नोटबंदी एक विफल प्रोग्राम साबित हो चूका है। लेकिन सरकार और बीजेपी लगातार बयान बदल बदल कर कहीं न कहीं इज्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जब प्रधानमंत्री मोदीजी ने इसकी घोषणा की , तब उन्होंने इसके कारण और लक्ष्य बताये थे। जैसे जैसे समय गुजरा तो ये समझ में आया की इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ, उलटे अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ गया और करोड़ों लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसके तुरंत बाद बीजेपी और सरकार में बैठे मंत्रियों ने बयान बदलने शुरू कर दिए। सबसे पहले कहा गया की नोटबंदी लोगों को डिज़िटल लेनदेन की आदत डालने के लिए की गयी थी। उसके बाद ये आंकड़े भी आ गए की जून के बाद डिजिटल लेनदेन की संख्या में भारी गिरावट आयी है।
लेकिन जो मुख्य मसला था वो था कालाधन। सरकार इस बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना चाहती है की जैसे वो कालेधन और भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। इसके लिए इस बात में विफल होने के बाद की तीन-चार लाख करोड़ रूपये कागज के टुकड़ों में बदल जायेंगे, सरकार ने तुरंत पलटी मार कर कहना शुरू किया की हमने तो नोटबंदी की ही इसलिए थी की सारा पैसा बैंक में वापिस आ जाये। और की अब हमारे पास इस बात के आंकड़े हैं की किस किस का धन काला है और उन सब को पकड़ लिया जायेगा।
लेकिन सरकार का ये बयान भी उसकी कार्यवाही से मेल नहीं खाता। सुप्रीम कोर्ट में एक महिला की इस याचिका पर की उसे बैंक में पैसा जमा करने का एक मौका दिया जाये, उसके जवाब में सरकार ने कहा की अगर एक मौका और दे दिया गया तो नोटबंदी का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। तो आपका उद्देश्य क्या था ? अगर आपका उद्देश्य सारा पैसा सिस्टम में वापिस लाने का था तो बाकी का भी आ जाने दो। फिर आप जिला सहकारी बैंको में जमा हुए करीब नौ हजार करोड़ रूपये को लेने से क्यों इंकार कर रहे हो ? फिर आप देश से बाहर नेपाल इत्यादि में रहने वाले भारतीयों का पैसा लेने से इंकार क्यों कर रहे हो। दूसरे अब बचा ही क्या है ? RBI के अनुसार केवल 16000 करोड़ के नोट ही बाहर बचे हैं बाकी तो सब जमा हो चुके हैं।
इसके केवल दो कारण हो सकते हैं। पहला ये की आपका उद्देश्य वो नहीं था जो आप अब बता रहे हैं, बल्कि वही था जो घोषणा करते वक्त बताया गया था।
और दूसरा कारण ये की एक मौका और दे देने से तय रकम से ज्यादा पैसा बैंक में आ सकता है और नकली नोटों का वो आंकड़ा भी सामने आ जायेगा जो इस दौरान बैंको में जमा हो गए।
लेकिन जो मुख्य मसला था वो था कालाधन। सरकार इस बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना चाहती है की जैसे वो कालेधन और भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। इसके लिए इस बात में विफल होने के बाद की तीन-चार लाख करोड़ रूपये कागज के टुकड़ों में बदल जायेंगे, सरकार ने तुरंत पलटी मार कर कहना शुरू किया की हमने तो नोटबंदी की ही इसलिए थी की सारा पैसा बैंक में वापिस आ जाये। और की अब हमारे पास इस बात के आंकड़े हैं की किस किस का धन काला है और उन सब को पकड़ लिया जायेगा।
लेकिन सरकार का ये बयान भी उसकी कार्यवाही से मेल नहीं खाता। सुप्रीम कोर्ट में एक महिला की इस याचिका पर की उसे बैंक में पैसा जमा करने का एक मौका दिया जाये, उसके जवाब में सरकार ने कहा की अगर एक मौका और दे दिया गया तो नोटबंदी का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। तो आपका उद्देश्य क्या था ? अगर आपका उद्देश्य सारा पैसा सिस्टम में वापिस लाने का था तो बाकी का भी आ जाने दो। फिर आप जिला सहकारी बैंको में जमा हुए करीब नौ हजार करोड़ रूपये को लेने से क्यों इंकार कर रहे हो ? फिर आप देश से बाहर नेपाल इत्यादि में रहने वाले भारतीयों का पैसा लेने से इंकार क्यों कर रहे हो। दूसरे अब बचा ही क्या है ? RBI के अनुसार केवल 16000 करोड़ के नोट ही बाहर बचे हैं बाकी तो सब जमा हो चुके हैं।
इसके केवल दो कारण हो सकते हैं। पहला ये की आपका उद्देश्य वो नहीं था जो आप अब बता रहे हैं, बल्कि वही था जो घोषणा करते वक्त बताया गया था।
और दूसरा कारण ये की एक मौका और दे देने से तय रकम से ज्यादा पैसा बैंक में आ सकता है और नकली नोटों का वो आंकड़ा भी सामने आ जायेगा जो इस दौरान बैंको में जमा हो गए।
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