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Monday, August 10, 2015

Vyang -- सरकार के सारे अनुमान हमेशा छोटे या बड़े क्यों होते है ?

गप्पी -- आज सुबह देवघर में वैद्यनाथ मंदिर में भगदड़ मच गयी और करीब ग्यारह आदमियों के मरने की खबर आई। बहुत से लोग घायल भी हुए। राज्य सरकार से जब हादसे पर पूछा गया तो उसका जवाब था की अनुमान से ज्यादा भीड़ होने के कारण हादसा हुआ। इससे पहले भी मंदिरों और मेलों में भगदड़ मचने और लोगों के मरने की खबरें आती रही हैं। इन सब में कुछ बातें समान है। एक तो सरकार के बयान, जो हमेशा एक जैसे होते हैं। दूसरे भगदड़ मचने का कारण लगभग हमेशा पुलिस का लाठीचार्ज होता है। हमेशा पुलिस कहती है की वो लाइन लगवा रही थी। तीसरी ये की हमारे देश के लोग अब तक ये भी नही सीख पाये की लाइन कैसे लगाई जाती है। उसके बाद की समान चीजों में शोक प्रकट करना, घायलों को सांत्वना देना और मुआवजे की घोषणा करना इत्यादि है।
                  थोड़ी सी बारिश होती है और पूरा शहर पानी पानी हो जाता है। सारी व्यवस्था फेल हो जाती है। लोग डूब जाते हैं। सरकार से पूछो तो कहेगी की अनुमान से ज्यादा बारिश होने कारण ऐसा हुआ।
                    किसी भी काम पर, दुर्घटना पर सरकार से पूछो तो उसका जवाब हमेशा यही होता है की अनुमान से ज्यादा भीड़ या बारिश होने से ऐसा हो गया। मुझे ये समझ नही आता की ऐसे छोटे अनुमान लगाने को आपको किसने कहा था। क्या संविधान में ऐसा कोई प्रावधान है। फिर एक बार की बात नही है। आपके अनुमान तो साल में पांच बार छोटे पड़ते हैं। तो सरकार ये अनुमान लगाने का काम किसी दूसरे को क्यों नही दे देती। जैसे अमेरिका को, मेरा मतलब है अमेरिका की किसी एजेंसी को। क्योंकि हम अमेरिका के अलावा तो किसी पर भरोसा करते नही हैं। जब जब हम पर मुसीबत आई है हमने हमेशा अमेरिका से गुहार लगाई है भले ही वह मुसीबत अमेरिका की ही पैदा की हुई क्यों ना हो।
                      संसद में वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं। वह संसद को बताते हैं की इस साल इतने लाख करोड़ टैक्स की उगाही होने का अनुमान है। विपक्ष कहता है की सरकार का अनुमान गलत है। अर्थव्यवस्था में मंदी  है और सरकार के कदमों से मंदी और बढ़ेगी। इसलिए टैक्स की उगाही के सरकारी अनुमान गलत हैं। सरकार नही मानती। वह अपने दावों पर अडिग है। होना भी चाहिए। हमारे यहां मजबूत सरकार उसी को माना जाता है जो अपने गलत दावों पर अडिग रहे। अगले साल वही वित्त मंत्री दुसरा बजट पेश करते हुए कहता है की दुनिया में मंदी के कारण टैक्स की उगाही कम हुई इसलिए हमें स्कूली बच्चों के दोपहर भोजन में कटौती करनी पड़ी।
                         देश में किसान आत्महत्या करते हैं। सरकार कहती है की हमने किसानो की आत्महत्या रोकने के लिए पूरे इन्तजाम किये हैं। आत्महत्याएं होती रहती हैं। सरकार आंकड़े जारी करके कहती है की इस साल आत्महत्याओं में केवल 15 % की बढ़ौतरी हुई है जबकि पिछले साल 18 % दर से बढ़ौतरी हुई थी। इसलिए सरकार द्वारा उठाये गए कदमों का असर नजर आ रहा है। अगले साल बढ़ौतरी का आंकड़ा बढ़ कर 20 % हो जाता है। सरकार कहती है इतने भयानक सूखे का अनुमान नही था।
                       पुलिस या सेना के लिए भर्ती हो रही है। नौजवानो का हजूम उमड़ता है और भगदड़ में कई नौजवान मारे जाते हैं। बाकि नौजवान शहर को लूटने निकल पड़ते हैं। सरकार कहती है की इतनी भीड़ का अनुमान नही था। कोई पूछे की भई क्यों नही था। जब देश में चपरासी की 100 पदों की भर्ती की परीक्षा होती है तो तीन लाख नौजवान अप्लाई करते हैं। जिनमे इंजीनियर से लेकर MBA तक होते हैं। तो आपको सेना की भर्ती में भीड़ का अनुमान क्यों नही था ? लेकिन सरकार इसका जवाब नही देती। सरकार जवाब देने के लिए नही होती, गलत अनुमान लगाने के लिए होती है।
                      कभी कभी लोग ज्यादा शोर मचाते हैं तो जाँच बिठा दी जाती है। अगर शोर थम जाता है तो उसका जाँच अधिकारी ही नियुक्त नही किया जाता। मान लो कोई जाँच सही तरीके से हो भी गयी तो पता चलता है की सरकार ने जिस अधिकारी को मेले का प्रबंध करने की जिम्मेदारी दी थी वो पिछले दस सालों से भेड़ व ऊन विकास निगम को चला रहा था। सरकार को लगा की मेले में आने वाले लोगों और भेड़ों में कोई ज्यादा फर्क नही होता इसलिए उसको जिम्मेदारी दे दी। लेकिन सरकार का अनुमान गलत हो गया।
                 तो फिर इन दुर्घटनाओं को कैसे रोका जाये। क्योंकि सरकार तो कभी सही अनुमान लगाएगी नही।

