Monday, July 31, 2017

बिहार, भाजपा और राष्ट्रवादी भृष्टाचार

                      बिहार में सरकार बदलते ही कई नई चीजें और परिभाषाएँ सामने आयी। जैसे बिहार के पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी ने नितीश कुमार के घोटालों की एक लम्बी लिस्ट जारी की थी। जिसमे करीब 23 घोटाले शामिल थे। जैसे ही नितीश ने बीजेपी के पाले में जाकर सरकार बनाई, मोदीजी ने उसके स्वागत में ट्वीट करते हुए कहा की भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में नितीश का स्वागत है। इसका एक तो मतलब ये हुआ की भृष्टाचार का घोटालों से कोई लेना देना नहीं है। भृष्टाचार का लेना देना केवल इस बात से है की आदमी अपनी पार्टी में है या विपक्ष का है। जैसे अभी गुजरात में है। जो जो विधायक बीजेपी में शामिल हो जायेंगे वो भृष्टाचारी नहीं रहेंगे और जो नहीं होंगे वो भृष्टाचारी रहेंगे। बीजेपी में भृष्टाचार की यह परिभाषा सुखराम के जमाने से चली आ रही है।
                     मैं अभी अभी अपने मुहल्ले की किराने की दुकान के सामने से गुजरा तो दुकानदार ने मुझे आवाज लगाई की भाई साहब देखो बिहार में फिर से सुशासन आ गया है। मैंने पूछा की नितीश तो वही है, फिर ये सुशासन कौन है क्या सुशील मोदी का नाम है सुशासन ?
                      देखिये भाई साहब, नितीश जब तक लालू के साथ थे तभी तक भृष्ट थे वरना बिहार में तो लोग उनको सुशासन बाबू के नाम से पुकारते हैं। उन्होंने तेजस्वी यादव से पीछा छुड़ा लिया है। उस पर 120 बी का मुकदमा था।
                     120 बी का मुकदमा तो सुशील मोदी पर भी है। उल्टा दो चार धाराएं ज्यादा ही हैं। फिर बदला क्या ? मैंने पूछा।
                      वो 120 बी दूसरी तरह का है। राजनैतिक बदले की भावना से लगाया हुआ है। उसने कहा।
                     ठीक यही राजनैतिक बदले की बात तो तेजस्वी भी कह रहा है। चलो छोडो। ये बताओ की देश से भृष्टाचार दूर करने के लिए सरकार क्या कर रही है ? मैंने पूछा।
                     बहुत काम कर रही है। अभी अभी लालू यादव पर केस दर्ज किया है।
                      भृष्टाचार के बहुत से केस सीबीआई के पास पेंडिंग हैं। सीबीआई क्या कर रही है ?
                     सीबीआई बहुत काम कर रही है। अभी अभी उसने लालू यादव के कितने ठिकानो पर रेड की है। उसने जवाब दिया।
                       आर्थिक भृष्टाचार के बहुत से मामले ED के पास भी पेंडिंग हैं। ED क्या कर रही है। मैंने पूछा।
                        अभी दो दिन पहले ही ED ने लालू यादव के खिलाफ केस दर्ज किया है। आपने पढ़ा नहीं ? उसने मुझसे पूछा।
                     थोड़े दिन पहले प्रधानमंत्री ने चार्टर्ड अकाउंटेंटस के सम्मेलन में चेतावनी दी थी की जो भी CA किसी को गलत तरिके से टैक्स बचाने में मदद करेगा, उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। क्या हुआ ? मैंने पूछा।
                      लगता आपने अख़बार पढ़ना छोड़ दिया है। अभी अभी लालू यादव की लड़की मीसा भारती  के CA के यहां रेड हुई है  आपको पता होना चाहिए। उसने जवाब दिया।
                       इससे तो ऐसा लगता है की अगर लालू यादव और उसका परिवार देश छोड़ दे तो भारत से भृष्टाचार का खात्मा हो सकता है ? मैंने पूछा।
                         नहीं, नहीं, भाई साहब, देश छोड़ देने से भृष्टाचार थोड़ा न खत्म हो सकता है। उसके लिए तो लालू यादव को राष्ट्रवादी होना पड़ेगा। उसने कहा।
                         उसके लिए क्या करना होगा ? मैंने पूछा।
                          बीजेपी में शामिल होना पड़ेगा। उसने कहा और अपने काम में लग गया।
 

