हाँ धनञ्जय, इस प्रतियोगिता में तुम अकेले हो। ये तो तुम्हे मालूम ही होगा की ये द्धापर युग नही है बल्कि कलियुग है। जो सुविधाएँ तुम्हे द्धापर युग में हासिल थी वो अब नही हैं। उस समय तो पूरी सत्ता, पूरा समाज और यहां तक की खुद भगवान भी तुम्हारी जीत के लिए प्रयासरत रहते थे। दूसरे प्रतियोगियों को इसका मलाल भी रहता था और एतराज भी। लेकिन वो कुछ कर नही सकते थे। अब तुम कर्ण को ही लो। जितनी बार भी उससे तुम्हारी प्रतियोगिता हुई, पूरी दुनिया उसे हराने और तुम्हे जिताने लग जाती। कोई भी प्रतियोगिता कभी भी बराबरी पर नही हुई। उसके पास तुम्हारे जैसे सरकारी कोच भी नही थे और सरकारी साधन भी नही थे। उसके बावजूद उसने जब भी तुम्हे ललकारा, तुम्हारे लोगों ने नियम बदल दिए। द्रोपदी का स्वयम्बर तो तुम्हे याद होगा ? उसे अवसर दिए बिना ही बाहर कर दिया गया। वरना शायद ये देश महाभारत के युद्ध से बच जाता। उसे लायक होने के बावजूद सरकारी विद्यालयों में शिक्षा नही मिली। क्योंकि उस समय क्षत्रियों के लिए 100 % आरक्षण का प्रावधान था। उसने जब ब्राह्मण ऋषि परसुराम से अपनी जाति छुपाकर शिक्षा प्राप्त की तब परसुराम ने भी उसे श्राप दे दिया। उसके बावजूद तुम उसे युद्ध में हरा नही पाए। तुमने उसे धोखे से मारा और तुम्हारे मित्र कृष्ण ने तुम्हारी इज्जत बचाने के लिए उसे नियमानुसार सिद्ध कर दिया। लेकिन आम लोग इस बात को भूले नही। आज भी आम जन में कर्ण का सम्मान तुमसे ज्यादा है।
इस प्रतियोगिता में पितामह भीष्म भी नही हैं जो महिलाओं को प्रतियोगिता से बाहर कर दें। हालाँकि भीष्म के नए अवतार मोहन भागवत ने महिलाओं को हर तरह की प्रतियोगिता से बाहर रखने को जरूर कहा, लेकिन लोग केवल हँस कर रह गए। अब तो लोग कहते हैं की अगर मोहन भगवत की बात मान ली जाती तो भारत को उतने ही मैडल मिलते जितनी संख्या का आविष्कार आर्यभट्ट ने किया था।
इस प्रतियोगिता में एकलव्य का अंगूठा काटने की भी मनाही है और कृष्ण को भी कह दिया गया है की बहुत सक्षम हो तो खुद ही उतर जाओ प्रतियोगिता में। बाहर बैठे तुम्हारे लोग हे नरसिंह, हे योगेश्वर, चिल्लाते रहेंगे लेकिन जीतना तो तुम्हे अपनी ताकत पर ही पड़ेगा। यहां कृष्ण खुद हारने पर जरासंध के सामने भीम को नही उतार सकते।
सो हे पार्थ, जरा ध्यान रखना। ये कलियुग है और तुम्हे कोई आरक्षण प्राप्त नही है। यहां तुम निपट अकेले हो।
इस प्रतियोगिता में पितामह भीष्म भी नही हैं जो महिलाओं को प्रतियोगिता से बाहर कर दें। हालाँकि भीष्म के नए अवतार मोहन भागवत ने महिलाओं को हर तरह की प्रतियोगिता से बाहर रखने को जरूर कहा, लेकिन लोग केवल हँस कर रह गए। अब तो लोग कहते हैं की अगर मोहन भगवत की बात मान ली जाती तो भारत को उतने ही मैडल मिलते जितनी संख्या का आविष्कार आर्यभट्ट ने किया था।
इस प्रतियोगिता में एकलव्य का अंगूठा काटने की भी मनाही है और कृष्ण को भी कह दिया गया है की बहुत सक्षम हो तो खुद ही उतर जाओ प्रतियोगिता में। बाहर बैठे तुम्हारे लोग हे नरसिंह, हे योगेश्वर, चिल्लाते रहेंगे लेकिन जीतना तो तुम्हे अपनी ताकत पर ही पड़ेगा। यहां कृष्ण खुद हारने पर जरासंध के सामने भीम को नही उतार सकते।
सो हे पार्थ, जरा ध्यान रखना। ये कलियुग है और तुम्हे कोई आरक्षण प्राप्त नही है। यहां तुम निपट अकेले हो।