Thursday, September 21, 2017

अर्थव्यवस्था को सम्भालने के बहुत कम विकल्प बचे हैं सरकार के पास।

                   पिछले क्वार्टर के जीडीपी के आंकड़े 5 . 7 % आने के बाद भले ही अमित शाह इसको टेक्निकल कारण बता रहे हों, लेकिन सरकार को मालूम है की स्थिति वाकई गंभीर है। ये लगातार छठी तिमाही है जिसमे जीडीपी की दर लगातार गिरी है। लेकिन अब तक सरकार इसके लिए अपनी नीतियों को जिम्मेदारी देने के लिए तैयार नहीं है। जबकि सारी दुनिया के अर्थशास्त्री मानते हैं की सरकार द्वारा लिए गए लगातार गलत फैसलों की वजह से ही जीडीपी गिर रही है।
                    सबसे पहले नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी। नोटबंदी का सबसे ज्यादा नुकशान गांवों और दूरदराज के इलाकों पर हुआ। नगदी की कमी के कारण असंगठित क्षेत्र के रोजगार समाप्त हो गए। उसके कारण सब्जियों और दूसरे कृषि उत्पादों की कीमतें एकदम गिर गयी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही ये कमी 25 % से ज्यादा है। इसके कारण दो साल से लगातार सूखे की मार झेल रहे किसानो की हालत बद से बदतर हो गयी। दूसरी तरफ सरकारी और गैरसरकारी नौकरियों के अवसर लगभग समाप्त हो गए जिससे ग्रामीण क्षेत्र को जो सहारा मिलता था वो भी खत्म हो गया। उसके साथ ही खेती के बाद इस क्षेत्र में दूसरी जो चीज बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध करवाती है वो है पशुपालन। सरकार के पशुओं के खरीद बिक्री के नियमो में किये गए फेरफार ने सीमांत किसानो के लिए ये भी घाटे का सौदा बन गया। थोड़ी बहुत जो कसर बाकी बची थी वो गोरक्षकों के नाम पर जारी गुंडागर्दी ने पूरी कर दी। इसका सीधा असर चमड़े के उत्पादन और व्यापार पर पड़ा। जिससे समाज के बिलकुल निचले तबके के गरीब लोगों के रोजगार समाप्त हो गए। और आज हालत ये है की ग्रामीण क्षेत्र, जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका रखता है भारी मंदी का शिकार हो गया।
                  उसके बाद जो क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है, चाहे रोजगार देने का मामला हो या उत्पादन का, वो है लघु उद्योग और रिटेल व्यापार। ये दोनों मिलकर देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करवाते हैं। लेकिन सरकार के GST लागु करने के फैसले और उसके बाद इसे लागु करने के तरीके ने इन दोनों क्षेत्रों की कमर तोड़ दी। इस तरह जहां जहां भी विकास की गुंजाइश थी हर तरफ हमला किया गया। लोग पहले हमले से सम्भल भी नहीं पाते की तुरंत दूसरा हमला हो जाता। और सबसे बड़ी बात ये की सरकार में कोई भी ये मानने को तैयार नहीं की कोई समस्या है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो अर्थव्यवस्था के नकारात्मक आंकड़ों को टेक्निकल कारणों की वजह से आया बता दिया।
                    लेकिन अब वित्तमंत्री अरुण जेटली के बयान के बाद लगता है की सरकार को कम से कम इतना तो पता है अर्थव्यवस्था में सचमुच कोई गिरावट है। लेकिन सवाल यह है की सरकार के पास इस स्थिति में हस्तक्षेप करने की कितनी गुंजाइश और दिशा मौजूद है।
                    साल की तीसरी तिमाही के एडवांस टैक्स के आंकड़े उम्मीद से कम हैं। GST के बाद टैक्स क्लैक्शन के जो आंकड़े पहले बताये जा रहे थे अब उन पर सवाल उठ रहे हैं। कुल 95000 करोड़ की क्लैक्शन के सामने 65000 करोड़ इनपुट टैक्स क्रेडिट का क्लेम है और बड़ी कंपनियों ने अब तक क्लेम का दावा भी पेश नहीं किया है। इसके बाद सरकार की नींद उड़ी हुई है। सरकार के बड़े अधिकारीयों के ऑफ़ दा रिकार्ड बयान आ चुके हैं की कम कलेक्सन के कारण खर्च में कटौती करनी पड़ सकती है। CAD एक झटके में बढ़कर २. ६ % हो गया है और साल के अंत तक इसके 3. 6 %  पहुंचने आसार है। सरकार का बजट  में घोषित खर्च अपनी 94 % के स्तर पर पहुंच चूका है।
                     इन हालात को देखते हुए सरकार के पास बहुत सीमित विकल्प मौजूद हैं। और जो विकल्प मौजूद हैं तो क्या सरकार उन्हें अपनाने का साहस दिखाएगी। पिछले तीन साल से अर्थव्यवस्था सरकारी इन्वैस्टमैंट पर ही चल रही थी। प्राइवेट सेक्टर पहले ही अपनी क्षमता से कम पर चल रहा था सो उसमे किसी नई इन्वैस्टमैंट की उम्मीद ही नहीं थी। अब प्राइवेट सेक्टर की क्षमता और घटकर 70 % पर आ गयी है इसलिए एकमात्र सहारा सरकारी निवेश का ही बचा है। दूसरी तरफ लोगों को सहायता की तुरंत जरूरत है। लेकिन जिस तरह उच्चस्तरीय बैठक के तुरंत बाद वित्तमंत्री ने बयान दिया है की तेल की कीमतों में कोई कटौती नहीं होगी, उसे देखते हुए लगता नहीं है की सरकार लोगों को कोई राहत देगी। उल्टा कुछ लोगों को शक है की सामाजिक योजनाओं में कटौती हो सकती है। मनरेगा जैसी योजनाओं में कटौती हो सकती है, और नौकरियों पर बैन को बढ़ाया जा सकता है। अगर सचमुच में ऐसा होता है तो ये इलाज भी बीमारी से भयानक हो सकता है। अगर लोगों के पास खरीद शक्ति नहीं होगी तो मंदी के सर्कल से बाहर निकलना असम्भव हो जायेगा। 

