औरंगजेब भी भारत का एक मशहूर बादशाह रहा है। उसे मुगल सल्तनत का अंतिम ताकतवर और योग्य बादशाह माना जाता है। लेकिन उसे भी कुछ लोग तानाशाह मानते थे। हालाँकि वो भी ये मानते थे की उसकी प्रशासनिक योग्यताएं लाजवाब हैं। उसके बारे में कहा जाता था की वो अपने फैसलों में किसी की दखलंदाजी पसन्द नही करता था। उसके सभी मंत्री और सलाहकार उसकी हाँ में हाँ मिलाना ही पसन्द करते थे। उसकी नाराजगी से भी सबको बहुत डर लगता था। उसने कई हिन्दू मन्दिर तोड़े और कुछ बनवाये भी। लोग उसे भी कट्टर धर्मान्ध मानते थे।
उसके सैनिक अभियानों के चलते पश्चिम के मराठों और पंजाब के सिखों को छोड़कर लगभग सारा उत्तर भारत उसके सामने समर्पण कर चुका था। उत्तर भारत लगभग हरेक दिल्ली शासक के सामने समर्पण करता रहा है और उसकी ये परम्परा लगभग आज भी जारी है। उसका भी दक्षिण में कोई खास दबदबा नही था। उस समय के कर्नाटक क्षेत्र को छोड़कर उसकी भी ज्यादा पूछ नही थी। और कर्नाटक में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बनाये रखने के लिए उसे भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन वो भी एक तेज तर्रार शासक था।
व्यक्तिगत जीवन में उसे बहुत ही ईमानदार और इस्लामी उसूलों को मानने वाला माना जाता है। वह खुद अपनी मेहनत से कमाये पैसे का ही खाना खाता था और इसके लिए वो कुरान की प्रतिलिपि करने और टोपियां बुनने तक का काम करता था। हालाँकि वो हिंदुस्तान का बादशाह था और चाहता तो काजू के आटे की बनी हुई रोटियां खा सकता था। वह जमीन पर सोता था। हालाँकि वो भी पांच बार कपड़े बदलने की हैसियत रखता था लेकिन वो पांच बार केवल नमाज पड़ता था। उसने सैनिक अभियानों के अलावा कभी विदेश यात्रायें नही की। अगर उसके भाई सत्ता के लिए उसके रास्ते में नही आते तो उसे भी उन्हें मारना नही पड़ता। इसी तरह अगर उसके अब्बा शहंशाह भी चुपचाप मार्ग दर्शक बनने को तैयार हो जाते तो उसे भी कैद में रखने की जरूरत नही पड़ती।
बस इतना फर्क और है की वो फिजूलखर्ची के बहुत खिलाफ था और खुद भी फिजूलखर्ची नही करता था। वो खुद को फकीर नही कहता था लेकिन जीवन फकीरों जैसा जीता था। वो राज्य के पैसे को हाथ भी नही लगाता था। यहां तक की उसकी वशीयत के अनुसार उसका मकबरा बनाने में जब उसका खुद का पैसा खत्म हो गया तो राज्य के पैसे से उस पर छत भी नही डाली गयी और आज भी उसका मकबरा बिना छत के अधूरा खड़ा है। उस पर भी धार्मिक उत्पीड़न और कत्लेआम के आरोप थे लेकिन वो कभी न्यायालय में साबित नही हो पाए।
उसके सैनिक अभियानों के चलते पश्चिम के मराठों और पंजाब के सिखों को छोड़कर लगभग सारा उत्तर भारत उसके सामने समर्पण कर चुका था। उत्तर भारत लगभग हरेक दिल्ली शासक के सामने समर्पण करता रहा है और उसकी ये परम्परा लगभग आज भी जारी है। उसका भी दक्षिण में कोई खास दबदबा नही था। उस समय के कर्नाटक क्षेत्र को छोड़कर उसकी भी ज्यादा पूछ नही थी। और कर्नाटक में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बनाये रखने के लिए उसे भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन वो भी एक तेज तर्रार शासक था।
व्यक्तिगत जीवन में उसे बहुत ही ईमानदार और इस्लामी उसूलों को मानने वाला माना जाता है। वह खुद अपनी मेहनत से कमाये पैसे का ही खाना खाता था और इसके लिए वो कुरान की प्रतिलिपि करने और टोपियां बुनने तक का काम करता था। हालाँकि वो हिंदुस्तान का बादशाह था और चाहता तो काजू के आटे की बनी हुई रोटियां खा सकता था। वह जमीन पर सोता था। हालाँकि वो भी पांच बार कपड़े बदलने की हैसियत रखता था लेकिन वो पांच बार केवल नमाज पड़ता था। उसने सैनिक अभियानों के अलावा कभी विदेश यात्रायें नही की। अगर उसके भाई सत्ता के लिए उसके रास्ते में नही आते तो उसे भी उन्हें मारना नही पड़ता। इसी तरह अगर उसके अब्बा शहंशाह भी चुपचाप मार्ग दर्शक बनने को तैयार हो जाते तो उसे भी कैद में रखने की जरूरत नही पड़ती।
बस इतना फर्क और है की वो फिजूलखर्ची के बहुत खिलाफ था और खुद भी फिजूलखर्ची नही करता था। वो खुद को फकीर नही कहता था लेकिन जीवन फकीरों जैसा जीता था। वो राज्य के पैसे को हाथ भी नही लगाता था। यहां तक की उसकी वशीयत के अनुसार उसका मकबरा बनाने में जब उसका खुद का पैसा खत्म हो गया तो राज्य के पैसे से उस पर छत भी नही डाली गयी और आज भी उसका मकबरा बिना छत के अधूरा खड़ा है। उस पर भी धार्मिक उत्पीड़न और कत्लेआम के आरोप थे लेकिन वो कभी न्यायालय में साबित नही हो पाए।
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