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Monday, August 17, 2015

Vyang -- जो सुरक्षा कारणों से खदेड़ दिए गए।


गुप्पी -- स्वतन्त्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या। जंतर मंतर पर बैठे भूतपूर्व सैनिकों को दिल्ली पुलिस ने खदेड़ दिया। इसका जो कारण बताया गया वो ये था की स्वतन्त्रता दिवस समारोह के लिए सुरक्षा पट्टी बनाई गयी है। बहुत खूब, दिल खुश हो गया। प्रधानमंत्री के पंद्रह अगस्त के भाषण के बाद सोशल मीडिया पर एक फोटो वाइरल हुआ जिसमे प्रधानमंत्री बिना बुलेट प्रुफ कांच के भाषण दे रहे थे। पर ये किसी ने नही बताया की उनकी सुरक्षा के लिए जंतर मंतर से पूर्व सैनिकों को खदेड़ा गया था।
                         ये लोग कौन थे ? ये वो लोग थे जिन्होंने तीन बार पाकिस्तान की सेना को खदेड़ा था। आज उनको दिल्ली पुलिस ने खदेड़ दिया। जिन लोगों को देश के पहरेदार माना जाता है और जिनके भरोसे देश की सीमाएं हैं वो अचानक सुरक्षा को खतरा हो गए। जिन लोगों ने सीमा पर खरोंच नही आने दी वो फ़टे कपड़ों और टपकते खून के साथ खदेड़ दिए गए। जिस भारत माता की तस्वीर को बीजेपी अपने राष्ट्रवाद को साबित करने के लिए बगल में लिए घूमती है अगर एक बार उसकी तरफ देख लेती तो शायद उसके आँसू दिखाई दे जाते।
                  मुझे अच्छी तरह याद है बीजेपी के चुनाव प्रचार को शुरू करने वाली पहली रैली जो रेवाड़ी में हुई थी और जिसे अब के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्बोधित किया था। उस रैली को पूर्व सैनिकों का सम्मेलन कहा गया था और जनरल वी के सिंह इसी रैली में भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय स्टेज पर देश भक्ति के गीत गाने वाला एक गवैया जोश में दुहरा हुआ जा रहा था। पूरा माहौल देशभक्ति से सराबोर था। उसमे मोदी जी ने अपने सारे वायदे जो बीजेपी पूर्व सैनिकों के लिए करती रही है, एक बार फिर दुहराये थे। मुझे नही पता की वो रैली मोदीजी को याद है या नही। मुझे नही पता की वो रैली जनरल वी के सिंह को भी याद है की नही, लेकिन मुझे एक बात की उम्मीद थी की पूर्व सैनिकों के साथ जंतर मंतर की घटना के बाद शायद जनरल वी के सिंह या सेना से आये हुए राज्य वर्धन सिंह राठौर जैसे दूसरे कुछ लोग इस्तीफा दे दें। लेकिन गलत उम्मीद और गलत लोगों से की गयी उम्मीद का जो हांल होना चाहिए वो इस उम्मीद का भी हो गया।
                   मुझे ये तो नही मालूम की वन रैंक वन पैन्शन के वायदे की हाल में क्या पोज़िशन है और उससे कितना लाभ हानि होगी लेकिन जो व्यवहार पूर्व सैनिकों के साथ हुआ उसे ना तो भुलाया जा सकता है और ना ही बर्दास्त किया जा सकता है। जो भाजपा राष्ट्रवादी साबित होने की कोशिश में हमेशा सेना के प्रतीकों का इस्तेमाल करती रही है उससे हमेशा ये सवाल पूछा जाता रहेगा। ये सवाल वन रैंक वन पैन्शन के लागु होने से खत्म नही हो जायेगा।

Wednesday, August 5, 2015

Vyang -- रेल हादसा और कुछ अंदर की बातें

गप्पी -- एक और बड़ा रेल हादसा हो गया। सरकार ने कुछ रटी रटाई बातें की, पुरानी लिस्ट के कुछ काम दोहराये। जैसे -

