अमेरिका में जब राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था और रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रम्प मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगल रहा था, तब भारत में कई संगठन उसकी जीत के लिए हवन कर रहे थे। उन्हें लगता था की ट्रम्प की जीत के बाद मुसलमानो के प्रति उसके रुख से यहां हिंदुस्तान में इन संगठनों की राजनीती और विचारधारा को नया समर्थन मिलेगा। लेकिन जीतने के बाद ट्रम्प ने जिस तरह बाहर से आने वाले हर आप्रवासी पर प्रतिबन्ध लगाने शुरू किये, तो इन संगठनों ने चुप्पी साध ली।
असल में ट्रम्प भी उसी कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अमेरिका में बेरोजगारी से लेकर आतंकवाद तक हर समस्या का सरलीकरण करके बाहर से आने वाले लोगों को इसका जिम्मेदार मानती है। इसके साथ ही बेरोजगारी और आतंकवाद से जूझ रहे अमेरिकी नोजवानो को एक स्पष्ट दुश्मन दिखला कर उन्हें अपने पक्ष में करना आसान हो जाता है। अब इसमें भारतीय समुदाय भी इसी दुश्मन वर्ग में शामिल हो जाता है। इसलिए एक तरफ सरकार उन पर प्रतिबन्ध लगाने के नए नए कानून बनाती है तो दूसरी तरफ उग्र और अति उत्साही लोग उन पर हमले कर रहे हैं।
लेकिन भारतियों पर इतने हमलों के बावजूद, हमारी सरकार की प्रतिक्रिया एकदम बेदम और ढीली ढाली रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है की सत्ता में बैठा गुट भी उसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। वो लगातार एक धार्मिक समुदाय को देश की समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है और उसके खिलाफ राजनीती करके लोगों को गोलबन्द करता रहा है। यहां तो खुद अपने ही देश के दूसरे हिस्सों से गए लोगों पर मुम्बई में हमले होते रहे हैं और हमले करने वाले लोग और पार्टियां मजे से सरकार में हिस्सेदार रही हैं। इसलिए जब हम विचारधारा के रूप में इनका समर्थन करते हैं तो ऐसी घटनाओं पर विरोध करते वक्त मुंह पोपला हो जाता है और आवाज हलक से बाहर नही निकलती।
इसका एक बहुत ही शानदार उदाहरण हमारे सामने है। सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। उस समय बीजेपी ने सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे को पूरे जोर शोर से उठाया था। यहां तक की उसके बाद के समय में इसी मुद्दे पर शुष्मा स्वराज और उमा भारती अपने सिर के बाल कटवाने की धमकी दे रही थी। ठीक उसी समय 2000 में फिजी में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी का तख्ता पलट दिया गया। तख्ता पलटने वाले जार्ज स्पेट ने यही कहा की कोई विदेशी मूल का व्यक्ति फिजी का प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है। ये वही मुद्दा था जो यहां भारत में बीजेपी और आरएसएस उठा रहे थे। मुझे अच्छी तरह याद है की तब पूरे एक हफ्ते तक भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया तक नही दी। आखिर में महेंद्र चौधरी को हटा दिया गया और संविधान बदल कर उसमे उसके चुनाव तक लड़ने पर पाबन्दी लगा दी गयी। लेकिन अपनी गलत विचारधारा के चलते वाजपेयी जी और बीजेपी इसमें कोई हस्तक्षेप नही कर पाई। उनका खुद का थूका हुआ उनके मुंह पर आ गिरा। ठीक यही हालत अब है। इसी पृथकतावादी विचारधारा के चलते ये सरकार इस मुद्दे पर जोर से बोलने का नैतिक साहस ही नही रखती।
असल में ट्रम्प भी उसी कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अमेरिका में बेरोजगारी से लेकर आतंकवाद तक हर समस्या का सरलीकरण करके बाहर से आने वाले लोगों को इसका जिम्मेदार मानती है। इसके साथ ही बेरोजगारी और आतंकवाद से जूझ रहे अमेरिकी नोजवानो को एक स्पष्ट दुश्मन दिखला कर उन्हें अपने पक्ष में करना आसान हो जाता है। अब इसमें भारतीय समुदाय भी इसी दुश्मन वर्ग में शामिल हो जाता है। इसलिए एक तरफ सरकार उन पर प्रतिबन्ध लगाने के नए नए कानून बनाती है तो दूसरी तरफ उग्र और अति उत्साही लोग उन पर हमले कर रहे हैं।
लेकिन भारतियों पर इतने हमलों के बावजूद, हमारी सरकार की प्रतिक्रिया एकदम बेदम और ढीली ढाली रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है की सत्ता में बैठा गुट भी उसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। वो लगातार एक धार्मिक समुदाय को देश की समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराता रहा है और उसके खिलाफ राजनीती करके लोगों को गोलबन्द करता रहा है। यहां तो खुद अपने ही देश के दूसरे हिस्सों से गए लोगों पर मुम्बई में हमले होते रहे हैं और हमले करने वाले लोग और पार्टियां मजे से सरकार में हिस्सेदार रही हैं। इसलिए जब हम विचारधारा के रूप में इनका समर्थन करते हैं तो ऐसी घटनाओं पर विरोध करते वक्त मुंह पोपला हो जाता है और आवाज हलक से बाहर नही निकलती।
इसका एक बहुत ही शानदार उदाहरण हमारे सामने है। सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। उस समय बीजेपी ने सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे को पूरे जोर शोर से उठाया था। यहां तक की उसके बाद के समय में इसी मुद्दे पर शुष्मा स्वराज और उमा भारती अपने सिर के बाल कटवाने की धमकी दे रही थी। ठीक उसी समय 2000 में फिजी में भारतीय मूल के प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी का तख्ता पलट दिया गया। तख्ता पलटने वाले जार्ज स्पेट ने यही कहा की कोई विदेशी मूल का व्यक्ति फिजी का प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है। ये वही मुद्दा था जो यहां भारत में बीजेपी और आरएसएस उठा रहे थे। मुझे अच्छी तरह याद है की तब पूरे एक हफ्ते तक भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया तक नही दी। आखिर में महेंद्र चौधरी को हटा दिया गया और संविधान बदल कर उसमे उसके चुनाव तक लड़ने पर पाबन्दी लगा दी गयी। लेकिन अपनी गलत विचारधारा के चलते वाजपेयी जी और बीजेपी इसमें कोई हस्तक्षेप नही कर पाई। उनका खुद का थूका हुआ उनके मुंह पर आ गिरा। ठीक यही हालत अब है। इसी पृथकतावादी विचारधारा के चलते ये सरकार इस मुद्दे पर जोर से बोलने का नैतिक साहस ही नही रखती।
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