार ममता की जीत की बात नहीं कर रहे हैं।
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