        प्रधानमंत्री ने हादसे पर दुःख जताया। 

        रेल मंत्री ने हादसे पर दुःख जताया। 

        रेल हादसे की जाँच सुरक्षा आयुक्त से करवाने की घोषणा की। 

        रिपोर्ट  और जाँच से पहले ही घटना का कारण प्राकृतिक आपदा बता दिया। 

        मुआवजे की घोषणा की। 

        कुछ गाड़ियों के रुट बदले, कुछ रद्द की। 

        हेल्पलाइन नंबर जारी किये। 

ये हर हादसे के बाद किये जाने वाले कामो की तय लिस्ट है जो कम्प्यूटर में सेव है। हर हादसे के बाद इसे जारी कर दिया जाता है। हमे एक बड़ा रेल अधिकारी कैंटीन में मिल गया। उससे जो प्राइवेट बातें हुई उसके कुछ अंश यहां दे रहा हूँ। 

        मैं --- रेल मंत्री ने छानबीन से पहले ही कह दिया की दुर्घटना प्राकृतिक आपदा के कारण हुई। 

        अधिकारी --- रेल मंत्रालय कभी भी किसी दुर्घटना की जिम्मेदारी नही लेता। विभिन्न दुर्घटनाओ के लिए हमारे पास तय कारणों की लिस्ट मौजूद है। उसे चाहे छानबीन से पहले पूछ लो चाहे बाद में। जैसे, मानवीय भूल के कारण , तकनीकी गड़बड़ी के कारण, तोड़फोड़ की कार्यवाही के कारण, बिना फाटक के रोड पर किसी वाहन के गलती से आ जाने के कारण और प्राकृतिक आपदा के कारण। 

        मैं -- रेलवे लाइन के नीचे से पानी निकल गया, इतनी बारिश और बाढ़ का मौसम था तो क्या रेलवे को अतिरिक्त सावधानी नही बरतनी चाहिए थी। क्या रेल मंत्री सुरेश प्रभु  को इसकी जिम्मेदारी नही लेनी चाहिए ?

        अधिकारी --  दुर्घटना की जिम्मेदारी नीचे वाले प्रभु की नही ऊपर वाले प्रभु की है। 

         मैं -- जो दो लाख रूपये मुआवजा घोषित किया गया है, क्या आपको नही लगता वो नाकाफी है। 

       अधिकारी --- अब रेल दुर्घटना में मरने वालों का मुआवजा विमान दुर्घटना में मरने वालों के बराबर तो नही हो सकता। वैसे रेलवे इस बात पर विचार कर रहा है की अलग अलग श्रेणी के हिसाब से अलग अलग मुआवजा रक्खा जाये। फर्स्ट क्लास का तो किराया भी विमान के बराबर हो गया है। 

          मैं -- तो जो यात्री जनरल बोगी में सफर करते हैं उनका क्या होगा ?

          अधिकारी --- जनरल डब्बे में जनरल यानि आम लोग सफर करते हैं। उनका मुआवजा घटाकर 50000 किया जा सकता है। वो सस्ती जाने हैं। इसीलिए तो हम जनरल डिब्बे ट्रेन के आगे और पीछे लगाते हैं ताकि दुर्घटना की स्थिति में पहला नंबर उनका आये। आखिर उनका टिकट का रेट ही कितना होता है। 

           मैं -- क्या अब मरने वाले का मुआवजा टिकट के रेट से तय होगा ?

          अधिकारी -- देखिये अब पहले जैसी धांधली नही चल सकती। अब रेल मंत्री चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। उन्हें सारा हिसाब आता है। कुछ दिन में वो रेल की कायापलट कर देंगे। 

            मैं -- लेकिन रेल मंत्रालय कोई ठोस काम क्यों नही करता ?

