Monday, March 20, 2017

राजनीति के मूढ़मतियों का पश्चाताप।

                  राजनीति में कुछ मूढमति होते हैं। वैसे तो मूढमति हर जगह होते हैं लेकिन लोकतंत्र में राजनीती के मूढ़मतियों की एक खास जगह होती है। ज्यादातर लोकतंत्र इन्ही के सहारे जिन्दा रहते हैं। अगर ये न हों तो चुनाव जीतना तो दूर, चुनाव करवाना भी मुश्किल हो जाये। इनकी एक पहचान है। इन्हें मीडिया के सहारे कुछ चीजें समझा दी जाती हैं। फिर कोई दूसरा लाख सिर पटक ले ये टस से मस नही होते। आप कितने ही तर्क, कितने ही उदाहरण दे लो, ये अपनी जगह से नही हिलते। इन्ही में से विकास करके कुछ लोग भक्त की श्रेणी में पहुंच जाते हैं और वापिस आने के सारे रास्ते बन्द कर लेते हैं।
                    इन मूढ़मतियों की एक खाशियत ये भी होती है की ये अपने किये पर पछताते जरूर हैं। जैसे किसी पार्टी को वोट देंगे, और फिर कहते फिरेंगे की मैं तो इसे वोट देकर पछता रहा हूँ। कोई कोई तो वोट डालकर बूथ से बाहर निकलने से पहले ही पछताना शुरू कर देते हैं। कुछ लोग पछताने में दो चार दिन का समय लेते हैं।
                    अब एक मूढमति मेरे मुहल्ले में रहते हैं। कल आ धमके घर पर। बोले की मैं तो बीजेपी को वोट देकर पछता रहा हूँ। मैंने पूछा क्यों तो बोले की उन्होंने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। अरे, इससे तो अखिलेश लाख दर्जा अच्छा था।
                     " तो आप क्या चाहते थे की बीजेपी अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाये ?" मैंने पूछा।
                      " लेकिन किसी दूसरे को बनाया जा सकता था। अगर मुझे पता होता की ये योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाएंगे तो मैं कभी इन्हें वोट नही देता। " उसने जोर देकर कहा।
                     " योगी आदित्यनाथ बीजेपी का ही सदस्य है कोई बाहर से तो लाये नही हैं। और फिर किसी दूसरे से तुम्हारा मतलब किस्से है, संगीत सोम से है, साध्वी प्राची से है, विनय कटियार से है ? आखिर तुम किसे बनाना चाहते थे ?" मैंने पूछा।
                     " इनके अलावा भी लोग हैं। किसी साफ सुथरी छवि वाले, नरम स्वभाव के, पढ़े लिखे और सबको साथ लेकर चलने वाले आदमी को बना सकते थे। " उसने जवाब दिया।
                     ' अगर उनके पास ऐसा कोई आदमी होता तो वो पहले ही उसे मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नही कर देते। जब उन्होंने उम्मीदवार घोषित नही किया तो इसका मतलब है की वो किसी को भी बना सकते हैं। " मैंने कहा।
                     ' लेकिन समाज को लड़ाने भिड़ाने वाला आदमी अच्छा नही होता है। " उसने निराशा जाहिर की।
                    " तो तुम पहले पूछ लेते की भाई किसको बनाओगे ? या फिर कोई दूसरी पार्टी ढूंढ लेते। " मैंने कहा।
                     " इसीलिए तो पछता रहा हूँ। वैसे हमने 325 लोग चुने थे। उन्होंने एक मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री बनाये, लेकिन चुने हुए लोगों में से एक भी नही है। ये तो वही बात हुई की तुम सैम्पल कुछ और दिखाओ और पैसे लेने के बाद माल कोई दूसरा पकड़ा दो। " उसने उदाहरण के साथ अपनी बात कह दी।
                   अब ये पछता रहा है। पिछली बार भी पछता रहा था। कह रहा था की मैंने तो मुलायम सिंह के लिए वोट दिया था और इन्होंने अखिलेश को बना दिया। ये तो राजशाही हो गयी। तब भी मैंने पूछा था की जो आदमी पंचायत का मुखिया भी अपने घर से बाहर नही बनाता, उससे तुम क्या उम्मीद कर रहे थे। खैर ये पछताता रहा। अब फिर पछता रहा है।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.