मन की बात पर गदगद ह्रदय
खबरी -- क्या तुमने प्रधानमंत्री की मन की बात सुनी ?
गप्पी -- हाँ , मैंने न केवल प्रधानमंत्री द्वारा बताई गयी मन की बात (क्योंकि सारी मन की बातें थोड़ा न बताई जाती हैं ) सुनी बल्कि टीवी चैनलों में उस पर गदगद होने वाले ह्रदयों को भी देखा-सुना। एक बार मुझे ऐसा भी लगा की मैं किसी बाबा का प्रवचन सुन रहा हूँ और प्रवचन की ही तरह लोगों को, जो मीडिया चैनलों द्वारा दिखाए गए, झूमते हुए भी देखा।
एक ओरत इस बात पर गदगद थी की प्रधानमंत्री ने कहा की एग्जाम में फेल हो जाने वाले बच्चों को निराश नही होना चाहिए बल्कि फिर से प्रयास करना चाहिए। कितनी अच्छी बात कही है और अब तक किसी ने ये बात क्यों नही कही। अब तक देश को मालूम ही नही था की फेल हो जाने वालों को निराश होने बजाए दुबारा प्रयास करना चाहिए। बधाई हो, हमने एक छिपा हुआ दुनियावी सत्य खोज लिया।
एक दूसरी ओरत इस बात पर गदगद थी की प्रधानमंत्री ने पक्षियों के लिए पानी रखने की बात कही। कैसे महान नेता हैं हमारे जो पक्षियों की भी चिंता करते हैं। मीडिया चैनल पूरी निष्ठां से अपना काम कर रहे थे। किसी ने भी ये नही पूछा की प्रधानमंत्री अधिकारीयों और नगरपालिकाओं को ये क्यों नही कहते की इस भीषण गर्मी में लोगों तक पीने का पानी पहुंचाएं। और की सरकार किसी भी हालत में लोगों को प्यास से नही मरने देगी। लेकिन आदमी इस देश में हमेशा पशु-पक्षियों से नीचे की हैसियत रखता है। एक गाय को बचाने के लिए हजार आदमियों का कत्ल हो सकता है। गर्मी से 2500 आदमी मर गए परन्तु उस पर प्रधानमंत्री ने एक शब्द नही कहा।
तीसरी बात जो उसमे कही गयी वो भूतपूर्व सैनिकों के लिए वन रैंक-वन पैंशन के बारे में थी। प्रधानमंत्री ने कहा की जब वो इसे लागु करने का वायदा कर रहे थे और उस समय की सरकार को कोस रहे थे उस समय उन्हें मालूम ही नही था की मामला कितना पेचीदा है। और उन्होंने इसे लागु करने का अपना वायदा दोहराया। इस पर एक अजीब घटना हुई। एक चैनल ने दो रिटायर अफसरों को दिखाया , जिसमे एक ने कहा की प्रधानमंत्री के ये कहने पर उसका सीना चौड़ा हो गया , मैंने मन की बात में कही गई बात को कई बार सुना परन्तु मुझे इसमें सीना चौड़ा होने वाली कोई बात नजर नही आई। आखिर में मैंने अपनी अल्पबुद्धि को स्वीकार कर लिया। दूसरे एक रिटायर अधिकारी ने बहुत महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा की उनको भी कम पैंशन मिलती है परन्तु इसका मतलब ये नही है की इस पर हल्ला मचाया जाये। उसके बाद उन्होंने भूतपूर्व सैनिकों के संगठन द्वारा इस मांग पर प्रदर्शन करने के फैसले पर कहा की हम सड़क पर उतरें क्या हम गुण्डे हैं? यही वो बात थी जो मीडिया चैनलों और हमारे प्रधानमंत्री को भी बहुत पसंद आई होगी। क्योंकि दोनों का ये मानना है की अपनी मांगों को लेकर सड़क पर प्रदर्शन करना गुण्डे-मवालियों का काम है। हमारे टीवी चैनल और सरकार मिल कर लोकतंत्र की एक नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।
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