           अधिकारी -- कैसे नही करता ? हमने अभी-अभी तत्काल टिकटों का समय बदला है। अगले तीन महीनो में  हम ये समय दुबारा बदल देंगे। ऐसा हम हर तीन महीने बाद करने वाले हैं। हमने रेल टिकिट कैंसिल करवाने पर वापिस मिलने वाले पैसे को घटाकर वहां पहुंचा दिया है की कोई टिकट कैंसिल करवाये या न करवाये कोई फर्क नही पड़ता। अगर टिकिट कैंसिल करवाने के कारण रेलवे को जो आमदनी हुई है उसके आंकड़े जारी कर दिए जाएँ तो वो जातिगत जनगणना के आंकड़ों से ज्यादा विस्फोटक हो सकते हैं। 

              मैं -- लेकिन सुरक्षा के सवाल ---

             अधिकारी ---- रेल की आमदनी, रेल मंत्री और सरकार तीनो पूरी तरह सुरक्षित हैं।

Tuesday, July 28, 2015

Vyang -- No Politics Please !

गप्पी -- हम गाहे बगाहे ये बात सुनते रहते हैं की कृपया इस मुद्दे पर राजनीती ना करें। कल पंजाब के गुरदासपुर में आतंकवादी हमला हुआ। कई लोग मारे गए। पंजाब के मुख्यमंत्री बादल साहब का बयान आया की आतंकवादी सीमा पार से आये थे इसलिए ये राज्य का मामला नही है। संसद में विपक्ष ने जब इस पर गुप्तचर असफलता का आरोप  लगाया तो वेंकैया नायडू ने कहा की आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीती नही की जानी  चाहिए। विपक्ष के लोगों को तो एक बार जैसे सांप सूंघ गया। ये बात उस पार्टी के नेता और खुद वो मंत्री कह रहे हैं जो लगभग सारी राजनीती इसी मुद्दे पर करते रहे हैं। पिछली  UPA सरकार का उन्होंने ये कह कह कर जीना हराम कर दिया था की ये सरकार देश की सुरक्षा के मामले पर असफल है।

                 इससे पहले जब भूमि बिल पर विपक्ष ने विरोध जताया था तब भी सरकार ने कहा था की विपक्ष को देश के विकास के सवाल पर राजनीती नही करनी चाहिए। सरकार बार बार विपक्ष को ये याद दिलाती है की भैया इन मामलों पर राजनीती मत करो। लेकिन विपक्ष है की मानता ही नही है। वह हमेशा गलत चीजों पर राजनीती करता है जैसे आतंकवाद, महंगाई, बेरोजगारी, भूमि बिल इत्यादि। अब अगर विपक्ष इन मामलों पर राजनीती करेगा तो देश का क्या होगा ?

                     इसलिए मेरा सरकार को सुझाव है की वो संसद में एक बिल लेकर आये और उसमे तय कर दिया जाये की किन किन मुद्दों पर राजनीती की जा सकती है। और उन मुद्दों पर राजनीती करने के लिए संसद का एक विशेष सत्र हर साल बुलाया जाये। इसके अलावा बाकि जो भी संसद के सत्र हों उनमे विपक्ष को राजनीती करने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इन सत्रों में विपक्ष का काम केवल हाथ ऊपर करना तय कर दिया जाये वो भी तब जब सरकार कहे।

                     राजनीती करने के लिए जो विशेष सत्र बुलाया जाये उसमे इस तरह का काम रक्खा जाये जैसे राजनीती पर चुटकुले सुनाना, होली खेलना और होली के गीत गाना जिनमे कुछ गालियों की भी छूट दी जा सकती है। संसद से वाकआउट करने और कार्यवाही रोकने जैसे प्रोग्राम भी केवल इसी सत्र में किये जा सकते हैं। कितना अच्छा लगेगा जब संसदीय कार्य मंत्री विपक्ष के किसी नेता पर कोई चुटकुला सुनाएंगे और विपक्ष उसका विरोध करते हुए वाकआउट करेगा। विपक्ष के वाकआऊट की तारीफ करते हुए सत्ता पक्ष के लोग तालियां बजायेंगे और प्रदर्शन की प्रशंसा करेंगे। संसद में एकदम राष्ट्रीय एकता का नजारा होगा।

                       बाकि सत्रों में इस पर रोक का बिल पास होने के बाद जो नियम बनाएं जाएँ उनमे कुछ इस तरह के हो सकते हैं।