Friday, September 15, 2017

गैंगस्टर, उनके प्रकार और उनकी सम्पत्ति

                       पिछले दिनों खबर आयी की गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम की कई हजार करोड़ की सम्पत्ति ब्रिटेन ने जब्त कर ली है। उसके साथ साथ और भी बहुत सी खबरें आयी। सोचा ये गैंगस्टर क्या होता है ये पता लगाया जाये। कई किताबें पढ़ी, गूगल पर सर्च किया और जानकर और पढ़ेलिखे लोगों से बात की। उसके बाद जो समझ में आया वो इस प्रकार है।
                        गैंगस्टर वो होता है जो दो या उससे ज्यादा लोगों का गिरोह बनाकर, आम लोगों की सम्पत्ति  को विभिन्न तरीकों से लूटता है और विरोध करने पर उनको मार डालता है या मार डालने की धमकी देता है।
                      उसके बाद तो विभिन्न तरह के गैंगस्टरों के कई प्रकार आँखों के सामने घूम गए।
1. इसमें पहली किस्म के गैंगस्टर वो थे जो शहर में लारी गल्ले वालों को धमका कर हफ्ता वसूलते हैं, या फिर शराब इत्यादि का धंधा करते हैं और विरोध करने वालों की टांगे तोड़ देते हैं।
2. इसके बाद वो गैंगस्टर हैं जो थोड़ा आधुनिक किस्म के हथियार रखते हैं, लोगों की जमीन जायदाद पर कब्जा करते हैं, अच्छे इलाकों में सैक्स रैकेट चलाते हैं और शहर के प्रभावशाली लोगों के साथ उनका उठना बैठना होता है।
3. उसके बाद ये सब धंधा करने वाले वो लोग आते हैं जो ये काम अंतरराज्यीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करते हैं और आये दिन अख़बारों में उनके नाम पढ़ने को मिलते रहते हैं।
                                                                   लेकिन
उसके बाद इन गैंगस्टरों की जो नस्ल सामने आयी वो बड़ी भयावह है। उसके बारे में पढ़ तो लिया लेकिन अब तक कँपकपी आ रही है।
                      ये गैंगस्टर किसी एक प्लाट या दुकान पर कब्जा नहीं करते। ये पुरे के पुरे जँगल, सारे के सारे गांव, खदानें, पहाड़, नदी और देश पर कब्जा करते हैं। इनका गिरोह भी बहुत बड़ा होता है। उसमे लोगों को मारने वाले सदस्य एक अलग किस्म की वर्दी पहनते हैं। इनके गिरोह के कुछ लोग एक खास जगह बैठ कर कानून बनाते हैं। इसने गिरोह के कुछ सदस्य टीवी चैनलों में बैठकर इन्हे धर्मात्मा सिद्ध करने में लगे रहते हैं। ये अपने खिलाफ बोलने वालों को जेलों में डाल देते हैं और लिखने वालों को जन्नत में पहुंचा देते हैं। एक खबर आयी हैं की पिछले केवल तीन साल में पुरे देश की कुल सम्पत्ति का 15 % हिस्सा आम लोगों के पास से इनके कब्जे में पहुंच गया है। इनकी खासियत ये है की इनको आसानी से पहचाना नहीं जा सकता। ये लोग स्कूल और हस्पताल से लेकर मंदिर और सतसंग तक चलाते हैं। ये पुरे देश और दुनिया को गर्व के साथ बताते हैं की ये जो भी कर रहे हैं उस कानून के हिसाब से कर रहे होते हैं जो इनके गिरोह के सदस्यों ने कल बनाया है। इनके गिरोह की सदस्य्ता पूरी दुनिया में फैली होती है और कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता की कौन कौन इनका सदस्य हो सकता है।
                      ये बहुत ही शातिर होते हैं। ये कुछ नोजवानो को अपने गिरोह की खास वर्दियाँ पहना कर उनके ही हाथों, उनके किसान बाप या मजदूर भाई को गोली मरवा देते हैं और फिर गाजे बाजे के साथ उसे सम्मानित कर देते हैं। ये खुद की सेवा को देश सेवा कहकर प्रचारित करते हैं और अपने कुकर्मो को विकास कहते हैं।
                  जब से मुझे ये पता चला है तब से नींद नहीं आ रही।