खबरी -- मैं तो यही दुआ कर सकता हूँ की सरकार ने लोगों के सब्र का जो अनुमान लगाया है कम से कम वो तो सही हो।

Wednesday, August 5, 2015

Vyang -- रेल हादसा और कुछ अंदर की बातें

गप्पी -- एक और बड़ा रेल हादसा हो गया। सरकार ने कुछ रटी रटाई बातें की, पुरानी लिस्ट के कुछ काम दोहराये। जैसे -

        प्रधानमंत्री ने हादसे पर दुःख जताया। 

        रेल मंत्री ने हादसे पर दुःख जताया। 

        रेल हादसे की जाँच सुरक्षा आयुक्त से करवाने की घोषणा की। 

        रिपोर्ट  और जाँच से पहले ही घटना का कारण प्राकृतिक आपदा बता दिया। 

        मुआवजे की घोषणा की। 

        कुछ गाड़ियों के रुट बदले, कुछ रद्द की। 

        हेल्पलाइन नंबर जारी किये। 

ये हर हादसे के बाद किये जाने वाले कामो की तय लिस्ट है जो कम्प्यूटर में सेव है। हर हादसे के बाद इसे जारी कर दिया जाता है। हमे एक बड़ा रेल अधिकारी कैंटीन में मिल गया। उससे जो प्राइवेट बातें हुई उसके कुछ अंश यहां दे रहा हूँ। 

        मैं --- रेल मंत्री ने छानबीन से पहले ही कह दिया की दुर्घटना प्राकृतिक आपदा के कारण हुई। 

        अधिकारी --- रेल मंत्रालय कभी भी किसी दुर्घटना की जिम्मेदारी नही लेता। विभिन्न दुर्घटनाओ के लिए हमारे पास तय कारणों की लिस्ट मौजूद है। उसे चाहे छानबीन से पहले पूछ लो चाहे बाद में। जैसे, मानवीय भूल के कारण , तकनीकी गड़बड़ी के कारण, तोड़फोड़ की कार्यवाही के कारण, बिना फाटक के रोड पर किसी वाहन के गलती से आ जाने के कारण और प्राकृतिक आपदा के कारण। 

        मैं -- रेलवे लाइन के नीचे से पानी निकल गया, इतनी बारिश और बाढ़ का मौसम था तो क्या रेलवे को अतिरिक्त सावधानी नही बरतनी चाहिए थी। क्या रेल मंत्री सुरेश प्रभु  को इसकी जिम्मेदारी नही लेनी चाहिए ?

        अधिकारी --  दुर्घटना की जिम्मेदारी नीचे वाले प्रभु की नही ऊपर वाले प्रभु की है। 

         मैं -- जो दो लाख रूपये मुआवजा घोषित किया गया है, क्या आपको नही लगता वो नाकाफी है। 

       अधिकारी --- अब रेल दुर्घटना में मरने वालों का मुआवजा विमान दुर्घटना में मरने वालों के बराबर तो नही हो सकता। वैसे रेलवे इस बात पर विचार कर रहा है की अलग अलग श्रेणी के हिसाब से अलग अलग मुआवजा रक्खा जाये। फर्स्ट क्लास का तो किराया भी विमान के बराबर हो गया है। 

          मैं -- तो जो यात्री जनरल बोगी में सफर करते हैं उनका क्या होगा ?

          अधिकारी --- जनरल डब्बे में जनरल यानि आम लोग सफर करते हैं। उनका मुआवजा घटाकर 50000 किया जा सकता है। वो सस्ती जाने हैं। इसीलिए तो हम जनरल डिब्बे ट्रेन के आगे और पीछे लगाते हैं ताकि दुर्घटना की स्थिति में पहला नंबर उनका आये। आखिर उनका टिकट का रेट ही कितना होता है। 

           मैं -- क्या अब मरने वाले का मुआवजा टिकट के रेट से तय होगा ?

          अधिकारी -- देखिये अब पहले जैसी धांधली नही चल सकती। अब रेल मंत्री चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। उन्हें सारा हिसाब आता है। कुछ दिन में वो रेल की कायापलट कर देंगे। 

            मैं -- लेकिन रेल मंत्रालय कोई ठोस काम क्यों नही करता ?

           अधिकारी -- कैसे नही करता ? हमने अभी-अभी तत्काल टिकटों का समय बदला है। अगले तीन महीनो में  हम ये समय दुबारा बदल देंगे। ऐसा हम हर तीन महीने बाद करने वाले हैं। हमने रेल टिकिट कैंसिल करवाने पर वापिस मिलने वाले पैसे को घटाकर वहां पहुंचा दिया है की कोई टिकट कैंसिल करवाये या न करवाये कोई फर्क नही पड़ता। अगर टिकिट कैंसिल करवाने के कारण रेलवे को जो आमदनी हुई है उसके आंकड़े जारी कर दिए जाएँ तो वो जातिगत जनगणना के आंकड़ों से ज्यादा विस्फोटक हो सकते हैं। 

              मैं -- लेकिन सुरक्षा के सवाल ---

             अधिकारी ---- रेल की आमदनी, रेल मंत्री और सरकार तीनो पूरी तरह सुरक्षित हैं।