        १. सत्र के दौरान विपक्ष के सदस्य मुंह पर कपड़ा लपेट कर आएंगे लेकिन वो काले रंग का नही होना चाहिए।

        २. सरकार किसी बिल पर जब हाथ उठाने के लिए कहेगी तब सभी सदस्यों को पार्टी से ऊपर उठकर हाथ उठाना होगा।

        ३. अचानक कोई घटना घटित होने पर अगर विपक्ष को लगता है की उसे सदन में उठाया जाये तो वो उसे लिखकर संसदीय कार्य मंत्री को देंगे और मंत्री उसकी भाषा कागज पर लिखकर देंगे। उसके अलावा कोई शब्द नही बोला जायेगा।

          ४. किसी मंत्री का कोई घोटाला सामने आता है तो उसे राष्ट्रीय कर्म माना  जायेगा और जब तक सरकार के अंदरुनी मतभेदों के कारण मंत्री को हटाने की नौबत नही आएगी विपक्ष तब तक इंतजार करेगा। ऐसा समय आने पर सरकार विपक्ष को सुचना देगी और विपक्ष उसका इस्तीफा मांग सकता है। इसके अलावा किसी भी मंत्री का इस्तीफा मांगना देशद्रोह माना जायेगा।

           ५.  प्रधानमंत्री से किसी भी मामले पर बयान देने को नही कहा जायेगा और प्रधानमंत्री केवल अपने विदेशी दौरों पर बयान देंगे। और इस पर पूरा देश प्रधानमंत्री के साथ है ये संदेश देने के लिए विपक्ष के सभी सदस्यों द्वारा मेज थपथपाना जरूरी होगा।

            ६. बजट पर विपक्ष के बहस करने पर पाबंदी रहेगी और केवल सत्ता पक्ष के लोग उस पर बोल सकते हैं।

            ७. देश की सभी संवैधानिक संस्थाए मंत्रियों के नीचे और इशारे पर काम करेंगी। संविधान को सरकार के अधीन माना जायेगा। अब तक जो सरकार को संविधान के अधीन माना जाता है वो गलत है और इस भूल का सुधार कर लिया जायेगा। 

            ८. उच्चतम न्यायालय के जजों की नियुक्ति प्रधानमंत्री करेंगे और उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री का होगा। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अगर चाहें तो अपने परिवार के सदस्यों की राय ले सकते हैं।

            ९. अगर कोई न्यायिक बैंच दो सदस्यों की है तो  अटार्नी जनरल को बैंच का तीसरा सदस्य माना जायेगा।

            १०. न्यायालय के सभी फैसले मंत्रिमंडल की छानबीन और अनुमति के अधीन रहेंगे। 

            ११.  चुनाव की घोषणा के बाद ही विपक्ष सरकार की आलोचना कर सकेगा। शेष समय सरकार की आलोचना पर पाबंदी रहेगी। 

             १२. किसानों और मजदूरों से संबन्धित किसी भी मांग को विकास विरोधी, अल्पसंख्यकों से संबंधित मांगो को तुष्टिकरण और महिलाओं से संबन्धित मांगों को संस्कृति विरोधी माना जायेगा। 

             १३. संविधान संशोधन बिल पर जो दो- तिहाई बहुमत का प्रावधान है उसे सदन की नही बल्कि सत्तापक्ष की सदस्यता का दो-तिहाई माना जायेगा।

             १४.  ये सभी नियम सरकार के स्थाईत्व को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं इसके बावजूद देश के दुर्भाग्य से अगर भाजपा की सरकार चली जाती है तो ये नियम समाप्त मान लिए जायेंगे। 

 

खबरी -- उम्मीद करता हूँ की सरकार तुम्हारे सुझावों को प्रत्यक्ष रूप से भी लागु करेगी।