Saturday, July 29, 2017

नितीश कुमार और आकाश में घूमती हुई अंतरआत्माएँ

                 भारत के आकाश में बहुत सी  अंतरआत्माएँ घूम रही थी। अलग अलग वेशभूषायें और अलग अलग अंदाज में। अचानक दो  अंतरआत्माएँ आमने सामने आ गयी। एक अंतरात्मा नई नवेली दुल्हन के वेश में थी और दूसरी अंतरात्मा विधवा के वेश में थी। दुल्हन के वेश वाली अंतरात्मा को अपने सामने अचानक आ गयी विधवा को देखकर अच्छा नहीं लगा। वह उस पर जोर से चिल्लाई, ' दिखाई नहीं देता, क्या टककर मारने का इरादा है। "
               "माफ़ करना बहन, मन दुखी था इसलिए ध्यान नहीं रहा। वैसे तुम कौन हो, पहले तो तुम्हे कभी देखा नहीं ?" विधवा अंतरात्मा ने पूछा।
                " मैं नितीश कुमार की अंतरात्मा हूँ, अभी दो दिन पहले ही हमारी शादी हुई है बिहार के हित  में। " दुल्हन अंतरात्मा ने इतराते  जवाब दिया।
                  विधवा अंतरात्मा के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान आयी। बोली,' जाओ बहन, मैं तो तुम्हे सदासुहागण रहने का आशीर्वाद भी नहीं दे सकती। "
                  दुल्हन अंतरात्मा अचानक पलटी। उसने विधवा अंतरात्मा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, " तुमने ऐसा क्यों कहा और तुम हो कौन ? "
                 " मैं भी नितीश कुमार की अंतरात्मा ही हूँ। अभी बीस महीने पहले हमारी शादी हुई थी। फेरों के वक्त नितीश कुमार ने मुझे वचन दिया था की मिटटी में मिल जायेंगे लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जायेंगे। अभी कुछ दिन पहले तक भी वो संघमुक्त भारत बनाने के लिए घर से निकले थे और थोड़ी देर के बाद कुछ रोती हुई अंतरआत्मायें मेरे घर आयी और मुझे बताया की मैं विधवा गयी। " उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे।
                 दुल्हन अंतरात्मा गंभीर हो गयी। उसे अपनी शादी की क्षणभंगुरता साफ नजर आने लगी। वो दोनों साथ साथ चलती हुई थोड़ी ही आगे गयी थी की बदबू का एक जोरदार झोंका आया और सामने बहुत सी अन्तरात्माओं की लाशे बिखरी हुई थी। वह सहम गयी और उसने विधवा अंतरात्मा की तरफ देखा।
                     विधवा अंतरात्मा ने नाक  पर रुमाल रखते हुए कहा ," ये उन बिहारियों और देश के अलग अलग हिस्सों के उन लोगों की अंतरआत्मायें हैं जिन्होंने बीजेपी को हराने के लिए नितीश कुमार का समर्थन किया था। दो दिन पहले अचानक सुनामी आयी और ये बेमौत मारी गयी। "
                   " तो इनका अंतिम संस्कार क्यों नहीं कर देते ?" दुल्हन अंतरात्मा ने पूछा।
                    " जगह कहां है ? सारे श्मशान और कब्रिस्तान पहले ही मीडिया की अन्तरात्माओं से भरे हुए हैं। " विधवा अंतरात्मा ने अफ़सोस जताया।
                       अचानक एक तरफ से अन्तरात्माओं का एक झुण्ड रोता बिलखता हुआ आता दिखाई दिया।  दोनों उस तरफ देखने लगी। जब वो पास आयी तो उनसे पूछा की तुम कौन हो और रो क्यों रही हो ?
                      उन अन्तरात्माओं ने रोते रोते कहा, " हम गुजरात के कुछ नेताओं की अंतरआत्मायें हैं। पहले हमे ऊना कांड पर और साम्प्रदायिकता पर रोने को कहा गया था। हम वहां रो ही रही थी की अचानक संदेश आया की रोना बंद करो और मंगलगान गाओ। भला ऐसा भी कभी होता है ? हमे कपड़े बदलने तक का मौका नहीं दिया। हमारे पतियों ने ये कहकर की कांग्रेस बीजेपी को हराने के लिए कुछ नहीं कर रही है बीजेपी की सदस्य्ता ले ली। आदमी ऐसा कैसे कर सकता है। इस तरह हम एक  साथ विधवा हो गयी।  हम तो कहती हैं की भगवान किसी अंतरात्मा की शादी किसी नेता से ना करवाए।"
                     अचानक दुल्हन अंतरात्मा ने अपने सारे जेवर उतार कर फेंक दिए। माथे का सिंदूर पोंछ दिया और घूमकर विधवा अंतरात्मा से बोली, " माफ़ करना दीदी, नितीश कुमार ने मिटटी में मिलने की शर्त पूरी कर दी। अब उस आदमी के अंदर इतनी जगह ही नहीं बची है की कोई अंतरात्मा उसके अंदर रह सके। इसलिए मैं उससे तलाक ले रही हूँ। दो दिन बाद विधवा होने से अच्छा है की तलाक ले लूँ। " और वो एक तरफ चली गयी। बाकि की अंतरआत्मायें उसे जाते हुए देखती रही।