Thursday, September 14, 2017

बुलेट ट्रैन -- देश को बर्बाद कर देने वाले इस महाविनाशी सपने को रोको।


         
  कल प्रधानमंत्री मोदी और जापान के प्रधानमंत्री सिंजो आबे ने अहमदाबाद में बुलेट ट्रैन का शिलान्यास कर दिया। हालाँकि इस के समर्थन और विरोध में बहुत कुछ कहा जा चुका है, लेकिन ये मामला कितना भयावह और गैरजिम्मेदार है इसका अंदाजा किसी को नहीं है। न तो विरोध करने वालों को है और न ही समर्थन करने वालों को है। इसलिए एक बार इसका हिसाब किताब लगा लिया जाये ये बहुत जरूरी है। वरना नोटबंदी की तरह पछताने के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।
                  सरकार की तरफ से मीडिया में जो जानकारी दी गयी है उसके अनुसार इस पर 110000 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा, जिसमे से 85000 करोड़ डॉलर का कर्ज जापान देगा, जिस पर  0 . 1 % का मामूली  ब्याज देना पड़ेगा। शेष 25000 करोड़ डॉलर का खर्चा भारत सरकार करेगी।
                     अब इसमें दो मुख्य बातें हैं  जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। पहला ये की बुलेट ट्रैन के लिए बनाया गया पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर केवल बुलेट ट्रैन के लिए ही इस्तेमाल हो सकता है। ऐसा नहीं है की उस पर बाकी पटरियों की तरह हर तरह की गाड़ियां चल सकती हैं। दूसरा सवाल ये है की इस ट्रैन में एकबार में करीब 725 यात्री सफर कर सकेंगे। जिस पर अगर अतिउदार और अधिकतम अनुमान भी लगाया जाये तो ये ट्रैन दो राउंड ट्रिप अहमदाबाद और मुंबई के बीच लगा सकती है। अगर सभी सीटों की पूरी बुकिंग भी मान ली जाये ( जो इसके किराय को देखते हुए असम्भव है ) तो ये पूरी कवायद केवल 725 x 4 यानि केवल 2900 लोगों के लिए की जा रही है।
                    अब इस पर होने वाले खर्च में से केवल ब्याज के खर्च का हिसाब ही लगाया जाये तो वो इस तरह है।
                  जापान का कर्ज और ब्याज   85000 करोड़ x 0 . 1 %   = 85 करोड़
                  भारत सरकार का कर्ज   25000 करोड़ x 7 %   =   1750 करोड़       ( मौजूदा बांड वैल्यू के हिसाब से जिसके अनुसार सरकार घरेलू मार्किट, बैंक इत्यादि से अपनी जरूरतों के लिए कर्ज लेती है। )