Friday, July 17, 2015

Vyang -- हमारी प्रगतिशील शिक्षा व्यवस्था और छात्रों की गुंडागर्दी

गप्पी -- मुझे ये इसलिए लिखना पड रहा है क्योंकि सारे देश से छात्रों की गुण्डागर्दी के समाचार आ रहे हैं। पहला समाचार केरल से है जहां छात्र इस बात को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे की पढ़ाई शुरू होने के इतने दिन बाद भी स्कूलों में किताबें नही बांटी गयी जो सरकार को बांटनी थी। अब ये तो हद दर्जे की गुंडागर्दी है की सरकार को क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए ये भी छात्र बताएंगे। छात्रों को तो सरकार का धन्यवाद करना चाहिए की कम से कम स्कूल तो खुले हैं। अगर वो भी नही खुलते तो क्या कर लेते। जैसा की नियम है और कानून में प्रावधान है, गुंडों को सुधारने का काम पुलिस का होता है। सरकार ने संविधान के अनुसार कार्यवाही करते हुए इन गुंडा छात्रों को सुधारने का काम पुलिस को सौंप दिया। उसके बाद छात्रों की जो रक्तरंजित तस्वीरें सोशल मीडिया में छपी उन्हें देखकर मुझे विश्वास हो गया की छात्र सुधर गए होंगे। 

                         दूसरी खबर हरियाणा से आई जहां नर्सिंग की छात्राएं कोर्स पास करने के बाद डिग्री की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही थी। बोलो, अब लड़के तो लड़के, लड़कियां भी प्रदर्शन कर रही हैं। समाज का नैतिक स्तर कहां पहुंच गया है। हरियाणा में पहले ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान बड़े जोर शोर से चल रहा है। वहां #SelfieWithDaughter का अभियान भी बहुत जोर शोर से चल रहा है और पूरे देश में चर्चा में भी है। अब अगर वहां बेटियां पढ़ने के बाद डिग्री जैसी तुच्छ चीज के लिए प्रदर्शन पर उत्तर आएँगी तो ये तो साफ साफ गुंडागर्दी हुई और इससे राज्य की छवि खराब होगी। जाहिर है की पूरे देश में एक ही संविधान लागु है और आपको मालूम ही है की उसमे गुंडों को सुधारने का काम पुलिस को सौंपा गया है। सो हरियाणा की सरकार ने भी संविधान का सम्मान करते हुए ये काम पुलिस को दे दिया। बाद में वहां की छत्राओं की तस्वीरें भी बहुत उत्साहवर्धक थी की हमारी पुलिस अपना काम कितना बखूबी करती है और हम हैं की हमेशा पुलिस को कोसते रहते हैं। अब मेरी हरियाणा की उन बेटियों के माँ बाप को सलाह है की वो चाहें तो खून टपकती हुई बेटियों की selfie पोस्ट कर सकते हैं। सरकार बेटियों को बचाने और पढाने के लिए कटिबद्ध है और उसने कल ही फ़िल्मी हीरोइन परिणीति चोपड़ा को इस अभियान की ब्राण्ड अम्बेसडर बनाया है। 

