काश्मीर के लोगों का भारत से भावनात्मक जुड़ाव खत्म हो चूका है। अब केवल भारत के नक्शे में कश्मीर भारत का हिस्सा बचा है। आज हालत ये है की सेना को खुद की रक्षा के लिए ह्यूमन शील्ड का इस्तेमाल करना पड़ता है। अलगाव इतना गहरा हो गया है एक तरफ सेना द्वारा लोगों से जबरदस्ती पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवाने के विडिओ वायरल हो रहे हैं तो दूसरी तरह आतंकवादी बंदूक की नोक पर लोगों से हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवा रहे हैं।
और ये हालत कितने दिन में हो गयी। पिछले तीन साल से केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार है। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो कश्मीर में करीब 64 % वोट पड़े थे जो बाकि देश के प्रतिशत के लगभग बराबर थे। तब यूरोप और अमेरिका के अख़बारों ने खबर छापी थी की कश्मीर के लोगों ने भारत और पाकिस्तान पर अपनी पसंद स्पष्ट कर दी है। अभी हुए चुनाव में श्रीनगर की सीट पर कुल 7 % वोट पड़े हैं। जिन 38 बूथों पर दुबारा चुनाव करवाया गया वहां केवल 2 % वोट पड़े हैं और 27 बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा। पता नहीं अनुपम खेर और अशोक पंडित जैसे महान क्रन्तिकारी देशभक्त किस बिल में घुसे हुए थे ? उससे पहले नरेंद्र मोदी कहते थे की कश्मीर की समस्या कश्मीरियों के कारण नहीं बल्कि दिल्ली में बैठी सरकार की गलत नीतियों के कारण है। अब अगर बीजेपी राज्य सरकार में हिस्सेदार नहीं होती तो वो हालात की खराबी की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल सकते थे। लेकिन अब उन्हें इसकी जिम्मेदारी डालने के लिए नेहरू युग तक जाना होगा।
आज कश्मीर के लोग आपके साथ नहीं हैं। आप को ख़ुशी हो सकती है की जमीनी तोर पर कश्मीर अभी भी भारत का हिस्सा है। लेकिन अब आप वहां पहलगाम और डलहौजी में सैर नहीं कर सकते, डल झील में शिकारे का आनंद नहीं ले सकते और कश्मीर में फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकते। तो काश्मीर का नक्शा भारत में है या नहीं उससे क्या फर्क पड़ता है ?
मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर जानकारों ने सवाल उठाये थे। लेकिन उस पर इस सरकार के भक्तों ने गालियों की बौछार कर दी। महिला पत्रकारों को रंडी कहा गया। दूसरे लोगों को पाकिस्तान का दलाल घोषित कर दिया गया। लेकिन अब क्या वो लोग इस हालात की जिम्मेदारी लेंगे। क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी कश्मीर में जाने की हिम्मत दिखाएंगे।
ये सरकार एक और वायदे के साथ सत्ता में आयी थी। वो था कश्मीरी पंडितों को वापिस कश्मीर में बसाने का वादा। क्या अब भी किसी को लगता है की कश्मीरी पंडितों को वापिस घाटी में बसाया जा सकता है। बसाने का सवाल तो दूर, आप उनकी वोट नहीं डलवा सकते। चार लाख कश्मीरी पंडित, जो सालों से अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं, आपने उनके साथ धोखाधड़ी की है। आपने उनके वापिस जाने की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
सवाल अब भी अपनी जगह है। क्या कश्मीर को खोने की जिम्मेदारी बीजेपी, उसके समर्थक और सोशल मीडिया पर बैठे उसके बुद्धिहीन चापलूस लेंगे।
और ये हालत कितने दिन में हो गयी। पिछले तीन साल से केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार है। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो कश्मीर में करीब 64 % वोट पड़े थे जो बाकि देश के प्रतिशत के लगभग बराबर थे। तब यूरोप और अमेरिका के अख़बारों ने खबर छापी थी की कश्मीर के लोगों ने भारत और पाकिस्तान पर अपनी पसंद स्पष्ट कर दी है। अभी हुए चुनाव में श्रीनगर की सीट पर कुल 7 % वोट पड़े हैं। जिन 38 बूथों पर दुबारा चुनाव करवाया गया वहां केवल 2 % वोट पड़े हैं और 27 बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा। पता नहीं अनुपम खेर और अशोक पंडित जैसे महान क्रन्तिकारी देशभक्त किस बिल में घुसे हुए थे ? उससे पहले नरेंद्र मोदी कहते थे की कश्मीर की समस्या कश्मीरियों के कारण नहीं बल्कि दिल्ली में बैठी सरकार की गलत नीतियों के कारण है। अब अगर बीजेपी राज्य सरकार में हिस्सेदार नहीं होती तो वो हालात की खराबी की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल सकते थे। लेकिन अब उन्हें इसकी जिम्मेदारी डालने के लिए नेहरू युग तक जाना होगा।
आज कश्मीर के लोग आपके साथ नहीं हैं। आप को ख़ुशी हो सकती है की जमीनी तोर पर कश्मीर अभी भी भारत का हिस्सा है। लेकिन अब आप वहां पहलगाम और डलहौजी में सैर नहीं कर सकते, डल झील में शिकारे का आनंद नहीं ले सकते और कश्मीर में फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकते। तो काश्मीर का नक्शा भारत में है या नहीं उससे क्या फर्क पड़ता है ?
मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर जानकारों ने सवाल उठाये थे। लेकिन उस पर इस सरकार के भक्तों ने गालियों की बौछार कर दी। महिला पत्रकारों को रंडी कहा गया। दूसरे लोगों को पाकिस्तान का दलाल घोषित कर दिया गया। लेकिन अब क्या वो लोग इस हालात की जिम्मेदारी लेंगे। क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी कश्मीर में जाने की हिम्मत दिखाएंगे।
ये सरकार एक और वायदे के साथ सत्ता में आयी थी। वो था कश्मीरी पंडितों को वापिस कश्मीर में बसाने का वादा। क्या अब भी किसी को लगता है की कश्मीरी पंडितों को वापिस घाटी में बसाया जा सकता है। बसाने का सवाल तो दूर, आप उनकी वोट नहीं डलवा सकते। चार लाख कश्मीरी पंडित, जो सालों से अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं, आपने उनके साथ धोखाधड़ी की है। आपने उनके वापिस जाने की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
सवाल अब भी अपनी जगह है। क्या कश्मीर को खोने की जिम्मेदारी बीजेपी, उसके समर्थक और सोशल मीडिया पर बैठे उसके बुद्धिहीन चापलूस लेंगे।
एक बार कुर्सी मिल जाने पर फिर से घुमा-फिराकर वही खेल खेलना ही राजनीति का मकसद रहा है। सत्ता का क्या वोट चाहे १ परसेंट पड़े या ९० परसेंट . सब चलता है प्रजातंत में
ReplyDeleteगंभीर विचारणीय प्रस्तुति