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Wednesday, September 13, 2017

नोटबंदी पर सरकार का रुख, " रपट पड़े तो हर गंगा "

                 नोटबंदी एक विफल प्रोग्राम साबित हो चूका है। लेकिन सरकार और बीजेपी लगातार बयान बदल बदल कर कहीं न कहीं इज्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जब प्रधानमंत्री मोदीजी ने इसकी घोषणा की , तब उन्होंने  इसके कारण और लक्ष्य बताये थे। जैसे जैसे समय गुजरा तो ये समझ में आया की इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ, उलटे अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ गया और करोड़ों लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसके तुरंत बाद बीजेपी और सरकार में बैठे मंत्रियों ने बयान बदलने शुरू कर दिए। सबसे पहले कहा गया की नोटबंदी लोगों को डिज़िटल लेनदेन की आदत डालने के लिए की गयी थी। उसके बाद ये आंकड़े भी आ गए की जून के बाद डिजिटल लेनदेन की संख्या में भारी गिरावट आयी है।
                 लेकिन जो मुख्य मसला था वो था कालाधन।  सरकार इस बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना चाहती है की जैसे वो कालेधन और भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। इसके लिए इस बात में विफल होने के बाद की तीन-चार लाख करोड़ रूपये कागज के टुकड़ों में बदल जायेंगे, सरकार ने तुरंत पलटी मार कर कहना शुरू किया की हमने तो नोटबंदी की ही इसलिए थी की सारा पैसा बैंक में वापिस आ जाये। और की अब हमारे पास इस बात के आंकड़े हैं की किस किस का धन काला है और उन सब को पकड़ लिया जायेगा।
                  लेकिन सरकार का ये बयान भी उसकी कार्यवाही से मेल नहीं खाता। सुप्रीम कोर्ट में एक महिला की इस याचिका पर की उसे बैंक में पैसा जमा करने का एक मौका दिया जाये, उसके जवाब में सरकार ने कहा की अगर एक मौका और दे दिया गया तो नोटबंदी का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। तो आपका उद्देश्य क्या था ? अगर आपका उद्देश्य सारा पैसा सिस्टम में वापिस लाने का था तो बाकी का भी आ जाने दो। फिर आप जिला सहकारी बैंको में जमा हुए करीब नौ हजार करोड़ रूपये को लेने से क्यों इंकार कर रहे हो ? फिर आप देश से बाहर नेपाल इत्यादि में रहने वाले भारतीयों का पैसा लेने से इंकार क्यों कर रहे हो। दूसरे अब बचा ही क्या है ? RBI के अनुसार केवल 16000 करोड़ के नोट ही बाहर बचे हैं बाकी तो सब जमा हो चुके हैं।
                इसके केवल दो कारण हो सकते हैं। पहला ये की आपका उद्देश्य वो नहीं था जो आप अब बता रहे हैं, बल्कि वही था जो घोषणा करते वक्त बताया गया था।
                 और दूसरा कारण ये की एक मौका और दे देने से तय रकम से ज्यादा पैसा बैंक में आ सकता है और नकली नोटों का वो आंकड़ा भी सामने आ जायेगा जो इस दौरान बैंको में जमा हो गए। 