                             तीसरी खबर गुजरात से है जहां एक सरकारी सहायता प्राप्त लॉ कालेज की सीटें 300 कम करके इतनी ही सीटें प्राइवेट कालेजों को दे दी हैं। अब इस पर हल्ला हो रहा है। कोई बड़ा आंदोलन नही हो रहा क्योंकि इस तरह छोटी बातों पर आंदोलन की परम्परा गुजरात में खत्म हो गयी है। यहां आंदोलन करने के लिए दूसरे महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं जैसे सड़क के बीच में आने वाले मंदिरों और मजारों को हटाने के मुद्दे। खैर, मेरा केवल ये कहना है की गुजरात की पहचान व्यवसाय से है और अगर सरकार शिक्षा के व्यवसाय को बढ़ावा नही देगी तो गुजरात इस क्षेत्र में पिछड़ सकता है। और अगर वो इस क्षेत्र में पिछड़ गया तो गुजरात की तो पहचान ही खत्म हो जाएगी। आखिर इसी माहौल के कारण तो हमारे उद्योगपति गुजरात में निवेश करने के लिए टूट पड़ते हैं। ऐसा भी नही है की सरकार शिक्षा के गिरते स्तर से चिंतित नही है। खुद मुख्यमंत्री ने इस पर चिंता व्यक्त की है ठीक उसी तरह जैसे हमारी सरकारें महंगाई और दूसरे मुद्दों पर चिंता व्यक्त करते रहते हैं। उन्होंने गुजरात में शिक्षा का स्तर उपर उठाने के लिए प्रयास भी किये हैं. कुछ लोगों का मानना है की चार-चार हजार की फिक्स पगार पर अध्यापकों की नियुक्ति करोगे तो शिक्षा का स्तर तो गिरेगा ही। लेकिन सरकार इससे सहमत नही है। इस साल दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में गुजरात में रिकार्ड तोड़ बच्चों को फेल कर दिया गया। सरकार का कहना है की ऐसा उसने शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने के लिए किया। वैसे भी जब ये बच्चे शिक्षा पूरी करके नौकरी के लिए आवेदन करते हैं तो वहां की परीक्षा में फेल हो जाते हैं। इसलिए सरकार ने केवल उन बच्चों को पास करने का फैसला किया है जो बिना स्कूलों, अध्यापकों और बिना किसी सहायता से इधर उधर से अपने खुद के प्रयासों से पढ़कर पास हो सकें। इससे भविष्य में नौकरी के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में उनके पास होने की सम्भावना बढ़ जाएगी। और सरकार इस के लिए लगातार प्रयास  करेगी की बच्चों को स्कूलों में कम से कम पढ़ाया जाये ताकि वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें। 

                      इन  सारी खबरों को देखने के बाद मुझे तो पूरा यकीन हो गया है की हमारी शिक्षा व्यवस्था प्रगति कर रही है। और जरूरत इस पर और ज्यादा बजट खर्च करने की नही है, बल्कि छात्रों की गुंडागर्दी रोकने की है। इसलिए सरकार को चाहिए की वो अगले बजट में शिक्षा के लिए रखे गए पैसे का एक हिस्सा पुलिस पर खर्च करने का प्रावधान भी रक्खे। 

 

खबरी -- सरकार कर ही रही है थोड़ा तो भरोसा रक्खो।

Wednesday, July 15, 2015

Vyang -- बस टल गया परमाणु खतरा

गप्पी -- एकदम ताजा खबर है की ईरान ओर अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हो गया है। अब दुनिया को घबराने की कोई जरूरत नही है। दुनिया को केवल उन परमाणु हथियारों से खतरा है जिन्हे अमेरिका अपने लिए खतरा मानता है। या फिर उन हथियारों से खतरा है जो अमेरिका द्वारा किसी देश को धमकाने के आड़े आते हैं। 

              इस बातचीत में अमेरिका के साथ जो दूसरे देश शामिल थे उन सब देशों के पास परमाणु हथियार हैं। लेकिन उनसे दुनिया को कोई खतरा नही है। क्योंकि ये हथियार इन्होने एक दूसरे के खिलाफ बनाये हैं, दुनिया के खिलाफ नही बनाये। और ये सब सभ्य देश हैं बाकि की दुनिया जंगली है। अगर उनके पास परमाणु हथियार होंगे तो उन्हें असुरक्षित माना जायेगा। जब भारत ने परमाणु विस्फोट किया था तब भी अमेरिका ने प्रतिबंध लगाये थे परमाणु अप्रसार का नाम लेकर। अब इस समझौते के बाद भी अमेरिका ने कहा है की इससे परमाणु प्रसार रुकेगा। यानि इन पांच महाशक्तियों के अलावा किसी को परमाणु हथियार बनाना तो छोडो, शान्तिपूर्ण कामों के लिए भी परमाणु क्षमता विकसित करना अंतर राष्ट्र्रीय अपराध है। 

            कुछ लोगों का कहना है की अमेरिका ने इराक, लीबिया, सीरिया और दूसरे मुल्कों में जो किया, क्या वो अपराध नही था। इन देशों के पास तो परमाणु हथियार भी नही थे।अमेरिका का कहना है की उसने इन देशों में लोकतंत्र की स्थापना कर दी है। अब वहां हर आदमी सरकार होने का दावा कर रहा है कितना विस्तृत लोकतंत्र है। इसलिए दुनिया को उसका आभार मानना चाहिए। लेकिन लोग अहसान फरामोश हो गए हैं। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है की अमेरिका ने इन देशों में जो किया वो केवल इसीलिए कर पाया की इन देशों के पास परमाणु हथियार नही थे। इसी डर से की अमेरिका उनके साथ भी ये कर सकता है ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देश न्यूनतम प्रतिरोध के लिए परमाणु हथियार बनाना चाहते हैं। 