Wednesday, July 26, 2017

भारतीय टीवी चैनल पर बहस का नमूना

                     दोपहर के 12 बजे हैं। एक भारतीय राष्ट्रवादी टीवी चैनल पर एंकर एक बहस का  आयोजन कर रहा है। स्टूडियो में तीन लोग बैठे हैं एक सरकारी पार्टी यानि बीजेपी के प्रवक्ता, दूसरे कांग्रेस के प्रवक्ता और एक विशेषज्ञ। बहस का विषय है की क्या अब रात है या दिन। अब इसका वर्णन  प्रकार है।
एंकर --
                 सबसे पहले मैं बीजेपी के प्रवक्ता से पूछना चाहता हूँ की प्रधानमंत्री ने अभी अभी कहा है की इस समय  आधी रात  है। इस पर आपका क्या कहना है ?
बीजेपी प्रवक्ता --
                          देखिये जब प्रधानमंत्री जी ने कहा है तो निश्चित रूप से आधी रात ही है। इस पर सवाल उठाने की गुंजाइश कहां है। प्रधानमत्री जी दुनिया के सबसे बड़े नेता हैं।
एंकर --
                    अब मैं काँग्रेस के प्रवक्ता से पूछना चाहता हूँ की वो इस पर सवाल क्यों उठा रहे हैं ? जब उनकी सरकार तब उन्होंने तो देश को कभी बताया नहीं की अभी दिन है या रात।
काँग्रेस प्रवक्ता --
                         इसमें सवाल उठाने की क्या बात है। दोपहर के 12 बजे हैं ,सूरज सर पर है और आप कह रहे हैं की आधी रात है।
एंकर --
             लेकिन जब सरकार कह रही है तो विपक्ष को कम से कम राष्ट्रीय सवालों पर तो सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए। आप इस मुददे पर भी राजनीति कर रहे हैं ?
बीजेपी प्रवक्ता --
                           काँग्रेस हमेशा से राष्ट्रीय सवालों पर राजनीती करती रही है। इसीलिए जनता ने इन्हे 44 के आंकड़े पर पहुंचा दिया।
एंकर --
               हमारे स्टूडियो में एक निष्पक्ष विशेषज्ञ भी मौजूद हैं। मैं उनसे पूछना चाहूंगा की अभी रात है या दिन इस पर उनका क्या कहना है ?
विशेषज्ञ --
                 देखिये ये एक वैज्ञानिक सवाल है। मेरी घड़ी में 12 PM का समय लिखा हुआ है। और PM से जो संकेत मिलता है वो तो रात की तरफ ही इशारा करता है। फिर भी इस पर हमे इसरो के बयान का इंतजार करना चाहिए और विपक्ष को इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
बीजेपी प्रवक्ता --
                           हमने अभी अभी अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प से फोन पर बात की है। उन्होंने भी कहा है की अभी आधी रात है और वो अभी शयनकक्ष में हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी का समर्थन अमेरिका सहित दुनिया के सारे देश कर रहे हैं लेकिन काँग्रेस को तो केवल राजनीति करनी है।
एंकर --
                मैं काँग्रेस के प्रवक्ता से ये पूछना चाहता हूँ की रात और दिन में कुछ बुनियादी फर्क होते हैं। वो किस आधार पर कह रहे हैं की अभी दिन है ?
कांग्रेस प्रवक्ता --
                            इसका सबसे मुख्य आधार ---
( बीजेपी प्रवक्ता उसकी बात बीच में काटकर )  ये तो आधार कार्ड का भी विरोध कर रहे हैं , ये क्या आधार की बात करेंगे। आधार के सवाल पर ये प्राइवेसी का सवाल उठाना शुरू कर देते हैं। अब आधी रात को इस पर बहस करने में क्या प्राइवेसीका उललंघन नहीं होता।
एंकर --
                ठीक है अगर आपके पास कोई ठोस आधार नहीं है तो कम से कम आपको प्रधानमंत्रीजी के इस बयान का विरोध नहीं करना चाहिए। कम से कम अमेरिकी राष्ट्रपति का जवाब आ जाने के बाद तो बिलकुल नहीं। वरना पूरी दुनिया में ये संदेश जायेगा की हमारे अन्दर राष्ट्रीय सवालों पर भी एकता नहीं है।
काँग्रेस प्रवक्ता --
                          लेकिन मैं इसका जवाब ---
( विशेषज्ञ, उसकी बात बीच में काटकर ) काँग्रेस के लोगों को  अपनी बातों को भी याद रखना चाहिए। जब 15 अगस्त 1947 को संसद में आजादी की घोषणा करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने उस समय को आधी रात कहा था तब विपक्ष ने उसका विरोध नहीं किया था। इन्होने तो GST की घोषणा करने के लिए संसद में हुए समारोह का बायकाट किया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदीजी ने उसे आधी रात कहा था। ये काँग्रेस की हार से पैदा हुई निराशा है की  प्रधानमंत्री मोदीजी की किसी भी बात का समर्थन नहीं कर सकती।
एंकर --
                 तो आज की बहस से ये साफ होता है की कांग्रेस के पास इस बात का कोई तर्क नहीं है और वो केवल राजनीती कर रही है।

