Tuesday, May 26, 2015

A Honest conversation with a Government Spokesperson - सरकार के प्रवक्ता से एक स्पष्ट बातचीत

खबरी -- तुम बता रहे थे की कल तुम्हारी सरकार के एक प्रवक्ता से एकदम स्पष्ट और ईमानदार बातचीत हुई, और उसमे उसने राजनीती से हटकर एकदम सीधे और सच्चे जवाब दिए। 


गप्पी -- हाँ, एकदम सीधी और सच्ची बात, बिना घुमाए फिराए। 


खबरी -- तो बताओ की क्या-क्या बातें हुई। 


गप्पी -- सरकार का एक साल पूरा होने पर मैंने उससे सरकार की प्रमुख सफलता के बारे में पूछा।  पूरी बातचीत का विवरण इस तरह है। 

प्रवक्ता -- जैसे की प्रधानमन्त्री ने अपने भाषण में बताया है, सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है इस एक साल में किसी घोटाले का सामने न आना। 

गप्पी -- अगर घोटाले का सामने न आना ही उपलब्धि है तो बंगाल के 35 साल के वामपन्थी शासन में जिसमे एक भी घोटाला नही हुआ उसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे। 

प्रवक्ता -- देखिये घोटाला न होना और सामने न आना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। हमने घोटाला सामने न आने की बात कही है।  और उसके लिए हमने पूरे प्रयास किये हैं। पूरा साल गुजर जाने के बावजूद हमने न तो CIC , न CVC और न ही लोकपाल की नियुक्ति की।  जहाँ तक CAG का सवाल है तो उसकी तो इस साल की ऑडिट ही 1-2 साल के बाद होगी। इस मामले में हमे गुजरात का अनुभव बहुत काम आया।  जब तक मोदी जी वहां के मुख्यमंत्री रहे, हमने 12 साल लोकायुक्त की नियुक्ति नही होने दी। 

          दूसरा आपने जो वामपंथियों के साथ हमारी तुलना की वो सही नही है।  आपने उनका रहन-सहन देखा है, एकदम लोवर क्लास के लोग हैं। अपना वेतन पार्टी को देकर उससे घरखर्च के लिए 5000 रूपये ले लेते हैं और उसमे गुजारा  कर लेते हैं।  इतने पैसों में तो हमारे एक बच्चे का जेबखर्च नही चलता।  हम तो जब घर से निकलते है तभी घोटाले करने के सैकड़ों कारण मुंह फैलाये सामने खड़े होते हैं।  हमने जिस तरह ये एक साल निकाला है हम ही जानते हैं।

गप्पी -- लेकिन आप लोगों में से तो बहुत से लोग संघ से आये हैं और संघ के लोगों के बारे में तो ये कहा जाता है की वो देश सेवा के लिए आये हैं। 

प्रवक्ता -- हाँ, ये बात सही है की बहुत से लोग संघ से आये हैं। परन्तु आपको याद होगा की संघ का जन्म कितनी मुश्किल परिस्थितियों में हुआ था।  उस समय देश में अंग्रेजों का राज था , और जो भी संगठन बनता था ये माना जाता था की वो आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए बनाया गया है। हमारे सामने दो मुश्किलें थी एक तो अंग्रेजों को ये बताना की हम कोई आजादी-वाजादी के लिए संगठन नही बना रहे हैं और दूसरी तरफ उन लोगों के बीच में काम करना जो अंग्रेजों से नफरत करते थे। उसके लिए पहला तरीका तो ये निकाला की हमने अपना गणवेश निककर रख लिया।  उस समय अंग्रेज  सिपाही भी निककर पहनते थे तो हमने अंग्रेजों को ये संदेश दे दिया की हम भी आपके ही " सिपाही " हैं। दूसरा हमे अपने संगठन के लिए उस दिमागी लेवल के लोगों को चुनना आसान हो गया जो हमारे कहने अनुसार काम कर सकें। वरना तो अच्छे भले लोगों को जब हम  धोती उतार  कर निककर पहनने को कहते तो वो इतनी बुरी तरह बिदकते की सम्भालना मुश्किल  हो जाता। लेकिन अब 85 -90 साल से लोग इसी दिन का तो इंतजार कर रहे थे। 

खबरी -- फिर क्या हुआ ?

गप्पी -- होना क्या था घरवाली ने जगा दिया।

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