                 लेकिन अमेरिका अपने हथियारों को दुनिया के लिए सुरक्षित मानता है। इसके बावजूद मानता है की वो अकेला ऐसा देश है जिसने परमाणु हथियारों का प्रयोग किया है। उसने हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु हमला किया था तब जापान के पास परमाणु हथियार नही थे। अगर होते तो क्या अमेरिका ये हमला कर सकता था ? अगर रूस के पास परमाणु हथियार नही होते तो क्या अमेरिका अब तक उसका वजूद रहने देता। 

                   लेकिन छोडो इन बातों को, अब जब अमेरिका कह रहा है की अब दुनिया को उसके अलावा और किसी से खतरा नही है तो दुनिया को मान लेना चाहिए। लेकिन लोग कह रहे हैं की दुनिया को तो हमेशा उससे ही खतरा रहा है, बाकि तो किसी से था ही नही। आप ऐसा मत सोचिये की अमेरिका से खतरा केवल उसके दुश्मनों को ही है। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप अमेरिका पर पक्षपात का इल्जाम लगा रहे हैं। आप पाकिस्तान को देख लीजिये। पिछले दस सालों में अमेरिकी ड्रोन हमलों में वहां के 85000 लोग मारे जा चुके हैं। वो तो अमेरिका का मित्र देश है। क्या आप अब भी अमेरिका की तठस्थता पर शक करते हैं। अब हम अमेरिका के मित्र बनने की तरफ बढ़ रहे हैं तो निकट भविष्य में हमे भी अमेरिकी पक्षपात विहीन नीति का उदाहरण मिल सकता है। 

                    एक बात है जो मुझे समझ नही आ रही है की दुनिया को खतरा उन परमाणु हथियारों से है जो मौजूद हैं या उनसे है जो अभी बने नही हैं। अगर परमाणु हथियारों को ये इतना ही बड़ा खतरा मानते हैं तो ये उन्हें खत्म क्यों नही कर देते। ईरान से बातचीत में जाते वक्त अगर ये रास्ते में अपने परमाणु हथियारों को भी खत्म करने की बात कर लेते तो दुनिया में किसी दूसरे देश को इन हथियारों की जरूरत ही नही पड़ती। 

 

खबरी -- पुरानी कहावत है की पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

Monday, July 13, 2015

Vyang -- अब पुलिस को सुरक्षा की जरूरत है

गप्पी -- ताजा खबर आई है की उत्तरप्रदेश के एक IG रैंक के पुलिस अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय में जाकर अपने लिए सुरक्षा की मांग की है। ये तो हद हो गयी। अगर पुलिस अधिकारी को खुद डर लग रहा है तो लोग किसके पास जाकर सुरक्षा की मांग करें। और ये अधिकारी कोई छोटे मोटे अधिकारी नही हैं। 

                      इससे एक बात का पता चलता है की पुलिस किसी को सुरक्षा नही दे सकती। जब तक इन अधिकारी का झगड़ा वहां के एक बड़े राजनीतिज्ञ से नही हुआ था उस समय ये क्या कहते होंगे। जब कोई आम आदमी इनके पास सुरक्षा मांगने आता होगा तो ये कहते होंगे की लोकल पुलिस सक्षम है उसे सुरक्षा देने में। किसी किसी को किसी नेता की तरफ से धमकी मिलने का मामला भी आता होगा। तब ये उस आदमी से क्या कहते होंगे? मैं अनुमान नही लगा पा रहा हूँ। जैसे कानून अपना काम करेगा, या की तुम्हारे पास कोई पुख्ता सबूत है नेताजी के खिलाफ या की जाओ और रिपोर्ट दर्ज करवाओ। शायद इसी तरह का कोई जवाब देतें होंगे। लेकिन आज एक ही दिन में पूरे सूबे की उस पुलिस से उनका विश्वास उठ गया जिसके वो IG हैं। मैं उस आदमी के बारे में सोच रहा हूँ जो इस पुलिस के पास सुरक्षा मांगने जाता है क्या वो ठीक करता है या उसे भी केंद्र के पास जाना चाहिए। 

