Showing posts with label Indian army operations. Show all posts
Showing posts with label Indian army operations. Show all posts

Monday, April 17, 2017

कश्मीर को खोने की जिम्मेदारी कौन लेगा ?

                काश्मीर के लोगों का भारत से भावनात्मक जुड़ाव खत्म हो चूका है। अब केवल भारत के नक्शे में कश्मीर भारत का हिस्सा बचा है। आज हालत ये है की सेना को खुद की रक्षा के लिए ह्यूमन शील्ड का इस्तेमाल करना पड़ता है। अलगाव इतना गहरा हो गया है एक तरफ सेना द्वारा लोगों से जबरदस्ती पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवाने के विडिओ वायरल हो रहे हैं तो दूसरी तरह आतंकवादी बंदूक की नोक पर लोगों से हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवा रहे हैं।
                   और ये हालत कितने दिन में हो गयी। पिछले तीन साल से केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार है। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो कश्मीर में करीब 64 % वोट पड़े थे जो बाकि देश के प्रतिशत के लगभग बराबर थे। तब यूरोप और अमेरिका के अख़बारों ने खबर छापी थी की कश्मीर के लोगों ने भारत और पाकिस्तान पर अपनी पसंद स्पष्ट कर दी है। अभी हुए चुनाव में श्रीनगर की सीट पर कुल 7 % वोट पड़े हैं। जिन 38 बूथों पर दुबारा चुनाव करवाया गया वहां केवल 2 % वोट पड़े हैं और 27 बूथों पर एक भी वोट नहीं पड़ा। पता नहीं अनुपम खेर और अशोक पंडित जैसे महान क्रन्तिकारी देशभक्त किस बिल में घुसे हुए थे ? उससे पहले नरेंद्र मोदी कहते थे की कश्मीर की समस्या कश्मीरियों के कारण नहीं बल्कि दिल्ली में बैठी सरकार की गलत नीतियों के कारण है। अब अगर बीजेपी राज्य सरकार में हिस्सेदार नहीं होती तो वो हालात की खराबी की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल सकते थे। लेकिन अब उन्हें इसकी जिम्मेदारी डालने के लिए नेहरू युग तक जाना होगा।
                   आज कश्मीर के लोग आपके साथ नहीं हैं। आप को ख़ुशी हो सकती है की जमीनी तोर पर कश्मीर अभी भी भारत का हिस्सा है। लेकिन अब आप वहां पहलगाम और डलहौजी में सैर नहीं कर सकते, डल झील में शिकारे का आनंद नहीं ले सकते और कश्मीर में फिल्म की शूटिंग नहीं कर सकते। तो काश्मीर का नक्शा भारत में है या नहीं उससे क्या फर्क पड़ता है ?
                   मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर जानकारों ने सवाल उठाये थे। लेकिन उस पर इस सरकार के भक्तों ने गालियों की बौछार कर दी। महिला पत्रकारों को रंडी कहा गया। दूसरे लोगों को पाकिस्तान का दलाल घोषित कर दिया गया। लेकिन अब क्या वो लोग इस हालात की जिम्मेदारी लेंगे। क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी कश्मीर में जाने की हिम्मत दिखाएंगे।
                     ये सरकार एक और वायदे के साथ सत्ता में आयी थी। वो था कश्मीरी पंडितों को वापिस कश्मीर में बसाने का वादा। क्या अब भी किसी को लगता है की कश्मीरी पंडितों को वापिस घाटी में बसाया जा सकता है। बसाने का सवाल तो दूर, आप उनकी वोट नहीं डलवा सकते। चार लाख कश्मीरी पंडित, जो सालों से अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं, आपने उनके साथ धोखाधड़ी की है। आपने उनके वापिस जाने की संभावनाओं पर पानी फेर दिया है। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
                    सवाल अब भी अपनी जगह है। क्या कश्मीर को खोने की जिम्मेदारी बीजेपी, उसके समर्थक और सोशल मीडिया पर बैठे उसके बुद्धिहीन चापलूस लेंगे।