Sunday, December 18, 2016

नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

                व्यक्ति के अहंकार का मूल उसकी मूर्खता में होता है। हर मुर्ख व्यक्ति दम्भी और अहंकारी होता है। जब ये स्थिति किसी सरकार चलाने वालों के साथ होती है तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाती है। ठीक वैसी ही, जैसी अब है। लोग भूख से मर रहे हैं, अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है, काम धंधे बन्द हैं और सरकार के मंत्री अपनी वफादारी सिद्ध करने की होड़ में इस फैसले को कभी ऐतिहासिक तो कभी गेम चेंजर बता रहे हैं। रोज बैंक की लाइनों से लाशें घर लोट रही हैं, मजबूर, रोते बिलखते लोगों के फोटो अख़बार में छप रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ट्रेने वापिस लौटते हुए मजदूरों से भरी हुई हैं। किसान अपनी उपज को सड़कों पर फेंक देने को मजबूर हैं। सभी छोटे और मध्यम उद्योग लगभग बन्दी की हालत में हैं। और सरकार के वरिष्ठ मंत्री, प्रधानमंत्री सहित, टीवी पर डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बता रहे हैं। एक लोकतान्त्रिक देश के लोगों के साथ इससे क्रूर मजाक हो नही सकता।
                  कॉरपोरेट मीडिया और कॉरपोरेट की सरकार द्वारा तय किये गए मापदण्ड कुछ लोगों के दिमाग पर इतने हावी हो चुके हैं की वो अपनी समझबूझ खो चुके हैं। अब भी कुछ लोग हैं जो नोटबन्दी के फायदे समझाने लगते हैं। उन्हें देख कर तरस आता है। आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत के फायदे गिनवाते थे। अंग्रेजो को विकास का प्रतीक बताया जाता था। अब भी वैसा ही है। उन्हें कुछ भी दिखाई नही देता।
                    लोगों की तकलीफों को छुपाने की भरसक कोशिशों के बावजूद टीवी कुछ ऐसे दृश्यों को दिखाने के लिए मजबूर है जिसमे चाय बागानों के मजदूर झाड़ियों के पत्ते उबाल कर खा रहे हैं। उन्हें कहा जा रहा है की भविष्य की बेहतरी के लिए सब्र करें। किसका भविष्य ? जिन लोगों को दो वक्त की रोटी विलासिता लगती हो वो भूखे रहकर किस भविष्य की उम्मीद करें। पीठ पर बैग लटकाये बेरोजगार नोजवानो की एक भीड़,  जिसके लिए देश का सबसे क्रन्तिकारी नेता वो है जो फ्री वाईफाई दे दे , आज देश में विचार के मुद्दे तय कर रही है। जो कारपोरेट की भाषा बोलती है और गैस की सब्सिडी लेने पर अपने माँ बाप को मुफ्तखोर कहती है। क्या उसे मालूम है की जो किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक कर जा रहा है वो उसके आधा साल की मेहनत का परिणाम है। आज जब उसे खेत में डालने के लिए खाद नही मिल रहा है तो उसका भविष्य उसकी आँखों के सामने बरबाद हो रहा है। अगर दो या तीन महीने के बाद स्थिति थोड़ी बहुत सामान्य हो भी जाती है, जिसकी उम्मीद नही है तो भी उसके किस काम की ? ये कोई मोबाइल का रिचार्ज नही है की जब पैसा आएगा तब करवा लेंगे। पहले से जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा कृषि क्षेत्र तब तक लकवे का शिकार हो जायेगा।
                   उसके बावजूद सरकार अपने जनविरोधी फैसले पर अडिग है। उसके सारे वायदे एक एक करके खोखले साबित हो चुके हैं। अब ना कालेधन का कोई सवाल बचा है, ना आतंकवाद की टूटी हुई कमर दिखाई दे रही है और जाली नोटों का तो ये हाल है की शायद जितने जाली नोट अब पकड़े गए हैं उतने तो दस साल में भी नही पकड़े गए होंगे। अब सरकार मुंह छुपाने के लिए डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है। क्या करेगी सरकार उसके लिए ? बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भेजेगी लोगों को डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बताने और paytm की app कैसे काम करती है उसकी ट्रेनिग देने ? जिस देश की 35 % जनता को सरकार 70 साल में क ख ग नही सीखा पाई ( गुजरात सहित ) , उसे अब दो महीने में डिजिटल कर दिया जायेगा ? इससे बड़ा मजाक हो नही सकता। इस पर टीवी पर भाषण देने वाले लोग असल में इस देश के बारे में कुछ नही जानते। हर रोज सरकार के प्रतिनिधि नए नियम और नई धमकियां लेकर आ जाते हैं। संसद को पहली बार सरकार ने नही चलने दिया। जब विपक्ष ने बहस के किसी नियम पर सहमति दिखाने की कोशिश की तभी सरकार  सांसद तख्तियाँ लिए नारे लगाते हुए नजर आये। प्रधानमंत्री रैली में कहते हैं की उन्हें संसद में बोलने नही  दिया गया, क्या वो एक फुटेज दिखा सकते हैं की जब वो बोलने के लिए खड़े हुए हों। नही। हर रोज नोटबन्दी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने पार्टी के सांसदों को विपक्ष का पर्दाफाश करने का आव्हान कर रहे हैं। उन्हें कालेधन के समर्थक करार दे रहे हैं। अब किसका पर्दाफाश करेंगे ? सारे बैंकों, सरकार के दिए गए संवैधानिक वचनों और नागरिक अधिकारों का तो पहले ही पर्दाफाश हो चूका है।
नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।

