Monday, March 13, 2017

क्या जनमत से अलग भी लोकतंत्र का कोई मतलब होता है।

                   लोकतन्त्र कोई तकनीकी अवधारणा नही है। और न ही ये कोई किसी भी तरह, यानि येन केन प्रकारेण प्राप्त किये गए बहुमत का नाम है। पिछले दो दिन में जो कुछ गोवा और मणिपुर में हुआ है वो कम से कम लोकतन्त्र की अवधारणा के तो बिलकुल उल्ट है। यहां सवाल केवल बीजेपी का नही है। क्योंकि बीजेपी जिस संगठन से पैदा हुई है, उसकी लोकतंत्र में कभी आस्था नही रही। वो हमेशा से राजशाही के समर्थक रहे हैं। क्योंकि जिस हिन्दूवादी, वर्णवादी और स्त्री विरोधी शासन और विधान का सपना आरएसएस और बीजेपी देखती रही हैं, वो लोकतन्त्र में सम्भव नही है। इसलिए प्रधानमंत्री ने विजय जलूस में भले ही कुछ भी कहा हो ( हमे और ज्यादा जिम्मेदार और नरम होने की जरूरत है ) उसने गोवा और  मणिपुर में सरकार बनाने के लिए वही अलोकतांत्रिक और भृष्ट तरीके अपनाये और उनके लिए तकनीकी बहाने बनाये। इस पर मैं केवल एक ही सवाल पूछना चाहता हूँ की क्या गोवा और मणिपुर में वही सरकार बन रही हैं जिसके लिए लोगों ने वोट दिया था ?
                    लेकिन यहां सवाल बाकि लोगों का भी है। सबसे पहले कांग्रेस। जो इन चुनावों में सबसे ज्यादा सीट लेकर सरकार बनाने की दावेदार थी। जब बीजेपी ने जनमत को कुचलकर अपनी सरकार बनाई तो उसने क्या किया ? उसके नेता ने केवल ट्वीट किया की माफ़ करना गोवा। कांग्रेस के नेता लोगों को लामबन्द करने और उनके गुस्से की अगुवाई करने में न केवल विफल रहे, बल्कि उन्होंने इसकी कोई इच्छा तक प्रकट नही की।  क्या इस तरह की पार्टी के भरोसे लोकतंत्र की रक्षा होगी ?
                    उसके बाद दूसरा सवाल उन छोटे छोटे दलों का है जो पैसे और लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोगों से जिस पार्टी के खिलाफ वोट लेते हैं, बाद में अच्छी कीमत मिलने पर उसी के घर पानी भरने लगते हैं। अब वक्त आ गया है की बिना किसी ठोस विचारधारा और प्रोग्राम के उग आयी इन पार्टियों को सबक सिखाया जाये। इन विधायको का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। अगर लोग इसी तरह राजनीती के व्यापारियों को चुनते रहेंगे तो हमेशा अच्छी कीमत पर बिकते रहेंगे।
                    इसके अलावा अगला सवाल उन राजनितिक पार्टियों से भी है जो बेसक वहां बड़ी ताकत न हों, लेकिन लोगों को विरोध और धोखाधड़ी के समय कम से कम अपने साथ तो खड़े दिखाई दें।

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