Sunday, July 23, 2017

मुद्रा लोन, रोजगार के आंकड़े और नोटों की गिनती।

                    अभी अभी केंद्र सरकार का बयान आया है की उसने पिछले तीन सालों में सात करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया है। और ये रोजगार उसने मुद्रा बैंक से साढ़े तीन लाख करोड़ लोन देकर दिया है। उसके बाद सब तरफ इसकी चर्चा है और कुछ भक्त तो ये भी कह रहे हैं की देखो, मोदीजी ने वायदा तो सालाना दो करोड़ नौकरियों का किया था और रोजगार सात करोड़ से ज्यादा लोगों को दे दिया।
                     इस पर सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है की लोगों को पता ही नहीं है की सरकार ने उनको रोजगार दे दिया। और लोग हैं की फालतू में लाइन लगा कर खड़े हैं और सरकार को कोस रहे हैं। अब सरकार का काम लोगों को रोजगार देना था सो दे दिया, लोगों को इसका पता लगे न लगे ये सरकार की जिम्मेदारी थोड़ी है। कुछ लोग कह रहे हैं की वायदा नौकरियों का था और सरकार अब घुमा फिरा कर रोजगार के आंकड़े दे रही है। इस पर भक्त लोग कह रहे हैं की रोजगार और नौकरी में क्या फर्क होता है ? लोगों की भाषा कमजोर है तो ये मोदीजी की जिम्मेदारी थोड़ी है।
                       ये बयान सुनते ही मेरे पड़ौसी तुरंत मेरे घर पर आ धमके। पता नहीं वो मेरे घर को सरकार का लोक सम्पर्क विभाग का दफ्तर क्यों समझते हैं ? आते ही सवाल दागा ," ये सात करोड़ लोगों को रोजगार कैसे दे दिया ?"
                       मैंने कहा, " जब सरकार कह रही है तो दिया ही होगा। वैसे सरकार का कहना है की उसने सात करोड़ लोगों को साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन मुद्रा योजना से दिया है जिससे उन्हें रोजगार मिला। "
                       " लेकिन लोन तो पहले से धंधा कर रहे लोगों को मिलता है। अगर किसी छोटे दुकानदार ने अपनी पूंजी की जरूरत के लिए पचास हजार का लोन ले लिया तो क्या उसे दूसरा रोजगार मिल गया। वो तो पहले से ही रोजगार शुदा था। " पड़ोसी ने अगला सवाल किया।
                        मैंने कहा ," देखो, अगर किसी दुकानदार के पास पैसे नहीं हैं तो उसे तो देर सबेर बेरोजगार होना ही था। तुम ऐसा समझ लो की सरकार ने उसे एडवांस में रोजगार दे दिया। "
                          " ऐसे कैसे समझ लें ? तुमने पहले से रोजगार शुदा लोगों को लोन दिया और अब उसे नए रोजगार में खपा रहे हो। " पड़ोसी ने सख्त एतराज किया और लगभग मुझे ही सरकार मान लिया।
                       " देखो, तुम ये तो मानते ही हो न की देश में बहुत भृष्टाचार है। इसमें बहुत से लोगों ने गलत काम धंधा दिखाकर और बैंक के लोगों से मिलीभगत करके भी लोन लिया होगा। इसके अलावा सरकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी लोन मिला होगा। तो उनको रोजगार मिला की नहीं ?" मैंने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की।
                       मेरे पड़ोसी की आँखे चौड़ी हो गयी। उसने गर्दन हिला कर कहा। " बहुत अच्छे, चलो ये बताओ की सरकार को कैसे पता चला की साढ़े तीन लाख करोड़ का लोन दिया गया है ?"
                           " कमाल  करते हो, बैंको के आंकड़े हैं और कैसे पता चलेगा। " मैंने कहा।
                        "लेकिन रिजर्व बैंक में तो अभी तक नोटों की गिनती चल रही है। उसको तो ये भी नहीं मालूम की उसके पास कितना पैसा है। वो कैसे बता सकता है की कितने का लोन दिया। अगर सारे नोट गिनने के बाद एक दो लाख करोड़ का फर्क आ गया तो क्या करोगे ?" मेरे पड़ोसी ने आखरी पैंतरा आजमाया।
                        " तो सरकार अपने आंकड़े सुधार लेगी और क्या करेगी। अगर रकम बढ़ गयी तो विजय माल्या के खाते में जमा कर देंगे। " मैंने पीछा छुड़वाना चाहा।
                         हा हा हा। पड़ोसी ने ठहाका लगाया और चला गया।