Monday, September 28, 2015

A cartoon on Modi in The Hindu, Internet and Mark Zuckerberg

 Facebook founder-CEO Mark Zuckerberg says it is most important for India to get the Net neutrality debate right, as it has the most number of unconnected people

‘We want everyone to be on the Internet’

 

Vyang -- डिजिटल इंडिया ( Digital India ) के फायदे

मुझे ये समझ में नही आ रहा की अब तक हमारे देश ने डिजिटल इंडिया के फायदों को क्यों नही समझा। अब जाकर हमे मालूम पड़ा है की भारत की सारी समस्याओं का समाधान तो डिजिटली हो सकता था तो फिर पिछली सरकारें दूसरी चीजों पर क्यों समय खराब करती रही। खैर देर आयद, दुरुस्त आयद। अब हम इस बात को समझ चुके हैं और जो नासमझ अब भी नही समझ पा रहे हैं उनको समझाने के लिए डिजिटल इंडिया के ये फायदे लिखने पड  रहे हैं।

                               १.  अब आपको जो  समस्या हो उसका समाधान आप डिजिटल इंडिया से कर सकते हैं। आप को किसी विभाग से कोई शिकायत है तो आपको शिकायत करने के लिए विभाग के दफ्तर जाने की कोई जरूरत नही है। आप उस विभाग की वेब साईट पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। आपको तुरंत आपका शिकायत नंबर मिलेगा। आप दो चार दिन के बाद उस नंबर से आपकी शिकायत की स्थिति देख सकते हैं। वहां आपको लगभग 15 दिन तो अंडर प्रोसेस लिखा मिलेगा और आपकी उम्मीद जिन्दा रहेगी। उसके बाद आपको जवाब मिलेगा की आपकी शिकायत संबंधित अधिकारी को भेज दी गयी है। शिकायत को अधिकारी तक पहुंचाने का जो काम डाक विभाग तीन दिन में करता था वो डिजिटली 15 दिन में हो जायेगा। उसके बाद आप जब स्थिति चैक करेंगे तो उसमे  " सॉल्व " लिखा आएगा। आप कुछ नही कर सकते। आप वेब साईट पर दिए गए फोन से इस बारे में जानकारी चाहेंगे तो जवाब आएगा की ये फोन नंबर उपलब्ध नही है। क्योंकि नई व्यवस्था में पुरानी परम्परा का पूरा ध्यान रखा गया है। वेब साईट बेसक इसी साल बनी है लेकिन उसमे टेलीफोन नंबर 10 साल पुराने दिए गए हैं। इस तरह आप डिजिटली अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। जब साईट पर सॉल्व लिखा है तो आपको भी मान लेना चाहिए की समस्या सॉल्व हो चुकी है।

                               २. इसी डिजिटल इंडिया से देश के किसानो की समस्याओं का भी समाधान हो सकेगा। जिस किसान के यहां 20 मन आलू पैदा हुआ है वो गूगल पर सर्च कर सकता है की दुनिया के कौनसे देश में आलू की कीमत ज्यादा है। मान लो उसे पता चलता है की स्वीडन में आलू महंगा है तो वह अपने आलू को स्वीडन में बेच सकता है। गूगल द्वारा ही उसे एक्सपोर्ट लाइसेंस से लेकर बंदरगाह जैसी हर जानकारी मिल सकती है। जो किसान अब तक रो रहा था की आलू दो रूपये किलो भी नही बिक रहा है वो अब 200 रूपये किलो आलू बेच सकता है। इससे हमारे यहां किसान क्रान्ति हो जाएगी। अभी कुछ दिन पहले इसी तरह की कितनी क्रांतियाँ हमारे देश में हो चुकी हैं इसका जिक्र प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किया ही था। इस तरह किसान पूरी दुनिया की मंडियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। उसने जो जनधन योजना में खाता खुलवा लिया था और उसमे भले ही एक रुपया ना डाला हो परन्तु वो नेट बैंकिंग से अपना बैलेंस चैक कर सकता है उसे इसके लिए पांच रूपये खर्च करके शहर जाने की जरूरत नही है वो गांव के साइबर कैफे में ये सेवा 20 रूपये घंटे के खर्चे पर प्राप्त कर सकता है। वरना वो ऑनलाइन सामान बेचने वाली साईट पर जाकर कम कीमत में कम्प्यूटर खरीद सकता है।

