कल प्रधानमंत्री मोदी और जापान के प्रधानमंत्री सिंजो आबे ने अहमदाबाद में बुलेट ट्रैन का शिलान्यास कर दिया। हालाँकि इस के समर्थन और विरोध में बहुत कुछ कहा जा चुका है, लेकिन ये मामला कितना भयावह और गैरजिम्मेदार है इसका अंदाजा किसी को नहीं है। न तो विरोध करने वालों को है और न ही समर्थन करने वालों को है। इसलिए एक बार इसका हिसाब किताब लगा लिया जाये ये बहुत जरूरी है। वरना नोटबंदी की तरह पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।
सरकार की तरफ से मीडिया में जो जानकारी दी गयी है उसके अनुसार इस पर 110000 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा, जिसमे से 85000 करोड़ डॉलर का कर्ज जापान देगा, जिस पर 0 . 1 % का मामूली ब्याज देना पड़ेगा। शेष 25000 करोड़ डॉलर का खर्चा भारत सरकार करेगी।
अब इसमें दो मुख्य बातें हैं जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। पहला ये की बुलेट ट्रैन के लिए बनाया गया पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर केवल बुलेट ट्रैन के लिए ही इस्तेमाल हो सकता है। ऐसा नहीं है की उस पर बाकी पटरियों की तरह हर तरह की गाड़ियां चल सकती हैं। दूसरा सवाल ये है की इस ट्रैन में एकबार में करीब 725 यात्री सफर कर सकेंगे। जिस पर अगर अतिउदार और अधिकतम अनुमान भी लगाया जाये तो ये ट्रैन दो राउंड ट्रिप अहमदाबाद और मुंबई के बीच लगा सकती है। अगर सभी सीटों की पूरी बुकिंग भी मान ली जाये ( जो इसके किराय को देखते हुए असम्भव है ) तो ये पूरी कवायद केवल 725 x 4 यानि केवल 2900 लोगों के लिए की जा रही है।
अब इस पर होने वाले खर्च में से केवल ब्याज के खर्च का हिसाब ही लगाया जाये तो वो इस तरह है।
जापान का कर्ज और ब्याज 85000 करोड़ x 0 . 1 % = 85 करोड़
भारत सरकार का कर्ज 25000 करोड़ x 7 % = 1750 करोड़ ( मौजूदा बांड वैल्यू के हिसाब से जिसके अनुसार सरकार घरेलू मार्किट, बैंक इत्यादि से अपनी जरूरतों के लिए कर्ज लेती है। )
कुल ब्याज = 1750 +85 = 1835 करोड़ डॉलर सालाना ,
यानी करीब 5 करोड़ डॉलर प्रतिदिन = 5 x 64 ( मौजूदा डॉलर रेट ) 320 करोड़ रूपये प्रतिदिन
इसका मतलब ये हुआ की 320 करोड़ को 2900 यात्रियों से भाग दिया जाये तो = 11 लाख तीन हजार रूपये।
यानि प्रति यात्री प्रतिदिन 11 लाख रूपये तो केवल ब्याज का खर्चा होगा। इससे तो अच्छा था की प्रति यात्री के लिए एक चार्टर्ड प्लेन चला देते तो भी इससे कम नुकशान होता।
इसलिए मेरी हर नागरिक से अपील है की वो इस विनाशकारी परियोजना का विरोध करे।
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