जिन खातों को खुलवाते समय प्रधानमंत्री ये कह रहे थे की गरीब को भी सम्मान देना चाहती है सरकार। की अब गरीब भी ये कह सकता है की उसका बैंक में खाता है। और केवल खाता खुलवा देने को ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थी सरकार। तो ऐसा क्या हो गया की अचानक सभी जन धन खाता धारक सरकार को चोर नजर आने लगे ?
8 नवम्बर को नोटबन्दी के बाद पुरे देश में बैंको में रुपया जमा होने लगा क्योंकि अब वो बाजार में नही चल सकता था। जिसके पास 500 और 1000 की नोटों में पैसा था वो सब उसे अपने खाते में डालने लगे। यही काम जन धन खातों में भी हुआ। लेकिन सरकार ने दूसरे लोगों का पैसा अपने खातों में जमा करने का आरोप केवल जन धन खातों पर ही लगाया। सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों ने अपने खातों को किराये पर दे दिया और दूसरों का काला धन सफेद करने के लिए इस्तेमाल किया। क्योंकि सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों के पास पैसा कहाँ से आएगा ? जिन खातों को सम्मान का प्रतीक बताकर खुलवाया गया था वो सब चोरी का कारण करार दे दिए गए। ये गरीबों के प्रति सरकार चलाने वालों का पूर्वाग्रह है जो बात चाहे जो भी करें लेकिन उनकी समझ यही है। लेकिन असलियत क्या है ?
8 नवम्बर नोटबन्दी से पहले भी जन धन खातों में 45000 करोड़ रूपये जमा थे। नोटबन्दी के बाद इनमे 27000 हजार करोड़ रूपये जमा हुए। देश में कुल 25 . 5 करोड़ जन धन खाते हैं। इस तरह औसतन हर खाते में 1100 रूपये जमा हुए। बाकी खातों में करीब 12 लाख करोड़ जमा हो गए। लेकिन उनसे कोई शिकायत नही है। वो तो खाते पीते लोगों के खाते हैं सो उनमे तो सफेद धन जमा हुआ है। क्या सरकार का ये मानना है की देश में केवल 27000 करोड़ का ही काला धन था ? अगर नही तो केवल जन धन खातों को बदनाम करने और उन पर पाबन्दी लगाने का क्या मतलब है। लोगों का जो 45000 करोड़ रुपया उनमे पहले जमा था, उस पर भी पाबन्दी लगा दी गयी। एक तो दूरदराज के गाँवों में नोटबन्दी के कारण वैसे ही भुखमरी के हालात हैं उस पर ये पाबन्दी उनके लिए निश्चित मौत का पैगाम है।
बाकी सभी खातों पर खाता अनुसार जाँच होगी और जवाब माँगा जायेगा। लेकिन जन धन खातों को पहले ही काले धन के खाते मान लिया गया है। सरकार की निगाह में हर जन धन खाता धारक चोर है क्योंकि वो गरीब है।
8 नवम्बर को नोटबन्दी के बाद पुरे देश में बैंको में रुपया जमा होने लगा क्योंकि अब वो बाजार में नही चल सकता था। जिसके पास 500 और 1000 की नोटों में पैसा था वो सब उसे अपने खाते में डालने लगे। यही काम जन धन खातों में भी हुआ। लेकिन सरकार ने दूसरे लोगों का पैसा अपने खातों में जमा करने का आरोप केवल जन धन खातों पर ही लगाया। सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों ने अपने खातों को किराये पर दे दिया और दूसरों का काला धन सफेद करने के लिए इस्तेमाल किया। क्योंकि सरकार का मानना है की जन धन खाता धारकों के पास पैसा कहाँ से आएगा ? जिन खातों को सम्मान का प्रतीक बताकर खुलवाया गया था वो सब चोरी का कारण करार दे दिए गए। ये गरीबों के प्रति सरकार चलाने वालों का पूर्वाग्रह है जो बात चाहे जो भी करें लेकिन उनकी समझ यही है। लेकिन असलियत क्या है ?
8 नवम्बर नोटबन्दी से पहले भी जन धन खातों में 45000 करोड़ रूपये जमा थे। नोटबन्दी के बाद इनमे 27000 हजार करोड़ रूपये जमा हुए। देश में कुल 25 . 5 करोड़ जन धन खाते हैं। इस तरह औसतन हर खाते में 1100 रूपये जमा हुए। बाकी खातों में करीब 12 लाख करोड़ जमा हो गए। लेकिन उनसे कोई शिकायत नही है। वो तो खाते पीते लोगों के खाते हैं सो उनमे तो सफेद धन जमा हुआ है। क्या सरकार का ये मानना है की देश में केवल 27000 करोड़ का ही काला धन था ? अगर नही तो केवल जन धन खातों को बदनाम करने और उन पर पाबन्दी लगाने का क्या मतलब है। लोगों का जो 45000 करोड़ रुपया उनमे पहले जमा था, उस पर भी पाबन्दी लगा दी गयी। एक तो दूरदराज के गाँवों में नोटबन्दी के कारण वैसे ही भुखमरी के हालात हैं उस पर ये पाबन्दी उनके लिए निश्चित मौत का पैगाम है।
बाकी सभी खातों पर खाता अनुसार जाँच होगी और जवाब माँगा जायेगा। लेकिन जन धन खातों को पहले ही काले धन के खाते मान लिया गया है। सरकार की निगाह में हर जन धन खाता धारक चोर है क्योंकि वो गरीब है।
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