                                                         कुल ब्याज = 1750 +85  = 1835 करोड़ डॉलर सालाना ,
    यानी   करीब 5 करोड़ डॉलर प्रतिदिन = 5 x 64 ( मौजूदा डॉलर रेट )  320 करोड़ रूपये प्रतिदिन
    इसका मतलब ये  हुआ की  320 करोड़ को 2900 यात्रियों से भाग दिया जाये तो =  11 लाख तीन हजार रूपये।
        यानि प्रति यात्री प्रतिदिन 11 लाख रूपये तो केवल ब्याज का खर्चा होगा। इससे तो अच्छा था की प्रति यात्री के लिए एक चार्टर्ड प्लेन चला देते तो भी इससे कम नुकशान होता।
                       इसलिए मेरी हर नागरिक से अपील है की वो इस विनाशकारी परियोजना का विरोध करे।
                                            

Wednesday, September 13, 2017

नोटबंदी पर सरकार का रुख, " रपट पड़े तो हर गंगा "

                 नोटबंदी एक विफल प्रोग्राम साबित हो चूका है। लेकिन सरकार और बीजेपी लगातार बयान बदल बदल कर कहीं न कहीं इज्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जब प्रधानमंत्री मोदीजी ने इसकी घोषणा की , तब उन्होंने  इसके कारण और लक्ष्य बताये थे। जैसे जैसे समय गुजरा तो ये समझ में आया की इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ, उलटे अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठ गया और करोड़ों लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसके तुरंत बाद बीजेपी और सरकार में बैठे मंत्रियों ने बयान बदलने शुरू कर दिए। सबसे पहले कहा गया की नोटबंदी लोगों को डिज़िटल लेनदेन की आदत डालने के लिए की गयी थी। उसके बाद ये आंकड़े भी आ गए की जून के बाद डिजिटल लेनदेन की संख्या में भारी गिरावट आयी है।
                 लेकिन जो मुख्य मसला था वो था कालाधन।  सरकार इस बात को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना चाहती है की जैसे वो कालेधन और भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। इसके लिए इस बात में विफल होने के बाद की तीन-चार लाख करोड़ रूपये कागज के टुकड़ों में बदल जायेंगे, सरकार ने तुरंत पलटी मार कर कहना शुरू किया की हमने तो नोटबंदी की ही इसलिए थी की सारा पैसा बैंक में वापिस आ जाये। और की अब हमारे पास इस बात के आंकड़े हैं की किस किस का धन काला है और उन सब को पकड़ लिया जायेगा।
                  लेकिन सरकार का ये बयान भी उसकी कार्यवाही से मेल नहीं खाता। सुप्रीम कोर्ट में एक महिला की इस याचिका पर की उसे बैंक में पैसा जमा करने का एक मौका दिया जाये, उसके जवाब में सरकार ने कहा की अगर एक मौका और दे दिया गया तो नोटबंदी का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। तो आपका उद्देश्य क्या था ? अगर आपका उद्देश्य सारा पैसा सिस्टम में वापिस लाने का था तो बाकी का भी आ जाने दो। फिर आप जिला सहकारी बैंको में जमा हुए करीब नौ हजार करोड़ रूपये को लेने से क्यों इंकार कर रहे हो ? फिर आप देश से बाहर नेपाल इत्यादि में रहने वाले भारतीयों का पैसा लेने से इंकार क्यों कर रहे हो। दूसरे अब बचा ही क्या है ? RBI के अनुसार केवल 16000 करोड़ के नोट ही बाहर बचे हैं बाकी तो सब जमा हो चुके हैं।
                इसके केवल दो कारण हो सकते हैं। पहला ये की आपका उद्देश्य वो नहीं था जो आप अब बता रहे हैं, बल्कि वही था जो घोषणा करते वक्त बताया गया था।
                 और दूसरा कारण ये की एक मौका और दे देने से तय रकम से ज्यादा पैसा बैंक में आ सकता है और नकली नोटों का वो आंकड़ा भी सामने आ जायेगा जो इस दौरान बैंको में जमा हो गए। 