                                   ३. मजदूरों को भी इससे काफी लाभ होगा। जिस मजदूर के पास काम नही है वो गूगल पर सर्च कर सकता है की देश में कहाँ काम मिल सकता है। वो मनरेगा का भुगतान नही हुआ हो तो ऑनलाइन शिकायत कर सकता है लेकिन उसका तरीका वही होगा जो हमने ऊपर बताया है।

                                  ४. आपका बच्चा खो गया हो तो आप गूगल पर सर्च कर सकते हैं। किसी महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और पुलिस कार्यवाही नही कर रही है तो वो बलात्कारी के साथ सेल्फ़ी लेकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर सकती है। आपके नल में पानी नही आ रहा है तो भी आप गूगल पर सर्च करके पता लगा सकते हैं की कहां  तक पहुंचा। आपके यहां सुखा पड़ा है तो आप इंटरनेट पर पता लगा सकते हैं की आपके इलाके में कितने प्रतिशत बारिस कम हुई है। इसी तरह आपके बच्चे को स्कुल में एडमिशन नही मिल रहा है तो आप पता लगा सकते हैं की हमारे देश में स्कूलों और विद्यार्थिओं का अनुपात क्या है। इस तरह पुरे देश की समस्या हल हो सकती हैं। इंटरनेट पर हर चीज का इलाज मौजूद है।

                                    ५. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है की आपको भले ही ये लगता हो की आपकी जिंदगी मुस्किल हो गयी है और सरकार काम नही कर रही है परन्तु आप टीवी पर प्रायोजित भीड़ को प्रधानमंत्री के नारे लगाते देख सकते हैं। आपके मुहल्ले के लोग सरकार के बारे में क्या राय रखते हैं उसकी बजाए आप ये देख सकते हैं की जुकेरबर्ग सरकार के बारे में क्या कह रहे हैं। आपकी राय कोई अमरीकियों की राय से ज्यादा वजन तो नही रखती। प्रधानमंत्री अपने ऊपर लगे आरोपों के बारे में संसद की बजाय विदेश में जाकर लोगों से पूछ सकते हैं की ए मेरे देश के लोगो, बताओ, क्या मेरे ऊपर कोई आरोप है ? अगर किसी ने गलती से भी कह दिया की है, तो इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी का भुगतान रोक दिया जायेगा।

                                        ६. इस तकनीक का एक फायदा और है। प्रधानमंत्री डिजिटल तकनीक का उपयोग करके अंग्रेजी में फर्राटेदार भाषण पढ़ सकते हैं और किसी को मालूम भी नही पड़ेगा। आप खुश हो सकते हैं की प्रधानमंत्री कितनी अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं। इससे आपके मन में और विदेशों में हमारे देश का रुतबा बढ़ता है। वैसे भी प्रधानमंत्री कह रहे हैं की पूरी दुनिया हमारा लोहा मान रही है इसलिए भले ही हमारा बनाया हुआ लोहा मार्किट में ना बिके हमे उसकी चिंता करने की जरूरत नही है।

                                   बस अब हम केवल गूगल पर ये सर्च कर रहे हैं की क्या भारत में होने वाले इलेक्सन में अमेरिकी वोट डाल सकते हैं ? एक बार इसका जवाब हाँ में मिल जाये फिर लोग लोकतंत्र, समाजवाद , समानता, भाईचारा, नागरिक अधिकार जैसी चीजों को गूगल पर ढूंढते ही रहेंगे।

Sunday, September 27, 2015

डिजिटल इंडिया पर प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका में भाषण

खबरी -- प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका में बोलते हुए दो महत्त्वपूर्ण बातें कही। 
१.      इंटरनेट कनेक्टिविटी पांचवां मौलिक अधिकार है। 
२.      इंटरनेट, सोशल मीडिया डिजिटल डेमोक्रेसी है। 

गप्पी --       तो क्या प्रधानमंत्री ये मान रहे हैं की गुजरात में बार बार इंटरनेट पर प्रतिबंध मौलिक अधिकारों और डेमोक्रेसी पर हमला है।