जब कोई व्यक्ति या सरकार किसी अधिकार का उपयोग, परम्परा, न्याय, संविधान, और समानता के सिद्धांतों को छोड़कर अपने व्यक्तिगत पसन्द- नापसन्द और फायदे नुकशान को ध्यान में रखकर करता है तो वह दुरूपयोग की श्रेणी में आता है। इसी तरह की कुछ कोशिशें पिछले काफी समय से केंद्र सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के मामले में किया जा रहा है। हर बार नियुक्ति तय मापदण्डों और परम्परा या कानून के अनुसार ना करके अपनी पसन्द के आधार पर की जा रही हैं और इसलिए उन नियुक्तियों पर विवाद उठ खड़े हो रहे हैं। जिसके एवज में ये तर्क दिया जा रहा है की सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार है। या फिर पिछले किसी समय के दौरान हुए फैसले को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहां तक की उन नियुक्तियों को सम्भव करने के लिए भी अधिकारों का दुरूपयोग किया जाता है, जैसे उससे सीनियर अधिकारियों का तबादला करना या नियुक्ति को तब तक रोके रखना जब तक पसन्दीदा अधिकारी सीनियर का दर्जा ना प्राप्त कर ले।
एक पुलिस और टैक्स अधिकारी को ये क़ानूनी अधिकार हासिल है की वो सड़क पर जा रही किसी भी गाड़ी की तलाशी ले सकता है और उसके लिए वो ट्रक में लदे हुए सामान को खोलकर देख सकता है। अगर कोई अधिकारी हर ट्रक के मामले में इस अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दे तो ये दुरूपयोग कहलाता है और इससे कामकाज में अव्यवस्था फ़ैल जाएगी। इसलिए उक्त अधिकारी को इस तरह का फैसला, उसके पीछे के वाजिब कारणों की उपस्थिति के अधीन लेना होता है। अगर वो केवल ये तर्क दे की उसको इसका क़ानूनी अधिकार है तो उसे ठीक नही समझा जाता /ठीक इसी तरह जब हर विवादित नियुक्ति को जायज ठहराने के लिए केंद्र सरकार का ये कहना की उसे इसका अधिकार है, इसी श्रेणी में आता है।
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