Saturday, July 22, 2017

गौ रक्षकों पर सरकार का बयान भरोसा पैदा नहीं करता।

                गौ रक्षकों द्वारा लगातार की जा रही हिंसा और उसमे कई जान चले जाने के महीनो बाद प्रधानमंत्री ने हिंसा की आलोचना करने वाला बयान जारी किया। उससे पहले लगातार हो रही हिंसा पर पूरा देश उन्हें मुंह खोलने के लिए कहता रहा, लेकिन उनके मुंह से इसके खिलाफ एक शब्द नहीं निकला। इससे हिंसा करने वाले गौ रक्षकों में इस बात का स्पष्ट संकेत गया की सरकार की मंशा क्या है। प्रधानमंत्री का ये बयान संसद का सत्र शुरू होने के एक दिन पहले और सुप्रीम कोर्ट में इस पर होने वाली सुनवाई से तीन दिन पहले आया। जानकारों का स्पष्ट मानना है की ये संसद में विपक्ष के हमले से बचने और सुप्रीम कोर्ट में किसी सख्त टिप्पणी से बचने की कवायद भर है। वरना क्या कारण था की सुदूर साइबेरिया में होने वाली दुर्घटना में अगर कोई मौत हो जाती है तो हमारे प्रधानमंत्री का ट्वीट वहां के प्रधानमंत्री के बयान से भी पहले आ जाता है। इसलिए लोग मानते हैं की गौ रक्षकों की हिंसा को बीजेपी, आरएसएस और सरकार का समर्थन प्राप्त है।
                     प्रधानमंत्री ने जब गौ रक्षकों की हिंसा की आलोचना करने वाला बयान दिया तो वो भी एकदम सीधा और स्पष्ट होने की बजाय किन्तु और परन्तु वाला बयान है। इसमें उन्होंने देश की बहुसंख्या द्वारा गाय को माता मानने जैसे शब्दों को शामिल कर दिया जो गौ रक्षकों को इस बयान की गंभीरता की असलियत बता देते हैं। और यही कारण है की उसके बाद भी गौ रक्षकों की हिंसा कम नहीं हुई।
                    इस मामले में सरकार और संघ परिवार की मंशा एकदम साफ है। एक तरफ सरकार गौ रक्षकों की हिंसा रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डालती है और दूसरी तरफ राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले पशु व्यापार पर केंद्र की तरफ से नोटिफिकेशन जारी करती है। वहीं खुद उनकी पार्टी की राज्य सरकारें सारे सबूतों को अनदेखा करके हिंसा करने वाले गौ रक्षकों पर केस दर्ज करने की बजाय पीड़ितों पर की केस दायर करती हैं।
                   इसके साथ ही उस घटनाक्रम को भी देखना होगा जिसमे गुजरात चुनावों में इस बार बीजेपी की पतली हालत को देखते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए " आलिया, मालिया, जमालिया " जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। लगभग सभी मोर्चों पर विफल बीजेपी सरकार अब लोगों के सवालों का जवाब देने की पोजीशन में नहीं है। इसलिए उसे अब केवल साम्प्रदायिक विभाजन का ही सहारा है। उसका विकास और भृष्टाचार विरोध का नकली प्रभामंडल ध्वस्त हो चूका है। इसलिए अब उसे इस विभाजन की जरूरत पहले किसी भी समय से ज्यादा है। इसलिए उसके हर कार्यक्रम और बयान में साम्प्रदायिक रुझान साफ नजर आता है। अब तो ये इतना स्पष्ट है की दूर विदेशों में बैठे लोगों को भी साफ साफ दिखाई दे रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट से लेकर दा इण्डिपेंडन्ट जैसे अख़बारों में छपने वाले लेख इसके गवाह हैं।
                     इसलिए लोगों को प्रधानमंत्री और उसकी ही तर्ज पर संसद में दिए गए अरुण जेटली के किन्तु परन्तु वाले बयानों पर भरोसा करने की बजाय साम्प्रदायिक विभाजन के विरोध की अपनी कोशिशों को और  तेज करना चाहिए।