Tuesday, September 12, 2017

राहुल गाँधी के इंटरव्यू पर बदहवास भाजपा

                राहुल गाँधी के अमेरिका में दिए गए इंटरव्यू पर बीजेपी बुरी तरह बौखलाई हुई है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला ये की पिछले कई सालों से दिनरात मेहनत करके बीजेपी ने राहुल गाँधी की जो पप्पू वाली छवि बनाई थी, उसे राहुल गाँधी के एक इंटरव्यू ने धो कर रख दिया। दूसरा कारण ये है की राहुल गाँधी के जवाब बीजेपी के कार्यक्रम को सीधी चुनौती देते हैं। बीजेपी को राहुल पर सवाल उठाने से ज्यादा उन बयानों के जवाब देने पड़ रहे हैं जो प्रधानमंत्री ने विदेशी यात्राओं के दौरान दिए थे। 

Sunday, September 10, 2017

किसी तानाशाह की सनक नहीं है उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम।

     
           
   पिछले लम्बे समय से विश्व मीडिया का एक हिस्सा और भारत का इलेट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा, उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को एक तानाशाह की सनक के तौर पर प्रचारित करता रहा है। हालाँकि भारतीय टीवी मीडिया अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी साख खो चूका है और शेष दुनिया के लोग उसे केवल मनोरंजक चैनल के रूप में ही देखते हैं, लेकिन भारतीय दर्शकों का एक वर्ग अपनी कमजोर जानकारी के स्तर के कारण अब भी उससे प्रभावित होता है। हाल ही में किये गए हाइड्रोजन बम के परीक्षण के बाद हमारे चैनलों में इस तरह की रिपोर्टिंग की बाढ़ आ गयी है। लेकिन क्या ये सचमुच वैसा ही है ?
                      1950 के दशक में अमेरिका और कोरिया युद्ध के बाद, जब अमेरिका कोरिया को उत्तर और दक्षिण कोरिया के नाम से दो भागों में बाँटने में कामयाब हो गया, तब हारते हारते उसने उत्तर कोरिया के साथ युद्धविराम संधि कर ली। लेकिन उसका हमलावर और शत्रुतापूर्ण रुख जारी रहा। दक्षिण कोरिया को आधार बना कर उसने उत्तर कोरिया में किसी भी प्रकार से तख्तापलट की अपनी कोशिशें जारी रखी। इसी वजह से उत्तर कोरिया को ये समझ आ गया की अगर वो सैनिक तैयारिओं के मामले में कमजोर रहा तो अमेरिका कभी भी उसे बर्बाद कर सकता है। इसलिए उसने अपनी सैनिक ताकत को हरसम्भव इस स्तर पर रखा की युद्ध के दौरान कामयाब प्रतिरोध किया जा सके। इसी दौर में जब पूरी दुनिया मिसाईल कार्यक्रमों पर खर्चा कर रही थी तब उत्तर कोरिया की सरकार भी इसके लिए प्रयास कर रही थी।
                   लेकिन सयुंक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका के प्रभुत्व के कारण उत्तर कोरिया के लिए ये राह आसान नहीं रही। उस पर लगातार प्रतिबन्ध लगाए गए और उसे दुनिया से अलग थलग करने की कोशिशें की गयी। लेकिन अपनी इच्छाशक्ति और चीन जैसे कुछ देशों के समर्थन से अमेरिका अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ।
परमाणु अप्रसार की विश्व व्यवस्था --
                                                       अब सवाल आता है की उत्तर कोरिया परमाणु अप्रसार के लिए बनाई गयी विश्व व्यवस्था का उललंघन कर रहा है। सो सभी जानते  हैं की मौजूदा परमाणु अप्रसार संधि इकतरफा और पहले से परमाणु शक्तिसम्पन्न देशों के हित में है। इसलिए भारत सहित कई देशों ने इसी कारण से इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी देश एकतरफा रूप से बाकी देशों पर इसके नाम पर प्रतिबंध लगाते रहे हैं। भारत तो इसका भुक्तभोगी रहा है। जब अटल जी के समय भारत ने परमाणु विस्फोट किया था तब भारत ने कई सालों तक इस तरह के प्रतिबंधों को झेला था। तब भारतीय मीडिया अमेरिका की आलोचना करता था और भारत के पक्ष को सही ठहराता था, अब उत्तर कोरिया के मामले में वही मीडिया अमेरिका को सही ठहराता है।
                           दूसरी तरफ मौजूदा परमाणु अप्रसार संधि, (एनपीटी ) परमाणु प्रसार को रोकने में एकदम निष्फल रही।  दुनिया के पांच परमाणु शक्तिसम्पन्न देशों के अलावा कई देशो के पास घोषित रूप से परमाणु तकनीक और हथियार हैं जैसे भारत और पाकिस्तान। इसके अलावा भी अघोषित रूप से भी कई देशों के पास परमाणु तकनीक और हथियार होना माना जाता है जैसे इसराइल और ईरान इत्यादि। सो परमाणु अप्रसार पर सबके स्वीकार करने लायक व्यवस्था का निर्माण जरूरी है जो शेष विश्व के परमाणु तकनीक प्राप्त करने के अधिकार को भी स्वीकार करती हो।
इराक और लीबिया का उदाहरण --