                   मुझे नही मालूम की मामले की सच्चाई क्या है। उत्तरप्रदेश के राज्यपाल महोदय का बयान है की ये एक पॉलिटिकल मामला है। बहुत लोगों को ऐसा ही लगता है की ये पॉलिटिकल मामला है। शायद अधिकारी राजनीती में जाने की सोच रहे हों। या किसी ने उन्हें टिकट की ऑफर की हो। अगर ऐसा है तो भी कोई गुनाह नही है। अगर सचमुच में उन्हें और उनके परिवार को खतरा है तो ये थोड़ा गंभीर बात है। उन्हें ये भी बताना चाहिए की क्या पुलिस वाकई आम आदमी को सुरक्षा देने की स्थिति में है। उनके पूरे कैरियर में क्या कभी उन्हें महसूस हुआ की आम आदमी केवल भगवान भरोसे है। और अगर उन्हें केंद्र से सुरक्षा मिल भी जाती है तो भी प्रदेश के बाकि लोगों का क्या होगा। उन्हें सुरक्षा कौन देगा ?

                  इन अधिकारी महोदय को ये भी बताना चाहिए की कैसे पुलिस किसी नेता के एक फोन पर किसी शरीफ आदमी को थाने में नंगा करके पीट सकती है। और कैसे और किन नियमो के अनुसार हमारे देश की पुलिस काम करती है। मैं ये इसलिए कह रहा हूँ की जब उन्होंने ये खुलासा कर ही दिया है की पुलिस नेताओं के इशारे पर काम करती है तो बाकि चीजें भी साफ कर देनी चाहियें। आखिर उनका काफी लम्बा अनुभव रहा है। 

                    एक और जो आरोप इन महोदय ने लगाया है वो ये है की उत्तरप्रदेश की पुलिस ने उनके खिलाफ बलात्कार का झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया है। ये भी एक खुलासा ही है की पुलिस झूठे केस दर्ज करती है। वैसे लोगों को तो इस बात का बहुत पहले से मालूम है परन्तु एक पुलिस अधिकारी का ये मानना मायने रखता है। उनके कार्यकाल के दौरान ऐसे कितने किस्से हुए होंगे उनका भी खुलासा उन्हें लगे हाथ कर देना चाहिए। 

                     उन्हें इस मामले में लोगों की सहानुभूति जरूर मिलेगी। क्योंकि हमारे यहां रिवाज है की जब दो गाड़ियों की टककर होती है तो हमेशा बड़ी गाड़ी का दोष माना जाता है। और जब मामला किसी नेता का हो तब तो किसी छानबीन की जरूरत ही नही समझी जाती। हमारे देश के नेताओं ने इतने दिन में अपनी सेवाओं से यही तो प्राप्त किया है। उनकी छवि ही उनकी उपलब्धि है। और ये छवि उन्होंने खुद बनाई है इसके लिए वो किसी दूसरे को दोष नही दे सकते, ठीक उसी तरह जैसे पुलिस की छवि खुद पुलिस की बनाई हुई है। 

                    इसलिए मैं ये चाहता हूँ की मामले का कोई ठोस हल निकले और सारे तथ्य और पुलिस और नेताओं की कार्यप्रणाली लोगों के सामने आये, जो की कभी नही होगा। आखिर आम आदमी को इतनी खास सुविधा कैसे दी जा सकती है। आम आदमी इस देश में हमेशा से असुरक्षित था और हमेशा रहेगा। उसे ना राज्य से सुरक्षा मिल सकती है और ना केंद्र से। 

खबरी -- पुलिस राज को माफ़ करो, अपनी रक्षा आप करो।( आम आदमी के लिए )