कल सम्पन्न हुए पांच राज्यों के परिणामो से ये बात साबित हुई है की सभी राज्यों में शासन करने वाली पार्टियां हार गयी हैं। इन परिणामो को मीडिया और कुछ दूसरे लोग इस तरह पेश कर रहे हैं जैसे पुरे देश ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी के एजेंडे को स्वीकार कर लिया है। कॉरपोरेट मीडिया के सरकार के साथ अपने हित जुड़े हैं और मीडिया समूह के मालिकों के अपने हित जुड़े हैं। इसलिए हमारा कॉरपोरेट लूट में बड़ी छूट पाने के लिए बहुत पहले से नरेन्द्र मोदी का समर्थन करता रहा है। इसलिए मीडिया की हिस्सेदारी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बीजेपी की जीत को थोड़ा और शानदार बना दिया है। लेकिन ये बात किसी भी तरह से सही नही है की नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के एजेंडे को पुरे देश ने स्वीकार कर लिया है। अगर ये बात सही है तो ऐसा कहने वाले मीडिया और उसमे बैठे विशेषज्ञों को कुछ सवालों के जवाब देने होंगे। जैसे -
१. मीडिया बताये की गोवा और पंजाब में जहां बीजेपी और उसकी सहयोगियों की सरकारें थी, वहां वो क्यों हारे ?
२. हर राज्य में बीजेपी को दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने की जरूरत क्यों पड़ती है ? अगर लोग केवल मोदीजी के साथ हैं तो वो उन बीजेपी के कार्यकर्ताओं को टिकट क्यों नही देते जो सालों से पार्टी के लिए काम तो करते हैं लेकिन बहुत जाने पहचाने नही हैं ?
३. गोवा को बीजेपी अपनी मॉडल स्टेट के रूप में प्रस्तुत करती रही है, वहां उसके मुख्यमंत्री भी हार गए। ऐसा क्यों हुआ ?
इसलिए इन चुनाव परिणामो को उसके सही परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। अगर सत्ता विरोधी ये लहर इसी तरह चलती रही तो गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बीजेपी को लेने के देने पड़ सकते हैं। जहां पहले किये गए वायदों का हिसाब बीजेपी को देना है। गुजरात के पिछले चुनावो में गरीबों को दस लाख घर देने का वायदा हवा में ही है।
१. मीडिया बताये की गोवा और पंजाब में जहां बीजेपी और उसकी सहयोगियों की सरकारें थी, वहां वो क्यों हारे ?
२. हर राज्य में बीजेपी को दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करने की जरूरत क्यों पड़ती है ? अगर लोग केवल मोदीजी के साथ हैं तो वो उन बीजेपी के कार्यकर्ताओं को टिकट क्यों नही देते जो सालों से पार्टी के लिए काम तो करते हैं लेकिन बहुत जाने पहचाने नही हैं ?
३. गोवा को बीजेपी अपनी मॉडल स्टेट के रूप में प्रस्तुत करती रही है, वहां उसके मुख्यमंत्री भी हार गए। ऐसा क्यों हुआ ?
इसलिए इन चुनाव परिणामो को उसके सही परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। अगर सत्ता विरोधी ये लहर इसी तरह चलती रही तो गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बीजेपी को लेने के देने पड़ सकते हैं। जहां पहले किये गए वायदों का हिसाब बीजेपी को देना है। गुजरात के पिछले चुनावो में गरीबों को दस लाख घर देने का वायदा हवा में ही है।
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