                                                     अमेरिका किस प्रकार से परमाणु अप्रसार के नाम  पर  झूठे प्रचार का प्रयोग करके अपने हितों को साधता रहा है, ईराक और लीबिया इसके स्पष्ट उदाहरण हैं। जब ईराक पर परमाणु और रासायनिक शस्त्र बनाने का आरोप अमेरिका ने लगाया तब ईराक ने सयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाये गए हर प्रस्ताव का पूरी तरह पालन किया। यहां तक की सयुक्त राष्ट्र की एजेन्सी तक के ये घोषित करने के बाद की ईराक के पास इस तरह के हथियार होने या उनका निर्माण किये जाने के कोई सबूत नहीं हैं, अमेरिका ने अपने सामरिक और व्यावसायिक हितों के लिए ईराक पर हमला किया और एक सम्पन्न देश को बर्बाद कर दिया। यही लीबिया के साथ हुआ। एक सार्वभौम और स्वतंत्र देश को नष्ट करके उसके शासक को बेइज्जत करके बेरहमी से कत्ल कर दिया गया और वो भी केवल उसके संसाधनों पर कब्जा करने के लिए। इसके बाद भी जो लोग अमेरिकी प्रचार को सच मान लेते हैं तो उनकी समझ पर तरस आने वाली बात है।
उत्तर कोरिया का पक्ष --
                                    उत्तर कोरिया इस बात को समझता है की सयुंक्त राष्ट्र इत्यादि कोई भी संस्था इतनी सक्षम नहीं है जो किसी देश की विदेशी हमले के मामले में रक्षा कर सके। वह लीबिया का उदाहरण देता है की
 किस तरह सयुंक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को तोड़ मरोड़ कर उसे बर्बाद किया गया। और अब तो सीरिया और यमन के मामले में तो  इस तरह के किसी प्रस्ताव का भी इंतजार नहीं किया गया। अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ मिलकर उत्तर कोरिया के तट पर लगातार उकसावेपूर्ण युद्ध अभ्यास करता रहा है। अमेरिका एक तरफ लगातार उत्तर कोरिया को डराने धमकाने का प्रयास करता है तो दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया का इस्तेमाल अपने सामरिक हितों के लिए सैनिक अड्डों के निर्माण के लिए करता है। उत्तर कोरियाई खतरे को बहाना बना कर वो लगातार इस क्षेत्र में अपने आधुनिक हथियारों की तैनाती करता रहा है। दक्षिण कोरिया की भौगोलिक स्थिति ऐसी है की वहां से रूस और चीन, दोनों की सीमाओं के समीप अपने हथियार तैनात किये जा सकते हैं। इसलिए उत्तर कोरिया बिना किसी धमकी के असर में आये लगातार अपनी सुरक्षा जरूरतों के हिसाब से परमाणु और मिसाइल तकनीक पर काम करता रहा है।
खेल खत्म हो चुका है ---
                                  अमेरिका अब तक जिस धाक धमकी और प्रतिबंधों का इस्तेमाल करके उत्तर कोरिया को रोकने का प्रयास करता रहा है वो खेल अब समाप्त हो चूका है। अब उत्तर कोरिया ने न केवल अमेरिका तक पहुंच सकने वाली अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया है बल्कि इसके साथ ही उसने हाइड्रोजन बम के मिसाइल पर लगाए जाने वाले वॉर हैड को बनाने में भी सफलता प्राप्त कर ली है। इस मामले पर अमेरिकी नीति विफल हो चुकी है और उत्तर कोरिया को रोक कर रखने का खेल समाप्त हो चुका है।
कोरियाई उपमहाद्वीप  में हथियारों की नई दौड़ ----
                                                                           अब बदहवास अमेरिका को समझ में नहीं आ रहा है की वो इस चुनौती का मुकाबला कैसे करे। इसलिए उसने दक्षिण कोरिया में नए सिरे से अपने मिसाइल विरोधी सिस्टम थाड की तैनाती की घोषणा कर दी है। पर्यावरण पर इस सिस्टम के दुष्प्रभावों को देखते हुए खुद दक्षिण कोरिया में ही इसका भारी विरोध हो रहा है और इसके खिलाफ बहुत बड़े बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। दूसरी तरफ चीन और रूस ने इस पर गंभीर आपत्ति जताई है। रूस ने तो इसके खिलाफ अपने मिसाइल सिस्टम कैलिबर की तैनाती की घोषणा भी कर दी है। रूस का ये सिस्टम छोटी दुरी पर सटीक हमले की क्षमता रखता है और इसकी स्पीड को अब तक मात नहीं दी जा सकी है। दूसरी तरफ चीन से अब ये उम्मीद करना की वो उत्तर कोरिया के मामले में अमेरिका की कोई मदद करेगा, बेमानी ही है। जबकि चीन पहले ही ये साफ कर चूका है की कोरियाई समस्या का हल धमकी की बजाए बातचीत से ही सम्भव है और इसके लिए अमेरिका को उत्तर कोरिया के तट पर किये जाने वाले अपने युद्ध अभ्यासों पर रोक लगानी होगी। साथ ही उसने ये भी कहा है की ये उम्मीद करना की उत्तर कोरिया को डरा लिया जायेगा, असम्भव ही है।
                         इसलिए भारतीय मीडिया का जो हिस्सा उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को एक तानाशाह की सनक कह कर प्रचारित कर रहा है, उसे समझ लेना चाहिए की ये एक संप्रभु और सार्वभौम देश का अपनी सुरक्षा तैयारियों से जुड़ा कार्यक्रम है। 