Sunday, July 16, 2017

नोटों की गिनती और उर्जित पटेल का मजाक।

                    जिस दिन उर्जित पटेल ने संसदीय कमेटी के सामने ये कहा की अभी तक RBI को पता नहीं है की कितने नोट बैंको में जमा हुए हैं, और अभी तक नोटों की गिनती चल रही है , तो उनका ये बयान सुनकर मुहल्ले के चबूतरे पर बैठे लोगों का हँस हँस कर बुरा हाल हो गया। पता नहीं संसदीय समिति के सदस्यों का क्या हाल हुआ होगा। उसकी एक झलक तो समिति के सदस्य श्री दिग्विजय सिंह के उस सवाल से मिल सकती है जिसमे उसने श्री उर्जित पटेल से ये पूछा की मई 2019 तक तो RBI बता देगा न की कितना पैसा जमा हुआ है ?
                      उस दिन चबूतरे पर एक भक्त भी बैठा हुआ था और उसकी समझ में नहीं आ रहा था की आखिर इस बात पर लोग हँस क्यों रहे हैं। उसने ये कहा भी की इसमें उर्जित पटेल ने क्या गलत कह दिया , और की वो नोट गिनकर बता देगा। इस पर लोगों को एक बार हँसी का दौरा पड़ गया।
                      आज वो भक्त मेरे पास आया और बोला की उसे पचास हजार रुपयों की जरूरत है और मैं उसे ये रुपया उधार दे दूँ।
                      लेकिन मैं तो घर पर इतना रुपया नहीं रखता। मैंने कहा।
                      कोई बात नहीं , आप मुझे चैक दे दीजिये। आपके बैंक खाते में तो रुपया होगा ही। उसने कहा।
                      मैं आपको चैक नहीं दे सकता। क्योंकि मुझे पता नहीं  है की मेरे खाते में और बैंक में रुपया है की नहीं है। मैंने जवाब दिया।
                     कमाल करते हो भाई साहब, आपके खाते  में जो रुपया होगा वो तो आपकी पास बुक में जमा होगा ? उसने एतराज जताया।
                      लेकिन बैंक में कितना रुपया है और उसमे मेरा कितना है ये तो गिनने के बाद ही पता चलेगा ? मैंने जवाब दिया।
                      आप अजीब आदमी हैं। आपने बैंक में जो रुपया जमा करवाया होगा वो तो बैंक ने गिनकर ही लिया होगा और उसके हिसाब से ही आपके खाते में जमा किया होगा ? उसने फिर नाराजगी दिखाई।
                      भाई साहब, अब तक तो मैं भी यही समझता था। और ये भी समझता था की बैंक जो पैसा RBI में जमा करवाते हैं, RBI उसे गिनकर ही लेती है और उसके हिसाब से ही बैंक के खाते में जमा करती है। लेकिन पिछले आठ महीनो से सरकार और RBI , दोनों कह रहे हैं की उन्हें पता नहीं है की कितना पैसा जमा हुआ है और उसकी गिनती चल रही है। आपने उर्जित पटेल का बयान नहीं सुना ? मुझे लगता है की पहले वो RBI का पैसा गिनेंगे, फिर सभी बैंको का गिनेंगे, फिर उसे खातों से मिलाएंगे और उसके बाद मुझे पता चलेगा की मेरा कितना पैसा है। आप एक काम कीजिये, गिनती पूरी होने के बाद आइये और चैक ले जाइये।