मणिपुर देश के सिरे पर स्थित एक छोटा सा राज्य है जिसकी समस्याओं और खबरों का कोई TRP मूल्य नही है। इसलिए उसकी खबरें दिखाने में मीडिया की कोई रूचि नही होती है। उसकी खबर तभी आती है जब वहां कोई आतंकवादी घटना होती है। अभी अभी सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में ईरोम शर्मिला की उम्मीदवारी के कारण कभी कभी कोई खबर देखने को मिली। चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी 28 सीटें लेकर 60 सीटों वाली सभा में बहुमत से थोड़ी दूर रह गयी। 21 सीटें लेकर बीजेपी दूसरे नम्बर पर रही और अब उसने केंद्र की सत्ता और दूसरे तरीकों का उपयोग करके वहां सरकार बनाने का दावा कर दिया। ये तरीके वो पहले अरुणाचल प्रदेश में भी अपना चुकी है।
लेकिन मेरा सवाल वहां के चुनाव और उसके मुद्दों को लेकर है। मणिपुर में नागा उग्रवादी और उनकी समर्थक पार्टियां लम्बी लम्बी आर्थिक नाकाबन्दी करती रही हैं। इस बार चुनाव से कई महीने पहले वहां इसी तरह की आर्थिक नाकाबन्दी कर दी गयी। नाकाबन्दी करने वाली पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट वहां बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। जीवन के लिए जरूरी सामान की भारी कमी को झेलते हुए मणिपुर की जनता को चुनाव में बीजेपी वादा करती है की अगर बीजेपी जीती तो फिर कभी मणिपुर में आर्थिक नाकाबन्दी नही होगी। इसका मतलब ये भी है की अगर बीजेपी नही जीती तो ये नाकेबन्दी जारी रहेगी। क्योंकि नाकाबन्दी करने वाली पार्टी और लोग बीजेपी के सहयोगी हैं। दूसरी तरफ केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार इस नाकाबन्दी को खत्म करने के लिए कोई गम्भीर प्रयास नही करेगी। इस नाकाबन्दी से परेशान लोगों के एक हिस्से ने बीजेपी को वोट दिया, ठीक उसी तरह जैसे 2002 के दंगों के बाद जान बचाने के लिए गुजरात के मुसलमानो ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया था।
इस तरह मणिपुर में जनता को बंधक बना कर चुनाव जीतने की कोशिश की गयी। दूसरी तरफ वहां की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने वहां की नाकाबन्दी को खत्म करवाने के लिए कोई असरकारक प्रयत्न किया हो ये भी दिखाई नही देता। संसद में छोटे छोटे सवालों पर कार्यवाही रोकने वाली कांग्रेस पार्टी ने इस सवाल पर कभी संसद नही रोकी। कांग्रेस की सरकार अगर कायम है तो उसे मणिपुर के लोगों की तकलीफों से क्या लेना देना है। इसलिए इस बंधक लोकतंत्र के क्या मायने हैं इसे लोगों को ठीक से समझ लेना चाहिए।
लेकिन मेरा सवाल वहां के चुनाव और उसके मुद्दों को लेकर है। मणिपुर में नागा उग्रवादी और उनकी समर्थक पार्टियां लम्बी लम्बी आर्थिक नाकाबन्दी करती रही हैं। इस बार चुनाव से कई महीने पहले वहां इसी तरह की आर्थिक नाकाबन्दी कर दी गयी। नाकाबन्दी करने वाली पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट वहां बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। जीवन के लिए जरूरी सामान की भारी कमी को झेलते हुए मणिपुर की जनता को चुनाव में बीजेपी वादा करती है की अगर बीजेपी जीती तो फिर कभी मणिपुर में आर्थिक नाकाबन्दी नही होगी। इसका मतलब ये भी है की अगर बीजेपी नही जीती तो ये नाकेबन्दी जारी रहेगी। क्योंकि नाकाबन्दी करने वाली पार्टी और लोग बीजेपी के सहयोगी हैं। दूसरी तरफ केंद्र में बैठी बीजेपी सरकार इस नाकाबन्दी को खत्म करने के लिए कोई गम्भीर प्रयास नही करेगी। इस नाकाबन्दी से परेशान लोगों के एक हिस्से ने बीजेपी को वोट दिया, ठीक उसी तरह जैसे 2002 के दंगों के बाद जान बचाने के लिए गुजरात के मुसलमानो ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया था।
इस तरह मणिपुर में जनता को बंधक बना कर चुनाव जीतने की कोशिश की गयी। दूसरी तरफ वहां की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने वहां की नाकाबन्दी को खत्म करवाने के लिए कोई असरकारक प्रयत्न किया हो ये भी दिखाई नही देता। संसद में छोटे छोटे सवालों पर कार्यवाही रोकने वाली कांग्रेस पार्टी ने इस सवाल पर कभी संसद नही रोकी। कांग्रेस की सरकार अगर कायम है तो उसे मणिपुर के लोगों की तकलीफों से क्या लेना देना है। इसलिए इस बंधक लोकतंत्र के क्या मायने हैं इसे लोगों को ठीक से समझ लेना चाहिए।
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