Thursday, October 13, 2016

भारतीय सेना के बहादुरी पूर्ण अभियान, तुम्हे याद हो के ना याद हो।

                       आज जब खुद सरकार की तरफ से ये कहा जा रहा है की इस सर्जिकल स्ट्राइक से पहले भारतीय सेना ने कुछ नही किया, तो मैं उन्हें कुछ ऐसे बहादुरीपूर्ण सैनिक अभियानों की याद दिलाना चाहता हूँ जो इतिहास में अपना अमिट स्थान रखते हैं। इन अभियानों के बारे में बात करते वक्त मैं उन बड़ी लड़ाइयों का जिक्र नही करूँगा जिन्हें दुनिया अब तक नही भूली है जैसे -

१. 1948 का भारत पाक युद्ध ( कश्मीर के लिए )
२. 1962 का भारत चीन युद्ध
३. 1965 का भारत पाक युद्ध
४. 1971 का भारत पाक युद्ध
५. 1999 का कारगिल युद्ध

                     मैं इनके अलावा उन बहादुरी पूर्ण अभियानों की बात करूँगा जो किसी भी देश और सेना के लिए बहुत महत्व रखते हैं।

ऑपरेशन मेघदूत -
                               1984 में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए हुए इस अभियान को पूरी दुनिया ने किसी सेना द्वारा की गयी सबसे साहसिक कार्यवाहियों में से एक माना था। दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध स्थल पर हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष में लगभग 2000 लोग वहां युद्ध के साथ साथ खराब मौसम, चिकित्सा सुविधाओं के अभाव और न्यूनतम तापमान के कारण मारे गए थे। लेकिन टाइम पत्रिका के अनुसार इस युद्ध में भारतीय सेना ने सियाचिन की ३००० वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।

ऑपरेशन राजीव -
                               1987 में सियाचिन में ही हुए भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष में सियाचिन की सबसे ऊँची चोटी पर कब्जे के लिए हुआ था। इस चोटी पर पाकिस्तानी सेना ने एक चौकी स्थापित कर ली थी जो रणनीतिक महत्त्व से भारत के लिए बहुत नुकशानदायक थी। तब मेजर वरिंदर सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने इस पर कब्जे के लिए कई कोशिशें की। आखिर तीसरी कोशिश में भारतीय सेना इस पर कब्जा करने में कामयाब हो गयी। इस चोटी का नाम बहादुर बना सिह के नाम पर (बना टॉप ) रखा गया जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। इस अभियान का नाम सेकण्ड लेफ्टिनेंट राजीव पाण्डे के नाम पर रखा गया जो इस अभियान में शहीद हो गए। इसी अभियान में 1200 फुट की खड़ी दिवार जैसी चढ़ाई और सियाचिन ग्लेशियर के मुहाने की 3 किलोमीटर की जगह भी शामिल है जिसके लिए बहादुरी पूर्ण कारनामे के लिए सूबेदार संसार चंद को सम्मान के साथ याद किया जाता है।

ऑपरेशन कैक्टस -
                              1988 में जब मालदीव के प्रधानमंत्री अब्दुल गयूम का तख्ता पलटने की कोशिश की गयी। इस तख्तापलट में कुछ मालदीवी और श्रीलंकाई तमिल संगठन के कुछ लोग शामिल थे। मालदीव सरकार की सहायता की अपील के केवल 9 घण्टे के अंदर भारतीय वायुसेना के पैरा टूपर्स ने आगरा एयर फ़ोर्से स्टेशन से बिना रुके 2000 किलोमीटर की दुरी तय करके इस तख्ता पलट को नाकाम कर दिया था। वायुसेना के इस अभियान के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन और ब्रिटीश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने भी भारी प्रशंसा की थी।

                             ये भारतीय सेना द्वारा अंजाम दिए गए कुछ अभियानों का नमूना है और उन लोगों की यादाश्त दुरुस्त करने की कोशिश है जो राजनैतिक कारणों से जानबूझकर इन्हें भूल चुके हैं।