Saturday, September 9, 2017

JNUSU चुनाव में लेफ्ट यूनिटी की जीत और उसके सबक

      
 
                                JNUSU चुनाव 2017 के अंतिम परिणाम आ चुके हैं।  जो इस प्रकार है।


    1. अध्यक्ष      - लेफ्ट यूनिटी की गीता कुमारी ने ABVP की निधि त्रिपाठी को 464 वोट से हराया।

    2.  उपाध्यक्ष -  लेफ्ट यूनिटी की सिमोन जोया खान ने ABVP के दुर्गेश कुमार को 848 वोट से हराया।

    3.  महासचिव -- लेफ्ट यूनिटी उम्मीदवार दुग्गीराला ने ABVP के निकुंज मकवाना को 1107 वोट से हराया।

    4.  सहसचिव -  लेफ्ट यूनिटी उम्मीदवार शुभांशु सिंह ने ABVP के पंकज केसरी को 835 वोट से हराया।


                  सभी  चारों सीटों पर कई साल के बाद लेफ्ट ने कब्जा किया है। लेकिन इन चुनावो के दौरान और परिणाम आने के बाद इसके कुछ सबक भी हैं। जैसे -

1.     लोग चाहते हैं की लेफ्ट एक साथ खड़ा हो। अगर लेफ्ट साथ रहता है तो समाज के बड़े वर्ग का समर्थन उसे मिलता है।

2.   AISF के लेफ्ट से अलग होकर चुनाव लड़ने को लोगों के बहुमत ने रिजेक्ट कर दिया।

3.   ABVP की बजाय लेफ्ट को दुश्मन नंबर 1 करार देकर चुनाव लड़ने वाली बापसा  ( BAPSA ) इस बार तीसरे नंबर पर चली गयी जो पिछली बार दूसरे नंबर पर थी। दलितों के नाम पर बने संगठन अगर दक्षिणपंथी हिन्दूवादियों के बजाय लेफ्ट को दुश्मन घोषित करते हैं तो उन्हें लोगों का समर्थन घट जाता है। क्योंकि दलित देख रहे हैं की किस प्रकार लेफ्ट उनके सवालों पर लगातार लड़ता रहा है।