व्यक्ति के अहंकार का मूल उसकी मूर्खता में होता है। हर मुर्ख व्यक्ति दम्भी और अहंकारी होता है। जब ये स्थिति किसी सरकार चलाने वालों के साथ होती है तो स्थिति बहुत ही भयावह हो जाती है। ठीक वैसी ही, जैसी अब है। लोग भूख से मर रहे हैं, अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है, काम धंधे बन्द हैं और सरकार के मंत्री अपनी वफादारी सिद्ध करने की होड़ में इस फैसले को कभी ऐतिहासिक तो कभी गेम चेंजर बता रहे हैं। रोज बैंक की लाइनों से लाशें घर लोट रही हैं, मजबूर, रोते बिलखते लोगों के फोटो अख़बार में छप रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाली ट्रेने वापिस लौटते हुए मजदूरों से भरी हुई हैं। किसान अपनी उपज को सड़कों पर फेंक देने को मजबूर हैं। सभी छोटे और मध्यम उद्योग लगभग बन्दी की हालत में हैं। और सरकार के वरिष्ठ मंत्री, प्रधानमंत्री सहित, टीवी पर डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बता रहे हैं। एक लोकतान्त्रिक देश के लोगों के साथ इससे क्रूर मजाक हो नही सकता।
कॉरपोरेट मीडिया और कॉरपोरेट की सरकार द्वारा तय किये गए मापदण्ड कुछ लोगों के दिमाग पर इतने हावी हो चुके हैं की वो अपनी समझबूझ खो चुके हैं। अब भी कुछ लोग हैं जो नोटबन्दी के फायदे समझाने लगते हैं। उन्हें देख कर तरस आता है। आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत के फायदे गिनवाते थे। अंग्रेजो को विकास का प्रतीक बताया जाता था। अब भी वैसा ही है। उन्हें कुछ भी दिखाई नही देता।
लोगों की तकलीफों को छुपाने की भरसक कोशिशों के बावजूद टीवी कुछ ऐसे दृश्यों को दिखाने के लिए मजबूर है जिसमे चाय बागानों के मजदूर झाड़ियों के पत्ते उबाल कर खा रहे हैं। उन्हें कहा जा रहा है की भविष्य की बेहतरी के लिए सब्र करें। किसका भविष्य ? जिन लोगों को दो वक्त की रोटी विलासिता लगती हो वो भूखे रहकर किस भविष्य की उम्मीद करें। पीठ पर बैग लटकाये बेरोजगार नोजवानो की एक भीड़, जिसके लिए देश का सबसे क्रन्तिकारी नेता वो है जो फ्री वाईफाई दे दे , आज देश में विचार के मुद्दे तय कर रही है। जो कारपोरेट की भाषा बोलती है और गैस की सब्सिडी लेने पर अपने माँ बाप को मुफ्तखोर कहती है। क्या उसे मालूम है की जो किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक कर जा रहा है वो उसके आधा साल की मेहनत का परिणाम है। आज जब उसे खेत में डालने के लिए खाद नही मिल रहा है तो उसका भविष्य उसकी आँखों के सामने बरबाद हो रहा है। अगर दो या तीन महीने के बाद स्थिति थोड़ी बहुत सामान्य हो भी जाती है, जिसकी उम्मीद नही है तो भी उसके किस काम की ? ये कोई मोबाइल का रिचार्ज नही है की जब पैसा आएगा तब करवा लेंगे। पहले से जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा कृषि क्षेत्र तब तक लकवे का शिकार हो जायेगा।
उसके बावजूद सरकार अपने जनविरोधी फैसले पर अडिग है। उसके सारे वायदे एक एक करके खोखले साबित हो चुके हैं। अब ना कालेधन का कोई सवाल बचा है, ना आतंकवाद की टूटी हुई कमर दिखाई दे रही है और जाली नोटों का तो ये हाल है की शायद जितने जाली नोट अब पकड़े गए हैं उतने तो दस साल में भी नही पकड़े गए होंगे। अब सरकार मुंह छुपाने के लिए डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है। क्या करेगी सरकार उसके लिए ? बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भेजेगी लोगों को डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बताने और paytm की app कैसे काम करती है उसकी ट्रेनिग देने ? जिस देश की 35 % जनता को सरकार 70 साल में क ख ग नही सीखा पाई ( गुजरात सहित ) , उसे अब दो महीने में डिजिटल कर दिया जायेगा ? इससे बड़ा मजाक हो नही सकता। इस पर टीवी पर भाषण देने वाले लोग असल में इस देश के बारे में कुछ नही जानते। हर रोज सरकार के प्रतिनिधि नए नियम और नई धमकियां लेकर आ जाते हैं। संसद को पहली बार सरकार ने नही चलने दिया। जब विपक्ष ने बहस के किसी नियम पर सहमति दिखाने की कोशिश की तभी सरकार सांसद तख्तियाँ लिए नारे लगाते हुए नजर आये। प्रधानमंत्री रैली में कहते हैं की उन्हें संसद में बोलने नही दिया गया, क्या वो एक फुटेज दिखा सकते हैं की जब वो बोलने के लिए खड़े हुए हों। नही। हर रोज नोटबन्दी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने पार्टी के सांसदों को विपक्ष का पर्दाफाश करने का आव्हान कर रहे हैं। उन्हें कालेधन के समर्थक करार दे रहे हैं। अब किसका पर्दाफाश करेंगे ? सारे बैंकों, सरकार के दिए गए संवैधानिक वचनों और नागरिक अधिकारों का तो पहले ही पर्दाफाश हो चूका है।
नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।
कॉरपोरेट मीडिया और कॉरपोरेट की सरकार द्वारा तय किये गए मापदण्ड कुछ लोगों के दिमाग पर इतने हावी हो चुके हैं की वो अपनी समझबूझ खो चुके हैं। अब भी कुछ लोग हैं जो नोटबन्दी के फायदे समझाने लगते हैं। उन्हें देख कर तरस आता है। आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजी हुकूमत के फायदे गिनवाते थे। अंग्रेजो को विकास का प्रतीक बताया जाता था। अब भी वैसा ही है। उन्हें कुछ भी दिखाई नही देता।
लोगों की तकलीफों को छुपाने की भरसक कोशिशों के बावजूद टीवी कुछ ऐसे दृश्यों को दिखाने के लिए मजबूर है जिसमे चाय बागानों के मजदूर झाड़ियों के पत्ते उबाल कर खा रहे हैं। उन्हें कहा जा रहा है की भविष्य की बेहतरी के लिए सब्र करें। किसका भविष्य ? जिन लोगों को दो वक्त की रोटी विलासिता लगती हो वो भूखे रहकर किस भविष्य की उम्मीद करें। पीठ पर बैग लटकाये बेरोजगार नोजवानो की एक भीड़, जिसके लिए देश का सबसे क्रन्तिकारी नेता वो है जो फ्री वाईफाई दे दे , आज देश में विचार के मुद्दे तय कर रही है। जो कारपोरेट की भाषा बोलती है और गैस की सब्सिडी लेने पर अपने माँ बाप को मुफ्तखोर कहती है। क्या उसे मालूम है की जो किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक कर जा रहा है वो उसके आधा साल की मेहनत का परिणाम है। आज जब उसे खेत में डालने के लिए खाद नही मिल रहा है तो उसका भविष्य उसकी आँखों के सामने बरबाद हो रहा है। अगर दो या तीन महीने के बाद स्थिति थोड़ी बहुत सामान्य हो भी जाती है, जिसकी उम्मीद नही है तो भी उसके किस काम की ? ये कोई मोबाइल का रिचार्ज नही है की जब पैसा आएगा तब करवा लेंगे। पहले से जीवन मृत्यु की लड़ाई लड़ रहा कृषि क्षेत्र तब तक लकवे का शिकार हो जायेगा।
उसके बावजूद सरकार अपने जनविरोधी फैसले पर अडिग है। उसके सारे वायदे एक एक करके खोखले साबित हो चुके हैं। अब ना कालेधन का कोई सवाल बचा है, ना आतंकवाद की टूटी हुई कमर दिखाई दे रही है और जाली नोटों का तो ये हाल है की शायद जितने जाली नोट अब पकड़े गए हैं उतने तो दस साल में भी नही पकड़े गए होंगे। अब सरकार मुंह छुपाने के लिए डिजिटल इकोनॉमी की बात कर रही है। क्या करेगी सरकार उसके लिए ? बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भेजेगी लोगों को डिजिटल इकोनॉमी के फायदे बताने और paytm की app कैसे काम करती है उसकी ट्रेनिग देने ? जिस देश की 35 % जनता को सरकार 70 साल में क ख ग नही सीखा पाई ( गुजरात सहित ) , उसे अब दो महीने में डिजिटल कर दिया जायेगा ? इससे बड़ा मजाक हो नही सकता। इस पर टीवी पर भाषण देने वाले लोग असल में इस देश के बारे में कुछ नही जानते। हर रोज सरकार के प्रतिनिधि नए नियम और नई धमकियां लेकर आ जाते हैं। संसद को पहली बार सरकार ने नही चलने दिया। जब विपक्ष ने बहस के किसी नियम पर सहमति दिखाने की कोशिश की तभी सरकार सांसद तख्तियाँ लिए नारे लगाते हुए नजर आये। प्रधानमंत्री रैली में कहते हैं की उन्हें संसद में बोलने नही दिया गया, क्या वो एक फुटेज दिखा सकते हैं की जब वो बोलने के लिए खड़े हुए हों। नही। हर रोज नोटबन्दी का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री अपने पार्टी के सांसदों को विपक्ष का पर्दाफाश करने का आव्हान कर रहे हैं। उन्हें कालेधन के समर्थक करार दे रहे हैं। अब किसका पर्दाफाश करेंगे ? सारे बैंकों, सरकार के दिए गए संवैधानिक वचनों और नागरिक अधिकारों का तो पहले ही पर्दाफाश हो चूका है।
नोटबन्दी ने गरीबों को कहीं का नही छोड़ा।
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